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Updated: 09 दिसम्बर, 2015 07:05 PM
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स्कूल-कॉलेज से लेकर घर-बार और ऑफिस तक... तरक्की कौन नहीं चाहता है. लेकिन न तो इसके लिए कोई तय रास्ता होता है, न ही तरक्की की राह इतनी आसान होती है. इसलिए कमर तोड़ मेहनत की सलाह देने वालों को आप हल्के में ले सकते हैं - कोई रिस्क नहीं है. लेकिन तरक्की जरूरी है, तो किया क्या जाए? ऐसे में उम्मीद की किरण पुडुचेरी में दिखी है. जनता के मन में सवाल हो और नेताजी निराश कर दें! हो ही नहीं सकता. पूर्व केंद्रीय मंत्री वी. नारायण सामी ने तरक्की की राह दिखा दी है.

चप्पल. जी हां, चप्पल. तरक्की पानी है, तो चप्पल की कीमत समझें. वजन के कारण यदि आप चप्पल को हल्के में ले रहे हैं तो इसे पादुका के नाम से पुकारें. कंफ्यूजन दूर हो जाएगा. वो इसलिए क्योंकि वी. नारायणसामी ने भी जब राहुल गांधी को पहनने के लिए अपनी चप्पल निकाल कर दी, तो वो एक चप्पल मात्र नहीं थी - सेवक के हाथों अपने अराध्य को अर्पित होने वाली पादुका बन चुकी थी. राजनीति में इस क्रिया को पादुका पुराण कहते हैं.

पादुका पुराण का महत्व अभी-अभी का नहीं है. पौराणिक काल से लेकर वर्तमान राजनीतिक और सरकारी से लेकर कॉर्पोरेट ऑफिस-ऑफिस तक इसका महत्ता साबित हो चुकी है. डीएसपी द्वारा मायावती के चप्पलों से लेकर पोस्टिंग और प्रमोशन तक हर जगह इसकी छाप देखी जा सकती है. यह और बात है कि अभी तक इसे विषय-विशेष का दर्जा नहीं दिया गया और इसी कारण से स्कूल-कॉलेजों में इसकी पढ़ाई से छात्रगण महरूम रह जाते हैं. जो लोग इस विधा में पारंगत हैं, वो भी इसके एक्सक्लूसिवनेस को बरकरार रखने के लिए दूसरों के साथ इसके गूढ़ रहस्य को साझा नहीं करते.

तरक्की पाने के लिए रेल के डिब्बों, स्टेशन की दीवारों पर जिन बाबाओं के इश्तहार आपने पढ़े होंगे, कृपया उन्हें भूल जाएं. ताजी घटना से सीख लें. 'बाबा' नारायणसामी के 'शरण' में चले जाएं. वो बताएं या नहीं, उनकी पादुका पुराण क्रिया से सीख लें. तरक्की मिलेगी... शर्तिया. वैसे आप चाहें तो वीडियो देख कर भी सीख सकते हैं :

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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