बॉलीवुड से हॉलीवुड तक अपनी बेहतरीन एक्टिंग का डंका बजाने वाले सदाबहार अभिनेता अनुपम खेर ने फिल्म इंडस्ट्री में अपने 37 साल पूरे कर लिए हैं. साल 1984 में आई महेश भट्ट की फिल्म 'सारांश' से बॉलीवुड में डेब्यू करने के बाद अब तक 500 से भी ज्यादा हिंदी फिल्में कर चुके हैं. उनके एक्टिंग करियर के करीब चार दशक में एक दौर ऐसा भी था, जब फिल्में उनके बिना कम्पलीट नहीं मानी जाती थीं. एक्टर-एक्ट्रेस कोई भी हो, लेकिन उनके लिए हर फिल्म में एक अहम रोल जरूर होता था. अपने हर किरदार में 'असरदार' अनुपम खेर के फिल्मी योगदान को देखते हुए सरकार ने उन्हें 2004 में पद्मश्री और 2006 में पद्मभूषण से सम्मानित किया था.
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से पहले दिल्ली और फिर मुंबई पहुंचे अनुपम खेर के लिए अभिनय की दुनिया में अपने पांव जमाना इतना आसान नहीं था. लेकिन मां के दिए संस्कार और पिता की दी हुई सीख उनको हमेशा याद रहती थी. उनके पिताजी ने कहा था, 'Failure Is an Event, Not a Person’. मतलब यह कि इंसान फेल नहीं होता, परिस्थितियां फेल होती हैं. एक हादसा सा है, जो किसी की जिंदगी में घट जाता है.' इसलिए अपने संघर्ष के दिनों में सड़क पर जूते रगड़े, प्लेटफॉर्म पर रातें गुजारी, लेकिन अपने सपने को मरने नहीं दिया. अपनी मेहनत और लगन के दम पर उसे साकार किया. आज फिल्म इंडस्ट्री के सफलतम कलाकारों में शुमार हैं.
फिल्म अभिनेता अनुपम खेर की जिंदगी से सीखिए ये 5 बातें...
1. छोटे शहर का बड़ा सितारा
अनुपम खेर 7 मार्च 1955 को शिमला में पैदा हुए थे. उनका परिवार कश्मीरी पंडित है, जो घाटी से विस्थापित होकर यहां बस गया था. परिवार की आमदनी बहुत कम थी,...
बॉलीवुड से हॉलीवुड तक अपनी बेहतरीन एक्टिंग का डंका बजाने वाले सदाबहार अभिनेता अनुपम खेर ने फिल्म इंडस्ट्री में अपने 37 साल पूरे कर लिए हैं. साल 1984 में आई महेश भट्ट की फिल्म 'सारांश' से बॉलीवुड में डेब्यू करने के बाद अब तक 500 से भी ज्यादा हिंदी फिल्में कर चुके हैं. उनके एक्टिंग करियर के करीब चार दशक में एक दौर ऐसा भी था, जब फिल्में उनके बिना कम्पलीट नहीं मानी जाती थीं. एक्टर-एक्ट्रेस कोई भी हो, लेकिन उनके लिए हर फिल्म में एक अहम रोल जरूर होता था. अपने हर किरदार में 'असरदार' अनुपम खेर के फिल्मी योगदान को देखते हुए सरकार ने उन्हें 2004 में पद्मश्री और 2006 में पद्मभूषण से सम्मानित किया था.
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से पहले दिल्ली और फिर मुंबई पहुंचे अनुपम खेर के लिए अभिनय की दुनिया में अपने पांव जमाना इतना आसान नहीं था. लेकिन मां के दिए संस्कार और पिता की दी हुई सीख उनको हमेशा याद रहती थी. उनके पिताजी ने कहा था, 'Failure Is an Event, Not a Person’. मतलब यह कि इंसान फेल नहीं होता, परिस्थितियां फेल होती हैं. एक हादसा सा है, जो किसी की जिंदगी में घट जाता है.' इसलिए अपने संघर्ष के दिनों में सड़क पर जूते रगड़े, प्लेटफॉर्म पर रातें गुजारी, लेकिन अपने सपने को मरने नहीं दिया. अपनी मेहनत और लगन के दम पर उसे साकार किया. आज फिल्म इंडस्ट्री के सफलतम कलाकारों में शुमार हैं.
फिल्म अभिनेता अनुपम खेर की जिंदगी से सीखिए ये 5 बातें...
1. छोटे शहर का बड़ा सितारा
अनुपम खेर 7 मार्च 1955 को शिमला में पैदा हुए थे. उनका परिवार कश्मीरी पंडित है, जो घाटी से विस्थापित होकर यहां बस गया था. परिवार की आमदनी बहुत कम थी, इसलिए बचपन बहुत तंगी में बीता. यहां तक कि पढ़ाई के लिए उनकी मां को अपने गहने तक बेचने पड़े. लेकिन अभाव में रहते हुए भी हमेशा बड़े सपने देखे. शिमला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद साल 1974 में दिल्ली पहुंचे. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में अभिनय के गुर सीखकर मुंबई की ओर रुख किया. काम की तलाश में वहां सड़कों पर चले. रेलवे प्लेटफॉर्म पर रातें गुजारीं. निराश भी हुए. लगा कि वापस लौटना पड़ेगा, तब एक लंबे संघर्ष के बाद महेश भट्ट की फिल्म 'सारांश' में 60 साल के बूढे का किरदार मिला. उस किरदार में ऐसे जान डाली कि इतिहास बन गया. देखते ही देखते अनुपम खेर एक चमकते सितारे बन गए.
2. कमजोरी को बनाया अपनी ताकत
हम अक्सर अपनी कमजोरियों को किस्मत मान लेते हैं, जिसकी वजह से सफल नहीं हो पाते. अनुपम खेर एक गरीब परिवार में पैदा हुए, लेकिन कभी पैसे को अपनी कमजोरी नहीं बनने दी. बचपन में जीभ पर जख्म लगने के बाद तुतलाने लगे थे, लेकिन प्रैक्टिस करके अपनी इस कमी को दूर किया. 40 साल पहले जब मुंबई फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने पहुंचे, तो हर वक्त अस्त व्यस्त रहने वाले बाल सिर से झड़ने लगे. फिल्मों में हेयरस्टाइल का बहुत क्रेज होता है, एक्टर के बाल को उसके बाहरी व्यक्तित्व का अहम हिस्सा माना जाता रहा है. ऐसे में लोग इसे अनुपम की खराब किस्मत कहने लगे. लेकिन उन्होंने उसे अपनी खासियत बना लिया. फिल्मों में बिना बिग लगाए ही काम किया. आज उनका गंजा सिर उनके व्यक्तित्व की एक खासियत बन चुका है. उन्होंने कमजोरी को ताकत बनाकर अपनी जीत हासिल की है.
3. कोई भी 'काम' छोटा नहीं होता
अनुपम खेर फिल्म इंडस्ट्री में आए थे हीरो बनने, लेकिन पहली फिल्म में एक बुजुर्ग का रोल मिला. दूसरा कोई एक्टर होता तो मना कर देता, क्योंकि ऐसे रोल के साथ कोई भी डेब्यू नहीं करना चाहता. लेकिन अनुपम ने इसे स्वीकार कर लिया. कुछ दिन बाद पता चला कि उनकी जगह संजीव कुमार को लिया जा रहा है, तो महेश भट्ट से भिड़ गए. लड़-झगड़ कर अपना रोल वापस लिया. फिल्म की रिलीज के बाद अनुपम हर तरफ छा गए. इसके बाद तो उनको जो भी किरदार मिला, अपनी अदाकारी के जरिए उसे असरदार बना दिया. कभी फिल्म कर्मा का डॉ. डैंग, कभी राम लखन का कंजूस बनिया, कभी तेज़ाब का लालची बाप, कभी डर का चुलबुला भाई, कभी हम आपके हैं कौन का दुखी पिता, हर किरदार में ऐसे ढले, जैसे उनके लिए ही बना हुआ हो. जो किया इतिहास बना और बॉलीवुड में दस्तूर बन गया.
4. बेहतरीन बेटा, पति और पिता
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 500 से ज्यादा फिल्में और हजारों थियेटर शो करने वाले अनुपम खेर व्यस्ततम कलाकार हैं. उन्हें अक्सर शूटिंग के लिए कभी मुंबई, तो कभी देश से बाहर रहना पड़ता है. लेकिन इन सबके बावजदू वो अपने परिवार को पूरा समय देते हैं. उनकी मां दुलारी को तो सोशल मीडिया पर हर कोई पहचानता है. वो अक्सर उनके साथ समय बिताते नजर आते हैं. उनके वीडियो लोगों के बीच शेयर करते हैं. साल 1985 में उन्होंने एक्ट्रेस किरण खेर से शादी कर ली. दोनों पहले से शादीशुदा थे, लेकिन साथ काम करते हुए एक-दूसरे को अपना दिल दे बैठे. तलाक लेकर शादी रचा ली. किरण के पहले पति से एक बेटा था, जिसे अनुपम ने अपना नाम दिया, सिंकदर खेर. किरण के लिए चुनाव प्रचार हो या फिर कैंसर की बीमारी से ग्रसित होने के बाद उनकी देखभाल, अनुपम हर फर्ज बखूबी निभा रहे हैं.
5. एक्टर और एक्टिविस्ट
चार दशक का फिल्मी सफर, असीमित अभिनय क्षमता और शानदार फिल्में अनुपम खेर की सफलता की दास्तान खुद बयान करती हैं. इसके साथ ही वो अमिताभ बच्चन की तरह उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं, जो समय के साथ खुद को अपडेट करते रहे हैं. सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक रहे हैं. उनकी पत्नी बीजेपी से तो सांसद हैं ही, लेकिन अनुपम भी एक बड़े एक्टिविस्ट हैं. भ्रष्टाचार के विरोध में अन्ना के आंदोलन में अनुपम भी शामिल थे. महिला सशक्तिकरण की बात हो या फिर कश्मीरी पंडितों की, वो हर वक्त मुखर दिखते हैं. ऐसे मुद्दों पर सोशल मीडिया पर अक्सर अपनी बात रखते हैं. कश्मीरी पंडितों के लिए तो उन्होंने बहुत बड़ा आंदोलन किया था. उनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी और दक्षिणपंथी माना जाता है. लेकिन हाल ही में कोरोना के मुद्दे पर उन्होंने सरकार की आलोचना की थी.
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