सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले में पहले दिन से ही मुंबई पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं. एक्टर की मौत के करीब 10 महीने हो चुके हैं. बावजूद समर्थक किसी भी रूप में यह मानने को तैयार नहीं कि आत्महत्या और उसके पीछे बड़े लोगों का हाथ नहीं था. महाराष्ट्र का विपक्ष भी सीधे राज्य सरकार के कुछ मंत्रियों के शामिल होने का आरोप लगाता रहा, कथित तौर पर जिन्हें बचाने के लिए मुंबई पुलिस का इस्तेमाल किया गया. हाल ही में मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखी चिट्ठी में खुलासा किया कि कैसे क्राइम ब्रांच का हेड सचिन वाझे, गृहमंत्री अनिल देशमुख के इशारे पर हर महीने 100 की अवैध वसूली में लगा था. अब सुशांत केस में इस सच को कैसे झुठलाए कि मुंबई पुलिस, उसके कुछ अफसर और सत्ताधारी नेताओं ने दबाव डालकर चीजों का गलत इस्तेमाल किया.
परमबीर की चिट्ठी के बाद सुशांत के समर्थक सोशल मीडिया पर लगातार लिख भी रहे हैं- वाझे, परमबीर और पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख को हत्या की वजह और अपराधियों के बारे में सबकुछ पता है. राजनीतिक प्रेशर की वजह से जांच को प्रभावित किया गया और मुंबई पुलिस ने दोषियों को बचाने का कम किया. तथ्य प्रभावित किए. मुंबई पुलिस का गंदा चेहरा वाझे एपिसोड के बाद दिखा है उसमें तीन बड़े सवाल अहम हो जाते हैं.
#पहला सवाल- क्या मुंबई पुलिस के क्राइम ब्रांच हेड के रूप में सचिन वाझे की सुशांत केस में कोई भूमिका नहीं थी?
#दूसरा सवाल- अगर गृहमंत्री एक मामूली कर्मचारी से पुलिस के जरिए करोड़ों की वसूली करवा रहा है तो सुशांत केस में दबाव भी डाला जा सकता है.
#तीसरा सवाल- सुशांत केस में वाझे या मुंबई पुलिस की भूमिका को लेकर क्या परमबीर सिंह कुछ खुलासे करेंगे.
राजनीति हुई पर पुलिस का दामन भी दागदार
ये छिपा तथ्य नहीं है कि उस वक्त बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे थे और सुशांत बिहार के लिए एक बड़ा मुद्दा बन चुके थे. लेकिन सुशांत केस में पहले दिन से मुंबई पुलिस या सिस्टम पर लगने वाले सवालों को सिर्फ इसी बिना पर खारिज कर दिया जाएगा. पहले दिन से ही महाराष्ट्र विकास आघाड़ी नेताओं के बयान भी पुलिस की जांच को एक दिशा देने वाले और गुमराह करने वाले नजर आ रहे थे. सोचने वाली बात है कि आत्महत्या के केस में उद्धव ठाकरे सरकार में शामिल एक ख़ास मंत्री पर कीचड़ उठने के बाद शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में संजय राऊत सम्पादकीय लिखते हैं और एक्टर के डिप्रेशन की वजह पारिवारिक बताते हैं. राऊत ने क्या लिखा- "सुशांत अपने पिता (केके सिंह) की दूसरी शादी के खिलाफ थे. दोनों के संबंध ठीक नहीं थे. बिहार में विधानसभा चुनाव की वजह से मुंबई पुलिस पर आरोप लगाकर केस में सीबीआई की एंट्री कराई गई." एक अन्य बयान में राऊत ने यह भी कहते हैं कि "सुशांत केस से आदित्य ठाकरे का कोई लेना-देना नहीं है."
सुशांत केस में भी देशमुख का इस्तीफ़ा मांगा गया था
जबकि वाझे प्रकरण में ठाकरे सरकार को घुटनों पर लाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में नीलेश राणे और महाराष्ट्र बीजेपी का पूरा अमला एक पर एक सवाल उठा रहा था. दिशा सालियान और सुशांत की मौत के कनेक्शन पर बात कर रहा था. हाई प्रोफाइल राजनीतिक आरोपियों के क्लू भी दिए जा रहे थे जिसके कई बिंदुओं पर केन्द्रीय जांच एजेंसियों ने अपनी जांच को आगे बढ़ाया. लेकिन तब भी अनिल देशमुख और मुंबई पुलिस की संदिग्ध भूमिका को कई मर्तबा महाराष्ट्र विकास आघाडी सरकार ने क्लीन चिट दी. महाराष्ट्र विकास आघाडी ने पूरे केस में बिहार चुनाव के आधार पर राजनीतिक वजहों का हौवा खड़ा कर मामले को एक अलग रूप देने की कोशिश करती रही. अब जब सरकार और उसका गृहमंत्री ही किसी केस में एक थियरी तय कर चल रहा है तो उसकी पुलिस टीम भला अलग कैसे सोच सकती है?
सुशांत मामले में देशमुख-वाझे-परमबीर की भी जांच हो
देशमुख और मुंबई पुलिस पर सवाल उठने के बाद शरद पवार ने तंज कसते हुए कहा था- "मैं उम्मीद करता हूं कि नरेंद्र दाभोलकर मामले की तरह इस केस का भी हश्र ना हो जिसकी जांच पूरी नहीं हो पाई." ठाकरे सरकार का वश चलता तो वाझे प्रकरण में खुलासों के बावजूद गृहमंत्री अनिल देशमुख का इस्तीफा नहीं हो पाता. परमबीर सिंह की चिट्ठी के बाद देशमुख को बचाने के लिए कितने सफ़ेद झूठ गढ़े गए. जो गृहमंत्री पुलिस के जरिए अवैध वसूली करा सकता है, जिस सरकार में वाझे जैसा दागी कर्मचारी घूस देकर बहाल हो सकता, क्या वो सरकार और पुलिस सुशांत केस में कुछ लोगों को बचाने के लिए पुलिस पर दबाव नहीं डाल सकती. जो गृहमंत्री पुलिस से फिरौती वसूल करवा सकता है वो भला तत्कालीन कमिश्नर परमबीर सिंह या केस में लगे दूसरे अफसरों को क्योंम नहीं प्रभावित कर सकता. अगर एक्टर के समर्थक यह मांग कर रहे हैं कि सुशांत मामले में वाझे-परमबीर की भूमिका को लेकर भी जांच होनी चाहिए तो फिलहाल ये गलत नहीं है.
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