बिहार के शराबियों का नया ठिकाना 'मयखाना एक्सप्रेस'!
सूखा लातूर और देश के दूसरे हिस्सों में है लेकिन प्यास क्या होती है, इसका दर्द तो बिहार वालों से पूछिए. बिहार के शराब प्रेमियों से. वे अपनी प्यास बुझाने के लिए हर तरकीब अपना रहे हैं. दूरियों के मायने खत्म हो गए हैं.
-
Total Shares
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला...
ये हरिवंश राय बच्चन की पंक्तियां है. मधुशाला से. वैसे बिहार के पीने-पिलाने वाले चाहें तो इसे मुकेश के दर्द भरे गाने को तौर पर भी देख सकते हैं. अगर सोच पॉजिटिव है तो इसी को उत्साह बढ़ाने वाली लाइनों के तौर पर भी देख लीजिए. बिहार के शराब प्रेमी परेशान हैं. आखिर उन्हें सबसे बड़ा धोखा मिला है! नीतीश कुमार चुनाव से पहले शराबबंदी की बात कर रहे थे. सभी को लगा कि महिलाओं को लुभाने के लिए ये चुनावी जुमला होगा. ऐसा कुछ होगा नहीं. सरकार क्यों चाहेगी कि उसके राजस्व को घाटा हो. लेकिन हो गया उल्टा. सूखा लातूर और देश के दूसरे हिस्सों में है लेकिन प्यास क्या होती है, इसका दर्द बिहार वालों से पूछिए.
नीतीश ने फैसला ले लिया. पिछले महीने जब अचानक शराब पर पूरी तरह से बैन लगा तो पीने वालों के बीच हाहाकार मच गया. अजीबोगरीब बातें सामने आने लगीं. कई बीमार हो गए. कुछ बेहोश. किसी ने साबुन खाने की कोशिश की तो किसी ने अपने शरीर में आग तक लगाने तक की कोशिश की. परिवार वाले जैसे-तैसे अपने परिजनों को नशा मुक्ति केंद्र की ओर लेकर भागे. खैर, अचानक लगे झटके से अब सभी दारुबाज बेचारे संभलने हैं. लेकिन तलाश जारी है. इन तलाशों की दिलचस्प पोटली हर दिन खबरों के तौर पर सामने आ रही हैं. बिहार की सीमा से सटे नेपाल और झारखंड तक में मयखाने की तलाश हो रही है.
इन तलाशों का एक नया अड्डा है बिहार से दूसरे राज्यों को छूने वाली पैसेंजर ट्रेनें. जैसी परिस्थितियां नजर आ रही हैं, आप इन्हें मयखाना एक्सप्रेस भी कह सकते हैं. ये नाम खूब प्रचलित हो रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक दिलचस्प रिपोर्ट है जिसमें बताया गया है कि कैसे अप्रैल महीने में सीवान (बिहार) से बलिया के लिए जाने वाली पैसेंजर ट्रेनों के मंथली पास (MST) में 31 फीसदी तक बढ़ोत्तरी हुई. लोग ट्रेनों से सीमा पार करते हैं. अपनी 'प्यास' बुझाते हैं और फिर उधर से लौटने वाली पैसेंजर ट्रेन से घरवापसी.
छपरा (बिहार) से मऊ के बीच चलने वाली पैसेंजर ट्रेन (55017) का उदाहरण लीजिए. ये शाम छह बजे सुरईमानपुर रेलवे स्टेशन (उत्तर प्रदेश) पहुंचती हैं. देहात का इलाका है और केवल 40 मिनट की दूरी पर. स्टेशन के पास ही शराब की दुकान है. वे वहां अपनी काम की चीज लेते हैं. समय कम होता है इसलिए सबकुछ तेजी से होता है. आखिर लौटना भी तो है. 6.40 में 55132 छपरा पैसेंजर ट्रेन की वापसी का समय होता है. इसके जरिए पीने वालों की पूरी जमात वापस घर की ओर लौट जाती है. ये एक उदाहरण है. लेकिन निश्चित तौर पर कई और होंगे.
मतलब, बेचारे प्यास बुझाने वाले हर तरकीब अपना रहे हैं. दूरियों के मायने खत्म हो गए हैं. इनका बस चले तो पटना से पटियाला की दूरी भी खत्म हो जाएगी. उस पर भी बुलेट ट्रेन आ जाए तो सोने पे सुहागा! खैर, उसमें विलंब है. लेकिन बिहार में शराब बैन के बाद वाकई बहार तो बलिया से लेकर गाजीपुर और चंदौली में है.
आपकी राय