पिछले महीने आमिर खान की 'लाल सिंह चड्ढा' की रिलीज से पहले फिल्म का तीखा दिखा. विरोध की सबसे बड़ी वजह आमिर खान थे. एड़ी चोटी का जोर लगाने के बावजूद आमिर और उनकी फिल्म को दर्शकों ने बिना देखे ही खारिज कर दिया. बॉलीवुड इसे कई दशक तक याद करेगा क्योंकि इसी तरह सिनेमाघरों में बॉलीवुड की और भी फिल्मों को देखें बिना ही खारिज किया गया. आमिर के कुछ पुराने बयानों, तुर्की जैसे भारत विरोधी देशों में समाज सेवा की आड़ में नेताओं के साथ निजी बैठकों, उनकी फिल्मों में हिंदू धर्म को गलत तरह से दिखाए जाने आदि को लेकर लोग नाराज थे. खैर, सितंबर के पहले ही दिन आमिर खान प्रोडक्शन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक वीडियो साझा हुआ.
16 सेकेंड के वीडियो में माफीनामा था. आपने देखा ही होगा. अगर नहीं तो अभी यहां नीचे देख सकते हैं.
इसी वीडियो के बाद प्रचारित किया जा रहा कि जिन तमाम चीजों को लेकर आमिर का विरोध हो रहा था- आखिरकार उन्होंने तमाम चीजों के लिए माफी मांग ली है. आमिर के प्रशंसक इसे एक्टर का बड़प्पन तक करार दे रहे हैं. एक धड़ा जो एक्टर का प्रशंसक नहीं कहा जा सकता है, वह भी 'माफीनामे' को उनका बड़प्पन बताने की जल्दबाजी में है.
अब सवाल है कि जिस वीडियो को एक्टर के माफीनामे के रूप में प्रचारित किया जा रहा है- क्या वाकई में उसे आमिर का माफीनामा माना जा सकता है? मेरे पास दो तर्क हैं. अगर पहले तर्क में बॉलीवुड के सबसे बुद्धिमान, मानवतावादी, लोकतांत्रिक और हद दर्जे के आसमानी सेकुलर मूल्य जीने वाले जावेद अख्तर के साहबजादे श्रीमान फरहान अख्तर के दार्शनिक मूल्यों में कहूं तो आमिर पर लगे जो तमाम आरोप हैं- उसके मद्देनजर इसे माफीनामा तो नहीं कहा जा सकता. पैगम्बर पर विवादित टिप्पणी के बाद नुपुर शर्मा की माफी को फरहान ने अपर्याप्त बताया था. हालांकि नुपुर ने कार्य कारण जिक्र करते हुए माफी मांगी थी. आमिर के वीडियो में कुछ...
पिछले महीने आमिर खान की 'लाल सिंह चड्ढा' की रिलीज से पहले फिल्म का तीखा दिखा. विरोध की सबसे बड़ी वजह आमिर खान थे. एड़ी चोटी का जोर लगाने के बावजूद आमिर और उनकी फिल्म को दर्शकों ने बिना देखे ही खारिज कर दिया. बॉलीवुड इसे कई दशक तक याद करेगा क्योंकि इसी तरह सिनेमाघरों में बॉलीवुड की और भी फिल्मों को देखें बिना ही खारिज किया गया. आमिर के कुछ पुराने बयानों, तुर्की जैसे भारत विरोधी देशों में समाज सेवा की आड़ में नेताओं के साथ निजी बैठकों, उनकी फिल्मों में हिंदू धर्म को गलत तरह से दिखाए जाने आदि को लेकर लोग नाराज थे. खैर, सितंबर के पहले ही दिन आमिर खान प्रोडक्शन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक वीडियो साझा हुआ.
16 सेकेंड के वीडियो में माफीनामा था. आपने देखा ही होगा. अगर नहीं तो अभी यहां नीचे देख सकते हैं.
इसी वीडियो के बाद प्रचारित किया जा रहा कि जिन तमाम चीजों को लेकर आमिर का विरोध हो रहा था- आखिरकार उन्होंने तमाम चीजों के लिए माफी मांग ली है. आमिर के प्रशंसक इसे एक्टर का बड़प्पन तक करार दे रहे हैं. एक धड़ा जो एक्टर का प्रशंसक नहीं कहा जा सकता है, वह भी 'माफीनामे' को उनका बड़प्पन बताने की जल्दबाजी में है.
अब सवाल है कि जिस वीडियो को एक्टर के माफीनामे के रूप में प्रचारित किया जा रहा है- क्या वाकई में उसे आमिर का माफीनामा माना जा सकता है? मेरे पास दो तर्क हैं. अगर पहले तर्क में बॉलीवुड के सबसे बुद्धिमान, मानवतावादी, लोकतांत्रिक और हद दर्जे के आसमानी सेकुलर मूल्य जीने वाले जावेद अख्तर के साहबजादे श्रीमान फरहान अख्तर के दार्शनिक मूल्यों में कहूं तो आमिर पर लगे जो तमाम आरोप हैं- उसके मद्देनजर इसे माफीनामा तो नहीं कहा जा सकता. पैगम्बर पर विवादित टिप्पणी के बाद नुपुर शर्मा की माफी को फरहान ने अपर्याप्त बताया था. हालांकि नुपुर ने कार्य कारण जिक्र करते हुए माफी मांगी थी. आमिर के वीडियो में कुछ भी स्पष्ट नहीं है.
हाजी होने की अपनी दिक्कतें भी हैं, मगर आमिर खान की क्रिएटिव टीम ने बीच का रास्ता निकाल ही दिया
प्रोडक्शन की तरफ से साझा वीडियो में कहीं कोई जिक्र नहीं है कि आमिर खान माफी मांग रहे हैं. आमिर के नाम का इस्तेमाल तक नहीं हुआ है. हो सकता है कि ऐसा आमिर के हज जाने की वजह से हो. हज जाने के बाद मुसलमान गैरइस्लामी कार्य नहीं करता. मेरे वरिष्ठ पत्रकार मुस्लिम दोस्त ने अभी हाल ही में मुझे बताया था कि इस्लाम में समझौता है ही नहीं. समझौता किया जाता तो भला करबला के घटना क्यों होती? बॉलीवुड में 'हाजी' होने की अपनी समस्याएं हैं. और यहां इश्किया की तरह दिल के हाजी होने की गुंजाइश कम है.
कई मामले हैं. सबसे उदाहरण तो दिग्गज प्लेबैक सिंगर मोहम्मद रफ़ी साब का ही है. रफ़ी साब जैसा नेक दिल इंसान हाजी क्या बने उन्होंने गाना तक गाना छोड़ दिया था. बहुत मनुहार के बाद वे दोबारा 'गैरइस्लामी' कार्य करने लौटे थे. हमारे देश के अन्य तमाम हाजी तो मक्का से लौटने के बाद बालों में काले रंग का 'खिजाब' तक लगाना छोड़ देते हैं. उन्हें केसरिया पसंद है. दुनिया के लिए रंग होगा. मगर रंग झटका और हलाल भी है. ये दूसरी बात है कि अरब देशों में जो इस्लाम के कर्ता धर्ता तलवारवंशी राजे महाराजे हैं वे बुढ़ापे में भी बालों को रंगने के किए गहरा काला रंग इस्तेमाल करते हैं. बेशक वह रंग बहुत-बहुत कीमती होगा. शायद तभी महंगे काले रंग से परहेज करने वाले हमारे उपमहाद्वीपीय हाजी मेहंदी के लाल रंग से काम चला रहे हैं. खैर हम कहां जा रहे हैं. आमिर के मिच्छामि दुक्कडम् पर लौटते हैं.
मैं कह रहा हूं कि आमिर ने माफी नहीं मागी हैं बल्कि माफी का स्वांग रच दिया है. सभ्य तरीके से कहूं तो माफी की औपचारिकता निभाई है. अगर आमिर मनसा-वाचा-कर्मणा एक पक्ष को पोषित करते आए थे तो उनकी माफी से एक पक्ष को खोने का संकट था. माफी मतलब समझौता कर लेना. लाल सिंह चड्ढा ने मुश्किल हालात के बावजूद जो थोड़े बहुत रुपये कमाए- वह तो उसी पक्ष ने दिया जो हमेशा आमिर के साथ बना रहा. अब जो चीज पास में है भी नहीं उसके लिए अपनी कमाई 'पूंजी' को गंवा देना किसी भी किताब में बुद्धिमानी तो नहीं कही जा सकती.
"मिच्छामि दुक्कडम्" जैन धर्म का सूत्र वाक्य है. यह प्राकृत भाषा में है. तो बात ऐसी है कि आमिर की क्रिएटिव टीम ने बीच का रास्ता खोज निकाला. कुछ कुछ उस कहावत की तरह- सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे. यानी माफी के रूप में प्रचारित हो जाए और वह माफी हो भी नहीं. मिच्छामि दुक्कडम् वीडियो असल में बिल्कुल वही है. दूसरे तर्क का आधार यही है. आमिर ने असल कोई माफी नहीं मांगी. उनकी जो सीमा है उसे लांघकर माफी मांगना उनके वश में है भी नहीं. उन्होंने बस माफी का स्वांग रचा. हालांकि वे अफसोस जरूर कर रहे होंगे कि काश कि यह "पर्यूषण पर्व" भादौ की बजाए सावन में पड़ा होता. 1 सितंबर को पर्यूषण पर्व था. सिर्फ जैन ही नहीं सनातन और अब तो पश्चिम में भी इस दिन लोग आत्म आलोचना करते हैं.
संकेतों में माफी आमिर खान ही मांग सकते हैं और कोई नहीं
आमिर चाहें तो इस बात के लिए जैन तीर्थंकरों से अपनी नाराजगी जता सकते हैं कि पर्यूषण/संवत्सरी पर्व अगर भादौ की बजाए सावन में शुरू किया जाता तो 180 करोड़ के भारी भरकम बजट में बनी उनकी फिल्म को बेंचने के लिए माफी का सहारा लिया जा सकता था. एक्टर ने माफी नहीं मांगी है- यह बताने के लिए सिर्फ इतना ही काफी है कि जो माफी स्पष्ट ही नहीं है उसे आप माफी कैसे सकते हैं? सोचिए आमिर किस बात के लिए और किससे माफी मांग रहे हैं? और कैसे मान लिया जाए कि माफी आमिर की ही है. क्या माफी भी संकेतों में मांगी जाती है?
पर्यूषण/संवत्सरी पर्व गणेश चतुर्थी के दिन मनाया जाता है. यह जैन धर्म का सबसे अहम पर्व है. और यह धार्मिक मूल्यों से कहीं ज्यादा मानवीय दर्शन पर जोर देती है. दुनिया के कई देशों में लोग इसे मनाते हैं. लोग उपवास रखते हैं और संकल्प लेते हैं कि वो पर्यावरण में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेंगे. पर्यूषण पर्व दस दिन तक मनाया जाता है. यह उल्लास का पर्व नहीं बल्कि तप का पर्व है. उपवास, पूजा, समागम, त्याग, तपस्या, संयम और विवेक आदि चीजों का अभ्यास किया जाता है.
तो पर्यूषण पर्व पर आमिर की क्रिएटिव टीम ने एक वीडियो बनाया. वीडियो को उनके पीआर ने माफीनामे के रूप में प्रचारित किया. असल में आमिर का माफीनामा वीडियो जन्माष्टमी पर कन्हैया का वेश लिए उन मुस्लिम बच्चों की तरह ही है- जो ना तो कृष्ण मंदिर जाते हैं और ना ही उसके सामने सिर झुकाते हैं. मगर उनकी फैंसी तस्वीरों को साझा कर गंगा जमुनी तहजीब का मकड़जाल बुना जाता है. और बदले में हिंदुओं से ऐसी ही वायरल फोटो मांगी जाती है. अब दिक्कत यह है कि ताजियों को कंधा देता, दरगाह पर चादर चढ़ाते हुए गैरइस्लामी भीड़ उन्हें नहीं दिखती. वायरल तस्वीरों की मांग होती है. इस्लाम में तस्वीरें वैसे भी हराम हैं. ऊपर से किसी नबी का रूप धर भला कौन अपने बच्चों और अपनी गर्दन चाकुओं से रेतने के लिए बहादुरी दिखाए.
आमिर या उनकी कंपनी ने कोई माफी नहीं मांगी. बस उन्होंने पर्यूषण पर्व पर एक वीडियो के जरिए सेकुलर ट्वीट किया है. बदले में आमिर चाहते हैं कि आगे यशराज फिल्म्स जो उनके बेटे को लॉन्च करने जा रहा है- उनकी फ़िल्में देखने जाइए. उसे भी इतनी बड़ी हस्ती बनाइए कि वह भी किसी भारत विरोधी एर्दोगान की पत्नी के साथ बैठकर चाय पिए. और आपको चिढ़ाए.
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