है ना विरोधाभास. एक राज्य जहां हजारों-हजार लड़के कुंवारे पड़े हों, उनमें से किसी एक की ख़ूबसूरत लड़की से शादी हो जाती है. मगर लड़का दुल्हन से पीछा छुड़ाने की जुगत में लगा हुआ है. यह तब और ज्यादा अजीबोगरीब मामला नजर आता है जब लड़के के जीवन में पहले से कोई और लड़की है ही नहीं. पिछले दिनों यह खबर सामने आई थी. पता चला कि तमिलनाडु के समाज में लैंगिक और जातीय वजहों से वहां एक समुदाय के कुंवारे लड़कों को 'दुल्हन' के लिए मुश्किलों से गुजरना पड़ रहा है. यह स्थिति सिर्फ इसलिए बनी कि लड़कों के अनुपात में पर्याप्त लड़कियां हैं ही नहीं.
पिछले हफ्ते पीटीआई ने तमिलनाडु के एक ब्राह्मण संगठन के हवाले से बताया कि समुदाय के 30-40 आयुवर्ग में करीब 40 हजार युवा कुंवारे हैं. समुदाय में विवाह योग्य 10 लड़कों के लिए सिर्फ 6 लड़कियां हैं. खराब लैंगिंक अनुपात से जूझ रहा समुदाय अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विकल्प तलाशने की बजाय उत्तर प्रदेश और बिहार के ब्राह्मण समुदाय में दुल्हन तलाश रहा है. संगठन इसके लिए बड़े पैमाने पर ड्राइव भी चला रहा है. तमिलनाडु की इस कहानी का ठीक उलटा आनंद एल राय की फिल्म "अतरंगी रे" में दिखता है. विरोधाभास की तरह.
अतरंगी रे में विष्णु नाम के तमिल ब्राह्मण युवा (धनुष) की जबरिया शादी उत्तर भारत के पूर्वी हिस्से में (शायद बनारस हो, जो आनंद एल रॉय का पसंदीदा शहर है) रिंकू सूर्यवंशी से हो जाती है. रिंकू और विष्णु दोनों जबरिया शादी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं. उन्हें रश्मों की वजह से तमिलनाडु आना पड़ता है. रिंकू बिंदास लड़की दिखती है. एक अलग दुनिया के सपने देख रही है. विष्णु जबरिया शादी में गले पड़ गई रिंकू से छुटकारा पाना चाहता है. वह उससे अलग होने के तिकड़म में लगा है. ऊपर जो तमिलनाडु की कहानी बताई गई, अतरंगी रे में तो उसका उलटा ही सीन है.
सीन भले ही उलटा है लेकिन आनंद एल रॉय का मुद्दों को कहने का अपना तरीका है.
अतरंगी रे में सारा अलीखान और धनुष. फोटो- डिजनी प्लस हॉटस्टार से साभार.
खैर अतरंगी रे की कहानी का प्रस्थान शहर दिल्ली है, जहां दोनों को अलग अलग रास्ते पर निकल जाना है. आपसी रजामंदी के साथ. हालांकि कहानी में सज्जाद यानी अक्षय कुमार का लव ट्राएंगल भी घुसा है. रिंकू, सज्जाद को चाहती है. जैसे-जैसे विष्णु-रिंकू के बीच सज्जाद की मौजूदगी बढ़ती है विष्णु, रिंकू को चाहने लगता है. वक्त बीतने के साथ अब रिंकू भी विष्णु को चाहने लगती है. कुल मिलाकर फिल्म की कहानी आनंद एल रॉय के पसंदीदा विषय प्रेम, उसमें अनूठापन और उसके त्रिकोण पर है.
तनु वेड्स मनु के दोनों पार्ट, रांझणा और जीरो याद ही होगा. प्रेम के अनूठे रूप के साथ मुद्दों का 'इशारा' करने वाली सभी फिल्मों का निर्देशन आनंद ने ही किया है. एक लंबे समय बाद वे अक्षय कुमार-धनुष और सारा अली खान की जोड़ी को लेकर फिर निर्देशन में हाथ आजमा रहे हैं. आनंद की प्रेम कहानियों की कुछ खासियतें होती हैं. एक तो ये कि वे शहरी समाज के मुद्दे उठाते हैं. लेकिन उनके शहर टियर टू, टियर थ्री वाले होते हैं इसलिए वो महानगरीय समाज और कस्बाई-ग्रामीण समाज दोनों जगह आसानी से संवाद कर पाते हैं. तनु वेड्स मनु में कानपुर, रांझणा में बनारस और जीरो में मेरठ.
दूसरा- आनंद एल रॉय का सामजिक मुद्दों पर बात करने का तरीका अलग है. वे प्रेम कहानियों को केंद्र में रखकर राजनीतिक और सामजिक मुद्दों पर बात कर ले पाते हैं. उनकी फ़िल्में उठाकर देख लीजिए. जहां तक बात अतरंगी रे की है यहां भी वे एक साथ तीन बड़े मुद्दों पर दिख रहे हैं. पूर्वी भारत में होने वाली जबरिया शादी. हालांकि आनंद ने यहां क्रांतिकारी कदम उठाया है. कहानी जहां की है वहां ऐसा होता तो नहीं मगर उन्होंने संभवत: राजपूत लड़की की शादी एक ब्राह्मण लड़के से दिखने का जोखिम लिया है. जबरिया शादियों पर बॉलीवुड ने हाल फ़िलहाल कई फ़िल्में बनाई हैं. दुर्भाग्य से प्रभाव छोड़ने में नाकाम साबित हुई हैं.
तीसरा- मुस्लिम हिंदू के बीच प्रेम. राजनीति में इस वक्त लव जिहाद का तगड़ा शोर है. रांझणा में कुंदन शंकर और जोया हैदर की दिलचस्प प्रेम कहानी के आठ साल बाद आनंद एल रॉय ने संज्जाद और रिंकू की प्रेम कहानी को दिखाया. आजकल फिल्मों में हिंदू-मुस्लिम प्रेम बर्र की छत है. हर बार पेंच हीरो के धर्म को लेकर फंस जाता है. हमेशा से.बॉलीवुड के निर्देशक इस मामले में हमेशा बहुमत की ओररहते हैं. अरविन्द स्वामी की बॉम्बे हो या सनी देओल की गदर एक प्रेम कथा. तमाम ऐसी फिल्मों की रिलीज के बाद हीरोइन वाले समुदाय ने खूब बवाल काटे हैं. लेकिन आनंद एल रॉय होशियार निर्देशक हैं. उन्हें अच्छे से मालूम है कि कैसे, कितना और कहां तक हाथ डालना है. कहानी बेचने तक. बाकी समुदायों की स्थापित भावनाओं को चोट पहुंचाने का जोखिम शायद हे लें. रांझणा से बेहतर भला क्या उदाहरण हो सकता है? जोया ना शेरगिल की हुई, ना कुंदन की. कहानी में भले ही सबको मरना पड़ा, पर रॉय साहेब ने सभी की धार्मिक भावनाओं को आहत होने से बचा लिया.
आनंद एल रॉय अतरंगी रे में विवाद की गुंजाइश नहीं रखे होंगे. ये मानकर चलते हैं.
प्रेम कहानी में चौथा बड़ा मुद्दा आनंद ने संभवत: तमिलनाडु में ब्राह्मण युवाओं के कुंवारेपन और उसकी वजहों को लेकर उठाया हो. अपने तरीके से. यह भी हो सकता है इस बिंदु पर ट्रेलर में दिखी चीजें हकीकत में वैसी ना हों जिस तरह से हम यहां जिक्र कर रहे हैं. लेकिन फिलहाल तीन बड़े मुद्दों के इर्द-गिर्द नजर आ रही अतरंगी रे की प्रेम कहानी इत्तेफाकन दिलचस्प बन गई है. जो सबसे खराब बात है वो ये कि रांझणा की बेहद प्यारी कहानी रिपीट होती दिख रही है जिसे आनंद का फ़ॉर्मूलाभर मानकर बख्शा नहीं जा सकता. फिल्म आने तक का इंतज़ार करना होगा.ट्रेलर में तो झलक बहुत ठीक नहीं है.
अतरंगी रे का ट्रेलर यहां देख सकते हैं:-
रांझणा में हिंदू तमिल लड़का-मुस्लिम लड़की, लव ट्राएंगल, भट्टा परसौल और दादरी के किसान आंदोलन की झलक, जेएनयू की छात्र राजनीति को प्रेम कहानी में दिखाया था.
आनंद ने इस बार कहानी बेचने के लिए जो इंतजाम किए हैं उनपर नजर रखिए. अतरंगी रे आनंद के पुराने फ़ॉर्मूले पर ही सही लेकिन एक अच्छी मनोरंजक प्रेम कहानी हो सकती है. ट्रेलर और उसके कुछ गाने फिलहाल ख़ूबसूरत दिख रहे हैं. फिल्म अगले महीने क्रिसमस में डिजनी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज होगी. जब तक फिल्म नहीं आ जाती, रांझणा का गाना "तुम तक" सुनकर प्रेम में डूबे रहिए. प्रेम करिए और खुश रहिए.
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