इस वक्त पूरे देश में हिंदुत्व का स्वर मुखर है. समाज में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग अब उसका अपमान किसी भी हाल में बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है. यही वजह है कि सिनेमा में हिंदू धर्म, संस्कृति और सभ्यता के अपमान पर विरोध प्रदर्शन तेज हो जाता है. इस वक्त शाहरुख खान की फिल्म 'पठान' का विरोध भी इसी वजह से हो रहा है, जिस पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लग रहा है. बॉलीवुड बायकॉट मुहिम को ऐसे ही प्रयासों का नतीजा का कहा जा सकता है. इसके ठीक विपरीत साउथ सिनेमा हिंदू धर्म की अलख जगाने का काम लगातार कर रहा है. वहां की फिल्मों में धर्म विशेष का अपमान नहीं होता, बल्कि उसके सकारात्मक पहलू को दिखाया जाता है. कुछ इसी तरह की एक फिल्म 'अखंडा' को हिंदी में डब करके रिलीज किया गया है. इस हाई वोल्टेज मास एंटरटेनर फिल्म में साउथ सिनेमा के सुपर स्टार नंदमुरी बालकृष्ण लीड रोल में हैं.
नंदमुरी बालकृष्ण साउथ सिनेमा के पुराने और लोकप्रिय चेहरों में से एक हैं. हिंदी पट्टी में भी वो किसी परिचय के मोहताज नहीं है. केबल टीवी के जमाने में जब से साउथ की डब हिंदी फिल्में दिखाई जा रही हैं, तब से उनकी फिल्मों का प्रसारण हो रहा है. 14 साल की उम्र में अपना फिल्मी करियर शुरू करने वाले बालकृष्ण 100 से ज्यादा फिल्में कर चुके हैं. फिलहाल सिनेमा के बाद सियासत में मजबूत पारी खेल रहे हैं. उनकी कई प्रमुख फिल्में जैसे कि 'एक सुनामी ज्वालामुखी', 'शेरों का शेर', 'रखवाला', 'द वन मैन आर्मी', 'एक और भीम', 'संघर्ष', 'कैदी नंबर 1', 'अंधा इंसाफ', 'परम वीर चक्र', 'सबसे बड़ा जुगाड़बाज' आज भी कई लोगों के जेहन में होंगी. लेकिन लंबे समय बाद उनको रुपहले पर्दे पर देखना अच्छा लगता है. वो भी जबरदस्त एक्शन सीन करते हुए. ऐसे एक्शन सीक्वेंस जिन्हें देखने के बाद कोई भी हैरान रह जाए. बॉलीवुड फिल्मों में तो ऐसे सीन विरले ही दिखते हैं.
नंदमुरी बालकृष्ण की हाई वोल्टेज मास एंटरटेनर फिल्म 'अखंडा' को हिंदी में रिलीज.
पेन स्टूडियोज के बैनर तले हिंदी में डब होकर रिलीज हुई फिल्म 'अखंडा' का निर्देशन बोयापति श्रीनू ने किया है. फिल्म की कहानी भी उन्होंने ही लिखी है. श्रीनू को एक खास तरह की फिल्मों के निर्माण के लिए जाना जाता है. उनकी फिल्मों को देखने की पहली शर्त होती है कि दर्शक अपना दिमाग घर छोड़कर सिनेमाघर में जाएं. उनकी फिल्मों की दो खासियत होती है, पहली ये कि उसमें किसी तरह के लॉजिक की अपेक्षा न की जाए. दूसरी ये कि सिनेमाघर से निकलने के बाद भी दहाड़ने की आवाज सुनाई देती रहेगी. श्रीनू की फिल्में लॉजिक से परे होने के बावजूद जबरदस्त मनोरंजन करती हैं. उनमें एक्शन होता है. इमोशन होता है. शानदार संवाद होते हैं. ये सारे तत्व फिल्म 'अखंडा' में भी मौजूद हैं. लेकिन सबसे जबरदस्त हैं, 62 साल की उम्र में धांसू एक्शन करते नंदमुरी बालकृष्ण. वो जब अपने से 30 साल छोटी अभिनेत्री के साथ रोमांस करते हैं, तो उनकी उम्र भी मात खा जाती है.
फिल्म 'अखंडा' की कहानी जुड़वा भाईयों के ईर्द-गिर्द घूमती है. दोनों ही किरदार नंदमुरी बालकृष्ण ने निभाए हैं. फिल्म की शुरूआत बरसात की एक रात से होती है. एक महिला जुड़वां बच्चों को जन्म देती है. उसी वक्त एक धर्मगुरु (जगपति बाबू) वहां आते हैं. बच्चों के पिता से कहते हैं कि इनमें से एक बच्चा धर्म के रक्षार्थ पैदा हुआ है, इसलिए वो उनको सौंप दे. मां की बिना अनुमति को पिता एक बच्चा धर्म गुरु को दे देता है. वो उसे लेकर काशी जाते हैं. एक संत की सानिध्य में बच्चा पलने लगता है, जो कि बड़ा होकर अखंडा के नाम से मशहूर हो जाता है. अखंडा का भाई मुरली कृष्णा बड़ा होकर किसानी करने लगता है. उसका एक अस्पताल भी है, जिसमें गरीबों का मुफ्त इलाज होता है. कुछ समय बाद सरन्या (प्रज्ञा जायसवाल) जिले की कलेक्टर बनकर आती हैं, जिसे मुरली कृष्ण से प्यार हो जाता है. कुछ समय बाद दोनों शादी कर लेते हैं. सरन्या एक बेटी पैदा करती है.
मुरली कृष्ण के इलाके के जंगलों में तांबे के खनन का काम होता है. लेकिन तांबे की आड़ में यूरेनियम निकाला जाता है. इस खदान का मालिक वरदराजुलु (श्रीकांत) अपने गुरु गजेंद्र (नीतिन मेहता) के संरक्षण में गैर कानूनी गतिविधियों को अंजाम देता रहता है. गजेंद्र के पास भविष्य देखने की शक्ति होती है, जिसके सहारे वो अपना साम्राज्य विस्तार करना चाहता है. वो भगवा चोले में एक माफिया अपराधी है. इसी बीच यूरेनियम निकालते वक्त रेडिएशन लीक हो जाता है. इसकी वजह से बड़ी संख्या में बच्चे बीमार पड़ने लगते हैं. पशुओं और मछलियों की मौत होने लगती है. सभी को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है. वहां सरन्या की सेक्रेटरी बताती है कि ये सबकुछ वरदराजुलु की वजह से हो रहा है. इसके बाद मुरली कृष्ण उसके खदान में पहुंच जाता है, लेकिन वरदराजुलु अपनी सियासी पहुंच से उसे गिरफ्तार करवा देता है. अस्पताल में बम विस्फोट कराकर पीड़ित बच्चों को मरवा देता है.
उस पूरे इलाके में नरसंहार शुरू कर देता है. सैकड़ों की संख्या में लोग मारे जाते हैं. मुरली की बेटी की तबियत अचानक गंभीर रूप से खराब हो जाती है. सरन्या उसे लेकर शहर के अस्पताल जाने के लिए निकलती है, लेकिन रास्ते में वरदराजुलु के लोग उसके पीछे पड़ जाते हैं. उसे जान से मारने की कोशिश करते हैं. लेकिन सरन्या जान बचाने के लिए एक गुफा में जाकर छिप जाती है. वहीं उसकी मुलाकात अखंडा से होती है. पहली बार रौद्र में रूप में अखंडा का दर्शन होता है, जो कि भगवान शिव की तरह तांडव करके सारे गुंडों को मार देते हैं. इसके बाद जो एक्शन शुरू होता है. वो फिल्म के अंत में ही जाकर खत्म होता है. लेकिन बीच बीच में कई इमोशनल सीन भी हैं, जो गरम रेत पर गिरी ठंडी पानी की बुंदों की तरह है. क्या अखंडा का राज सबके सामने आ पाएगा? क्या अखंड़ा हिंदू धर्म की रक्षा के साथ लोगों की जान बचा पाएगा? इससे जानने के लिए फिल्म देखनी होगी.
फिल्म 'अखंडा' में नंदमूरी बालकृष्णा के साथ प्रज्ञा जायसवाल, जगपति बाबू, नीतिन मेहता और श्रीकांत जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है. बालकृष्णा डबल रोल में हैं, लेकिन दोनों ही किरदारों को उन्होंने बेहतरीन तरीके से निभाया है. मुरली कृष्ण के किरदार में वो प्रेमी और दयालु नजर आते हैं, तो अखंडा के किरदार में उनका रौद्र रूप देखते ही बनता है. लाल आंखें, काला लिबास, हाथ में त्रिशुल और कमर में कृपाण लिए जब वो चलते हैं, तो सचमुच लगता है कि काल चल रहा है. सरन्या के किरदार में प्रज्ञा जायसवाल जम रही हैं. उनकी सुंदरता उनके किरदार में चार चांद लगा रही है. वरदराजुलु के किरदार में श्रीकांत बहुत खूंखार लगते हैं. उनको देखकर साधारण इंसान डर सकता है, उनके किरदार को इस तरह गढ़ा गया है. बोयापति श्रीनु ने कमाल का निर्देशन किया है. ऐसे एक्शन सीक्वेंस शूट करना हर निर्देशक के बस की बात नहीं होती है. उनकी तकनीकी टीम ने उनका पूरा साथ दिया है. हिंदी संवाद प्रभावी हैं. कुल मिलाकर, अखंडा एक मनोरंजक फिल्म है. जो मनोरंजन करने के साथ सीख भी देती है.
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