महिलाओं पर अत्याचार सदियों से होते आ रहे हैं. वर्तमान में उनकी सुरक्षा के लिए बनाए गए तमाम कानूनों के बावजूद देश में हर तीन महिलाओं में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार हैं. घरेलू हिंसा की शिकार ज्यादातर महिलाएं इस मामले में रिपोर्ट दर्ज नहीं करा पाती. इसे अपनी नियति मानकर सह लेती हैं. उसके बाद हिंसा झेलना उनकी आदत में शुमार हो जाता है. इसकी एक सबसे बड़ी वजह ये है कि ये महिलाएं आर्थिक रूप से अपने पति या परिवार के ऊपर निर्भर होती हैं. कई बार समाज के डर से भी इनको चुप रहना पड़ता है. कई बार परिवार को बचाने के लिए इन्हें सहना पड़ता है. लेकिन सिनेमा ने समय समय पर महिलाओं को जागरूक करने का काम किया है.
ऐसी कई हिंदी फिल्में बनाई गई हैं, जिनमें घरेलू हिंसा के दर्द को वास्तविक रूप में पेश किया गया है. 'दामन', 'लज्जा', 'मेहंदी', 'अग्निसाक्षी', 'प्रोवोक्ड', 'थप्पड़' और 'डार्लिंग्स' जैसी फिल्मों के नाम इस फेहरिस्त में शामिल हैं. इन फिल्मों में दिखाया गया है कि कैसे समाज में घर के बाहर और अंदर महिलाओं के साथ अत्याचार किया जाता रहा है. उनको मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है. ऐसा करने वाला कोई गैर नहीं बल्कि उनके अपने होते हैं. पहले के दौर में महिलाएं अपने साथ होने वाले अत्याचारों को सह लेती थीं. घुट-घुट कर जिंदगी जीती थीं. लेकिन समय के साथ महिलाओं में जागृति आई है. महिलाओं ने अब अत्याचार सहना बंद कर दिया है.
महिलाएं अब मुखर होकर हिंसा का विरोध करती हैं. जरूरत पड़ने पर कानून का सहारा लेती है. ज्यादा हुआ तो तलाक ले लेती है. कई महिलाएं तो अपने ऊपर अत्याचार करने वालों को सबक सिखाने के लिए उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती हैं, जैसे उनके साथ किया...
महिलाओं पर अत्याचार सदियों से होते आ रहे हैं. वर्तमान में उनकी सुरक्षा के लिए बनाए गए तमाम कानूनों के बावजूद देश में हर तीन महिलाओं में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार हैं. घरेलू हिंसा की शिकार ज्यादातर महिलाएं इस मामले में रिपोर्ट दर्ज नहीं करा पाती. इसे अपनी नियति मानकर सह लेती हैं. उसके बाद हिंसा झेलना उनकी आदत में शुमार हो जाता है. इसकी एक सबसे बड़ी वजह ये है कि ये महिलाएं आर्थिक रूप से अपने पति या परिवार के ऊपर निर्भर होती हैं. कई बार समाज के डर से भी इनको चुप रहना पड़ता है. कई बार परिवार को बचाने के लिए इन्हें सहना पड़ता है. लेकिन सिनेमा ने समय समय पर महिलाओं को जागरूक करने का काम किया है.
ऐसी कई हिंदी फिल्में बनाई गई हैं, जिनमें घरेलू हिंसा के दर्द को वास्तविक रूप में पेश किया गया है. 'दामन', 'लज्जा', 'मेहंदी', 'अग्निसाक्षी', 'प्रोवोक्ड', 'थप्पड़' और 'डार्लिंग्स' जैसी फिल्मों के नाम इस फेहरिस्त में शामिल हैं. इन फिल्मों में दिखाया गया है कि कैसे समाज में घर के बाहर और अंदर महिलाओं के साथ अत्याचार किया जाता रहा है. उनको मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है. ऐसा करने वाला कोई गैर नहीं बल्कि उनके अपने होते हैं. पहले के दौर में महिलाएं अपने साथ होने वाले अत्याचारों को सह लेती थीं. घुट-घुट कर जिंदगी जीती थीं. लेकिन समय के साथ महिलाओं में जागृति आई है. महिलाओं ने अब अत्याचार सहना बंद कर दिया है.
महिलाएं अब मुखर होकर हिंसा का विरोध करती हैं. जरूरत पड़ने पर कानून का सहारा लेती है. ज्यादा हुआ तो तलाक ले लेती है. कई महिलाएं तो अपने ऊपर अत्याचार करने वालों को सबक सिखाने के लिए उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती हैं, जैसे उनके साथ किया गया होता है. ऐसी ही एक फिल्म अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है, जिसका नाम 'अम्मू' है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला की सहन सीमा जब खत्म हो जाती है, तो वो अपने पति को सबक सीखाने की ठानती है. इसके बाद वो अपने पति मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित करती है कि वो उसके कदमों में गिर जाता है. इसके बावजूद वो उसको माफ करने की बजाए उसे छोड़ देती है.
स्टोन बेंच फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म 'अम्मू' को चारुकेश सेकर निर्देशित किया है. इसमें ऐश्वर्या लक्ष्मी, नवीन चंद्र और सिम्हा जैसे साउथ के कलाकार अहम किरदारों में हैं. ये फिल्म मुख्य रूप से तमिल में बनाई गई है, लेकिन इसे तेलुगू, मलयालम, कन्नड़ के साथ हिंदी भाषा में डब करके स्ट्रीम किया गया है. फिल्म में एक्ट्रेस ऐश्वर्या लक्ष्मी ने अम्मू नामक महिला का किरदार निभाया है. जैसा कि ज्यादातर लड़कियां सोचती हैं, अम्मू को भी लगता था कि शादी के बाद वो ससुराल में अपने पति के साथ मजे करेगी. पति से बहुत ज्यादा प्यार और सम्मान मिलेगा. जैसा कि प्रेमी के रूप में वो अभी उसे दे रहा है. लेकिन अम्मू यहां गलत साबित हो गई. शादी के बाद उसकी दुनिया ही बदल गई.
फिल्म की शुरूआत अम्मू और एक छोटी बच्ची के बीच बातचीत से होती है. बच्ची कहती है, ''अम्मू, क्या ये बात सच है कि तुम पड़ोस वाले अंकल रवि से शादी करने वाली हो? क्या उनको पसंद करती हो?'' अम्मू कहती है, ''हां, मैं पसंद करती हूं, लेकिन तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो. क्या तुम उससे शादी करोगी?'' इस पर बच्ची कहती है, ''नहीं बाबा, छीछीछी...मुझे उनसे डर लगता है, क्योंकि वो मुझे घूरते हैं. ऐसा लगता है कि वो खा जाएंगे.'' इस बातचीत में पूरी फिल्म का सार छिपा है. अम्मू अपने पड़ोस में रहने वाले पुलिस इंस्पेक्टर रवि से प्यार करती हैं. दोनों शादी कर लेते हैं. शादी के बाद अम्मू रवि के साथ उसके सरकारी क्वार्टर में रहने लगती है. रवि के थाने जाने के बाद वो घर में अकेले रह जाती है.
एक दिन रवि से बोलती है कि वो उसे सिलाई मशीन दिला दे, ताकि उसका मन लगा रहे. रवि दिला देता है. लेकिन एक दिन सिलाई के काम की वजह से वो रवि का लंच लेकर उसके थाने नहीं पहुंच पाती. इसके बाद उसका पति गुस्से से आग बबूला हो जाता है. फोन करके उसे बहुत डांटता है. घर आने के बाद उसको गाली देता है. मारता-पीटता है. इसके बाद तो मारपीट का ये सिलसिला चल पड़ता है. इसी बीच अम्मू के माता-पिता उसके घर आते हैं. अम्मू अपनी मां से सारी बात बता देती है. लेकिन उसकी मां उल्टे उसी पूछ बैठती हैं कि तुमने ऐसा कर दिया था कि उसे मारना पड़ा? मां कहती हैं, ''सिर्फ एक थप्पड़ ही तो है, कभी-कभी परेशानी में ऐसा हो जाता है, उसके ऊपर घर की जिम्मेदारियों का बोझ है, तुमने कुछ कह दिया होगा तो तुम पर गुस्सा निकल गया. आखिर ऐसा क्या हो गया जो उसे हाथ उठाना पड़ा. रिश्ते निभाने के लिए थोड़ा बहुत बर्दाश्त करना ही पड़ता है.''
हालांकि, बाद में उसकी मां उसे साहस देती हैं. लेकिन साथ में गृहस्थ जीवन की मजबूरियां भी बता जाती हैं. अम्मू को लगता है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. यही सोचकर वो मारपीट की बात भूल जाती है. लेकिन एक दिन ऑफिस जाते वक्त रवि फिर उसके साथ बेवजह मारता है. उसके रोने की आवाज एक महिला सुन लेती है, जो रवि के थाने में काम करने वाली एक लेडी पुलिस अफसर को बताती है. लेडी पुलिस अफसर अम्मू से मिलकर उसे हिम्मत देती है कि वो अपने पति के खिलाफ डीआईजी से शिकाय करे. अम्मू हिम्मत करके डीआईजी के ऑफिस जाती है, लेकिन उसे बाहर ही रोक दिया जाता है. उसके पति को बुला लिया जाता है. रवि उसे डरा-धमका घर लाता है. इसके बाद अम्मू ठान लेती है कि वो रवि की शिकायत करने की बजाए खुद उसे सबक सिखाएगी. ऐसे अम्मू रवि के साथ क्या-क्या करती है? ये जानने के लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी.
फिल्म 'अम्मू' जिस तरह की कहानी पर आधारित है, उसी तरह की एक फिल्म 'डार्लिंग्स' नेटफ्लिक्स पर कुछ दिन पहले स्ट्रीम हुई थी. इन दोनों फिल्मों में एक नए तरह की जागरूकता है. हो सकता है कि कुछ लोगों को ये हिंसात्मक लगे. उनका ये भी कहना हो कि हिंसा के बदले हिंसा करना ठीक नहीं है. यदि किसी महिला के साथ हिंसा हो रही है, तो वो उसका विरोध करे. उसके लिए कानून का सहारा ले. इसके लिए सख्त कानून बनाया जा चुका है. लेकिन ऐसे लोगों ये भी सोचना होगा कि क्या कानून बनाए जाने के बाद घरेलू हिंसा के मामलों में कमी आई है? बिल्कुल नहीं. आज भी पढ़े-लिखे समाज में घर की चार दिवारी के अंदर महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं. ऐसे में ये जरूरी है कि हिंसा करने वालों को सबक सिखाया जाए. यदि वास्तविक जीवन में ऐसे कुछ उदाहरण सबके सामने आ गए तो यकीन कीजिए इस तरह के हिंसा के केस अपने आप कम होने लगेंगे.
इसलिए फिल्म के विषय को बेहतरीन कहा जा सकता है. जहां तक फिल्म की कहानी और पटकथा की बात है, तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसे अच्छे से लिखा गया है. फिल्म की कहानी ही इसकी जान है. इसके लिए लेखक शेखर और पद्मावती मल्लादी बधाई के पात्र हैं. उन्होंने एक ऐसी कहानी लिखी है, जिससे हम सब परिचित हैं. हम सबने अपने घर या आस पड़ोस में ऐसी कहानियां देखी हैं. कई महिलाओं को ये अपनी कहानी लग सकती है. ये फिल्म पूरी तरह से पुरुष-घृणा पर आधारित नहीं है. बल्कि वास्तविक हकीकत को भी बयां करती है. एक जगह अम्मू मां को उससे कहती है, "तुम्हारा पति अपना क्रोध तुम्हारे सिवाय और कहां निकालेगा?" इस तरह लेखन टीम ने हर बात का ध्यान रखा है.
फिल्म के निर्देशक चारुकेश सेकर ने कम से कम किरदारों के साथ एक बेहतरीन कहानी रची है. उनके शानदार निर्देशन की वजह से दर्शक अम्मू की पीड़ा को महसूस कर सकते हैं. फिल्म के सभी कलाकारों ने दमदार अभिनय प्रदर्शन किया है. ऐश्वर्या लक्ष्मी ने अपनी अलहदा अदाकारी से अम्मू के किरदार को जीवंत कर दिया है. पूरी फिल्म उनके कंधे पर टिकी है. उनके किरदार की पीड़ा, दर्द और क्रोध बिना बोले उनके चेहरे पर झलता है. उनकी खामोशी भी बहुत कुछ कहती है. पुलिस अफसर के किरदार में नवीन चंद्र ने भी सराहनीय काम किया है. कुल मिलाकर, घरेलू हिंसा पर आधारित फिल्म 'अम्मू' देखने योग्य फिल्म है. इसे हर लड़की और महिला को जरूर देखना चाहिए. मस्ट वॉच फिल्म है.
iChowk.in रेटिंग: 5 में से 3.5 स्टार
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