कांग्रेस विधायकों के लापता होने से ज्यादा नुकसानदेह है राहुल का गायब होना
लीडरशिप के मायने सिर्फ जीत नहीं होती, हार भी उसी के हिस्से होता है. कर्नाटक भी कांग्रेस मुक्त होने की कगार पर है और राहुल गांधी कहां हैं किसी को खबर नहीं है.
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एनडीटीवी ने खबर दी कि कांग्रेस के कुछ विधायकों से कांग्रेस नेतृत्व का संपर्क टूट गया है. अपुष्ट खबरों के मुताबिक बताया गया कि कांग्रेस के तीन विधायक संपर्क क्षेत्र से बाहर हो गये लगते हैं. हालांकि, कांग्रेस नेता इसे फेक न्यूज की ही तरह ट्रीट करते रहे.
वैसे कांग्रेस के लिए विधायकों से बड़ी चिंता की बात तो राहुल गांधी हैं. जो राहुल गांधी तीन महीने से सुर्खियों से हटने को तैयार न थे, वो नतीजे आते ही कहां गुम गये? करीबियों को भले हो, बहुतेरे कांग्रेसियों को भी नहीं मालूम. बाकी दुनिया की कौन कहे.
लापता कौन - कांग्रेस विधायक या राहुल गांधी?
कर्नाटक के नतीजे आने के बाद ये जरूर है कि राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल से वाराणसी हादसे पर दुख जताया गया है. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत (जितनी भी संभव हो पायी) के लिए बधाई भी ट्विटर पर दी गयी, लेकिन उसके बाद तो राहुल गांधी से भी संपर्क टूट गया लगता है.
अपना अपना काम ही तो करना है...
राहुल गांधी के काम करने का तरीका अलग है. सोनिया गांधी के काम करने का तरीका अलग रहा. कर्नाटक में राहुल ने अपना काम कर दिया. अब सोनिया गांधी अपना काम कर रही हैं. वैसे भी सोनिया ने ये तो कहा नहीं था कि वो राजनीति से संन्यास ले लेंगी.
कर्नाटक में राहुल ने अपनी ओर से कोई कमी रखी हो, ऐसा तो नहीं लगता. कांग्रेस के लिए यथाशक्ति जो कुछ भी कर सकते थे, शिद्दत से किया. अब राहुल गांधी की यथाशक्ति को लेकर ही किसी को कोई गलतफहमी हो तो इसमें उनका का कसूर भला. मंदिर मंदिर घूमते रहे. मंदिर का कोई मठ तक न छोड़ा. शिवभक्ति पर कोई सवाल फिर से न उठाये या ऊलजुलूल सवाल न पूछने लगे इसलिए दरगाह, गुरुद्वारे और चर्च भी हो लिये.
कांग्रेस के बेस्ट ब्रेन के साथ बैठकर रणनीतियां तैयार की - और बाकायदा उन पर अमल भी किया. अब सिद्धारमैया पर भरोसा न करते तो भी कहने वाले कुछ न कुछ तो कहते ही.
2019 पर नजर...
राहुल गांधी ने काम जहां छोड़ दिया वो कांग्रेस के हिस्से का काम रहा. अब यूपीए का काम सोनिया गांधी आगे बढ़ा रही हैं. वैसे भी सोनिया खुद कहती हैं कि राहुल गांधी उनके भी बॉस हैं. फिर हर कांग्रेसी से काम कराना तो राहुल गांधी का अब हक भी बनता है. सोनिया गांधी से भी.
अच्छा हुआ जो प्रधानमंत्री पद को लेकर अपनी मंजूरी देने से पहले राहुल गांधी ने कैलास मानसरोवर का प्लान कर लिया था. हर बड़ा टास्क थकाऊ होता है. टास्क पूरा करने के बाद रिफ्रेशमेंट की जरूरत तो होती ही है. वरना, 'डर के आगे जीत...' जैसी पंचलाइन का कोई असर कभी महसूस नहीं होता. मेडिटेशन लीव से लौटने से पहले कांग्रेसी की सीनियर लॉबी का काम होता है कोई न कोई मंच तैयार रखना. ताजा जानकारी ये है कि राहुल गांधी 17 और 18 मई को छत्तीसगढ़ के दौरे पर जाने वाले हैं - और वहां बाकी कार्यक्रमों के अलावा वो रोड शो भी करेंगे.
'अहिंदा' ही तो नहीं ले डूबा?
कर्नाटक में कांग्रेस को कहीं गुजरात के ओवरकॉन्फिडेंस तो नहीं ले डूबा? गुजरात के बाद नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में चुनाव हुए - त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड. राहुल गांधी ने पहले से ही तय कर लिया था कि कर्नाटक पर फोकस करेंगे. किया भी. हालत ये रही कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी उत्तर-पूर्व के चुनाव प्रचार से जूझ रही थी, राहुल गांधी कर्नाटक मिशन का बार बार रिव्यू करते रहे.
"जीत की बधाई!"
ये तो लगा ही होगा कि जब बरसों से सत्ता से दूर रह कर भी गुजरात में इतना कुछ हो सकता है, फिर तो कर्नाटक में पूरी मशीनरी अपनी तो है ही. ये भी लगता है कि राहुल गांधी ने सिद्धारमैया पर भी हद से ज्यादा भरोसा किया - और जब राहुल का भरोसा हासिल हो गया तो बाकी होते कौन हैं? फिर अगर सिद्धारमैया ने सीनियर कांग्रेस नेताओं को दरकिनार किया तो वो भी स्वाभाविक ही माना जाएगा.
लगता तो ऐसा है जैसे सिद्धारमैया ने अहिंदा पॉलिटिक्स को छोड़ कर बाकी किसी बात पर बिलकुल भी भरोसा नहीं किया. एचडी कुमारस्वामी और एचडी देवगौड़ा के साथ पुरानी दुश्मनी भी पूरे मन से निभायी. यहां तक कि वोक्कालिगा समुदाय के वोट की भी परवाह नहीं की. देवगौड़ा वोक्कालिगा समुदाय से हैं और सिद्धारमैया ने तब उनका साथ छोड़ा था जब लगा कि जेडीएस पूरी तरह कुमारस्वामी के हवाले कर दी जाएगी, उनके हिस्से में सिफर आएगा. यही सोच कर सिद्धारमैया ने अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों को लेकर राजनीतिक खेली और अपने सोशल इंजीनियरिंग में कामयाब रहे. इतने कामयाब की कर्नाटक में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले चीफ मिनिस्टर बन गये.
सिद्धारमैया पर आरोप रहा कि वो वोक्कालिगा और लिंगायत को हमेशा नजरअंदाज करते रहे. देवगौड़ा के अपमान की बातें भी तो इसीलिए होती रहीं कि वोक्कालिगा वोट सिद्धारमैया से नाराज हो जाये. बहती गंगा में थोड़ा बहुत हाथ प्रधानमंत्री मोदी ने भी धो लिया. लिंगायतों को लुभाने के लिए सिद्धारमैया ने अलग धर्म का दर्जा देने की कोशिश की, लेकिन उनके आदमी जनता को ये नहीं समझा पाये कि वो वास्तव में करना क्या चाहते हैं?
सिद्धारमैया ने मेट्रो स्टेशनों के नाम बदलकर कन्नड़ में किया, कर्नाटक का झंडा फहराया और लोगों के लिए दर्जन भर कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू कीं. ये सब तिलिस्म बन कर ऐसे समझाने लगा जैसे सत्ता विरोधी फैक्टर तो अपनेआप नेस्तनाबूद हो चुका.
राज्य सभा चुनाव के वक्त गुजरात के विधायकों के लापता होने से सिद्धारमैया ने तो बचा लिया था, अब कर्नाटक के कांग्रेस विधायकों को कौन बचाये? पंजाब, मिजोरम और पुड्डुचेरी बहुत दूर है.
लीडरशिप के मायने सिर्फ जीत नहीं होती. हार की हालत में भी टीम की अगुवाई करनी पड़ीत है. कांग्रेस के अंदर मौजूदा हालत कुछ ऐसी हो गयी है कि ठहाके तो कोई नहीं लगा पा रहा, लेकिन मन ही मन और थोड़ा बहुत खुल कर भी हर कोई मुस्कुरा ले रहा है. कर्नाटक कांग्रेस मुक्त होने की कगार पर है और राहुल गांधी कहां हैं किसी को खबर नहीं.
कर्नाटक के बाद अब राजस्थान और मध्य प्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़ की ही बारी है, जहां राहुल गांधी दो दिन के दौरे पर पहुंचने वाले हैं. इसी बीच एक खबर राजस्थान से है. राजस्थान में यूथ कांग्रेस महासचिव ब्रह्मप्रकाश विश्नोई को बर्खास्त कर दिया गया है. दरअसल, ब्रह्मप्रकाश, केशव चंद्र यादव को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने से बेहद नाराज थे और गुस्से में एक व्हाट्सऐप ग्रुप में पोस्ट कर दिया, "आज पता चला कि लोग राहुल गांधी को पप्पू क्यों कहते हैं?"
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