ज़िंदगी में कोई ऐसा हो जो घर के बाहर पड़े अख़बार उठाए और घर को चोरों की बुरी नजर से बचाए!
यूपी के गाजियाबाद में चोरों ने बड़े ही अनोखे अंदाज में अपना काम दिखाया. घर सूना है या नहीं, यह जानने के लिए उन्होंने अखबार का इस्तेमाल किया. कैसे हुई यह पूरी वारदात, जानिए...
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कौन हैं वो लोग जो इस कलयुग वाले युग में चोरों को हल्के में लेते हैं? बात ये है गुरु कि चोर बनना is not a children's play. It is undertaker's play. जैसा माहौल है हर कोई, या ये कहें कि कोई भी उठाया गीरा चोर नहीं बन सकता. स्किल चाहिए साथ ही चाहिए बादाम खाकर तेज किया गया दिमाग. हो सकता है कि चोरों की महत्ता बताती ये बातें कोरी लफ्फाजी नहीं हैं. यूपी के और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में जो हुआ उसे देखकर तो हरगिज नहीं. गाजियाबाद में अवंतिका फेज 2 में चोरों के एक गिरोह ने अखबार के जरिये ये पता लगाया कि परिवार का कोई सदस्य घर पर है या नहीं और फिर जब उनका विश्वास पक्का हो गया उन्होंने चोरी की और वो करीब 10 लाख रुपये की नकदी और गहने लेकर फरार हो गए. मामला प्रकाश में तब आया जब वैष्णो देवी की यात्रा पर गया परिवार वापस लौटा. बात यदि इस परिवार की हो तो परिवार में एक बुजुर्ग रविंद्र कुमार बंसल उनकी पत्नी और एक बेटी हैं.
यूपी के गाजियाबाद में जैसी चोरी हुई है वो किसी को भी हैरत में डाल सकती है
मामले के तहत जो जानकारी आई है अगर उसपर यकीन करें तो परिवार 29 अक्टूबर को वैष्णो देवी की यात्रा के लिए अपने घर से निकला था. जब वे वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका पूरा घर तहस नहर है. घर में रखे सोने-चांदी के जेवरात लूट लिए गए हैं और साथ ही घर में राखी हुई करीब 10 लाख की नकदी भी ठीक वैसे गायब हुई है जैसे गधे के सिर से सींघ.
दिन दहाड़े हुई इस घटना पर अपना पक्ष रखते हुए परिवार के मुखिया रविंद्र कुमार बंसल ने कहा है कि, वापस आने पर, हमने पाया कि घर का मुख्य दरवाजा खुला है साथ ही घर में लगी लोहे की ग्रिल भी थोड़ी सी खुली है. घर के बाहर अख़बारों का ढेर था. वहीं उन्होंने ये भी बताया कि घर के कमरों में तोड़फोड़ की गई थी और चोर नकदी के अलावा सोने-चांदी के जेवरात लेकर फरार हो गए.परिवार का मानना है कि इस चोरी से उन्हें दस लाख से ऊपर का नुकसान हुआ है.
इस पूरी घटना में जो सबसे दिलचस्प पक्ष है, वो ये कि परिवार ने अपने घर पर कोई भी अख़बार नहीं लगवाया था.बावजूद इसके उन्हें अपने घर पर अख़बार मिले. परिवार ने कयास लगाया है कि चोरों ने अख़बार को ही हथियार बनाया और उसी से ये पता लगाया कि घर में कोई नहीं है.
चोरी से बंसल साहब आहत हैं और भरे बैठे हैं. बैठे भी क्यों न बात है तो सीरियस खैर उन्होंने ये भी कहा कि अख़बार फेंकना ही इस चोरी में चोरों की मोडस ऑपरेंडी थी. चोर अख़बार डाल डालकर चेक कर रहे थे कि कोई है ऐसा घर में जो आए और फ्री में घर आए इन अख़बारों को पहले कोई पढ़े फिर कबाड़ी को बेचे.
वहीं मामले पर बंसल साहब का ये भी कहना है कि हर रोज एक ही जगह पर अख़बार डाले जाते थे. और क्योंकि कोई उन्हें उठा नहीं रहा था चोरों को भी इस बात की तसल्ली हो गई कि घर में कोई नहीं है इसलिए उन्होंने बेख़ौफ़ होकर और खुल कर चोरी की.
बहरहाल भले ही शिकायत के बाद पुलिस ने गाजियाबाद के कवी नगर थाने में अज्ञात चोरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली हो और जांच में जुट गयी हो लेकिन इस कहानी ने हम सब को एक बड़ी शिक्षा दी है. शिक्षा जिसके अनुसार पहले तो अकेला घर छोड़ कर कहीं जाओ नहीं और दूसरा ये कि अगर जा ही रहे हो तो भले ही पैसे देने पड़ें घर के लिए कोई ऐसा आदमी नियुक्त कर के लिए जाओ जो रोज सुबह सुबह आए घर का मुआयना करे और जो अख़बार घर के बाहर या लॉन वगैरह में पड़ा है उसे उठाकर अंदर रख दे.
इससे होगा ये कि अगर कोई दूसरा चोर इस टाइप की प्लानिंग कर रहा हो उसे इस बात का यकीन हो जाए कि घर में कोई है और यहां चोरी करना खतरे से खाली नहीं है. यूं भी घर परिवार मोहल्ले पड़ोस के अलावा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने कई अलग अलग मंचों से बार बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि जानकारी ही बचाव है.
तो भइया जानकारी यही है कि घूमनेजाओ बिलकुल जाओ लेकिन ऐसे किसी को घर पर रखकर जाओ जो भले ही कुछ करे या न करे लेकिन अगर फूल पत्ती और धूल के अलावा घर के बाहर जो अख़बार जैसी चीजें पड़ी हैं, उनको ठिकाने लगा दे.
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