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Updated: 18 अगस्त, 2020 12:32 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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कोरोना (Coronavirus) के इस दमनकारी रवैये कि राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) बन लाख निंदा क्यों न हो. कह दिया जाए कि 'क्या ही बताएं भाईसाहब! इसके चलते 'जिन्नगी और पूरा इकोसिस्टम बर्बाद हो गया' लेकिन इस कोरोना नाम के पेंडेमिक की जो एक सबसे अच्छी बात रही वो थी कि इसके बलबूते वो तमाम टेंट, तंबूरे, किनातें, डंडे, झंडे हटा दिए गए जो नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) के विरोध में देश भर के अलग अलग हिस्सों में लगे थे. जिक्र नागरिकता संशोधन कानून का हुआ है तो हम शाहीन बाग (Shaheen bagh) को कैसे भूल सकते हैं. नागरिकता संशोधन कानून अगर कोई एक्शन फिल्म है तो शाहीन बाग़ को उस पिक्चर का मित्थुन चक्रवर्ती कहना कहीं से भी ग़लत नहीं है. याद करिये वो दिसंबर की सर्द रातें. जिस वक्त देश की एक बड़ी आबादी अपनी अपनी रजाई में अमेज़न प्राइम (Amazon Prime) या नेटफ्लिक्स (netflix) देखते हुए गर्मा गर्म मूंगफली खा रहे थे. क्रांति के कुछ मतवाले शाहीन बाग और जामिया मिलिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) में क्रांति का एक नया अध्याय लिख रहे थे. क्रांति देश के एक कानून के ख़िलाफ़ थी देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के ख़िलाफ़ थी. याद करिये वो दौर नागरिकता के नाम पर क्या क्या नहीं हुआ. नुकसान वगैरह जो हुआ सो अलग. दिल्ली इस क्रांति का केंद्र था और इसने दिल्ली चुनाव (Delhi Elections) को कैसे और किस हद तक प्रभावित किया न हमें कुछ ज्यादा बताने की ज़रूरत है और न ही आपको कुछ ज्यादा समझने की.

Shaheenbagh, Shahzad Ali,  CAA, BJP, Narendra Modi शाहीनबाग़ धरने के पुरोधा शहज़ाद के बीजेपी ज्वाइन करने के बाद बात जितनी भी हो लेकिन उन्होंने अपना काम कर दिया है

पूर्व में विवादों में रह चुका शाहीन बाग़ फिर चर्चा में है. कारण है वो सच जो धरने की शुरूआत में गायब हुआ और आज तक मिला नहीं हां मगर अब उसकी झलकी जरूर आई है. बात बीते दिन की है कोरोना को छोड़ दें तो देश का एक नागरिक शायद दूसरे से यही कह रहा हो 'सब चंगा सी' लेकिन, लेकिन, लेकिन बड़ा झटका तब लगा जब खबर मिली कि शहज़ाद ने अपने कुछ साथियों के साथ भाजपा जॉइन कर ली है.

कौन शहज़ाद ? अरे भइया ये वही हैं जिन्हें डर था कि 'कागज, उसका फ़ोटो स्टेट, लेमिनेशन कुछ भी दिखा लिया जाए नागरिकता तो जाएगी. नागरिकता जाने के इसी डर ने शहज़ाद एंड पार्टी को शाहीन बाग़ की चलती फिरती सड़क पर धरने के दम पर अपनी राजनीतिक रोटियां पकाने का मौका दे दिया. शहज़ाद साहब शाहीनबाग़ धरने के मुख्य आयोजकों में से थे. अब चूंकि शहज़ाद ने बीजेपी जॉइन की है तो इनका सबसे दिलचस्प बयान वो था जो इन्होंने पार्टी की सदस्यता लेते वक्त दिया. शहज़ाद ने कहा कि, ', मैं उन लोगों को गलत साबित करने के लिए बीजेपी में शामिल हुआ हूं जो बीजेपी को हमारा (मुसलमानों का) दुश्मन मानते हैं. सीएए की चिंताओं को लेकर हम उनके साथ बैठेंगे.

शहज़ाद का कुछ कहना इम्पॉर्टेन्ट नहीं है. इम्पॉर्टेन्ट हैं वो बातें जो इन्होंने कहीं. बात एकदम सीधी और साफ़ है. जब भाजपा मुसलमानों की दुश्मन नहीं है तो आखिर इन्होंने धरने की शुरुआत में ये नैरेटिव क्यों सेट किया जिसने आज दिल्ली को दो प्रमुख धड़ों हिंदू और मुस्लिम में बांट दिया. हमें ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि या तो शहज़ाद ख़ुद हद से ज्यादा भटके हुए हैं या फिर इन्होंने तब ये माना था कि मुस्लिम समुदाय एक ऐसी भेड़ है जिसमें एक को साध लो तो सब आ जाएंगे. सच में भइया बड़ा गड़बड़झाला है.

ये तो बात हो गयी शहज़ाद की अब अगर हम बीजेपी पर आएं तो यहां मामला 'अंधेर नगरी चौपट राजा वाला है' शाहीनबाग़ धरने को लेकर बीजेपी ने क्या कुछ नहीं कहा. इन्होंने तो ये तक बता दिया था कि धरने पर बैठी महिलाओं को जो आधा किलो का बिरयानी का डिब्बा मिल रहा है उसमें बोटियां कितनी हैं और उसे बनाने के लिए चावल कितने रुपए किलो वाला इस्तेमाल किया जा रहा है. विजय गोयल से लेकर मनोज तिवारी और कपिल मिश्रा से लेकर अनुराग ठाकुर तक आप किसी भी नेता को उठाकर देख लीजिए इन सभी लोगों ने शाहीनबाग़ को लेकर इतना ज्यादा कहा है कि अब शाहीनबाग़ के लोगों और भाजपा में दोस्ती के लिए बीच का कोई रास्ता बचा ही नहीं है.

सीधी बात है भइया आप किसी की वर्ड फेमस बिरयानी का नमक चेक करें. उसे घटिया बताएं फिर ये उम्मीद करें कि वो आपका दोस्त बन जाएगा. न भाई साहब न फैशन के दौर में गारंटी की इच्छा न तो रखनी चाहिए और न ही करनी चाहिए.

जनता कंफ्यूज इस बात को लेकर है कि जिन्हें कल तक विलेन बताया जा रहा था आखिर वो हीरो कैसे बन गए? माजरा क्या है? कौन सी जादू की छड़ी घूमी है.

सालों पहले एक फ़िल्म आई थी नाम था 'अंदाज़ अपना अपना' आमिर खान और सलमान खान इसके हीरो थे. फ़िल्म में परेश रावल की भूमिका भी निर्णायक थी जोकि डबल रोल में थे. फ़िल्म का एक डायलॉग आम जनमानस के बीच बहुत ही पॉपुलर हुआ था - मार्क मैं हूं तेजा इधर है. शहज़ाद के बीजेपी में जाने के बाद आम आदमी पार्टी की हालत फिलहाल कुछ कुछ ऐसी ही है.

इस पूरे मामले में सबसे मजेदार पक्ष आम आदमी पार्टी का है. शहज़ाद के भाजपा में जाने के फौरन बाद आप नेता सौरभ भारद्वाज ने एक ट्वीट किया है. ट्वीट में आप ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि बीजेपी ने चुनावी रणनीति के तहत शाहीनबाग़ में धरना करवाया था.

बात हवाहवाई न होकर के सौ टका खरी लगे इसलिए लिए सौरभ भारद्वाज ने प्रेस कांफ्रेंस की है. मीडिया से बात करते हुए सौरभ भारद्वाज ने कहा है कि, 'पहले दिल्ली का चुनाव बिजली-पानी के मुद्दे पर लड़ा जाता था, सड़क और प्रदूषण के मुद्दे पर लड़ा जाता था, लेकिन इस बार जो दिल्ली का चुनाव बीजेपी ने लड़ा वो शाहीन बाग के मुद्दे पर लड़ा गया.

आगे अपनी बात रखते हुए सौरभ ने कहा कि, "बीजेपी की चुनाव लड़ने की जो रणनीति होती है, वो कोई ऐसा नहीं होती कि प्रवेश वर्मा नाम का कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से ऐसी रणनीति बना ले या कोई अनुराग ठाकुर उसका फैसला कर ले. बकायदा उच्च स्तर के नेताओं द्वारा बैठकर रणनीति तैयार की जाती है कि इस चुनाव में रणनीति क्या रहेगी ? यह बाकायदा तय किया गया था कि दिल्ली का चुनाव बीजेपी शाहीन बाग के मुद्दे पर ही लड़ेगी.'

सौरभ की बातें कुछ ऐसी थीं कि कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए. हम भी होने वाले थे मगर तभी हमें पर्दे के पीछे से एक चेहरा नजर आया. थोड़ा करीब गए तो मिला कि अरे ये तो ओखला सीट से रिकॉर्ड वोटों से जीतें आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान हैं. याद दिला दें कि ये वही विधायक जी हैं जिनके चुनाव का आधार ही शाहीनबाग़ था. ख़ुद विधायक जी ने अपनी रैलियों में शाहीनबाग़ को एक बड़े मुद्दे की तरह पेश किया था और बहते वोटों की गंगा में हाथ धोए थे.

बहरहाल अब जबकि शहज़ाद बीजेपी में आ गए हैं और आम आदमी पार्टी और भाजपा एक दूसरे से उलट बातें कर रहे हैं तो साफ हो जाता है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं है. यहां कामयाब वही है जो ठगने की कला में पारंगत हो. बात जनता कि करें तो सावधानी हट गई है शाहीनबाग़ के चक्कर में बड़ी दुर्घटना घट गई है. बाकी आगे होई वही जो राम रचि राखा.

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बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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