पेशाब करने वाले पर धार मारने वाली दीवार लंदन ही रहे तो ठीक, यहां तो सरकार बर्बाद हो जाएगी!
पेशाब करने पर उल्टी धार मारने वाला पेंट - सड़क पर पेशाब करने वालों को सबक सिखाने के लिए जो लंदन ने किया वो वहीं रहे अच्छा है. भारत में ये इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि मोदी सरकार को इसके लिए एक अलग मंत्रालय बनाना होगा. अलग अलग तरह के बजट देने होंगे. मतलब पेशाब के पेंट का बजट अलग होगा. पान गुटके का अलग होगा. दीवार पर राजू लव्स सलमा का पेंट अलग होगा.
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पेशाब करना या मूत्र विसर्जन करना एक प्राकृतिक क्रिया है. मगर मौका लगते ही यहां वहां दीवार गीली करना कौन सी क्रिया है? क्या इसपर कुछ कहने और बताने की जरूर है ?ऐसा आदमी सभ्य समाज में पशु कहलाता है बद्तमीज समझा जाता है. ऐसे बदतमीजों को सबक सिखाना टेढ़ी खीर होगी लेकिन जो रास्ता लंदन में निकाला गया है वहां के प्रशासन के सामने दंडवत होकर प्रणाम करने का मन हो रहा है. किसी अन्य देश की तरह लंदन में भी लोग मौका लगते ही दीवार गीली करने से नहीं चूकते. वहां पहले तो प्रशासन ने उन्हें खूब मनाया खूब भइया बाबू किया लेकिन बुरी आदत किसी के टोकने से रूकती है भला ? बाकी पेशाब एक प्राकृतिक क्रिया है किसी को लग सकता है कभी भी लग सकता है. लोग कहीं हैं. मगर अब लंदन में लोग ऐसा नहीं कर पाएंगे. जल्द ही वहां दीवारों पर एक खास तरह का पेशाब-रोधी पेंट लगाया जाएगा. यानी दीवार पर लगने वाला पेंट एक ऐसा पेंट होगा जिस पर पानी नहीं रुकता. रुक नहीं सकता. मतलब पेंट पर जैसे ही पानी या मूत्र गिरेगा बाउंस बैक होगा और धार उलटी पड़ जाएगी व्यक्ति स्वयं भीग जाएगा.
लोग यहां वहां पेशाब न करें इसलिए लंदन में दीवारों पर एक खास तरह का पेंट लगाया जा रहा है
जी हां भले ही ऐसे पेंट की बात सुनने में असंभव लगें लेकिन सेंट्रल लंदन के सोहो में यहां वहां पेशाब करने वाले लोगों को सबक सिखाने के लिए दीवारों में इस तरह के पेंट से पुताई शुरू हो चुकी है. असल में सोहो, सेंट्रल लन्दन के पॉश इलाकों में शुमार है. यहां कई सारे बार, रेस्त्रां, गेमिंग जोन और थियेटर हैं. इस कारण यहां नाईट लाइफ बड़ी तूफानी है लेकिन यहां रहने वाले लोगों की चुनौती थोड़ी थोड़ी दूसरी है.
क्योंकि यहां दिन के हर पहर भारी भीड़ रहती है लोग कहीं भी पेशाब कर देते हैं जिस कारण बदबू रहती है जिसने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. अब यहां की लोकल पार्षद आइचा लेस ने क्रांति का बिगुल फूंक दिया है. वो जगह जगह दीवारों पर ऐसा पेंट लगवा रही हैं जिसपर जैसे ही पेशाब की धार गिरेगी वो बाउंस बैक करेगी और पेशाब करने वाला खुद भीग जाएगा.
बताया जा रहा है कि यहां वहां दीवारों पर पेशाब करते लोगों से सोहो के लोग बहुत परेशान थे. सोहो के 3000 लोकल लोगों के अलावा स्थानीय दुकानदारों ने इसके लिए वेस्टमिंस्टर सिटी काउंसिल के पास अपनी अर्जी लगाई और उन्हीं के आदेश के बाद दीवारों पर इस तरह का चमत्कारी पेंट लगाया जा रहा है. लोगों ने इस पेंट पर पानी गिराकर इसकी विश्वसनीयता चेक की है और इसे समस्या के लिए कारगर पाया है.
हो सकता है कि इस पेंट के बारे में सुनकर लोग इसके बारे में थोड़ा गहराई से जानना चाहें. तो बता दें कि ये पेंट और कुछ नहीं बल्कि एक सुपरहाइड्रोफोबिक लिक्विड है. देखने में ये ट्रांसपेरेंट होता है और इसपर पानी की एक बूंद रुक नहीं पाती. पेंट एक वॉटर रेपेलेंट लेयर बनाता है जिसपर यदि पानी डाला जाए तो वो पानी वापस वहीं आ जाएगा जहां से उसे डाला गया है. सोचिये उस पेशाब करने वाले शख्स के बारे में. साथ ही ये भी सोचिये कि यदि वो इस पेंट की चपेट में आ जाता है तो क्या दृश्य होगा.
सोहो की दीवारों पर पेंट के साथ-एक क्यूआर कोड भी लगाया जाएगा. जिसे यदि स्कैन किया जाए तो व्यक्ति को नजदीक में पड़ने वाले पब्लिक टॉयलेट की जानकारी मिल जाएगी.. चूंकि पेशाब करने वाले लोग सोहो के लोगों और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं इसलिए सड़क पर पेशाब करने वालों को चेतावनी दी गई है कि अगर काउंसिल इंस्पेक्टर उन्हें पकड़ते हैं और तो उन्हें £150 यानि 15,070 रुपये का जुर्माना देना पड़ेगा.
भारत लंदन नहीं है तमाम चुनौतियां है जिसका सामना सरकार के अलावा आम लोगों को भी करना होगा
बहरहाल सोहो के मामले ने हम भारतीयों की एक बड़ी चिंता को हल कर दिया है. हमें इस बात का एहसास हो गया है कि जब लंदन जैसी विकसित जगह पर लोग खुले में दीवारें गीली कर रहे हैं. तो यदि यहां भारत जैसे विकासशील देश में लोग ऐसा कर रहे हैं. तो किसी को कोई हक़ नहीं कि इस अदना सी बात को मुद्दा बनाए और इसपर हो हल्ला मचाए. लेकिंन जो बात है ऐसे एंटी-पी वाले पेंट वहीं लंदन में ही अच्छे लगेंगे. यहां भारत में इसकी कल्पना इसलिए भी नहीं की जा सकती. क्योंकि अगर ये आईडिया यहां की सरकार को आ गया तो इसका सीधा असर हमें टेक्स पेयर्स की जेब पर देखने को मिलेगा.
हो सकता है ऊपर लिखी बात यहां भारत में बैठे इंसान को थोड़ा विचलित कर दे तो मैटर ये है कि लंदन के मुकाबले हम भारतीयों का मिजाज थोड़ा अलग है. हमारे यहां लोग दीवारों पर मूत्र विसर्जन के अलावा भी कई काम करते हैं. यानी यहां दीवारों पर पेशाब तो है ही साथ ही साथ पान-गुटके की पीकें और राजू लव्स सलमा है.
खुद सोचिये अगर इनसे निपटने के लिए सरकार कमर कसे तो उसे कितने पापड़ बेलने होंगे. कह सकते हैं कि ये इतना मुश्किल टास्क रहेगा कि मोदी सरकार को इसके लिए एक अलग मंत्रालय बनाना होगा और अलग अलग तरह के बजट देने होंगे. मतलब पेशाब के पेंट का बजट अलग होगा. पान गुटके का अलग होगा. दीवार पर राजू लव्स सलमा का पेंट अलग होगा.
अब आप खुद बताइये कि अगर सरकार दीवारों की सफाई पर निकली तो उसके खर्च का बोझ हम आम लोगों के कंधों पर नहीं आएगा तो फिर किसके कंधों पर आएगा? रही बात बदबू की तो क्योंकि विपरीत परिस्थितयों से एडजस्ट करना हम भारतीयों की पुरानी आदत है तो जब भी घर के बाहर निकलेंगे और किसी दीवार से होकर गुजरेंगे लगा लेंगे नाक पर रुमाल और अब दौर चूंकि मास्क का है तो उस रुमाल के ऊपर मास्क लगाकर खुद को डबल प्रोटेक्शन दे देंगे.
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