कर्नाटक के नतीजों ने राहुल गांधी और कांग्रेस की पोल खोल दी
अंत में सरकार कोई भी बनाए 2018 कर्नाटक चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए अपमानजनक ही हैं. 2013 में कांग्रेस ने 122 सीटें जीतीं थी. इसमें से लगभग 45 सीटें वो गंवा चुकी है. बीजेपी ने 2013 में 40 सीटें जीतीं थी.
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जेडी (एस) को बिना शर्त समर्थन की पेशकश करके और मुख्यमंत्री के रूप में एचडी कुमारस्वामी के नाम पर सहमत होने के बाद, क्या कांग्रेस ने बीजेपी को कर्नाटक विधानसभा चुनावों में अपनी ही दवा का स्वाद चखा दिया है? उलटफेर से भरपूर चुनाव नतीजों में भले ही बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन पूर्ण बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई.
आगे क्या?
प्रथा के अनुसार, कर्नाटक में एक स्थिर सरकार बनाने के लिए गवर्नर को सबसे पहले, सबसे बड़ी पार्टी या सबसे बड़े गठबंधन (चुनावों के बाद बने गठबंधन नहीं) को बुलाना चाहिए. अगर वो विफल रहता है तभी जेडी (एस)-कांग्रेस के चुनाव बाद बने गठबंधन को सरकार बनाने का मौका दिया जा सकता है. घटनाएं तेज गति से आगे बढ़ रही हैं क्योंकि तीनों ही दल कुर्सी पाने की होड़ में लगे हैं. जेडी (एस)-कांग्रेस गठबंधन इसमें आगे दिख रही है.
अगर बीजेपी सरकार बनाने में विफल रहती है तो भी कर्नाटक में बीजेपी के प्रदर्शन ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव परिणामों को अपनी तरफ मोड़ लेने की क्षमता को फिर से स्थापित कर दिया है. पिछले दिसंबर में गुजरात चुनावों में मिले झटके के बाद, मोदी के लिए कर्नाटक चुनावों में अपनी छाप छोड़ना जरुरी हो गया था. उन्होंने दो हफ्तों में 21 रैलियों की और जनता को अपनी मोड़ लिया. कुछ महीने पहले तक कर्नाटक में कांग्रेस जीत की स्थिति में दिख रही थी. लेकिन मोदी के तूफानी हमले ने पूरा सीन ही बदल दिया.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद को भविष्य का प्रधानमंत्री के रुप में पेश कर, कर्नाटक चुनावों को मोदी बनाम राहुल का द्वंद युद्ध में बदल दिया था. दिसंबर 2018 में देश के तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं. कार्यकर्ताओं में जोश भरने और जीत के लय को शुरु करने के मकसद से कांग्रेस के साथ साथ राहुल गांधी के लिए कर्नाटक में जीतना बहुत जरुरी था. लेकिन उन्हें ये जीत मिल नहीं पाई.
2019 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को पैसों की जरुरत है और इसके लिए फंडिंग का जुगाड़ लगाना ही उनकी प्राथमिकता है. पंजाब के पास अब पैसे नहीं बचे हैं. अब कांग्रेस के पास मात्र दो ही राज्य और केंद्र शासित प्रदेश बचे हैं. मिजोरम, जहां नवंबर 2018 में चुनाव होने हैं और पुडुचेरी. इससे ही गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री के रूप में कुमारस्वामी को स्वीकार करने के पीछे की उनकी हताशा का पता चलता है. ताकि पैसे आने शुरु हो जाएं.
जेडीएस को समर्थन देकर कांग्रेस ने अपनी हताशा जाहिर कर दी
कांग्रेस ने जेडी (एस) को बाहर से समर्थन देना पसंद करती. लेकिन जेडी (एस) चाहती है वो सरकार में शामिल हो. 1997 में केंद्र में एचडी देवेगौड़ा की यूनाइटेड फ्रंट सरकार को कांग्रेस द्वारा गिरा दिए जाने के पिछले रिकॉर्ड को वो अभी भूले नहीं हैं. कर्नाटक में कांग्रेस को त्रिकोणीय मुकाबले का घाटा उठाना पड़ा. इसमें जेडी (एस) ने उनकी सीटें खा ली. गुजरात में दो तरफा मुकाबले में कांग्रेस ने बीजेपी को डराने के लिए दलित-ओबीसी-पाटीदार गठबंधन को एकसाथ जोड़ लिया था. त्रिकोणीय मुकाबलों में बीजेपी जीत का सेहरा अपने सिर बांधने में सफल हो जाती है. कर्नाटक से कांग्रेस को महत्वपूर्ण सीख ले लेनी चाहिए.
बीजेपी की अपनी चिंताएं हैं. जहां तक अभियान का सवाल है तो ये अभी भी दो सदस्यीय पार्टी (मोदी-शाह) ही है. किसी पार्टी के लिए गंभीर निर्भरता है. शिखर पर बैठे मोदी-शाह और जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच गहरी खाई है. अगर भाजपा को 2019 में लोकसभा चुनाव जीतना है तो फिर उसे अपनी रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव करने होंगे.
उत्तर प्रदेश में, जहां उसने 80 सीटों में से 71 सीटें जीतीं, एसपी, बीएसपी और कांग्रेस के एकजुट विपक्ष से इसके लड़ने की संभावना है. मोदी बनाम बाकी की इस लड़ाई में कट्टर दुश्मनों सपा और बसपा के साथ आने से यूपी में भाजपा को भारी मात्रा में सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है. राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भाजपा एक दर्जन से ज्यादा सीटों को खो सकती है.
इस हिसाब से देखें तो कर्नाटक के नतीजों का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. बीजेपी, जेडी (एस)-कांग्रेस गठबंधन से पहले सरकार बनाने में कामयाब होगी ऐसा दिखता नहीं है. लेकिन अगर ऐसा होता तो ये भाजपा के दक्षिण भारत को स्थापित करने का काम करता. रजनीकांत का झुकाव भाजपा की ओर स्पष्ट दिखाई पड़ता है. अगर वो 2019 में चुनावी मैदान में कूदते हैं तो तमिलनाडु, भाजपा मजबूत स्थिति में आ जाएगी.
गैर-यूपीए और गैर-एनडीए लोग इस घटनाक्रम पर पैनी नजर बनाए होंगे. बीजेडी, टीआरएस और टीएमसी पहले ही 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए से अलग एक संघीय मोर्चे पर चर्चा कर रहे हैं. मोदी के लिए ये खुशखबरी ही होगी. प्रमुख राज्यों में त्रिकोणीय मुकाबलों को हासिल करने का ये सटीक तरीका है. और फिर बीजेपी को बढ़त भी मिल सकती है. खासकर ओडिशा में.
अंत में सरकार कोई भी बनाए 2018 कर्नाटक चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए अपमानजनक ही हैं. 2013 में कांग्रेस ने 122 सीटें जीतीं थी. इसमें से लगभग 45 सीटें वो गंवा चुकी है. बीजेपी ने 2013 में 40 सीटें जीतीं थी. इसे 65 सीटों का फायदा हुआ है. वहीं जेडी (एस) ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है और 2013 में जीते 40 में से कुछ ही सीटों पर हार का सामना किया.
भाजपा ने तटीय कर्नाटक में 53 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर लिया. मुंबई कर्नाटक क्षेत्र में हर बाधाओं के बावजूद 46 प्रतिशत वोट शेयर जीता. कुल मिलाकर, बीजेपी और कांग्रेस ने 38 प्रतिशत वोट शेयर किए. लेकिन चूंकि बीजेपी के मतदाता विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों में केंद्रित हैं और कांग्रेस के मतदाता राज्य भर में समान रूप से फैले हुए हैं तो वोट-टू-सीट रूपांतरण बीजेपी के पक्ष में गया.
अब चाहे सरकार किसी की भी बने. बीजेपी के लिए सबसे खराब परिणाम ये है कि अब उसे अपनी नीतियों को सही साबित करना होगा. इसने भ्रष्ट रेड्डी भाइयों के साथ समझौता किया, जो इनके भ्रष्टाचार विरोधी नारों के विपरीत जाता है. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी को अपनी पार्टी के लोगों को विकसित करना होगा. हालिया कैबिनेट फेरबदल से ये संकेत मिला है कि मोदी पोर्टफोलियो में बदलाव करने के महत्व को पहचानते हैं.
राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनावों को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. लेकिन राज्य में उनकी सीटों का कम होना उनके प्रधानमंत्री बनने के सपने को धक्का पहुंचाएगा.
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