विनोद खन्ना का नाम लेते ही उनका जो कल्ट डॉयलॉग याद आता है वो 1975 में रिलीज हुई फिल्म 'हाथ की सफाई' का है. उस फिल्म में विनोद खन्ना की जेब पर रणधीर कपूर हाथ की सफाई दिखाने की कोशिश करते हैं. विनोद खन्ना वहीं रणधीर कपूर का हाथ पकड़ कर कहते हैं- "बच्चे, तुम जिस स्कूल में पढ़ते हो, हम उसके हेडमास्टर रह चुके हैं."
विनोद खन्ना को बॉलीवुड में पहला ब्रेक सुनील दत्त ने 1968 में 'मन का मीत' में दिया था. दरअसल, सुनील दत्त ने ये फिल्म अपने छोटे भाई सोम दत्त को हीरो के तौर पर लॉन्च करने के लिए बनाई थी. ऊंची कद काठी के हैंडसम विनोद खन्ना पूरा हीरो मैटीरियल थे. लेकिन ब्रेक मिल रहा था तो विनोद खन्ना ने विलेन बनना भी स्वीकार कर लिया. अब ये बात दूसरी है कि फिल्म रिलीज हुई तो उसके बाद सोम दत्त का नाम तो दोबारा किसी ने नहीं सुना, लेकिन विनोद खन्ना को इंडस्ट्री ने हाथों हाथ लिया.
विलेन के तौर पर विनोद खन्ना ने 'आन मिलो सजना', 'सच्चा झूठा', 'रखवाला' आदि फिल्मों में भी काम किया लेकिन 'मेरा गांव, मेरा देश' में डाकू जब्बर सिंह के रोल में उन्होंने आंखों से नफरत की ऐसी आग उगली कि बड़े पर्दे पर ही आग लगा दी. जिसने भी उनके इस अंदाज को देखा, दहशत से सिहर उठा. धर्मेंद्र जैसे मंझे हुए अभिनेता के सामने होते हुए भी विनोद खन्ना ने अपनी अलग छाप छोड़ी.
विनोद खन्ना ने बाद में कच्चे धागे, पत्थर और पायल, हत्यारा जैसी फिल्मों में भी डाकू का किरदार निभाया....
विनोद खन्ना का नाम लेते ही उनका जो कल्ट डॉयलॉग याद आता है वो 1975 में रिलीज हुई फिल्म 'हाथ की सफाई' का है. उस फिल्म में विनोद खन्ना की जेब पर रणधीर कपूर हाथ की सफाई दिखाने की कोशिश करते हैं. विनोद खन्ना वहीं रणधीर कपूर का हाथ पकड़ कर कहते हैं- "बच्चे, तुम जिस स्कूल में पढ़ते हो, हम उसके हेडमास्टर रह चुके हैं."
विनोद खन्ना को बॉलीवुड में पहला ब्रेक सुनील दत्त ने 1968 में 'मन का मीत' में दिया था. दरअसल, सुनील दत्त ने ये फिल्म अपने छोटे भाई सोम दत्त को हीरो के तौर पर लॉन्च करने के लिए बनाई थी. ऊंची कद काठी के हैंडसम विनोद खन्ना पूरा हीरो मैटीरियल थे. लेकिन ब्रेक मिल रहा था तो विनोद खन्ना ने विलेन बनना भी स्वीकार कर लिया. अब ये बात दूसरी है कि फिल्म रिलीज हुई तो उसके बाद सोम दत्त का नाम तो दोबारा किसी ने नहीं सुना, लेकिन विनोद खन्ना को इंडस्ट्री ने हाथों हाथ लिया.
विलेन के तौर पर विनोद खन्ना ने 'आन मिलो सजना', 'सच्चा झूठा', 'रखवाला' आदि फिल्मों में भी काम किया लेकिन 'मेरा गांव, मेरा देश' में डाकू जब्बर सिंह के रोल में उन्होंने आंखों से नफरत की ऐसी आग उगली कि बड़े पर्दे पर ही आग लगा दी. जिसने भी उनके इस अंदाज को देखा, दहशत से सिहर उठा. धर्मेंद्र जैसे मंझे हुए अभिनेता के सामने होते हुए भी विनोद खन्ना ने अपनी अलग छाप छोड़ी.
विनोद खन्ना ने बाद में कच्चे धागे, पत्थर और पायल, हत्यारा जैसी फिल्मों में भी डाकू का किरदार निभाया. सुनील दत्त के बाद विनोद खन्ना ही वो अभिनेता रहे जो सिल्वर स्क्रीन पर डाकू के रोल में सबसे ज्यादा फबे.
विनोद खन्ना को हीरो के तौर पर 1972 में रिलीज हुई फिल्म 'मेरे अपने' ने स्थापित किया. गुलजार की निर्देशित इस फिल्म में विनोद खन्ना के साथ शत्रुघ्न सिन्हा भी लीड रोल में थे.
ये संयोग ही था कि शत्रुघ्न सिन्हा ने भी बॉलीवुड में अपना आगाज विलेन के तौर पर किया था. 'मेरे अपने' का थीम स्ट्रीट गैंगवॉर पर था. विनोद खन्ना (श्याम) और शत्रुघ्न सिन्हा (छेनू) दोनों अपने अपने गैंग के लीडर की भूमिका में खूब जमे थे.
सत्तर के दशक के मध्य तक आते-आते अमिताभ बच्चन एंग्री यंग मैन के तौर पर बॉलीवुड पर छा गए. लेकिन अमिताभ की कामयाबी में विनोद खन्ना ने भी अहम भूमिका निभाई. उस दौर में अमिताभ बच्चन-विनोद खन्ना की जोड़ी को फिल्म के हिट होने की गारंटी माना जाने लगा था. अमिताभ के पैरलल विनोद खन्ना जैसी मजबूत शख्सियत की मौजूदगी दर्शकों को खूब भाई.
अमिताभ और विनोद खन्ना की एक साथ पहली फिल्म 'जमीर' थी जो 1975 में रिलीज हुई. 1975 में निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा ने अमिताभ और विनोद को लेकर 'हेरा फेरी' बनाई तो ये फिल्म सुपर डुपर हिट साबित हुई. इसके बाद अमिताभ और विनोद खन्ना ने 1977 में 'खून पसीना', 'परवरिश', 'अमर अकबर एंथनी' और 1978 में 'मुकद्दर का सिकंदर' में साथ काम किया. इन सभी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी के नए रिकॉर्ड कायम किए.
ऐसा नहीं कि विनोद खन्ना की वही फिल्में कामयाब हो रही थीं जिनमें वो अमिताभ बच्चन के साथ थे. विनोद खन्ना उस दौर में अपने दम पर भी हिट फिल्में दे रहे थे. 1979 में 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' और 1980 में 'कुर्बानी' की रिलीज के बाद तो विनोद खन्ना इंडस्ट्री में अमिताभ की तरह ही बड़ा सेलेबल नाम बन चुके थे. ये वो दौर था विनोद खन्ना को नंबर वन की रेस में अमिताभ बच्चन के लिए बड़ी चुनौती माना जाने लगा था.
लेकिन उन्हीं दिनों में विनोद खन्ना का सांसारिक विषयों से मोहभंग हो गया और वो फिल्मों से संन्यास लेकर आचार्य रजनीश (ओशो) की शरण में चले गए. चार पांच साल वो फिल्मों से दूर रहे.
फिर उन्होंने 1987 में 'सत्यमेव जयते' और 'इंसाफ' जैसी फिल्मों के साथ कमबैक किया. कमबैक पर भी दर्शकों ने विनोद खन्ना को हाथों-हाथ लिया. 1988 में फिरोज खान ने विनोद खन्ना को लेकर 'दयावान' बनाई जिसे विनोद खन्ना के करियर का माइलस्टोन माना जाता है. ये इत्तेफाक ही है कि फिरोज खान ने विनोद खन्ना को उनके करियर की दो सबसे बड़ी फिल्में- 'कुर्बानी' और 'दयावान' दी और जिस तारीख 27 अप्रैल को विनोद खन्ना ने अंतिम सांस ली. उसी 27 अप्रैल को 8 साल पहले फिरोज खान का भी निधन हुआ था.
'दयावान' फिल्म की एक खासियत ये भी है कि इसमें विनोद खन्ना की फीमेल-पार्टनर की भूमिका माधुरी दीक्षित ने निभाई थी. फिर माधुरी दीक्षित ने 1997 में विनोद खन्ना के बेटे अक्षय खन्ना के साथ भी फीमेल पार्टनर का रोल किया. 1997 में ही विनोद खन्ना ने अपने प्रोडक्शन में अक्षय खन्ना को लॉन्च करने के लिए 'हिमालय पुत्र' का निर्माण किया था. विनोद खन्ना के दूसरे बेटे राहुल खन्ना भी 'अर्थ', 'एलान', 'लव आज कल' जैसी फिल्मों में नजर आ चुके हैं.
पांच दशक के बॉलिवुड करियर और राजनीति के दो दशक के करियर में विनोद खन्ना से जुड़ा ऐसा कोई वाकया याद नहीं आता, जिसमें किसी विवाद की कोई झलक रही हो. तीन बार गुरदासपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर जीते विनोद खन्ना वाजपेयी सरकार में पहले संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री रहे. फिर उन्हें विदेश मंत्रालय में भी राज्य मंत्री के तौर पर शिफ्ट किया गया था. हर जगह विनोद खन्ना ने अपनी विनम्रता से अलग छाप छोड़ी.
लंबा कद, दमदार आवाज और नैननक्श, ये सब वो बातें थीं जिनकी वजह से विनोद खन्ना को बॉलिवुड के सबसे हैंडसम हीरो में से एक माना गया. विनोद खन्ना के अलावा देश-विदेश में बॉलिवुड से धर्मेंद्र और कबीर बेदी ही 'मोस्ट अट्रैक्टिव स्टार' के तौर पर अपनी पहचान बना सके.
जहां तक फिजीक की बात है तो बॉलिवुड के आज के दौर में हीरो के बीच सिक्स पैक एब्स का ट्रेंड है. इस बारे में विनोद खन्ना ने एक इंटरव्यू में कहा, 'इतने साल में बॉलिवुड में बहुत कुछ बदला है. इन दिनों हीरो की फिजीक, सिक्स पैक एब्स पर बहुत फोकस रहता है, हमारे वक्त में भी हम में से कई की फिजीक ऐसी होती थी लेकिन हमने दिखाया नहीं.'
विनोद खन्ना मेरे जेहन में हमेशा हैंडसम थे, हैंडसम हैं और हैंडसम ही रहेंगे.
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