( ड्रीम इंटरव्यू ) बिहार में दंगों पर हम 'उचित समय' पर काबू पा लेंगे : नीतीश कुमार
बिहार में दंगे हो चुके हैं विपक्ष लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जवाब तलब कर रहा है. ऐसे में तब क्या होगा जब किसी पत्रकार के सपनों में मुख्यमंत्री आ जाएं. क्या वो पत्रकार के सवालों के जवाब दे पाएंगे या फिर उनकी खामोशी सारे राज खुद बता देगी.
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नीतीश कुमार जी बड़े नेता हैं, इसलिए कई बार मेरे जैसे छोटे आदमी के सपने में भी आ जाते हैं. आज सुबह मुझसे बोले- "मैं तो एक बॉल हूं. भाजपा और कांग्रेस-राजद दोनों दो छोरों पर खेल रहे हैं. भाजपा वाले उछाल देते हैं, तो कांग्रेस-राजद के पास चला जाता हूं. कांग्रेस-राजद वाले उछाल देते हैं, तो भाजपा के पास चला जाता हूं. इसमें मेरा क्या कसूर?”
मैंने पूछा- "लेकिन ये सब आप मुझे क्यों बता रहे हैं?"
वे बोले- "इसलिए बता रहा हूं कि कल को अगर फिर से मैं कांग्रेस-राजद के पास देखा जाऊं, तो हैरान मत होइएगा."
उनका इतना कहना था कि मैं हैरान हो गया. मैंने पूछा- "क्या सचमुच ऐसा हो सकता है?"
वे बोले- "देखिए, आप लोग मुझे मौसम-वैज्ञानिक कहते हैं. लेकिन आप लोग सही नहीं कहते हैं."
नीतीश के बारे में विपक्ष यही कह रहा है कि वो बिहार संभालने में असमर्थ हैं
मैंने पूछा- "तो फिर सही क्या है?"
इसपर नीतीश जी धीमे से बोले- "मैं मौसम-वैज्ञानिक नहीं, बल्कि ख़ुद ही मौसम हूं. बदलता रहता हूं. बदलना मेरा स्वभाव है."
मैंने कहा- "ओके, ओके. समझ गया. आप मौसम की तरह बदलते हैं. बॉल की तरह उछलते हैं. बहुत ख़ूब. लेकिन यह बताइए, आप हैंडबॉल हैं या फुटबॉल हैं?"
वैसे सवाल तो यह हंसी-मज़ाक वाला था, लेकिन नीतीश जी थोड़े विचलित हो गए. अपनी ही बात में फंस गए थे. इसलिए बोले- "देखिए, मैं आपसे सामान्य बातचीत कर रहा हूं और आपने 'मुंहा-मुंही' शुरू कर दी. जितना कहना था, कह दिया. अब इंटरव्यू ख़त्म कीजिए."
उनका इशारा मैं समझ गया. वे कहना चाह रहे थे- बहुत हुआ, अब चलिए. मैंने पूछा- "चाय ख़त्म कर लूं?"
वे बोले- "अरे क्या बात करते हैं? इंटरव्यू ख़त्म करने के लिए कहा. चाय न पीने के लिए थोड़े कहा. आराम से पीजिए. कुछ और मन हो तो वो भी मंगा देते हैं."
मैंने पूछा- "वाह, और भी कुछ मंगा सकते हैं?"
वे बोले- "हां, हां… क्यों नहीं? पत्रकार बंधुओं के लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है. 'वो' क्या चीज़ है?"
मैं फिर हैरान हुआ. पूछा- "वो क्या?"
वे बोले- "अरे वही."
मेरी हैरानी और बढ़ गई. मैंने कहा- "वही क्या?"
वे बोले- "वही. अब आप समझ-बूझकर नासमझ बन रहे हैं."
यह बात नीतीश जी ने सही कही थी. नासमझ तो मैं हूं. लेकिन इतना भी नहीं. अब सब कुछ समझ गया था. मैंने कहा- "ओहोह… तो वही… ऐसे बोलिए न… लेकिन उसपर तो प्रतिबंध है?"
इसपर नीतीश जी ठठाकर हंसे. बोले- "प्रतिबंध तो है, लेकिन आपके लिए थोड़े है. आप कहेंगे, तो मंगा देंगे."
पहले मैं हैरान था. अब परेशान हो गया. बोला- "नीतीश जी, लेकिन मैं तो पीता नहीं हूं."
वे बोले- "कोई बात नहीं. किसी और के लिए ले जाइए."
इस बार मैं हैरान और परेशान दोनों हुआ. बोला- "अच्छा, तो मैं ले भी जा सकता हूं?"
बोले- "हां, हां, क्यों नहीं… बिहार में सब एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं. केवल आप ही इतना संकोच कर रहे हैं. मेरे राज में प्रतिबंध का मतलब वह नहीं, जो आप लोग समझते हैं."
मैंने कहा- "तो क्या होता है आपके राज में प्रतिबंध का मतलब?"
इस सवाल से नीतीश जी को लगा कि इसने फिर से "मुंहा-मुंही" शुरू कर दी है. बोले- "छोड़िए. जब आप पीते ही नहीं हैं तो बात ख़त्म. चाय ख़त्म हुई?"
मैंने कहा- "हां, बस ख़त्म ही समझिए. वैसे, आपके राज में दंगों पर प्रतिबंध है कि नहीं?"
वे बोले- "है. है क्यों नहीं?"
मैंने पूछा- "क्या वैसे ही, जैसे उसपर है?"
इसपर नीतीश जी थोड़े विचलित हुए और विचलन छिपाते हुए दार्शनिक बन गए. बोले- "दंगा क्या है? दंगा एक क्राइम है. जैसे सारे क्राइम हैं, वैसे ही दंगा भी है. बस आप लोगों की समझ का फेर है.हिन्दू हिन्दू को या मुस्लिम मुस्लिम को मार दे, तो आप लोग कहते हैं- क्राइम हुआ है. बस जैसे ही हिन्दू मुस्लिम को या मुस्लिम हिन्दू को मार देते हैं, तो आप लोग दंगा-दंगा चिल्लाने लगते हैं. बिहार में दंगा जैसा कुछ नहीं है.थोड़ा-बहुत क्राइम हुआ होगा, तो 'उचित समय' पर हम उसपर काबू पा लेंगे. चाय ख़त्म हुई?"
मैंने कहा- "हां, हां, ख़त्म ही है. वैसे, उचित समय से आपका क्या मतलब?"
इस सवाल से वे थोड़े नाराज़ दिखे. बोले- "आप नहीं समझिएगा. वोटर समझता है. हम हर काम वोटर के लिए करते हैं.लोकतंत्र है."
मैंने कहा- "वोटर कहता है, दंगा कराओ?"
वे बोले- "वोटर कहता तो नहीं है, लेकिन चाहता है. दंगा होता है, तो दूसरों के लिए उसके मन की कुंठा बाहर निकलती है. आप तो पत्रकार हैं न! मनोविज्ञान तो आपने पढ़ा नहीं होगा. लोगों की कुंठा को भी बाहर आने देना चाहिए.चाय ख़त्म हुई?"
कहां तो नीतीश जी 'वो' भी पिलाने को तैयार थे, कहां तीन बार पूछ चुके- 'चाय ख़त्म हुई?' तो मुझे लगा कि और सवाल-जवाब ठीक नहीं. मैंने कहा- 'नीतीश जी, मैं चाय भी नहीं पीता. चाय मैं पीता हूं, बातचीत के लिए. बातचीत ख़त्म, तो चाय भी ख़त्म. शुक्रिया."
फिर मेरी आंख खुल गई. मेरे मन ने कहा- नीतीश जी से हुई मेरी यह बात सही नहीं है और उन्होंने मुझे फ़ूल बनाया.
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