बीते दिनों निर्देशक नीरज पांडे की फिल्म अय्यारी बड़े पर्दे पर रिलीज हुई है. यह पहला मौका नहीं है जब नीरज ने देश से जुड़ी घटनाओं और देशप्रेम वाली फिल्मों का निर्देशन किया हो, इससे पहले भी वह कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन कर चुके हैं. गौरतलब है कि नीरज की निर्देशकीय शुरुआत भी आतंकवाद के मुद्दे को उठाती फिल्म A Wednesday (2008) से हुई थी. उसके बाद उन्होंने स्पेशल 26, बेबी, एम एस धोनी:अंटोल्ड स्टोरी जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. उनकी प्रोड्यूस की हुई फिल्मों के विषय भी लगभग इन्हीं मुद्दों के इर्द गिर्द घूमते देखे जा सकते हैं.
फिल्म रुस्तम, सात उचक्के, नाम शबाना, टॉयलेट एक प्रेम कथा के मूल विषयों को देखा जाए तो यह पता चलता है कि सभी फिल्में देश के जरूरी मुद्दों की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं. एक ओर जहां फिल्म बेबी का प्रीक्वेल नाम शबाना अपने विषय के साथ काफी हद तक न्याय कर पाने में सफल हुई थी वहीं टॉयलेट एक प्रेम कथा से उन्होंने स्वच्छता अभियान को एक नई दिशा देने का काम किया था. निर्देशक नीरज पांडे के निर्देशन और निर्माण वाली फिल्मों का भारत में हमेशा जोरदार स्वागत तो होता रहा है, लेकिन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान क्यों खफा रहता है, इसे लेकर अब शोध हो ही जाना चाहिए. क्योंकि अब तक एक के बाद एक नीरज की तीन फिल्मों को पाकिस्तानी सेंसरबोर्ड बैन कर चुका है.
हाल ही में फिल्म अय्यारी को लेकर पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि इस फिल्म की कहानी हमारे देश के अनुकूल नहीं है. यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तानी सेंसरबोर्ड ने भारत की फिल्मों को अपने मुल्क में प्रतिबंधित कर दिया हो, उनकी रूढ़िवादिता का अंदाजा पैडमैन जैसे खुले विषय वाली फिल्मों को...
बीते दिनों निर्देशक नीरज पांडे की फिल्म अय्यारी बड़े पर्दे पर रिलीज हुई है. यह पहला मौका नहीं है जब नीरज ने देश से जुड़ी घटनाओं और देशप्रेम वाली फिल्मों का निर्देशन किया हो, इससे पहले भी वह कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन कर चुके हैं. गौरतलब है कि नीरज की निर्देशकीय शुरुआत भी आतंकवाद के मुद्दे को उठाती फिल्म A Wednesday (2008) से हुई थी. उसके बाद उन्होंने स्पेशल 26, बेबी, एम एस धोनी:अंटोल्ड स्टोरी जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. उनकी प्रोड्यूस की हुई फिल्मों के विषय भी लगभग इन्हीं मुद्दों के इर्द गिर्द घूमते देखे जा सकते हैं.
फिल्म रुस्तम, सात उचक्के, नाम शबाना, टॉयलेट एक प्रेम कथा के मूल विषयों को देखा जाए तो यह पता चलता है कि सभी फिल्में देश के जरूरी मुद्दों की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं. एक ओर जहां फिल्म बेबी का प्रीक्वेल नाम शबाना अपने विषय के साथ काफी हद तक न्याय कर पाने में सफल हुई थी वहीं टॉयलेट एक प्रेम कथा से उन्होंने स्वच्छता अभियान को एक नई दिशा देने का काम किया था. निर्देशक नीरज पांडे के निर्देशन और निर्माण वाली फिल्मों का भारत में हमेशा जोरदार स्वागत तो होता रहा है, लेकिन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान क्यों खफा रहता है, इसे लेकर अब शोध हो ही जाना चाहिए. क्योंकि अब तक एक के बाद एक नीरज की तीन फिल्मों को पाकिस्तानी सेंसरबोर्ड बैन कर चुका है.
हाल ही में फिल्म अय्यारी को लेकर पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि इस फिल्म की कहानी हमारे देश के अनुकूल नहीं है. यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तानी सेंसरबोर्ड ने भारत की फिल्मों को अपने मुल्क में प्रतिबंधित कर दिया हो, उनकी रूढ़िवादिता का अंदाजा पैडमैन जैसे खुले विषय वाली फिल्मों को लेकर भी जग जाहिर हो जाता है. इस फिल्म के संबंध में पाकिस्तानी बोर्ड यह कहते हुए प्रतिबंध लगा चुका है कि ऐसे विषयों का हमारे देश की संस्कृति, समाज, और यहां तक की हमारे मजहब तक में जगह नहीं है.
हालांकि, इसके बाद से वहां के प्रोग्रेसिव फ़िल्मकारों और आम तरक्की पसंद लोगों ने इसको लेकर विरोध भी दर्ज कराया. माहवारी के सवाल पर कइयों ने तो यह भी कहा कि पाकिस्तानी महिलाओं को भी पीरियड आते हैं. ऐसे में हमें भी भारत की तरह सोच बदलने की जरूरत है. फिल्म नीरज पांडे की फिल्म नाम शबाना और रुस्तम को लेकर भी पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड का यही रवैया देखा गया था. खुफिया एजेंसी और भारतीय सेना की पृष्ठभूमि वाली फिल्मों को पाकिस्तान अपने दर्शकों के बीच नहीं दिखाना चाहता है.
पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड अपने दर्शकों को फूंक-फूंक कर विदेशी फिल्में दिखाता है, हाल ही में टाइगर जिंदा है को लेकर भी उन्हें आपत्ति हुई थी. भारतीय सेना और खुफिया एजेंसी को केंद्र में रखकर बनने वाली नीरज पांडे की कई फिल्मों को जिस आधार पर पाकिस्तान बैन कर चुका है वह उनके देश के सिनेमाई अभिव्यक्ति के स्तर को बता पाने के लिये काफी है. सत्ता से घिरा हुआ पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड अपने सिनेमा पर नियंत्रण लगा अपने देश के सिने दर्शकों पर अंकुश लगाता रहता है. इससे उसे बचने की जरूरत है. ब्रिटेन में जब सेंसर की शुरुआत हुई तो उसका स्वरूप भी इसी तरह का था. पाकिस्तान आज भी इसे इसी रूप में ढो रहा है, यह दुखद है. यह सच है कि भारत भी इसमें पीछे नहीं है, लेकिन पाकिस्तान से काफी उदार है. जिस पर हमे गर्व होना चाहिए.
नीरज पांडे की देशभक्ति वाली फिल्मों से पाकिस्तान का घबराना यह बताता है कि कहीं न कहीं नीरज की फिल्म में वह तो है जो पाकिस्तान को चुभता है. फिल्मों के माध्यम से अगर भारतीय निर्देशकों द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ कुछ भी आपत्तीजनक पेश किया जाता तो संभव है कि भारत का सेंसरबोर्ड इसके प्रदर्शन की अनुमति नहीं देता. सेंसर नियमों में यह साफ है कि ऐसा किसी भी फिल्म में कोई संदेश नहीं दिखाया जा सकता जिससे पड़ोसी मुल्कों से मैत्री संबंध खराब हों.
यह भी सत्य है कि अगर तथ्य गलत पेश किए जाते तो पाकिस्तान दुनिया भर में हो हल्ला करते हुए ऐसी फिल्मों पर प्रतिबंध की मांग भी अब तक करने लगता. वह सिर्फ अपने देश से ऐसी फिल्मों को न दिखा पाने तक ही हर बार सीमित रहता है. भारत का सिने बाज़ार अन्य मुस्लिम देशों तक भी है, लेकिन पाकिस्तान का बार बार ऐसी फिल्मों पर प्रतिबंध लगाना एक नए विमर्श को जन्म देता है.
अक्सर देशभक्ति और भारतीय सेना पर आधारित फिल्मों को पाकिस्तान में रिलीज नहीं होने दिया जाता. पाकिस्तान का यह रवैया आज से नहीं बल्कि वह 1991 में जेपी दत्ता की बॉर्डर और LOC कारगिल (2003), अमृत सागर की फिल्म 1971 (2007),एक था टाइगर, जैसी फिल्मों पर भी पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड युद्ध पृष्ठभूमि होने के कारण प्रतिबंध लगा चुका है.
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