ऐसे 'शंकर' का वरदान ही येदियुरप्पा जैसों को अमर बनाता है
ये लोग बिन पेंदे के लोटे जैसे होते हैं, जिधर की ओर ढाल होती है उधर को ही लुढ़क जाते हैं. यानी जिसका पलड़ा भारी होता है, उसके साथ मिल जाते हैं. यही लोग येदियुरप्पा जैसे नेताओं की जीत की चाबी होते हैं.
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दलबदलू, ये वो लोग होते हैं जो किसी हार रही पार्टी को भी जिता सकते हैं और जीती-जिताई पार्टी की हार का कारण भी बन सकते हैं. ये लोग एक बिन पेंदे के लोटे जैसे होते हैं, जिधर की ओर ढाल होती है उधर को ही लुढ़क जाते हैं. यानी जिसका पलड़ा भारी होता है, उसके साथ मिल जाते हैं. यही लोग येदियुरप्पा जैसे नेताओं की जीत की चाबी होते हैं. ऐसे ही एक दलबदलू नेता हैं आर शंकर, जो कर्नाटक प्रागन्यावंथा जनता पार्टी यानी केपीजेपी से जीतने वाले इकलौते उम्मीदवार हैं. हालांकि, इनकी वजह से तो येदियुरप्पा को नुकसान हुआ है, लेकिन जैसा स्वभाव इस नेता का है, वैसे स्वभाव के नेता ही येदियुरप्पा की सरकार बनने में मददगार होंगे.
क्या किया शंकर ने?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद अब इस बात का संकट आ गया है कि आखिर सरकार कौन बनाएगा. भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते पहला मौका दिया गया है, लेकिन बहुमत साबित करने के लिए उनके पास 8 विधायकों की कमी है. बुधवार को सुबह शंकर ने येदियुरप्पा से मुलाकात लगी. पार्टी को लगा कि एक तो आ गया, अब 7 और चाहिए, लेकिन शाम को शंकर ने कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन को समर्थन देने की घोषणा कर दी. हालांकि, इसके बाद से भाजपा के ईश्वरप्पा की खूब आलोचना हो रही है कि वह अपने एक विधायक को संभाल नहीं सके.
शंकर जैसे ही जिताएंगे येदियुरप्पा को
भले ही शंकर ने भाजपा को दिया हुआ समर्थन वापस ले लिया हो, लेकिन येदियुरप्पा ने ऐसे ही विधायकों के दम पर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. राज्यपाल वाजूभाई वाला ने येदियुरप्पा को 15 दिनों का समय दिया है ताकि वह बहुमत साबित कर सकें. इन 15 दिनों में भाजपा शंकर जैसे विधायकों को ढूंढ़ेगी और उन्हें लुभावने ऑफर देकर अपने साथ मिलाने की कोशिश करेगी. अगर देखा जाए तो भाजपा को दो दिनों में एक विधायक तोड़ना है. अगर शकंर जैसे दलबदलू विधायकों की पहचान हो गई तो उन्हें तोड़ना भाजपा के लिए कोई मुश्किल काम नहीं होगा.
अपने-अपने विधायकों को बचाने में लगी पार्टियां
कांग्रेस हो, जेडीएस हो या फिर भले ही भाजपा क्यों ना हो, इस समय हर पार्टी अपने विधायकों को बचाने में लगी है. कांग्रेस और जेडीएस को डर है कि उसके विधायक टूटकर भाजपा को समर्थन न दे दें. वहीं दूसरी ओर यह खतरा भाजपा पर भी है कि कहीं कांग्रेस-जेडीएस का गठबंधन कुछ लुभावने ऑफर देकर उनके विधायकों को ना तोड़ दे, वरना पहले से ही विधायकों की कमी से जूझ रही भाजपा को आखिरकार कर्नाटक में सरकार बनाने का सपना भूलना पड़ेगा. यही कारण है कि कोई पार्टी अपने विधायकों को होटल में छुपा रही है तो कोई पार्टी उन्हें महंगे रिसॉर्ट में ठहरा रही है.
लिंगायतों को तोड़ना चाहती है भाजपा
कांग्रेस के एक लिंगायत विधायक अमरगौड़ा एल बय्यापुर ने बताया कि उन्हें भाजपा के एक नेता ने फोन किया था और अपने साथ मिलाने की कोशिश की थी. भाजपा ने उन्हें मंत्री पद तक ऑफर किया, लेकिन अमरगौड़ा ने उनका ऑफर ठुकरा दिया. वह बोले कि उन्होंने यह तय कर लिया है कि उनके मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ही होंगे. यहां आपको बता दें कि कांग्रेस के टिकट पर 21 और जेडीएस के टिकट पर 10 लिंगायत विधायक जीतकर आए हैं. भाजपा की कोशिश है कि इन्हें तोड़ा जाए. जितने अधिक विधायक टूटकर भाजपा में मिल जाएंगे, भाजपा को उतना ही अधिक फायदा होगा.
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