बॉलीवुड में खान सितारों के उदय के साथ-साथ इंडस्ट्री की तमाम चीजें बहुत तेजी से बदल गईं. एक्टर की हैसियत अचानक से बॉलीवुड में इतनी बढ़ गई कि वह सबकुछ तय करने वाली पोजीशन में आ गए. फिल्म की कहानी कैसी होगी, किरदारों का काम क्या होगा, कौन गायक संगीतकार होगा, गाने के बोल क्या होंगे, किसके हिस्से कौन सा संवाद आएगा, किसका रोल कितना बड़ा होगा, कौन हीरोइन होगी, कौन निर्देशक होगा, निर्देशक शूट कैसे करेगा, किसके रोल में कितनी काट छांट होगी, फिल्म के लाभ में हीरो का भी कितना शेयर होगा और सिनेमाघरों में किसकी फिल्म को कितनी स्क्रीन्स मिलेंगी- सबकुछ दो तीन सितारे तय करने लगे. यहां तक कि राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन जैसे सुपर सितारे भी जब अपने स्टारडम के पीक पर थे- फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेताओं की भूमिकाएं एक दायरे में ही नजर आती हैं.
मनमानियां इस कदर बढ़ गईं कि बॉलीवुड के सितारे फिल्म उद्योग से अलग भी सामजिक-राजनीतिक चीजों को डील करने लगें. भारत को किसके साथ व्यापार करना चाहिए किसके साथ नहीं, भारतीय सेना को क्या करना चाहिए, भारतीय राजनीति के मुद्दे क्या होना चाहिए और यहां तक कि भारतीय सरकारों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं- यह भी सलाह कुछ सुपर सितारे देने लगे. भारतीय समाज कैसा हो यह भी निर्धारित करने लगे. पिछले तीन दशक में अनगिनत बयान हैं जिसे रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज किया जा सकता है. खान सितारों का करीब-करीब ढाई दशक तक एकछात्र राज रहा. लेकिन पहले शाहरुख खान और फिर आमिर खान ने जिस तरह मोदी राज आने के बाद मोर्चा संभाला और अपने स्टारडम के सहारे दुनियाभर में भारत की छवि दूषित करने के लिए असहिष्णुता जैसी घटिया डिबेट खड़ी की उसने पहली बार सांगठनिक रूप से लोगों को बॉलीवुड के खिलाफ चौकन्ना किया था.
बॉलीवुड में खान सितारों के उदय के साथ-साथ इंडस्ट्री की तमाम चीजें बहुत तेजी से बदल गईं. एक्टर की हैसियत अचानक से बॉलीवुड में इतनी बढ़ गई कि वह सबकुछ तय करने वाली पोजीशन में आ गए. फिल्म की कहानी कैसी होगी, किरदारों का काम क्या होगा, कौन गायक संगीतकार होगा, गाने के बोल क्या होंगे, किसके हिस्से कौन सा संवाद आएगा, किसका रोल कितना बड़ा होगा, कौन हीरोइन होगी, कौन निर्देशक होगा, निर्देशक शूट कैसे करेगा, किसके रोल में कितनी काट छांट होगी, फिल्म के लाभ में हीरो का भी कितना शेयर होगा और सिनेमाघरों में किसकी फिल्म को कितनी स्क्रीन्स मिलेंगी- सबकुछ दो तीन सितारे तय करने लगे. यहां तक कि राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन जैसे सुपर सितारे भी जब अपने स्टारडम के पीक पर थे- फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेताओं की भूमिकाएं एक दायरे में ही नजर आती हैं.
मनमानियां इस कदर बढ़ गईं कि बॉलीवुड के सितारे फिल्म उद्योग से अलग भी सामजिक-राजनीतिक चीजों को डील करने लगें. भारत को किसके साथ व्यापार करना चाहिए किसके साथ नहीं, भारतीय सेना को क्या करना चाहिए, भारतीय राजनीति के मुद्दे क्या होना चाहिए और यहां तक कि भारतीय सरकारों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं- यह भी सलाह कुछ सुपर सितारे देने लगे. भारतीय समाज कैसा हो यह भी निर्धारित करने लगे. पिछले तीन दशक में अनगिनत बयान हैं जिसे रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज किया जा सकता है. खान सितारों का करीब-करीब ढाई दशक तक एकछात्र राज रहा. लेकिन पहले शाहरुख खान और फिर आमिर खान ने जिस तरह मोदी राज आने के बाद मोर्चा संभाला और अपने स्टारडम के सहारे दुनियाभर में भारत की छवि दूषित करने के लिए असहिष्णुता जैसी घटिया डिबेट खड़ी की उसने पहली बार सांगठनिक रूप से लोगों को बॉलीवुड के खिलाफ चौकन्ना किया था.
समाज ने जबरदस्त विरोध किया और उसका असर यह रहा कि दोनों को अपने बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी थी. मगर बॉलीवुड की फितरत ख़त्म नहीं हुई. वह जारी रही. हालांकि कोविड के दौरान सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद बॉलीवुड में नेपोटिज्म यानी एक तरह से 'सेन्स ऑफ़ इनटाइटलमेंट' के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा नजर आया. बॉलीवुड बायकॉट की लहर चल पड़ी. उस बहस के बाद बॉलीवुड में अब तक ना जाने कितने खान, कपूर, जौहर, चोपड़ा निपट चुके हैं- जो खरीदे गए स्टारडम के नशे में इस कदर चूर थे कि उनकी सार्वजनिक बदतमीजियां आम हो गई थीं. लोगों ने बॉलीवुड विरोध में दक्षिण का हाथ पकड़ा और साबुन का झाग बैठ गया. अब वही कपूर, वही खान मिन्नतें करते दिख रहे हैं. निर्देशकों से गिड़गिड़ा रहे हैं कि अपनी फिल्म में उन्हें ले लें. एक हिट मिलो जाएगी.
किसी भी तरह एक सुपरहिट फिल्म तलाश रहे हैं बॉलीवुड के सुपर सितारे
फ्लॉप्स ने स्टारडम का हैंगओवर कुछ ऐसा ख़त्म किया कि सितारों ने अपनी फीस तक घटा दी है. प्रौफिट शेयरिंग तक पर पुनर्विचार करने को तैयार हैं. और तो और- आमिर खान जैसे सुपर परफेक्सनिस्ट तक से जुड़ी खबरें आ रहीं कि बदले हालात में बतौर अभिनेता करियर बचाए रखने भर के लिए जूनियर एनटीआर के साथ सपोर्टिंग भूमिका तक करने को तैयार हैं. केजीएफ़ फेम प्रशांत नील यह फिल्म बना रहे हैं. कहां तो उन्होंने एक्टिंग से ब्रेक की सार्वजनिक घोषणा की गठी. लेकिन एनटीआर के साथ काम करना चाहते हैं. इससे समझ सकते हैं कि आमिर के मन में सफलता को लेकर क्या चल रहा है. कार्तिक आर्यन के साथ भूल भुलैया 2 जैसी ब्लॉकबस्टर बनाने के बाद शाहिद कपूर अनीस बज्मी के घर और ऑफिस के बाहर पाए जा रहे थे. असल में भूल भुलैया 2 के बाद अनीस एकता कपूर के निर्माण में एक और फिल्म करने वाले थे. भनक लगते ही शाहिद कपूर उनके पीछे पड़ गए. चर्चाएं तो यहां तक है कि बॉलीवुड के तमाम रौशन, कपूर, सिंह अनीस के साथ फिल्म कर एक अदद हिट की तलाश कर रहे हैं. हालांकि शाहिद को फिल्म मिल गई है.
शाहिद जो आमतौर पर एक फिल्म के 35-50 करोड़ तक चार्ज करते थे, जर्सी जैसी सुपरफ्लॉप देने के बाद महज 25 करोड़ में फिल्म कर रहे हैं. दूसरे तमाम एक्टर निराश हैं कि उन्हें फिल्म नहीं मिली. कहा तो यह भी जा रहा है कि तमाम एक्टर्स के नाम भर से अब निर्माता बच रहे हैं. बॉलीवुड में उनकी साख तक नहीं बची है. बड़ा सवाल भी है कि जब 50 से 100 करोड़ की फीस लेने वाला एक्टर अगर अपने बूते सिनेमाघर तक दर्शक नहीं ला पा रहा है तो कैसे कोई निर्माता उन्हें लेकर फिल्म बनाए? निर्माता तो फ़िल्में मुनाफा कमाने के लिए बनाता है. अब वो एक चुके एक्टर को क्यों ही मोटी फीस दे, प्रौफिट में भी हिस्सा दे. और बदले में तगड़ा नुकसान झेले. निर्माता तमाम चेहरों से बचने लगे हैं. वैसे बॉलीवुड में कई सुपर सितारों की अक्ल ठिकाने लग चुकी है. बावजूद अभी भी तमाम की ऐठन ख़त्म नहीं हुई है और वे निगेटिव माहौल में भी पॉजीटिव बनकर ज़िंदा रहने का राजनीतिक नारा उछालने से बाज नहीं आ रहे हैं.
शाह रुख की पठान फ्लॉप हुई तो तमाम की दुकान बंद हो जाएगी
एक अदद सफलता के लिए बॉलीवुड के सितारे कितना मरे जा रहे हैं- हाल ही में इसका मजेदार उदाहरण देखने को मिला था. असल में हेराफेरी का तीसरा पार्ट बन रहा था. कम फीस और भूल भुलैया 2 में कार्तिक आर्यन की ब्लॉकबस्टर सफलता को देखकर निर्माताओं ने कार्तिक आर्यन को साइन कर लिया. बात अक्षय से भी चल रही थी, लेकिन निर्माताओं को कार्तिक ज्यादा बेहतर लगे. कार्तिक के साइन होने की बातें जब सामने आ गईं तब अक्षय ने सार्वजनिक रूप से चीजों को लेकर बयान दिए. आमतौर पर हाल फिलहाल उन्हें ऐसा करते कभी नहीं देखा गया था. इससे पता चलता है कि एक कामयाब फ्रेंचायजी यानी सफलता के लिए अक्षय जैसे एक्टर भी आज की तारीख में कितना परेशान हैं. चर्चा में तो यह भी रहा कि अक्षय ने अपनी फीस और प्रौफिट शेयरिंग तक कम कर दी पर निर्माता नहीं मानें. अक्षय की लाइन लगाकर चार फ़िल्में फ्लॉप हुई हैं. गलती सिर्फ एक कि जब द कश्मीर फाइल्स पर समूचे देश में माहौल बना, वे भी फिल्म के पक्ष में कुछ खुलकर कहने से बचते नजर आए.
बहरहाल, आगे क्या होगा- कुछ तय नहीं है. मगर बायकॉट बॉलीवुड ट्रेंड ने सितारों का हैंगओवर तो लगभग ख़त्म कर दिया है. पठान फ्लॉप हुई तो यह तय माना जा सकता है कि बॉलीवुड के तमाम सितारों की ऐंठन लंबे वक्त के लिए ठंडी पड़ जाएगी.
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