ओटीटी प्लैटफॉर्म Zee5 पर एक फ़िल्म रिलीज हुई है, जिसका नाम है अटकन चटकन (Atkan Chatkan movie). ये शब्द आप सभी ने अपने बचपन या उम्र के किसी न किसी पड़ाव पर जरूर सुने होंगे. लेकिन अब इन शब्दों को लेकर एआर रहमान ने एक फ़िल्म बना डाली है, जो कि एक बच्चे के म्यूजिशियन बनने के सपने की कहानी है. शिव हरे द्वारा निर्देशित फ़िल्म अटकन चटकन में एआर रहमान बतौर प्रोड्यूसर और उनके शागिर्द रहे म्यूजिशियन शिवमणी म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में जुड़े हुए हैं. लीडियन नादस्वरम, यश राणे, सचिन चौधरी, तमन्ना दीपक, अमितृयान, जगदीश राजपुरोहित समेत अन्य कलाकारों की फ़िल्म अटकन चटकन की थीम भले अच्छी है, लेकिन बेहद कमजोर कहानी, पटकथा और निर्देशन के साथ ही सामान्य किरदार ने इस फ़िल्म को साधारण बना दिया है. चाहे इमोशन के स्तर पर हो या किरदार की गहराई, अटकन चटकन की धुन कई चगह चटकती दिखती है और यही वजह है कि यह फ़िल्म दिल तक नहीं पहुंच पाती. एआर रहमान ने बतौर प्रोड्यूसर और शिव हरे ने बतौर डायरेक्टर एक ऐसी फ़िल्म बनाई है, जिसमें काफी खामियां हैं.
कुछ दिनों पहले जी5 पर प्रकाश झा की फ़िल्म परीक्षा रिलीज हुई थी और वह लोगों को काफी पसंद आई थी. इसका प्रमुख कारण था कि वह फ़िल्म महज डेढ़ घंटे की थी. वहीं अटकन चटकन को जबरदस्ती खींचकर 2 घंटे का बना दिया गया है, जिसमें कई सीन जैसे बेवजह लगते हैं और ऐसे में फ़िल्म में काफी बिखराव देखने को मिलता है. ऊपर से संगीत प्रधान इस फ़िल्म का संगीत भी कुछ खास नहीं है. निर्देशक ने अटकन चटकन को 4 प्रमुख बाल कलाकारों के कंधे पर छोड़ दिया है, जिसमें कुछ अच्छे हैं तो कुछ बेहद सामान्य. ऐसे में फ़िल्म से जुड़ाव होना आसान नहीं है. अगर आप डिजिटल प्लैटफॉर्म के लिए फ़िल्म बनाते हैं तो अगर स्टोरी ज्यादा अपीलिंग नहीं है तो उसकी साइज छोटी रखिए, ताकि दर्शक बोर न हों. अटकन चटकन फ़िल्म की लंबाई उसकी बोरियत बढ़ाती है और आपको आखिर में एहसास होता है कि बच्चों में म्यूजिक के प्रति दीवानगी को फ़िल्म के जरिये दिखाने में एआर रहमान, शिव हरे और शिवमणी नाकाम रहे हैं. भारत में लंबे समय बाद म्यूजिक स्टोरी बेस्ड कोई फ़िल्म आई है, जो कि खासकर बच्चों पर आधारित है, लेकिन खामियों की वजह से यह जादू करने में नाकाम साबित होती है.
ओटीटी प्लैटफॉर्म Zee5 पर एक फ़िल्म रिलीज हुई है, जिसका नाम है अटकन चटकन (Atkan Chatkan movie). ये शब्द आप सभी ने अपने बचपन या उम्र के किसी न किसी पड़ाव पर जरूर सुने होंगे. लेकिन अब इन शब्दों को लेकर एआर रहमान ने एक फ़िल्म बना डाली है, जो कि एक बच्चे के म्यूजिशियन बनने के सपने की कहानी है. शिव हरे द्वारा निर्देशित फ़िल्म अटकन चटकन में एआर रहमान बतौर प्रोड्यूसर और उनके शागिर्द रहे म्यूजिशियन शिवमणी म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में जुड़े हुए हैं. लीडियन नादस्वरम, यश राणे, सचिन चौधरी, तमन्ना दीपक, अमितृयान, जगदीश राजपुरोहित समेत अन्य कलाकारों की फ़िल्म अटकन चटकन की थीम भले अच्छी है, लेकिन बेहद कमजोर कहानी, पटकथा और निर्देशन के साथ ही सामान्य किरदार ने इस फ़िल्म को साधारण बना दिया है. चाहे इमोशन के स्तर पर हो या किरदार की गहराई, अटकन चटकन की धुन कई चगह चटकती दिखती है और यही वजह है कि यह फ़िल्म दिल तक नहीं पहुंच पाती. एआर रहमान ने बतौर प्रोड्यूसर और शिव हरे ने बतौर डायरेक्टर एक ऐसी फ़िल्म बनाई है, जिसमें काफी खामियां हैं.
कुछ दिनों पहले जी5 पर प्रकाश झा की फ़िल्म परीक्षा रिलीज हुई थी और वह लोगों को काफी पसंद आई थी. इसका प्रमुख कारण था कि वह फ़िल्म महज डेढ़ घंटे की थी. वहीं अटकन चटकन को जबरदस्ती खींचकर 2 घंटे का बना दिया गया है, जिसमें कई सीन जैसे बेवजह लगते हैं और ऐसे में फ़िल्म में काफी बिखराव देखने को मिलता है. ऊपर से संगीत प्रधान इस फ़िल्म का संगीत भी कुछ खास नहीं है. निर्देशक ने अटकन चटकन को 4 प्रमुख बाल कलाकारों के कंधे पर छोड़ दिया है, जिसमें कुछ अच्छे हैं तो कुछ बेहद सामान्य. ऐसे में फ़िल्म से जुड़ाव होना आसान नहीं है. अगर आप डिजिटल प्लैटफॉर्म के लिए फ़िल्म बनाते हैं तो अगर स्टोरी ज्यादा अपीलिंग नहीं है तो उसकी साइज छोटी रखिए, ताकि दर्शक बोर न हों. अटकन चटकन फ़िल्म की लंबाई उसकी बोरियत बढ़ाती है और आपको आखिर में एहसास होता है कि बच्चों में म्यूजिक के प्रति दीवानगी को फ़िल्म के जरिये दिखाने में एआर रहमान, शिव हरे और शिवमणी नाकाम रहे हैं. भारत में लंबे समय बाद म्यूजिक स्टोरी बेस्ड कोई फ़िल्म आई है, जो कि खासकर बच्चों पर आधारित है, लेकिन खामियों की वजह से यह जादू करने में नाकाम साबित होती है.
अटकन चटकन की कहानी कैसी है
अटकन चटकन उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित एक गरीब परिवार के बच्चे गुड्डू की कहानी है, जिसे संगीत के प्रति शुरू से लगाव है और वह हर चीज में संगीत ढूंढने की कोशिश करता है. गुड्डू के माता-पिता काफी समय पहले अलग हो चुके हैं और गुड्डू के ऊपर अपनी छोटी बहन की परवरिश की जिम्मेदारी है. गुड्डू का पिता जो भी कमाता है, वह शराब में उड़ा देता है. गुड्डू की ख्वाहिश है कि वह तानसेन संगीत महाविद्यालय में म्यूजिक की शिक्षा ले, लेकिन अपनी माली हालत देख वह विवश हो जाता है. गुड्डू कभी चाय की दुकान पर तो कभी कबाड़े में नौकरी करके अपने परिवार का गुजर-बसर करने की कोशिश में लगा रहता है. गुड्डू का एक दोस्त माधव उसे म्यूजिक बैंड बनाने की सलाह देता है और उसकी इस कोशिश में बाद में छुट्टन और मीठी भी जुड़ जाते हैं, जो नाच-गाकर लोगों का दिल बहलाते हैं और इसके बदले में उन्हें कुछ पैसे मिल जाते हैं.
इस बीच तानसेन संगीत महाविद्यालय के प्रिंसिपल अपने कॉलेज में इंटर स्टेट म्यूजिक कॉम्पिटिशन का ऐलान करते हैं और अपने कॉलेज के गत वर्षों में खराब प्रदर्शन से काफी चिंतित हैं. एक दिन उन्हें ये चारों बच्चे किसी सड़क पर कबाड़ के बने म्यूजिक इंस्ट्रुमेंट से परफॉर्म करते दिखते हैं और उन्हें बच्चों में प्रतिभा दिखती है. इसके बाद वह अपने असिस्टेंट से इन बच्चों को कॉम्पिटिशन के लिए तैयार करने के लिए कहते हैं और उनको ट्रेनिंग की जिम्मेदारी दी जाती है एक ऐसी महिला को, जो गुड्डू की मां होती है. हालांकि न ही गुड्डू को और न ही उसकी मां को इसके बारे में पता होता है. क्या गुड्डू के मां-बाप दोबारा एक साथ हो पाते हैं, क्या गुड्डू और उसके दोस्त का बैंड अटकन चटकन म्यूजिक कॉम्पिटिशन जीत पाता है और अंजाम क्या होता है, इसी कहानी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है अटकन चटकन. आदेश राठी ने इस फ़िल्म की कहानी के साथ ही इसकी पटकथा भी लिखी है, जिसमें कई खामियां हैं और निर्देशक शिव हरे भी इन खामियों को दूर करने में नाकाम रहे हैं.
एक्टिंग और निर्देशन
अटकन चटकन चिल्ड्रेन फ़िल्म है, जिसे म्यूजिक कै बैकड्रॉप में लोगों के सामने पेश किया गया है. इस फ़िल्म की जान इसके 4 प्रमुख चाइल्ड आर्टिस्ट हैं. लीड किरदार गुड्डू के रूप में लीडियन नादस्वरम उम्मीदों पर खड़े नहीं उतर पाए हैं. लीडियन रियल लाइफ में भी सिंगर और म्यूजिशियन हैं, लेकिन बड़े पर्दे पर म्यूजिशयन बनने की ख्वाब पालने वाले गरीब गुड्डू के रूप में वह चमक बिखेरने में कामयाब नहीं हो पाते हैं. वहीं माधव के रूप में यश राणे, छुट्टन बने सचिन चौधरी और मीठी के किरदार में तमन्ना दीपक ने जबरदस्त काम किया है. गुड्डू के पिता के रूप में अमितृयान और मां के रूप में देबाश्री चक्रवर्ती ने उम्मीद के मुताबिक काम किया है. तानसेन म्यूजिक कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में जगदीश राजपुरोहित अच्छे लगते हैं. वहीं निर्देशन की बात करें तो शिव हरे ने एक ढीली कहानी को निखारने में मेहनत नहीं की है, जिससे फ़िल्म में काफी बिखराव देखने को मिलता है. इस फ़िल्म में न इमोशन है और न ही रोमांच. ऐसे में कई सीन गैर जरूरी लगते हैं. अगर शिव हरे फ़िल्म को आधे घंटे कम कर देते तो शायद अटकन चटकन दर्शकों के दिलों में घर बनाने में कामयाब हो पाती.
अटकन चटकन देखें या नहीं
जी5 पर रिलीज अटकन चटकन एक चिल्ड्रेन फ़िल्म की तरह देख लें तो कोई गुरेज नहीं. लेकिन अगर ये सोचकर देखेंगे कि एआर रहमान ने फ़िल्म को प्रोड्यूस किया है और शायद यह एआर रहमान की जिंदगी से प्रभावित फ़िल्म है तो आपको काफी निराशा होगी. यह फ़िल्म बेहद साधारण है और इसे ज्यादा उम्मीद से देखेंगे तो आपको समय की बर्बादी लगेगी. इस हफ्ते आपके पास ज्यादा कुछ देखने को नहीं है तो बस 2 घंटे बिताने के लिए देख लीजिए, बाकी अटकन चटकन में कुछ खास नहीं है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.