बदलते समय के साथ भूतों की कहानियां भी बदली है. इन भूतों की कहानियों पर बनने वाली हॉरर फिल्मों को पेश करने का तरीका भी बदला है. वरना पहले उल्टे पैर चलता हुआ भूत दरवाजे की चर्र-चर्र आवाज के साथ दर्शकों को डराने की कोशिश करता था. रुद्राक्ष की माला और धोती पहना तांत्रिक माथे पर काला टीका लगाए उसे काबू में करने की कोशिश करता था. लेकिन समय बदला तो परिवेश के साथ वेशभूषा भी बदल गई. तांत्रिक जिंस की पैंट और लेदर जैकेट में नजर आने लगा. अपने धंधे के हिसाब से मोडिफाइड ट्रैवल बस में घूमने लगा. जी हां, हम फिल्म 'भूत पुलिस' की बात कर रहे हैं, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही है.
फिल्म 'भूत पुलिस' में सैफ अली खान, अर्जुन कपूर, यामी गौतम, जैकलीन फर्नांडीज, राजपाल यादव, जावेद जाफरी, गिरीश कुलकर्णी और जेमी लीवर अहम किरदारों में हैं. फिल्म के निर्माता रमेश तौरानी, अक्षय पुरी और निर्देशक पवन कृपलानी हैं. आइए जानते हैं कि इस फिल्म में कौन सी चार बड़ी कमियां नजर आती हैं.
1. कमजोर कहानी
फिल्म 'भूत पुलिस' की कहानी के लेखक सुमित बथेजा, पूजा लाढा सुरती और पवन कृपलानी है. पटकथा के स्तर पर बेहद कमजोर इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो आपने पहले कभी न देखा हो. फिल्म की कहानी के केंद्र में दो भाई और दो बहनें हैं. दो भाइयों विभूति वैद्य (सैफ अली खान) और चिरौंजी वैद्य (अर्जुन कपूर) के पिता उलट बाबा तांत्रिक थे, जो उनके पास पांच हजार साल पुरानी तंत्र विद्या की किताब विरासत में छोड़ गए हैं. दो बहनें माया (यामी गौतम) और कनिका (जैकलीन फर्नांडिस) हैं, जिनके पिता विरासत में चाय की बगान छोड़ गए हैं, जहां किचकंडी जैसी प्रेतात्मा के आने के बाद...
बदलते समय के साथ भूतों की कहानियां भी बदली है. इन भूतों की कहानियों पर बनने वाली हॉरर फिल्मों को पेश करने का तरीका भी बदला है. वरना पहले उल्टे पैर चलता हुआ भूत दरवाजे की चर्र-चर्र आवाज के साथ दर्शकों को डराने की कोशिश करता था. रुद्राक्ष की माला और धोती पहना तांत्रिक माथे पर काला टीका लगाए उसे काबू में करने की कोशिश करता था. लेकिन समय बदला तो परिवेश के साथ वेशभूषा भी बदल गई. तांत्रिक जिंस की पैंट और लेदर जैकेट में नजर आने लगा. अपने धंधे के हिसाब से मोडिफाइड ट्रैवल बस में घूमने लगा. जी हां, हम फिल्म 'भूत पुलिस' की बात कर रहे हैं, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही है.
फिल्म 'भूत पुलिस' में सैफ अली खान, अर्जुन कपूर, यामी गौतम, जैकलीन फर्नांडीज, राजपाल यादव, जावेद जाफरी, गिरीश कुलकर्णी और जेमी लीवर अहम किरदारों में हैं. फिल्म के निर्माता रमेश तौरानी, अक्षय पुरी और निर्देशक पवन कृपलानी हैं. आइए जानते हैं कि इस फिल्म में कौन सी चार बड़ी कमियां नजर आती हैं.
1. कमजोर कहानी
फिल्म 'भूत पुलिस' की कहानी के लेखक सुमित बथेजा, पूजा लाढा सुरती और पवन कृपलानी है. पटकथा के स्तर पर बेहद कमजोर इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो आपने पहले कभी न देखा हो. फिल्म की कहानी के केंद्र में दो भाई और दो बहनें हैं. दो भाइयों विभूति वैद्य (सैफ अली खान) और चिरौंजी वैद्य (अर्जुन कपूर) के पिता उलट बाबा तांत्रिक थे, जो उनके पास पांच हजार साल पुरानी तंत्र विद्या की किताब विरासत में छोड़ गए हैं. दो बहनें माया (यामी गौतम) और कनिका (जैकलीन फर्नांडिस) हैं, जिनके पिता विरासत में चाय की बगान छोड़ गए हैं, जहां किचकंडी जैसी प्रेतात्मा के आने के बाद माया उलट बाबा की तलाश में जाती है.
वहां उसकी मुलाकात विभूति और चिरौंजी से होती है. वो दोनों को लेकर हिमाचल प्रदेश के सिलावर आती है. दोनों भाई मिलकर उस जगह को प्रेत मुक्त करते हैं. फिल्म की इतनी सी कहानी में वीएफएक्स के जरिए भव्य बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन पटकथा की कमजोरी की वजह से बन नहीं पाती है. इसमें टाइमपास दृश्यों और फिल्म की लंबाई बढ़ाने के लिए डाली गई छोटी-छोटी घटनाओं के बाद भी कहानी आखिरी के कुछ देर ही दर्शकों को सांस बांधकर फिल्म देखने पर मजबूर करती है.
2. फिल्म स्त्री की झलक
राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर स्टार दिनेश विजान की फिल्म 'स्त्री' हॉरर कॉमेडी जॉनर में एक मानक की तरह है. इसने आधुनिक काल में हॉरर कॉमेडी फिल्मों की एक नई परिभाषा गढ़ी है. यही वजह है कि हर फिल्म मेकर इससे प्रभावित हुआ, जिसकी झलक फिल्म 'भूत पुलिस' में भी दिखाई देती है. दो सीन ऐसे हैं, जिसे देखकर आप साफ तौर पर कह सकते हैं कि ये स्त्री फिल्म से ही प्रेरित हैं. पहला, चाय बगान में काम करने वाले मजदूर शाम होते ही अपने-अपने घरों में बंद हो जाते हैं. उनको डर होता है कि किचकंडी उनको मार देगी. एक रात एक मजदूर अपनी पत्नी को लेकर डरते-डरते शौच के लिए घर से बाहर जाता है, जहां उसका सामना भूत से होता है. इसे देखकर स्त्री को वो दृश्य याद आ जाते हैं, जब गांव के लोग उसके डर से घर से बाहर निकलना बंद कर देते हैं. कोई भी रात को कहीं नहीं जाता है.
इसी तरह फिल्म में एक सीन है, जिसमें विभूति वैद्य और चिरौंजी वैद्य गांव के लोगों के मन से डर निकालने के लिए उनके साथ मीटिंग करते हैं. उनका उत्सावर्धन करते हुए बताते हैं कि उनके कहने पर किचकंडी प्रेतात्मा वापस चली जाएगी. इसके लिए वो गो किचकंडी, गो किचकंडी का नारा लगवाते हैं. फिल्म स्त्री में भी लोगों के मन से भूत का डर निकालने और उनको सुरक्षित रखने के लिए गांव के हर घर के बाहर 'वो स्त्री तू कल आना' लिखा जाता है.
3. राजपाल और जैकलीन की मौजूदगी
इस फिल्म में कॉमेडियन राजपाल यादव और जैकलीन फर्नांडीज की मौजूदगी खटकती है. राजपाल यादव तो एक बेहतरीन कलाकार हैं, यदि उनको फिल्म में रखा गया, तो महज 5 मिनट का ही रोल क्यों दिया गया. वो भी ऐसा रोल जो कोई भी कलाकार कर सकता था. मैं यहां तक कहूंगा कि उस सीन की भी इस फिल्म में कोई जरूरत नहीं थी, जिसमें राजपाल यादव का एक्ट दिखाया गया है. इसी जैकलीन फर्नांडीज जो कि यामी गौतम के किरदार की बहन के रोल में हैं, उनको भी फिल्म में रखने की कोई खास वजह नहीं दिखती. यहां तक कि उनको हिंदी में संवाद करने में तकलीफ नजर आती है. हालांकि, उसके लिए उनको लंदन वाली बनाने की कोशिश की गई है.
4. औसत दर्जे का अभिनय
फिल्म 'भूत पुलिस' में सैफ अली खान और अर्जुन कपूर लीड रोल में हैं. यामी गौतम और जैकलीन फर्नांडीज के किरदार मुख्य किरदारों का सहयोग करते हैं. अभिनय के लिहाज से सभी कलाकारों ने औसत दर्जे की एक्टिंग की है. सैफ को देखकर तो ऐसा लगता है कि वो कुछ बेहतर करने का प्रयास छोड़ चुके हैं. हर फिल्म में एक तरह की एक्टिंग किसी भी कलाकार को किरदार की विविधता से जुदा करती है. ऊपर से जब बॉडी लैंग्वेज भी सेट फॉर्मूले पर दिखे तो समझ जाइए कि किरदार के साथ कितना इंसाफ हो सकता है.
अर्जुन कपूर फिल्म में अली फजल की जगह लाए गए हैं. लेकिन कोई खास करिश्मा फिल्म में वह भी करते नहीं दिखते. किरदार के हिसाब से उन्हें थोड़ा धीर गंभीर ही रहना था लेकिन उनके संवाद उनके किरदार के हिसाब से बनावटी लगते हैं. अर्जुन को अभी भी अपने डायलॉग डिलिवरी में बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है. यामी गौतम को उनके अभिनय कौशल के हिसाब से किरदार नहीं मिला है. जबकि जैकलीन अपने किरदार में बिल्कुल भी फिट नहीं बैठतीं.
कमियों के बावजूद एक बार देखने लायक फिल्म है
फिल्म 'भूत पुलिस' इन तमाम कमियों के बावजूद एक बार देखने लायक फिल्म है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि कुछ समयावधि को छोड़कर पूरे समय तक दर्शकों में रोमांच जगाए रखती है. आगे क्या होने वाला है, इस बात का रहस्य फिल्म में बना रहता है. फिल्म समीक्षकों की तरफ से इसे औसत फिल्म बताया गया है, क्यों फिल्म उनको बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाई है. वहीं दर्शकों को ये फिल्म बहुत ज्यादा पसंद आ रही है, इसके पीछे बड़ा कारण ये है कि लोगों ने उम्मीद नहीं की थी कि सैफ और अर्जुन की इस तरह के विषय पर बनने वाली फिल्म उनका मनोरंजन कर सकती है.
इसके साथ ही फिल्म का रूप, रंग और सजावट भी बेहतर है यानी फिल्म का प्रेजेंटेशन अच्छा किया गया है. डर, फोबिया और रागिनी एमएमएस जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक पवन कृपलानी ने अपना काम अच्छे से किया है. वो कमजोर कहानी और कलाकारों के औसत अभिनय के बावजूद पूरी फिल्म को अपने कंधों पर आगे बढ़ाते हुए नजर आते हैं. साउंड डिजाइन और बैकग्राउंड म्यूजिक भी शानदार है. वैसे भी किसी भी हॉरर फिल्म में बैकग्राउंड का बहुत अधिक महत्व होता है, जिसे अनिर्बान सेनगुप्ता और क्लिंटन सेरेजो ने अच्छे से समझा है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.