बजट के साथ-साथ पाकिस्तान-चीन वाली कविताएं होतीं तो और मजा आता
Union Budget 2021: बजट आ गया है. कितना खौफ़ बजट का नहीं होता उससे ज्यादा खौफ़ न्यूज़ चैनल और उसपर बैठे पैनल से होता है. जैसा टाइम है बजट वाले पैनल में वीर रस के कवियों को भी बैठाना चाहिए. इतने अहम मौके पर गले की नस फुलाते हुए होनी चाहिए कुछ कविताएं, पाकिस्तान / चीन पर.
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Union Budget 2021: बजट आ चुका है. आरोप प्रत्यारोप के चलते विपक्ष के लोगों ने सिर्फ चाय पी है और नाश्ता स्किप कर दिया है. उधर आलोचकों ने भी आलोचना के उद्देश्य से पिछले 10-15 सालों के बजट का तुलनात्मक अध्ययन कर फैक्ट और फिगर तैयार कर लिए हैं कि तब मैगी का पैकेट 5 रुपए में आता था फिर मोदी सरकार ने ऐसा क्या किया कि अब वो 11 रुपए का मिल रहा है. मतलब माहौल तो ऐसा है कि इस समय सरसों के तेल और शक्कर की कीमतों से लेकर बालू मोरंग ईंट और खाद तक जिस जिस के दाम बढ़े सबका डेटा मौजूद है इन लोगों के पास. वहीं सरकार देश को यकीन दिला रही है कि विपक्ष और अपने को इकनोमिक एक्सपर्ट्स कहने वाले नक्कालों से देश सावधान रहे. अबकी जो बजट आया है इससे बेहतर बजट तो कभी आया ही नहीं. अच्छा मजे की बात ये भी है कि सरकार, देश की भोली भाली जनता को यही पाठ गुजरे साल भी पढ़ा चुकी थी.
बजट देश के आम आदमी के लिए मजेदार तब होगा जब उसमें पाकिस्तान और चीन को लेकर भी कोई बात होगी
कुल मिलाकर देखा जाए तो बजट आने से पहले और बाद का सीन होता बड़ा दिलकश और मजेदार है. जिन लोगों को ये नहीं पता कि कच्चा तेल लीटर में नहीं बैरेल में मिलता है और सिगरेट की कीमतें 'टैक्स' के कारण बढ़ती है वो तक इकोनॉमिक एक्सपर्ट बन सोशल मीडिया पर ऐसा ज्ञान बांचते हैं कि, अगर सोशल मीडिया पर लिखने के कारण राइटिंग में नोबेल या बतकही में बुकर मिलता तो तमाम लोगों के बीच कंपीटिशन देखने लायक होता.
अब सवाल है कि बजट के बीच सबसे ज़्यादा एंटरटेनिंग क्या होता है? यूं तो हल्वे से लेकर वित्त मंत्री के कपड़ों तक कई चीजें गौर करने लायक होती हैं मगर सबसे दिलकश होता है वो पैनल जो अलग अलग समय पर अलग अलग न्यूज़ चैनल पर आकर बजट के गुण और देश की ऐसी व्याख्या करता है कि बेचारा बजट भी सोचे कि मैं आया ही क्यों? ये समझदार लोग हैं. सब जानते - पहचानते हैं.
कभी टीवी चैनल के स्टूडियो में बैठे इस पैनल पर गौर करियेगा ये बिंदु से ज्यादा हैं और हेलन से कम हैं. क्या खतरनाक लॉजिक होते हैं इन लोगों के पास, ऐसे कि हैरत में आकर इंसान दांतों तले अपनी अंगुलियां दबा ले. बजट वाले दिन और उसके दो तीन दिन बाद भी बड़ा मनमोहक माहौल रहता है टीवी चैनल्स पर.
लेकिन दुनिया का दस्तूर है. हर चीज परफेक्ट नहीं होती. कह सकते हैं कि जब बजट के नाम पर इतना ताम झाम और तीन तड़ाका होता है. इस हद तक उसे लेकर खौफ़ बनाया जाता है तो क्यों नहीं बजट पैनल में वीर रस के कवियों को भी बैठाया जाए. बजट का लाइव कवरेज बड़ा अहम होता है और ये एंटरटेनिंग तभी लगेगा जब वीर रस के अपने कवि. गले की नस फुलाते हुए कुछ 'बजट स्पेशल' कविताएं चीन, शी जिनपिंग पाकिस्तान और इमरान खान को समर्पित करेंगे.
कसम से बड़ा मजेदार मंजर होगा अब तो खैर बजट निकल ही गया है लेकिन अगले साल न्यूज़ चैनल वाले इसे ट्राई कर सकते हैं. मजे की पूरी गारंटी है. हमारा दावा है चैनल कोई भी हो TRP इतनी और इस हद तक आएगी कि चैनल इसे बटोरकर एक जगह नहीं रख पाएगा.
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