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Updated: 17 मई, 2018 10:55 PM
अश्विनी कुमार
अश्विनी कुमार
 
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राजनेता पिता का मासूम बच्चा अंकगणित में फेल हो गया. सिद्धांतवादी और परंपरागत पढ़ाई को लेकर संजीदा मम्मी की नाराजगी थम नहीं रही थी. फटकारों का सिलसिला बदस्तूर जारी था. घर की बैठकखाने में पिता सिपहसलारों के साथ सरकार बनाने और बिगाड़ने के अंकगणित पर काम कर रहे थे. लेकिन उनका ध्यान एक लोकतांत्रिक देश में बेटे के 'फेल होने के लोकतांत्रिक अधिकार' के हो रहे हनन पर अटका था. मगर इससे भी ज्यादा वो मां के जरिये बेटे को मिल रही गलत शिक्षा की वजह से चिंतित थे. 'घनघोर परिवारवाद' में यकीन रखने वाले नेताजी राजनीतिक सभा को आनन-फानन में विसर्जित कर पत्नी के पास पहुंच गए. फिर संवादों का जो शिक्षाप्रद सिलसिला चला, उस पर कौर कीजिए-

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राजनेता पति : तुम्हें पता है कि आगे उसे कौन-से गणित के साथ जिंदगी में आगे बढ़ना है?

पत्नी :  कौन-सा गणित का क्या मतलब? गणित तो गणित होता है.

राजनेता पति : नहीं. गणित सिर्फ गणित नहीं होता.

पत्नी : कैसे? क्या मतलब?

राजनेता पति : देखो. तुम्हारा गणित एक क्लर्क पैदा कर सकता है. ज्यादा से ज्यादा इंजीनियर या डॉक्टर बना सकता है. या उससे भी ज्यादा बड़ा सरकारी अधिकारी बना सकता है. लेकिन मेरा गणित लीडर पैदा करता है. लीडर. समझी?

पत्नी की दिलचस्पी बढ़ी. पूछ बैठी. वो कैसे?

राजनेता पति का हौसला भी बढ़ा. बोले. देखो तुम्हारा गणित ‘फ्लेक्सिबल’ नहीं है. उसमें एक और एक का योग हमेशा सिर्फ दो होता है. जबकि हमारे गणित में लोच है. नजाकत है. कभी एक और एक ग्यारह हो जाता है, तो कभी एक और एक एक-दूसरे को काटकर शून्य भी हो जाता है. ये सब बहुमत से बड़ा अल्पमत की हमारी थ्योरी से ही संभव हो पाता है. अब तक पत्नी की दिलचस्पी और राजनेता पति का हौसला और बढ़ चुका था.

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पति बोले - देखो. तुम्हारा गणित तय सिद्धांतों पर काम करता है. और ये इसकी दूसरी बड़ी खामी है. क्योंकि सिद्धांत इंसान को कहीं का नहीं छोड़ता है. जड़ बना देता है. बिल्कुल खूंटे से बंधे पशु के समान. लकीर का फकीर. जबकि हमारी ‘सिद्धांत विहिनता’ हमें कहीं भी उड़ान भरने की अनुमति देती है. हमारे सामने पूरा आसमां होता है.

राजनेता पति दो कदम और आगे बढ़े. पत्नी से कहा- ये जो तुम गणित के फॉर्मूले की शक्ल में उसे कथित तौर पर सही को सही और गलत को गलत का पाठ रोज पढ़ाती रहती हो, अंदाजा है कि इसका कितना बुरा असर होगा? ये तुम्हारी शिक्षा की तीसरी बड़ी खामी है. कहीं का नहीं रहेगा ये. इसे बताओ कि सही या गलत कुछ नहीं होता. सही और गलत परिस्थितियां तय करती हैं. जैसे कि-गोवा, मणिपुर और मेघालय में जो गणित के नियम होते हैं वो कर्नाटक में बदल जाते हैं. कुछ-कुछ ‘जलवायु परिवर्तन’ की तरह.

मां और पिता का पूरा संवाद बच्चा खुद के भीतर उतार चुका था. गणित की इतनी अच्छी और कारगर शिक्षा उसे अब तक कभी नहीं मिली थी. न स्कूल में. न मां से. बेचारा जैसे बस इसी घड़ी के इंतजार में था.

इस घटना के बाद बेटा अंकगणित में हर साल अपनी कक्षा में आखिरी पायदान पर आने लगा. आगे चलकर यही उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हुई. उसके सारे दोस्त डॉक्टर, इंजीनियर और सरकारी अधिकारी बने. वो इनमें से कुछ भी न बन सका. आगे चलकर वो बगैर बहुमत हासिल किए पिता के अंकगणित के सहारे एक प्रदेश का सीएम बना. खबरों की मानें, तो उसके बाकी सारे दोस्त उसकी जी हजूरी के लिए अकसर सीएम हाउस के आगे लाइन में खड़े दिखते हैं.

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लेखक

अश्विनी कुमार अश्विनी कुमार

लेखक पेशे से टीवी पत्रकार हैं, जो समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं.

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