क्या इसलिए कि एक बहुचर्चित शिवभक्त ने सावन के महीने में चंपारण मटन से परहेज़ नहीं किया ? दरअसल वह तो राजनीति के लिए स्वयंभू शिवभक्त था और राजनीति वश ही न केवल मटन खाया बल्कि चंपारण की लजीज मटन हांडी की रेसिपी भी सीखी ! ये भी राजनीति ही है कि बात का बतंगड़ बन रहा है. वह भी राजनीति ही थी जब शिवभक्त रूप के तमाम फोटो और वीडियो वायरल हुए थे और अब भी राजनीति के तहत ही रेसिपी सीखने वाला वीडियो जारी नहीं किया जाएगा. हां, यदि लीक हुआ तो वह भी राजनीति ही होगी और तब कहा जाएगा तुच्छ राजनीति हो रही है. सो राजनीतिक शिवभक्त के श्रावण महीने में राजनीतिक संयम न रख पाने की वजह से ये तो हुआ चंपारण के प्रसिद्ध मटन का बैंड कनेक्शन. परंतु चंपारण का इतिहास तो हमेशा सन्देश देने का रहा है, राजनीति को भी और समाज को भी.
याद कीजिए स्वतंत्रता संग्राम के सत्याग्रह रूपी हथियार को. चंपारण ही था जहां महात्मा गांधी ने 1917 में सत्याग्रह की अलख जगाई थी. लोगों ने सत्याग्रह की शक्ति को पहचाना. तब चंपारण के साथ आंदोलन जुड़ा था और सत्याग्रह के संदेश के लिए चर्चित हुआ था और आज चम्पारण के साथ मटन जुड़ा है एक संदेश देने के लिए ही.
तो बेहतर है चंपारण अच्छी बातों के लिए ही याद रखा जाए और शायद इसीलिए एक शॉर्ट फिल्म बनाई है 'पंचायत' फेम चंदन ने. वही चंदन है जो सचिव के सहायक की भूमिका में व्यूअर्स को खूब भाये थे. चूंकि फिल्म ऑस्कर के सेमीफाइनल में पहुंची सत्रह फिल्मों में से एक है, विश ये ऑस्कर जीते और एक बार फिर चंपारण का नाम अंतरराष्ट्रीय फलक पर खूब सुर्खियां बटोरे.
चंपारण मटन बिहार के चंपारण में एक ख़ास तरीके से पकाए जाने वाले मटन के तौर पर मशहूर है जिसे मिट्टी की हांडी में धीमी आंच पर...
क्या इसलिए कि एक बहुचर्चित शिवभक्त ने सावन के महीने में चंपारण मटन से परहेज़ नहीं किया ? दरअसल वह तो राजनीति के लिए स्वयंभू शिवभक्त था और राजनीति वश ही न केवल मटन खाया बल्कि चंपारण की लजीज मटन हांडी की रेसिपी भी सीखी ! ये भी राजनीति ही है कि बात का बतंगड़ बन रहा है. वह भी राजनीति ही थी जब शिवभक्त रूप के तमाम फोटो और वीडियो वायरल हुए थे और अब भी राजनीति के तहत ही रेसिपी सीखने वाला वीडियो जारी नहीं किया जाएगा. हां, यदि लीक हुआ तो वह भी राजनीति ही होगी और तब कहा जाएगा तुच्छ राजनीति हो रही है. सो राजनीतिक शिवभक्त के श्रावण महीने में राजनीतिक संयम न रख पाने की वजह से ये तो हुआ चंपारण के प्रसिद्ध मटन का बैंड कनेक्शन. परंतु चंपारण का इतिहास तो हमेशा सन्देश देने का रहा है, राजनीति को भी और समाज को भी.
याद कीजिए स्वतंत्रता संग्राम के सत्याग्रह रूपी हथियार को. चंपारण ही था जहां महात्मा गांधी ने 1917 में सत्याग्रह की अलख जगाई थी. लोगों ने सत्याग्रह की शक्ति को पहचाना. तब चंपारण के साथ आंदोलन जुड़ा था और सत्याग्रह के संदेश के लिए चर्चित हुआ था और आज चम्पारण के साथ मटन जुड़ा है एक संदेश देने के लिए ही.
तो बेहतर है चंपारण अच्छी बातों के लिए ही याद रखा जाए और शायद इसीलिए एक शॉर्ट फिल्म बनाई है 'पंचायत' फेम चंदन ने. वही चंदन है जो सचिव के सहायक की भूमिका में व्यूअर्स को खूब भाये थे. चूंकि फिल्म ऑस्कर के सेमीफाइनल में पहुंची सत्रह फिल्मों में से एक है, विश ये ऑस्कर जीते और एक बार फिर चंपारण का नाम अंतरराष्ट्रीय फलक पर खूब सुर्खियां बटोरे.
चंपारण मटन बिहार के चंपारण में एक ख़ास तरीके से पकाए जाने वाले मटन के तौर पर मशहूर है जिसे मिट्टी की हांडी में धीमी आंच पर पकाया जाता है. इसी मशहूर व्यंजन को खूबसूरती से एक्सप्लॉइट किया है युवा मेकर ने और बेरोजगारी को केंद्रित करते हुए देश की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य किया है.
वाकई खूबसूरत कहानी है चंपारण को बिलॉन्ग करने वाले एक कपल की जिसने प्रेम विवाह किया है, वाइफ प्रेग्नेंट है जिसकी इच्छा है मटन हांडी खाने की. कोविड में नौकरी चली गई है तो पति मनाने की भरपूर कोशिश करता है कि फिलहाल अपनी इच्छा दबा ले. मेकर ने भाषा भी लोकल रखी है जो मुजफ्फरपुर से लेकर पूरे चंपारण में बोली जाती है.
निःसंदेह ताना बाना शानदार होगा तभी तो दुनिया भर की 2400 प्रविष्टियों में टॉप सत्रह में जगह बनाई है 'चंपारण मटन' ने. वाकई बड़ी उपलब्धि है. चंदन स्वयं नायक हैं जिनकी अभिनय क्षमता असीम है. नायिका है फलक खान जिन्हें अभी खरा उतरना है.
अंततः एक बात और, चंपारण मटन पर हो रही मौजूदा राजनीति पर. कोई वेजीटेरियन है या नॉन वेजीटेरियन, निर्विवाद रूप से उसकी चॉइस है. परंतु चॉइस से परहेज़ की मांग की परिस्थिति भी आप ही पैदा करते हैं. हर धर्म में त्यौहारों के नियम क़ायदे होते हैं, हिंदू धर्म में ख़ानपान को लेकर भी होते हैं जिसके तहत कतिपय त्यौहारों के दौरान तामसी ख़ान पान वर्जित होता है.
महज़ दिखावे के लिए आप दंभ भरते हैं तो भ्रम बना रहे इसके लिए आपको संबंधित क़ायदे के पालन का भी तो दिखावा करना ही पड़ेगा ना ! क्योंकि धार्मिक दृष्टि से सावन के महीने में भगवान शिव कि पूजा अर्चना के कारण मांसाहार का सेवन वर्जित है और सच्चे, जनेउधारी शिवभक्त इसका पालन करते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.