बस अभी 'बेशर्म रंग' देखा. देखते ही सबसे पहले याद आया कि प्रियंका चोपड़ा से अमेरिका में कहा गया था कि - इंडियन सिनेमा में बेवजह ढेर सारे गाने डाल देते हैं जिसपर देसी गर्ल ने बचाव करते हुए कहा कि बेवजह नहीं डालते, गाने हमारी फ़िल्मों का अहम हिस्सा होते हैं. उनका बचाव करना अच्छा लगा लेकिन तुरंत ही ख़याल आया कि हां, इतने अहम होते हैं कि लैपटॉप पर फ़िल्म देखने वाला बड़ा वर्ग हमेशा गाने फ़ास्ट-फ़ॉरवर्ड कर देता है और स्टोरी का कुछ भी मिस नहीं करता. अपने टेस्ट की बात करूं तो मुझे गाना औसत लगा.
'हमें तो लूट लिया...' इंजेक्ट कर देने से वह ग़ज़ल या कव्वाली तो हो नहीं जाएगा और पॉप संगीत या हिपहॉप की तरह सुनें तो भी उतना मज़ेदार नहीं है. इससे बहुत बेहतर हिपहॉप गाने हैं अपने सिनेमा में. न ही यह गाना आइटम नंबर की श्रेणी में पूरी तरह फ़िट हो पा रहा है. लेकिन गाना फिर भी ठीक है, उससे बहुत बुरी है उसकी कोरियॉग्रफ़ी.
लोग दीपिका की चॉइस पर सवाल कर रहे हैं, कपड़े पर लिख रहे हैं, पता नहीं क्यों! दीपिका ने कम कपड़े पहने हैं! आपको इंचटेप लेकर नापने का काम मिला है? लोग ये भी कह रहे हैं कि पीकू और छपाक के बाद दीपिका ने पता नहीं ऐसा क्यों किया? कैरेक्टर को लेकर एक्सपेरिमेंटल होने में क्या बुराई है? कोई भी कलाकार प्रयोग करना चाहेगा.
दो फ़िल्मों में महारानी बनी दीपिका ने उससे पहले कॉकटेल में वेरोनिका का किरदार भी निभाया है न! उन्हें एक किरदार में कैसे बांध सकते हैं. वैभवी मर्चेंट की कोरियॉग्रफ़ी यहां बी-ग्रेड है. ऐसा नहीं कि इससे पहले बॉलीवुड में सेंसुअल परफॉर्मेंस नहीं हुए, ख़ूब हुए हैं और ख़ूबसूरत हुए हैं.
अगर इसे आइटम नम्बर ही बनाना था तो वहां भी ये...
बस अभी 'बेशर्म रंग' देखा. देखते ही सबसे पहले याद आया कि प्रियंका चोपड़ा से अमेरिका में कहा गया था कि - इंडियन सिनेमा में बेवजह ढेर सारे गाने डाल देते हैं जिसपर देसी गर्ल ने बचाव करते हुए कहा कि बेवजह नहीं डालते, गाने हमारी फ़िल्मों का अहम हिस्सा होते हैं. उनका बचाव करना अच्छा लगा लेकिन तुरंत ही ख़याल आया कि हां, इतने अहम होते हैं कि लैपटॉप पर फ़िल्म देखने वाला बड़ा वर्ग हमेशा गाने फ़ास्ट-फ़ॉरवर्ड कर देता है और स्टोरी का कुछ भी मिस नहीं करता. अपने टेस्ट की बात करूं तो मुझे गाना औसत लगा.
'हमें तो लूट लिया...' इंजेक्ट कर देने से वह ग़ज़ल या कव्वाली तो हो नहीं जाएगा और पॉप संगीत या हिपहॉप की तरह सुनें तो भी उतना मज़ेदार नहीं है. इससे बहुत बेहतर हिपहॉप गाने हैं अपने सिनेमा में. न ही यह गाना आइटम नंबर की श्रेणी में पूरी तरह फ़िट हो पा रहा है. लेकिन गाना फिर भी ठीक है, उससे बहुत बुरी है उसकी कोरियॉग्रफ़ी.
लोग दीपिका की चॉइस पर सवाल कर रहे हैं, कपड़े पर लिख रहे हैं, पता नहीं क्यों! दीपिका ने कम कपड़े पहने हैं! आपको इंचटेप लेकर नापने का काम मिला है? लोग ये भी कह रहे हैं कि पीकू और छपाक के बाद दीपिका ने पता नहीं ऐसा क्यों किया? कैरेक्टर को लेकर एक्सपेरिमेंटल होने में क्या बुराई है? कोई भी कलाकार प्रयोग करना चाहेगा.
दो फ़िल्मों में महारानी बनी दीपिका ने उससे पहले कॉकटेल में वेरोनिका का किरदार भी निभाया है न! उन्हें एक किरदार में कैसे बांध सकते हैं. वैभवी मर्चेंट की कोरियॉग्रफ़ी यहां बी-ग्रेड है. ऐसा नहीं कि इससे पहले बॉलीवुड में सेंसुअल परफॉर्मेंस नहीं हुए, ख़ूब हुए हैं और ख़ूबसूरत हुए हैं.
अगर इसे आइटम नम्बर ही बनाना था तो वहां भी ये औसत से कमतर है, प्रियंका, कैटरीना और नोरा फ़तेही ने इससे बेहतर किया है. ऐश्वर्या राय बच्चन का क्रेज़ी किया रे कमाल था. लेकिन ये गाना न ठीक-ठाक सेंसुअल है, न हिपहॉप, न पूरी तरह आइटम नंबर लगता है, और न ही बचाता डांस है.
फ़्रीस्टाइल कहकर बचाव इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि फ़्रीस्टाइल जैसी तारतम्यता भी नहीं है. सब अलग-थलग लगता है. बचाता डांस न जानते हों तो गूगल कर लें. और हां वीमेन ऑब्जेक्टिफ़िकेशन पर तो क्या ही लिखें, उसमें समूचा इंडियन सिनेमा डूबा हुआ है.
दीपिका ने ऑब्जेक्टिफ़ाय होने के अलावा इस गाने में कुछ नहीं किया. रौनक, रोशनी और रंग पर तो सबका हक़ है न! इसपर बहस करेंगे तो क्राफ्ट पर कब बात करेंगे? शाहरुख़ हरदिल अज़ीज़ हैं लेकिन उम्र की एक अपनी ख़ूबसूरती होती है, गरिमा होती है. उम्र के मुताबिक किरदार चुनना उन्हें और निखारेगा. सीनियर बच्चन प्रत्यक्ष प्रमाण हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.