दिग्गज फिल्म मेकर राज कपूर के बाद निर्माता-निर्देशक सुभाष घई को बॉलीवुड का दूसरा शोमैन कहा जाता रहा है. 'कालीचरण', 'विश्वनाथ', 'कर्ज', 'हीरो', 'विधाता', 'कर्मा', 'राम लखन', 'सौदागर', 'खलनायक', 'परदेस' और 'ताल' जैसी सदाबहार फिल्में देखने के बाद दर्शक उनके सिनेमा के मुरीद हो गए. उनकी फिल्मों में जितनी बेहतरीन कहानी दिखाई जाती रही है, उतना ही शानदार संगीत भी परोसा गया है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सुभाष घई की 'सिने फैक्ट्री' में अच्छी क्वालिटी का प्रोडक्शन नहीं हो रहा है. उनके प्रोडक्शन हाऊस मुक्ता आर्ट्स के बैनर तले बनी फिल्म '36 फार्महाउस' इस बात का गवाह है, जो उनकी साख पर बट्टा लगाने का काम कर रही है. राम रमेश शर्मा के निर्देशन में बनी ये फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम हो रही है, जिसमें संजय मिश्रा, विजय राज, अश्विनी कलसेकर, माधुरी भाटिया और अमोल पाराशर जैसे कलाकार अहम रोल में हैं. इस फिल्म की कहानी भी सुभाष घई ने शरद त्रिपाठी के साथ मिलकर लिखी है, जो कि सबसे कमजोर कड़ी नजर आती है.
लेखक सुभाष घई और निर्देशक राम रमेश शर्मा ने फिल्म '36 फार्महाउस' की कहानी को साल 2020 में लगे लॉकडाउन की पृष्ठभूमि पर लिखा है. इसकी शुरुआत '36 फार्महाउस' और 300 एकड़ जमीन के मालिकाना हक के लिए हुई एक हत्या से होती है. इस संपत्ति की मालकिन पद्मिनी राज सिंह (माधुरी भाटिया) है. वो अपनी पूरी संपत्ति अपने बड़े बेटे रौनक सिंह (विजय राज) के नाम कर देती है. रौनक अपनी मां पद्मिनी की बहुत अच्छे से देखभाल करता है, लेकिन उसे बाहरी दुनिया और लोगों के संपर्क से दूर रखने की कोशिश करता है, ताकि कोई उसकी मां को प्रभावित न कर सके. क्योंकि उसके दो भाई गजेंद्र और बीरेंद्र उस संपत्ति में अपना हिस्सा पाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं. उनको लगता है कि उसके बड़े भाई ने उनकी मां का ब्रेनवॉश करके सारी संपत्ति अपने नाम करा ली है. दूसरी तरफ लॉकडाउन की वजह से मुंबई से बड़े पैमाने पर मजदूर अपने गांवों की ओर पलायन कर रहे...
दिग्गज फिल्म मेकर राज कपूर के बाद निर्माता-निर्देशक सुभाष घई को बॉलीवुड का दूसरा शोमैन कहा जाता रहा है. 'कालीचरण', 'विश्वनाथ', 'कर्ज', 'हीरो', 'विधाता', 'कर्मा', 'राम लखन', 'सौदागर', 'खलनायक', 'परदेस' और 'ताल' जैसी सदाबहार फिल्में देखने के बाद दर्शक उनके सिनेमा के मुरीद हो गए. उनकी फिल्मों में जितनी बेहतरीन कहानी दिखाई जाती रही है, उतना ही शानदार संगीत भी परोसा गया है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सुभाष घई की 'सिने फैक्ट्री' में अच्छी क्वालिटी का प्रोडक्शन नहीं हो रहा है. उनके प्रोडक्शन हाऊस मुक्ता आर्ट्स के बैनर तले बनी फिल्म '36 फार्महाउस' इस बात का गवाह है, जो उनकी साख पर बट्टा लगाने का काम कर रही है. राम रमेश शर्मा के निर्देशन में बनी ये फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम हो रही है, जिसमें संजय मिश्रा, विजय राज, अश्विनी कलसेकर, माधुरी भाटिया और अमोल पाराशर जैसे कलाकार अहम रोल में हैं. इस फिल्म की कहानी भी सुभाष घई ने शरद त्रिपाठी के साथ मिलकर लिखी है, जो कि सबसे कमजोर कड़ी नजर आती है.
लेखक सुभाष घई और निर्देशक राम रमेश शर्मा ने फिल्म '36 फार्महाउस' की कहानी को साल 2020 में लगे लॉकडाउन की पृष्ठभूमि पर लिखा है. इसकी शुरुआत '36 फार्महाउस' और 300 एकड़ जमीन के मालिकाना हक के लिए हुई एक हत्या से होती है. इस संपत्ति की मालकिन पद्मिनी राज सिंह (माधुरी भाटिया) है. वो अपनी पूरी संपत्ति अपने बड़े बेटे रौनक सिंह (विजय राज) के नाम कर देती है. रौनक अपनी मां पद्मिनी की बहुत अच्छे से देखभाल करता है, लेकिन उसे बाहरी दुनिया और लोगों के संपर्क से दूर रखने की कोशिश करता है, ताकि कोई उसकी मां को प्रभावित न कर सके. क्योंकि उसके दो भाई गजेंद्र और बीरेंद्र उस संपत्ति में अपना हिस्सा पाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं. उनको लगता है कि उसके बड़े भाई ने उनकी मां का ब्रेनवॉश करके सारी संपत्ति अपने नाम करा ली है. दूसरी तरफ लॉकडाउन की वजह से मुंबई से बड़े पैमाने पर मजदूर अपने गांवों की ओर पलायन कर रहे होते हैं. उनमें एक शेफ जय प्रकाश (संजय मिश्रा) और उसका बेटा हरी भी शामिल होते हैं.
जय प्रकाश और हरी अलग-अलग भटकते हुए 36 फार्महाउस पहुंच जाते हैं. जय प्रकाश रसोइया बनकर वहां काम कर रहा होता है, तो हरी (अमोल पराशर) बंगले की मालकिन की नतिनी अंतरा (बरखा सिंह), जो कि डिजाइनर होती है, के साथ ट्रेलर का काम करता है. लेकिन दोनों एक दोस्त की तरह आपस में अपना सुख-दुख शेयर करते रहते हैं. ये बात रौनक सिंह को नागवार गुजरती है. वो अक्सर उन दोनों को अलग रहने की चेतावनी देता है. वैसे भी दोनों बाप-बेटे अपनी लालची प्रवृति की वजह से वहां पहुंचे होते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि यहां पहले मामला बहुत संगीन है. इधर फार्महाऊस में रौनक सिंह जिस वकील की हत्या करता है, उसकी तलाश में पुलिस लगी हुई है. पुलिस की एक टीम फार्महाऊस की तलाश भी करती है, जहां से वकील गायब हुआ है, लेकिन उसका कोई पता नहीं चलता. वहीं रौनक सिंह वकील की हत्या करके फार्महाऊस के अंदर बने कुएं में डाल देता है, लेकिन हैरानी की बात पुलिस जांच में उसका शव वहां से बरामद नहीं होता. आखिर शव कहां गया?
सब सवाल रौनक सिंह और उसकी सेक्रेटरी को खाए जाता है. इसी बीच उसका सबसे छोटा भाई और दूसरे भाई की पत्नी भी फार्महाऊस में पहुंच जाते हैं. इस तरह एक फार्महाऊस में लालचियों का पूरा एक समूह एकत्रित हो जाता है. ऐसे में जानना दिलचस्प है कि संपत्ति की मालकिन पद्मिनी राज सिंह का क्या होता है? क्या वो अपना बिल बदलती है या पूरा संपत्ति रौनक सिंह को ही देती है? वकील की हत्या हुई या नहीं? यदि हुई भी तो उसका शव कहां गया? इन्हीं सवालों के जवाब तलाशती हुई फिल्म खत्म हो जाती है. लेकिन अपनी जिस कहानी के आधार पर सुभाष घई कॉमेडी और ड्रामा बनाने की कोशिश करते हैं, उसमें असफल साबित होते हैं. फिल्म में विजय राज और संजय मिश्रा जैसे बेहतरीन कलाकारों के होने के बावजूद उनका असर नहीं दिखता. अपने स्वाभाविक अभिनय के विपरीत विजय राज भले ही विलेन बनने की कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन दर्शकों के मन में फिल्म 'रन' का उनका कॉमेडी कैरेक्टर ऐसा बैठा है कि बार-बार लोग उसकी तलाश करते हैं.
वैसे परफॉर्मेंस के लिहाज से देखें तो सबसे बेहतर संजय मिश्रा ही दिखते हैं. जय प्रकाश के किरदार में उनकी कॉमिक टाइमिंग कई जगह अच्छी लगी है. हालांकि, कई जगह वो ओवरएक्टिंग के शिकार भी नजर आते हैं. इसके अलावा हैरी के किरदार में अमोल पाराशर से भी उम्मीदें ज्यादा थीं, लेकिन वो भी खरे नहीं उतर पाए हैं. माधुरी भाटिया ने नानी उर्फ पद्मिनी राज सिंह के अपने किरदार में एक ईमानदार प्रदर्शन किया है, जो चाहती है कि उसका परिवार उसके पैसे से ज्यादा उसे प्यार करे. अंतरा के किरदार में बरखा सिंह थोड़ा अलग लगी हैं. हैरी के साथ उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री अच्छी लगती है. जहां तक फिल्म के तकनीकी पक्ष की बात है तो अखिलेश श्रीवास्तव का छायांकन बेहतर है. फिल्म का शूट ज्यादातर फार्महाऊस के अंदर हुआ है, ऐसे में उनके लिए चुनौती ज्यादा थी, लेकिन उन्होंने अपना ईमानदारी से किया है. इस फिल्म से सुभाष घई ने बतौर संगीतकार और गीतकार अपना डेब्यू किया है. उन्होंने दो गाने लिखे हैं और उनका संगीत भी दिया है, दोनों कर्णप्रिय लगते हैं.
कुल मिलाकार, फिल्म '36 फार्महाऊस' में गंभीर विषयों पर कॉमेडी बनाने की कोशिश की गई है, जो इसकी असफलता की वजह बनी है. इसमें महामारी, बेरोजगारी, गरीबी, अमीरी, वर्ग व्यवस्था और महिला सशक्तिकरण सहित कई गंभीर विषयों पर बात की गई है, लेकिन किसी एक को गहराई के साथ नहीं दिखाया गया है. कॉमेडी बनाने के चक्कर में फिल्म के साथ कॉमेडी हो गई है. यदि आप सुभाष घई के फिल्मों के फैन हैं, तो ये आपको बहुत निराश करेगी.
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