बॉलीवुड सिनेमा का एक दौर था जब मध्यम वर्ग की तमाम परेशानियों को दिखाने के लिए अमोल पालेकर का चुनाव किया जाता था. 70 और 80 के दशक की ऐसी कई फिल्में हैं जिन्हें अमोल पालेकर ने अपने शानदार अभिनय, सहज संवाद अदायगी और अपने व्यक्तित्व की वजह से यादगार बना दिया था. अमोल पालेकर के व्यक्तित्व की जो सबसे अच्छी बात थी वो यह कि भारत का हर मध्यमवर्गीय शख्स उनमें खुद को ढूंढ सकता था.
70 और 80 का वो पूरा दशक ही ऐसी कई फिल्मों का गवाह बना जहां अमोल पालेकर बिना किसी परिश्रम के अपने किरदारों में इस कदर ढल गए कि एक पल के लिए भी यह भान नहीं हुआ कि पालेकर की जिंदगी इन किरदारों से अलग है. चाहे वो यादगार फ़िल्म गोलमाल का ‘बेटा रामप्रसाद’ हो या फिर फ़िल्म 'छोटी सी बात' का अरुण प्रदीप हो. उस पूरे दशक में मध्यमवर्गीय परिवारों की तमाम दुष्वारियों को दिखाने के लिए अमोल पालेकर निर्देशकों की पहली पसंद हुआ करते थे. उस दौर में अमोल पालेकर ने गोलमाल, चितचोर, बातों बातों में, घरौंदा, मेरी बीबी की शादी जैसे कई यादगार फिल्में दीं.
वर्तमान में आयुष्मान खुराना भी उसी छवि को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं. उस दौर के अमोल पालेकर की तरह वर्तमान दौर में आयुष्मान भी मध्यमवर्गीय भारतीय के किरदार में बिल्कुल फिट बैठते दिख रहे हैं. अभी हाल में रिलीज फ़िल्म ‘बधाई हो’ में आयुष्मान एक ऐसे बेटे के किरदार में है जिसमें अधेड़ उम्र में उनकी मां गर्भवती हो जाती है, और इस खबर के बाद किस तरह पूरे परिवार और आस पड़ोस का कैसा रिएक्शन होता है उसी की कहानी है ‘बधाई हो’. इस फ़िल्म में एक बार फिर आयुष्मान ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय करते हैं.