उत्तर प्रदेश में आतंक का पर्याय रह चुके अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की हत्या के बाद पूरे सूबे में सनसनी फैली हुई है. दोनों की हत्या उस वक्त हुई जब उनको मेडिकल टेस्ट के लिए प्रयागराज के एक सरकारी अस्पताल ले जाया जा रहा था. उस वक्त मीडिया से घिरे दोनों भाई पत्रकारों के सवाल का जवाब दे रहे थे. उसकी वक्त विदेशी हथियारों से लैस तीन लड़कों ने अचानक उनके ऊपर फायरिंग शुरू कर दी. पुलिसवाले पीछे हट गए. हमलावरों ने पास जाकर अतीक और अशरफ के सिर में गोली मारी. घटनास्थल पर ही दोनों की मौत हो गई. हमलावर पत्रकार बनकर आए थे. वारदात के बाद तीनों ने सरेंडर कर दिया. इनके नाम लवलेश तिवारी, सनी और अरुण मौर्य बताया जा रहा है.
अतीक अहमद को प्रयाग राज और आसपास के जिलों में संगठित अपराध का जनक माना जाता था. लूट, रंगदारी, कब्जा और हत्या जैसे अपराध तो उसके लिए आम थे. उसके साथ सैकड़ों लोगों का हुजूम हथियार लिए चलता था. एक दल विशेष की सरकार में तो उसकी हनक ऐसी थी कि वो सीएम से लेकर डीएम तक को अपनी जेब में समझता था. उसकी जिस भी प्रॉपर्टी पर नजर पड़ गई, समझिए वो उसका हो गया. जमीने कब्जा करना उसका मुख्य धंधा था. इसके लिए किसी की भी जान लेनी पड़ जाए, उसके लिए मामूली बात थी. बताया जाता है कि जब वो महज 17 साल का था, तभी से उसने जरायम की दुनिया में कदम रख लिया था. इलाहाबाद में उसका परिवार तांगे चलाकर अपना पेट पाल रहा था.
अतीक अहमद बचपन से ही तेज था. उसे अपने परिवार का पारंपरिक काम बिल्कुल भी पसंद नहीं था. यही वजह है कि उसने पैसे कमाने के शॉर्टकट तरीके निकालने शुरू कर दिए. पहले चोरियां करता, बाद में रंगदारी वसूलने लगा. आरोप है कि साल 1979 में इसने मो. गुलाम नाम के एक शख्स की हत्या कर दी थी. इस मामले में प्रयागराज के खुल्दाबाद थाने में आईपीसी की धारा 302 के तहत केस दर्ज है. इस हत्याकांड के बाद उसका हर तरफ खौफ हो गया. उस समय इलाहाबाद में चांद बाबा नाम के एक अपराधी का वर्चस्व था. उससे पीछा छुड़ाने के लिए पुलिस और कुछ नेताओं ने अतीक का साथ दे दिया. इसके बाद...
उत्तर प्रदेश में आतंक का पर्याय रह चुके अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की हत्या के बाद पूरे सूबे में सनसनी फैली हुई है. दोनों की हत्या उस वक्त हुई जब उनको मेडिकल टेस्ट के लिए प्रयागराज के एक सरकारी अस्पताल ले जाया जा रहा था. उस वक्त मीडिया से घिरे दोनों भाई पत्रकारों के सवाल का जवाब दे रहे थे. उसकी वक्त विदेशी हथियारों से लैस तीन लड़कों ने अचानक उनके ऊपर फायरिंग शुरू कर दी. पुलिसवाले पीछे हट गए. हमलावरों ने पास जाकर अतीक और अशरफ के सिर में गोली मारी. घटनास्थल पर ही दोनों की मौत हो गई. हमलावर पत्रकार बनकर आए थे. वारदात के बाद तीनों ने सरेंडर कर दिया. इनके नाम लवलेश तिवारी, सनी और अरुण मौर्य बताया जा रहा है.
अतीक अहमद को प्रयाग राज और आसपास के जिलों में संगठित अपराध का जनक माना जाता था. लूट, रंगदारी, कब्जा और हत्या जैसे अपराध तो उसके लिए आम थे. उसके साथ सैकड़ों लोगों का हुजूम हथियार लिए चलता था. एक दल विशेष की सरकार में तो उसकी हनक ऐसी थी कि वो सीएम से लेकर डीएम तक को अपनी जेब में समझता था. उसकी जिस भी प्रॉपर्टी पर नजर पड़ गई, समझिए वो उसका हो गया. जमीने कब्जा करना उसका मुख्य धंधा था. इसके लिए किसी की भी जान लेनी पड़ जाए, उसके लिए मामूली बात थी. बताया जाता है कि जब वो महज 17 साल का था, तभी से उसने जरायम की दुनिया में कदम रख लिया था. इलाहाबाद में उसका परिवार तांगे चलाकर अपना पेट पाल रहा था.
अतीक अहमद बचपन से ही तेज था. उसे अपने परिवार का पारंपरिक काम बिल्कुल भी पसंद नहीं था. यही वजह है कि उसने पैसे कमाने के शॉर्टकट तरीके निकालने शुरू कर दिए. पहले चोरियां करता, बाद में रंगदारी वसूलने लगा. आरोप है कि साल 1979 में इसने मो. गुलाम नाम के एक शख्स की हत्या कर दी थी. इस मामले में प्रयागराज के खुल्दाबाद थाने में आईपीसी की धारा 302 के तहत केस दर्ज है. इस हत्याकांड के बाद उसका हर तरफ खौफ हो गया. उस समय इलाहाबाद में चांद बाबा नाम के एक अपराधी का वर्चस्व था. उससे पीछा छुड़ाने के लिए पुलिस और कुछ नेताओं ने अतीक का साथ दे दिया. इसके बाद बाहुबली बनने के चक्कर में उसने अपने राजनीतिक जमीन तैयार करनी शुरू कर दी.
साल 1989 में अतीक अहमद चांद बाबा के खिलाफ प्रयागराज पश्चिमी सीट से चुनाव मैदान में उतरा और उनको हराकर विधायक बन गया. इसके बाद 1991 और 1993 में इसी सीट से जीतकर लगातार विधायक बनता रहा. इसी दौरान वो मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव के संपर्क में आया. उसे साल 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की तरफ से टिकट मिल गया. इस बार भी उसे जीत मिली. साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में जीतकर वो सांसद बन गया. इस बार भी सपा ने ही उसे टिकट दिया था. इस तरह राजनीतिक संरक्षण मिलने के बाद उसने अपने रसूख और आतंक को खूब बढ़ाया. लेकिन अंत उसका वैसा ही हुआ, जैसा वो लोगों के साथ किया करता था.
आतीक अहमद इकलौता अपराधी नहीं था, जो कि राजनीतिक संरक्षण में फला-फूला. उसके अलावा देशभर में सैकड़ों ऐसे अपराधी रहे जो सियासत में जाकर सत्ता के करीब हो गए. सत्ता से मिली शक्ति के जरिए लोगों पर जुल्म करते रहे. इनमें कुछ क्षेत्र विशेष तक सिमट गए, तो कुछ ने देश की सीमा पार कर विदेशों में भी अपना साम्राज्य स्थापित किया. इनमें मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, धनंजय सिंह, हरिशंकर तिवारी, श्रीप्रकाश शुक्ला से लेकर दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन और अबू सलेम तक का नाम शामिल है. इन गैंगस्टर्स में से कई की जिंदगी और जरायम की दुनिया में इनके काले कारनामों पर फिल्में बन चुकी हैं. यदि आपको अतीक के आतंक को समझना है, तो इन फिल्मों को देख सकते हैं.
अतीक अहमद जैसे गैंगस्टर की जिंदगी पर बनी ये 5 फिल्में देख सकते हैं...
1. सहर
- पूर्वांचल के माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला की कहानी, जिसने सीएम को मारने की सुपारी ली थी.
साल 2005 में रिलीज हुई फिल्म 'सहर' का निर्देशन कबीर कौशिक ने किया था. इस फिल्म में अरशद वारसी, महिमा चौधरी, सुशांत सिंह और पंकज कपूर ने अहम रोल किया है. यह फिल्म दिखाती है कि उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध ने कैसे जड़ जमाया था. कैसे राजनेताओं के संरक्षण में रहकर छोटे-मोटे अपराधी बाहुबली और माफिया डॉन बन गए. फिल्म की कहानी पूर्वांचल के माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला और आईपीएस अफसर अरुण कुमार की जिंदगी पर आधारित है. 1985 बैच के आईपीएस अरुण कुमार ने ही देश में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस सिस्टम को शुरू किया था. उन्होंने पूर्वांचल में फैले माफियाओं के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी. उनकी इस काबलियत पर यूपी सरकार ने एसटीएफ का गठन किया और उन्हें ही इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई. एसटीएफ का गठन होने के बाद ही आतंक का दूसरा नाम माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला को मार गिराया गया था. फिल्म में अरशद वारसी ने अरुण कुमार और सुशांत सिंह ने श्रीप्रकाश शुक्ला से प्रेरित किरदार अजय कुमार और गजराज सिंह निभाया है. इसे ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर देखा जा सकता है.
2. अपहरण
- बिहार में स्थापित संगठित अपराध की कहानी, जब अपहरण एक उद्योग के रूप में संचालित था.
साल 2005 में रिलीज हुई क्राइम एक्शन ड्रामा 'अपहरण' का निर्देशन प्रकाश झा ने किया है. फिल्म में अजय देवगन, नाना पाटेकर और बिपाशा वासु मुख्य भूमिका में हैं. इस फिल्म की कहानी बिहार में स्थापित संगठित अपराध पर आधारित है. उस वक्त अपहरण एक उद्योग के रूप में स्थापित था. डॉक्टर, व्यापारी और सरकारी कर्मचारियों के लिए बिहार में काम करना मुश्किल था, क्योंकि अपराधी ज्यादातर इन लोगों को ही टारगेट किया करते थे. इन अपराधियों को नेताओं का संरक्षण मिला हुआ था. कई नेता तो खुद इस अपराध में शामिल थे. फिल्म में नाना पाटेकर ने ऐसे ही एक अपराधी नेता तबरेज आलम का किरदार किया है. वो सीएम तक को अपनी जेब में रखता है. कैबिनेट मंत्री होते हुए भी अपहरण का धंधा करता है. उसके गुर्गे जेल में बंद होने के बाद भी मौज करते है. पुलिस और प्रशासन उसकी जी हुजूरी में लगा रहता है. इसी बीच एक नौजवान पढ़ा लिखा लड़का अजय शास्त्री (अजय देवगन) उसकी चंगुल में फंस जाता है. जो बाद में उसके साम्राज्य का संहार भी करता है. इस फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर देखा जा सकता है.
3. कंपनी
- राजनीतिक संरक्षण में पलने वाले गैंग और उनके बीच गैंगवार की कहानी और पुलिस का रोल.
साल 2002 में रिलीज हुई क्राइम ड्रामा फिल्म 'कंपनी' का निर्देशन राम गोपाल वर्मा ने किया है. फिल्म में मोहनलाल, अजय देवगन, विवेक ओबरॉय, अंतरा माली जैसे कलाकार मुख्य भूमिका में हैं. इस फिल्म में मुंबई के गैंग की कहानी दिखाई गई है, जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता था. इन गैंग्स के बीच अपना रसूख स्थापित करने के लिए गैंगवार आए दिन हुआ करता था. इस फिल्म की कहानी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के एक खास गुर्गे हनीफ की जिंदगी से प्रेरित है. हनीफ को साल 1993 में हुए मुंबई सीरियल ब्लास्ट में पांच साल की जेल हुई थी. फिल्म के निर्देशक रामगोपाल वर्मा ने हनीफ से मिलकर फिल्म की कहानी लिखी थी. इस फिल्म को इंडियन गैंगस्टर ट्रायोलॉजी की दूसरी फिल्म कहा जाता है. इससे पहले रामू ने 'सत्या' बनाई थी. उस वक्त पुलिस का रोल बहुत ज्यादा नहीं था. लेकिन इस फिल्म में गैंगवार के बीच पुलिस का रोल विधिवत दिखाया गया है.
4. शूटआउट एट वडाला
- भ्रष्ट सिस्टम की पोल खोलती फिल्म, जिसमें एक सामान्य लड़का अंडरवर्ल्ड डॉन बन जाता है.
साल 2013 में रिलीज हुई फिल्म 'शूटआउट एट वडाला' का निर्देशन संजय गुप्ता ने किया है. ये फिल्म हुसैन जैदी की किताब 'डोंगरी टू दुबई' पर आधारित है. इसमें जॉन अब्राहम, कंगना रनौत, अनिल कपूर, तुषार कपूर, मनोज बाजपेयी, सोनू सूद, महेश मांजरेकर के साथ प्रियंका चोपड़ा, सनी लियोन, सोफी चौधरी, जैकी श्रॉफ और रंजीत अहम भूमिका में हैं. फिल्म की कहानी मन्या सुर्वे (जॉन अब्राहम) की जिंदगी पर आधारित है. सीधा सादा मन्या भ्रष्ट सिस्टम और गैंगस्टर्स के खिलाफ अपने प्रतिशोध की वजह से अंडरवर्ल्ड में अपना दबदबा साबित करता है. निर्दोष मन्या को एक भ्रष्ट पुलिस वाला हत्या के मामले में फंसा कर जेल भिजवा देता है. उसे उम्रकैद हो जाती है. लेकिन वो जेल से निकलता है और अपनी गैंग बना लेता है. उसकी अंडरवर्ल्ज के दूसरे गैंग से लड़ाई होती है. धीरे-धीरे वो सबसे बड़ा डॉन बन जाता है. लेकिन एक एनकाउंटर में पुलिस उसे मार गिराती है.
5. ओमकारा
- राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए नेता किस तरह अपराधियों का इस्तेमाल करते हैं.
साल 2006 में रिलीज हुई फिल्म 'ओमकारा' का निर्देशन विशाल भारद्वाज ने किया था. फिल्म में मुख्य भूमिका में सैफ अली खान, अजय देवगन, करीना कपूर, विवेक ओबरॉय, नसीरुद्दीन सिद्दकी, कोंकणा सेन शर्मा और बिपाशा बासु हैं. ये फिल्म शेक्सपियर के मशहूर नाटक 'ओथेलो' पर आधारित है, जिसकी पृष्ठभूमि फिल्म में एक गांव में बुनी गई है. इसमें दिखाया गया है कि राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए नेता किस तरह अपराधियों का इस्तेमाल करते हैं. फिल्म में अजय देवगन ने ओमकारा शुक्ला, करीना कपूर ने डॉली मिश्रा, सैफ अली खान ने लंगड़ा त्यागी, कोंकणा सेन ने इंदू त्यागी, विवेक ओबेरॉय ने केसु फिरंगी, बिपासा बासु ने बिल्लो, नसीरुद्दीन सिद्दकी ने तिवारी भाई साब का किरदार निभाया है. फिल्म में तिवारी भाई साब सांसद होता है, जिसके इशारे पर उसके वर्चस्व को स्थापित करने के लिए ओमकारा अपराध को अंजाम देता है.
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