इंडिगो अब आपको पुष्पक युग में ले जाएगा
किसी एयरलाइंस के लिए यह तय करना कि उसके पैसेंजर किस पहनावे में यात्रा करें, कहीं शिव सेना जैसी नैतिक पहरेदारी तो नहीं. अब क्या एयरलाइंस भी समाज में नैतिक मूल्यों की यूं पहरेदारी करेगी.
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लंका पर विजय के बाद यदि श्री राम पुष्पक विमान की जगह इंडिगो चार्टर से अयोध्या लौटते तो यकीन मानिए सीता की अग्नि परीक्षा विमान की सिक्योरिटी चेक के वक्त ही कर ली जाती. लेकिन इंडिगो चार्टर सेवा ही क्यों? नाम से जाहिर है, इंडिया से बना इंडिगो. वहीं पुष्पक विमान तो लंकेश्वर का था यानी विदेशी.
दोहा(कतर) से मुंबई की यात्रा कर एक भारतीय महिला ने नई दिल्ली के लिए कनेक्टिंग फ्लाइट पकड़नी चाही. इस यात्रा के लिए उसने दोहा में ही इंडिगो की टिकट बुक करा ली थी. लिहाजा, उसे बस एक एयरबस से उतरकर, एयरपोर्ट पर नया बोर्डिंग पास लेने के बाद दूसरी एयरबस में बैठना था. लेकिन उसकी यात्रा में एक बड़ी रुकावट आ गई. यह रुकावट भी सुरक्षा घेरे को पार कर जहाज की एंट्री से ठीक पहले आई.
तथाकथित भारतीय महिला कुछ दिनों की छुट्टियां मनाने दोहा गई थी. आपको बता दें, सउदी अरब के बाद कतर इस्लामिक जगत का सबसे कट्टर देश है. लिहाजा, अपने दोहा प्रवास के दौरान महिला को शरीयत कानून का पूरा इल्म रहा होगा. संभव है कि महिला ने इस दौरान अपने कुछ अधिकारों पर वतन पहुंचने तक अंकुश लगा रखा होगा. बहरहाल, उसने दोहा से विमान पकड़ने के साथ ही उन अंकुशों को कम करना शुरू कर दिया था क्योंकि भारत शरियत कानून से नहीं बल्कि इंडियन पेनल कोड से चलता है. इसके बावजूद क्षत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर दिल्ली की जहाज बोर्ड करने से पहले इंडिगो के कर्मचारी को महिला की पोशाक पर आपत्ति हो गई और उसने महिला को बोर्डिंग पास होते हुए भी सफर नहीं करने दिया.
दोहा से साथ आ रहे महिला के कुछ को-पैसेंजर ने इंडिगों कर्मचारियों के बर्ताव पर आपत्ति दर्ज करानी चाही. लेकिन महिला की पोशाक पर उपजे अपने आक्रोश या फिर उत्तेजना के चलते कर्मचारियों ने उन्हें भी बोर्डिंग न करने देने की धमकी देकर चुप करा दिया. आधे घंटे तक चले इस नाटक के बाद आखिरकार कर्मचारियों ने महिला को जहाज में नहीं घुसने दिया और वह जहाज दिल्ली के लिए रवाना हो गया. अंतत: महिला को अपने अधिकारों को अभिव्यक्त करने की जिद छोड़नी पड़ी. उसने अपने बैग से एक अदद कपड़ा निकालकर और पहना जिसके बाद ही इंडिगो कर्मचारियों ने दिल्ली जा रहे अगले विमान में महिला को बैठने दिया. यह बात अलग है कि दोहा से यात्रा कर आ रही महिला की पोशाक पर उसके को-पैसेंजर्स को न तो आक्रोश महसूस हुआ और न ही उत्तेजना का एहसास.
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