भगवंत मान ने कोई गुनाह नहीं किया, थोड़ी सी जो पी ली है!
पंजाब के सीएम भगवंत मान को लुफ्थांसा एयरलाइंस से उतारे जाने के बाद, जहां एक तरफ मान को शराबी बताकर आम आदमी पार्टी की खूब किरकिरी हो रही हो. लेकिन हमें इस बात को बखूबी समझना होगा कि पीकर सफर करने वाले मान ने कोई गुनाह नहीं किया है.
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ज़ाहिद की तौबा - तौबा रही घूंट - घूंट पर,
सौ बोतलें उड़ा के भी हुश्यार ही रहा.
शराब को फोकस करके लिखा गया ये शेर दाग़ देहलवी का है. मरहूम शायर ये शेर लिखकर जा चुके हैं लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके पास कोई ऐसा चश्मा था जिसके फोकस में भले ही शराब रही हो लेकिन उन्हें डिफोकस मोड या ब्लर में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान दिखे हों? अरे हंसने की बात नहीं है और मैटर सीरियस है.
भगवंत मान हाल ही में जर्मनी गए थे. उन्हें 17 सितंबर को भारत लौटना था. एक यात्री के हवाले से दावा किया गया है कि पंजाब के सीएम भगवंत मान को लुफ्थांसा एयरलाइंस से उतार दिया गया था. बताया गया कि एयरलाइंस को ये कदम सिर्फ इसलिए उठाना पड़ा क्यों कि सीएम मान नशे में थे. उन्होंने अंगूर की बेटी को कुछ इस अंदाज में गले लगाया था कि वो ढंग से खड़े तक नहीं हो पा रहे थे.
जैसे हाल हैं नशे की हालत में फ्लाइट से उतारे जाने के बाद भगवंत मान के साथ साथ आम आदमी पार्टी की खूब किरकिरी हो रही है
मामला पॉलिटिकल था तो खूब किरकिरी हुई. बीजेपी, अकाली दल और कांग्रेस समेत तमाम पार्टियां इस मामले में पार्टी के मुखिया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से स्पष्टीकरण मांग रही हैं. सवाल ये है कि 'हंगामा क्यों है बरपा 'मान' ने थोड़ी सी जो पी ली है. भगवंत मान ने डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है.
हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. चाहे वो बीजेपी हो या फिर अकाली उन्हें याद रखना चाहिए कि आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब में भगवंत मान किसी चीते से कम नहीं हैं. विषय जब चीता हो तो आखिर ये जमाना उस टैग लाइन को कैसे भूल बैठा जिसमें स्क्रिप्ट राइटर की कल्पना कुछ यूं थी कि चीता भी पीता है!
अब जबकि पंजाब के परिदृश्य में मान, केजरीवाल का मोस्ट लविंग चीता हैं. तो कहना गलत नहीं है कि पंजाब में चीता ही पीता है और बोतल को उसके पास से हटाना उसके मूल भूत अधिकारों का हनन है. बाकी विरोधी हां-हां शराब विरोधी उस शेर को आखिर कैसे भूल गए जिसमें शायर काफी पहले इस बात को कहकर परलोक सिधार गया कि-
शराब बंद हो, साक़ी के बस की बात नहीं,
तमाम शहर हैं, दो-चार-दस की बात नहीं.
बाकी वो तमाम लोग जो ये कह रहे हैं कि जहाज में बैठे मान इस हद तक नशे में थे कि वो खड़े तक नहीं हो पा रहे थे क्या उन्होंने फ़िराक़ का वो शेर नहीं पढ़ा जिसमें फ़िराक़ ने कहा था कि-
आये थे हंसते खेलते मयख़ाने में "फ़िराक़"
जब पी चुके शराब, तो संजीदा हो गए.
तो मेरे दोस्तों भले ही आप को ये लगे कि मान नशे में लड़खड़ा रहे हों लेकिन जिस सच्चाई को मीडिया और सोशल मीडिया ने हमसे छुपाया वो ये कि मान संजीदा हुए थे. और हां! न तो शराब ख़राब होती है. और न शराबी. गर जो ऐसा होता और शराब में नशा होता तो सिर्फ मान नहीं लुफ्थांसा भी नाचता.
सवालों के घेरे में शराब है तो मेरे भाई और मान के दुश्मनों दोनों कान खोल के सुन लो फिल्म नाजायज के उस गाने को जिसमें रीमा लागू के सामने अजय देवगन की उपस्थिति में नासिरुद्द्दीन शाह तक ने कह दिया था कि
बरसात के मौसम में
तन्हाई के आलम में
मैं घर से निकल आया
बोतल भी उठा लाया
अभी जिंदा हूं तो जी लेने दो
भरी बरसात में पी लेने दो
चलो इन पंक्तियों को इग्नोर मार भी दिया जाए तो क्या तब भी संवेदनाएं मर जाती हैं जब पंकज उदास की वो ग़ज़ल बजती है जिसके बोल हैं
दिल खुलता है वां सोहबत-ए-रिंदाना जहां हो
मैं ख़ुश हूं उसी शहर से मयख़ाना जहां हो
उन उजड़ी हुईं बस्तियों में दिल नहीं लगता
है जी में, वहीं जा बसे वीराना जहां हो
यारों, मुझे मुआफ़ रखो, मैं नशे में हूं
अब दो तो जाम ख़ाली ही दो, मैं नशे में हूं
यारों, मुझे मुआफ़ रखो, मैं नशे में हूं.
सवाल ये है कि इस आपाधापी भरे दौर में हम क्या इतने निष्ठुर हो गए हैं कि किसी को माफ़ न कर पाएं भले ही वो नशे में हो. अरे जब पंकज उदास तक ने कह दिया है तो तमीज और तहजीब एक तकाजा यही है कि अगर लोगों को मान का पीना गलती लग रही है तो बावजूद उसके उन्हें माफ़ कर दिया जाए.
बॉलीवुड या ये कहें कि हमारी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे गानों की भरमार है जिनमें शराब के महत्त्व पर चर्चा की गयी हैऔर बताया गया है कि खास होते हैं वो लोग जो सोमरस का रस लेकर अपना गला तर रखते हैं. बाकी नुसरत फ़तेह अली खान ने भी काफी पहले ये कहकर बात ख़त्म कर दी थी कि
फ़स्ल ए गुल है शराब पि लीजिये
ज़िद न कीजिये, जनाब पी लीजिये.
मयकशों मुझ तक घनघोर घटाएं आईं
तुम पे रहमत हुई, तौबा पे बालाएं आईं
पी लीजिये
पी लीजिये.
ऐसा बिलकुल नहीं है कि शराब के लिए मान की आलोचना करने वाले आलोचक अपनी बात न रखें. उन्हें पूरा हक़ है आलोचना का लेकिन ये तब हो जब कोई शराब को शराब की तरह नहीं बल्कि पानी की तरह पिये. अब चूंकि मान का मामला कुछ कुछ ऐसा ही है तो उन्हें पंकज उदास की ही उस ग़ज़ल को लूप में लगाकर सुनना चाहिए जिसमें कहा गया है कि
ये इंतजार गलत है के शाम हो जाये
जो हो सके तो अभी दौर-ए-जाम हो जाये
मुझ जैसे रिंद को भी तूने हश्र मे या रब
बुला लीया है तो, कुछ इंतजाम हो जाये
हुई महंगी बहत ही शराब, के थोड़ी-थोड़ी पिया करो
पियो लेकिन रखो हिसाब, के थोड़ी-थोड़ी पिया करो
के थोड़ी-थोड़ी पिया करो
के थोड़ी-थोड़ी पिया करो
बाकी मान ओकेजनल नहीं बल्कि रेगुलर ड्रिंकर हैं और दिन के ज्यादातर हिस्से में 'उसी' के साथ रहते हैं. शायद उन्होंने वो गाना आत्मसात कर लिया है जिसमें कहा गया है कि
तुम तुम हो हम हम हैं
न तुम कम हो
न हम कम हैं जानी
यार की है यारी निभानी
पीले पीले ओ मेरे राजा
पीले पीले ओ मेरे जानी.
तो भइया जब शेर ओ शायरी से लेकर बॉलीवुड के गाने तक सब ये कह रहे हों कि शराब पीना बुरा नहीं है. इसलिए मान को तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोपों पर कान नहीं देने चाहिए. फोकस उनका जाम पर रहे. गिलास पर रहे. सोडे-कोल्ड ड्रिंक पर रहे नींबू-प्याज और चखने पर रहे. बाकी दुनिया का क्या है उसका तो काम ही है कहना. उसने पहले भी कहा है. आज भी कह रही है और यक़ीनन आगे भी कहेगी.
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