सियासत और सिनेमा का संबंध गहरा है. दोनों में ग्लैमर है. पॉवर है. पैसा है. फैन फॉलोइंग है. इसलिए सियासत और सिनेमा के बीच बहुत महीन रेखा मानी जाती है. अक्सर सिनेमाई शख्सियत को सियासी गलियारे में सफलता का स्वाद चखते देखा गया है. कई बार कुछ सियासी हस्तियों ने भी सिनेमा में अपनी किस्मत आजमाई है, हालांकि उनको सफलता बहुत कम मिली है. बॉलीवुड के मुकाबले साउथ फिल्म इंडस्ट्री की सियासत में दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही रही है. साउथ में कई ऐसे फिल्मी सितारे हुए हैं, जिन्होंने सियासत में बड़ा नाम कमाया है. राजनीति में नया अध्याय जोड़ा है. लेकिन उनमें कई असफल भी रहे हैं. खासकर महिलाओं की तुलना में पुरुषों की सफलता की दर कम रही है. सियासत में महिलाएं ज्यादा टिक रही हैं. ऊंचे ओहदे तक पहुंची है. जयललिता से लेकर स्मृति ईरानी तक के नाम प्रमुख उदाहरण हैं.
बॉलीवुड की एक अदाकारा हैं, जिनके सियासी गलियारे में एंट्री की संभावना लंबे समय से जताई जा रही हैं. खुद को राष्ट्रवादी कहने वाली ये अभिनेत्री एक खास राजनीतिक दल के पक्ष में लगातार बोलती रही हैं. उसकी वजह से उनको नुकसान झेलना पड़ा, तो ईनाम भी मिला है. जी हां, हम कंगना रनौत के बारे में बात कर रहे हैं, जिन्होंने खुलकर राजनीति में आने की इच्छा जता दी है. उनका कहना है कि वो हिमाचल प्रदेश के मंडी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि यदि जनता चाहती है और भाजपा उन्हें टिकट देती है तो वो चुनाव लड़ने को तैयार हैं. दरअसल कंगना रनौत इंडिया टुडे ग्रुप के पंचायत आजतक हिमाचल प्रदेश प्रोग्राम में हिस्सा ले रही थीं. इस दौरान उन से पूछा गया कि क्या वह राजनीति में आने के लिए तैयार हैं, तो अभिनेत्री ने कहा कि वो सियासत और समाज में हर तरह की भागीदारी के लिए तैयार हैं.
कंगना रनौत ने कहा, ''जिस तरह के हालात होंगे, सरकार चाहेगी कि मेरी भागीदारी हो, तो मैं सभी प्रकार की भागीदारी के लिए तैयार हूं. जैसा कि मैंने कहा, यह बहुत अच्छा होगा यदि हिमाचल प्रदेश के लोग मुझे सेवा करने का मौका दें. तो निश्चित रूप...
सियासत और सिनेमा का संबंध गहरा है. दोनों में ग्लैमर है. पॉवर है. पैसा है. फैन फॉलोइंग है. इसलिए सियासत और सिनेमा के बीच बहुत महीन रेखा मानी जाती है. अक्सर सिनेमाई शख्सियत को सियासी गलियारे में सफलता का स्वाद चखते देखा गया है. कई बार कुछ सियासी हस्तियों ने भी सिनेमा में अपनी किस्मत आजमाई है, हालांकि उनको सफलता बहुत कम मिली है. बॉलीवुड के मुकाबले साउथ फिल्म इंडस्ट्री की सियासत में दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही रही है. साउथ में कई ऐसे फिल्मी सितारे हुए हैं, जिन्होंने सियासत में बड़ा नाम कमाया है. राजनीति में नया अध्याय जोड़ा है. लेकिन उनमें कई असफल भी रहे हैं. खासकर महिलाओं की तुलना में पुरुषों की सफलता की दर कम रही है. सियासत में महिलाएं ज्यादा टिक रही हैं. ऊंचे ओहदे तक पहुंची है. जयललिता से लेकर स्मृति ईरानी तक के नाम प्रमुख उदाहरण हैं.
बॉलीवुड की एक अदाकारा हैं, जिनके सियासी गलियारे में एंट्री की संभावना लंबे समय से जताई जा रही हैं. खुद को राष्ट्रवादी कहने वाली ये अभिनेत्री एक खास राजनीतिक दल के पक्ष में लगातार बोलती रही हैं. उसकी वजह से उनको नुकसान झेलना पड़ा, तो ईनाम भी मिला है. जी हां, हम कंगना रनौत के बारे में बात कर रहे हैं, जिन्होंने खुलकर राजनीति में आने की इच्छा जता दी है. उनका कहना है कि वो हिमाचल प्रदेश के मंडी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि यदि जनता चाहती है और भाजपा उन्हें टिकट देती है तो वो चुनाव लड़ने को तैयार हैं. दरअसल कंगना रनौत इंडिया टुडे ग्रुप के पंचायत आजतक हिमाचल प्रदेश प्रोग्राम में हिस्सा ले रही थीं. इस दौरान उन से पूछा गया कि क्या वह राजनीति में आने के लिए तैयार हैं, तो अभिनेत्री ने कहा कि वो सियासत और समाज में हर तरह की भागीदारी के लिए तैयार हैं.
कंगना रनौत ने कहा, ''जिस तरह के हालात होंगे, सरकार चाहेगी कि मेरी भागीदारी हो, तो मैं सभी प्रकार की भागीदारी के लिए तैयार हूं. जैसा कि मैंने कहा, यह बहुत अच्छा होगा यदि हिमाचल प्रदेश के लोग मुझे सेवा करने का मौका दें. तो निश्चित रूप से, यह सौभाग्य की बात होगी. मैं पहले से ही एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हूं. मेरे पिता जी भी राजनीति से ताल्लुक रखते हैं. हमारा जो भी सिस्टम रहा है, मेरे पिता ने सारी चीजें कांग्रेस के माध्यम से ही की हैं. लेकिन 2014 में जब मोदी जी आए तब अचानक ट्रांसफॉर्मेशन हुआ. मेरे पिता ने पहली बार मुझे मोदी जी के बारे में बताया और 2014 में हम ऑफिशियल कंवर्ट हो गए. अब तो मेरे पिता सुबह उठते टाइम जय मोदी जी और शाम को जय योगी जी ही बोलते हैं. वो पूरी तरह पॉलिटिकली कंवर्ट हो चुके हैं.''
सिनेमा से सियासत में एंट्री लेने वाली महिला कलाकारों की कहानी...
1. हेमा मालिनी
1968 में फिल्म सपनों का सौदागर से बॉलीवुड डेब्यू करने वाली अभिनेत्री हेमा मालिनी 100 से ज्यादा फिल्में कर चुकी हैं. फिल्मों में काफी नाम कमाने के बाद हेमा मालिनी ने राजनीति का रुख किया था. वो 2004 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुईं थीं. इसके बाद पार्टी के सहयोग से राज्य सभा की सदस्य बनी थीं. राज्य सभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद, हेमा 2 बार लोक सभा सासंद भी चुनी गईं हैं. 2014 में पहली बार मथुरा से चुनाव लड़ी और जीत गईं. इसके बाद 2019 में दोबारा इसी सीट से सासंद चुनी गई हैं. हेमा का पूरा परिवार ही बीजेपी में शामिल है. सबसे पहले उनके पति धर्मेंद्र ने 2004 में बिकानेर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. वहां से भारी मतों से जीतकर वो संसद पहुंचे थे. हालांकि, धर्मेंद्र को राजनीति बहुत ज्यादा पसंद नहीं आई, तो वो बैकफुट पर चले गए. हेमा को आगे कर दिया. धर्मेंद्र के बेटे सनी देओल भी बीजेपी से सांसद हैं.
2. स्मृति ईरानी
एकता कपूर के सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' (2000-08) से लोकप्रिय हुई टीवी एक्ट्रेस एकता कपूर का राजनीतिक करियर सबसे ज्यादा सफल माना जाता है. बहुत कम समय में सियासी गलियारे में उन्होंने सफलता का स्वाद चखा है. स्मृति ईरानी का परिवार आरएसएस से जुड़ा रहा है. उनके दादाजी आरएसएस के स्वयंसेवक और मां जनसंघी थीं. 2003 में बीजेपी ज्वाइन करने के बाद स्मृति 2004 में महाराष्ट्र यूथ विंग की वाइस-प्रेसिडेंट बनीं. 2004 में दिल्ली की चांदनी चौक सीट से कांग्रेस के कपिल सिब्बल के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ीं, लेकिन हार गईं. 2010 में स्मृति बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव और महिला विंग की अध्यक्ष बनीं. 2014 में यूपी की अमेठी सीट से राहुल गांधी के खिलाफ लोकसभा लड़ी, लेकिन यहां भी हार गईं. इसके बावजूद मोदी ने इन्हें केंद्रीय मानव संसाधन और विकास मंत्री बनाया. लेकिन 2019 में उन्होंने राहुल गांधी को हराकर इतिहास रच दिया. इसके बाद उनको केंद्रीय टेक्सटाइल मिनिस्टर बनाया गया है. स्मृति अपने बयानों की वजह से बहुत ज्यादा विवादों में रही हैं. इसका राजनीतिक नुकसान भी उनको हुआ है.
3. जया प्रदा
70 और 80 के दशक में साउथ सिनेमा से लेकर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री तक राज करने वाली जया प्रदा ने 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है. लेकिन उनकी निजी जिंदगी की तरह सियासी सफर भी बहुत ज्यादा विवादास्पद रहा है. 1994 में जयाप्रदा ने एनटी रामाराव के कहने पर तेलुगू देसम पार्टी ज्वाइन किया था. यहीं से उनकी राजनीतिक पारी शुरू हुई थी. साल 2000 में जयाप्रदा ने तेदेपा छोड़कर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर लिया. कहा जाता है कि सपा में जयाप्रदा को लाने का श्रेय अमर सिंह को जाता है. जया और अमर सिंह की दोस्ती राजनीतिक गलियारे में हमेशा चर्चा का विषय बनी रही थी. अमर सिंह ने आजम खान को अपने रास्ते से हटाने के लिए जया का बखूबी इस्तेमाल किया था. उनको रामपुर से आजम के खिलाफ चुनाव लड़वाया था. बाद में जब अमर सिंह सपा से अलग हुए तो जयाप्रदा ने भी पार्टी छोड़ दी. इसके बाद वो लोकदल पार्टी में शामिल हो गईं. कुछ दिन बाद मुलायम सिंह यादव के कहने पर वो वापस समाजवादी पार्टी में आ गईं. लेकिन साल 2019 के चुनाव में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. अभी भाजपा नेत्री हैं.
4. जया बच्चन
1971 की फिल्म गुड्डी से बॉलीवुड डेब्यू करने वाली जया बच्चन पिछले 18 वर्षों से राजनीति में सक्रिय हैं. उन्होंने 2004 में समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. 2006 में जया राज्यसभा सदस्य बनीं. जया आज भी सपा से राज्यसभा सांसद हैं. जया प्रदा की तरह समाजवादी पार्टी में उनको लाने का श्रेय अमर सिंह को ही जाता है. लेकिन जया और अमर के बीच विवाद होने की वजह से उनके बीच दूरियां आ गईं. जया की तुनकमिजाजी बहुत मशहूर है. सभी जानते हैं कि वो अपना गुस्सा कंट्रोल नहीं कर पाती हैं. सड़क से लेकर संसद तक लोगों ने उनका गुस्सा देखा है. उनको अक्सर पैपराजी और फैंस गुस्सा निकालते हुए देखा गया है. जया ने बॉलीवुड को गटर कहने वालीं कंगना रनौत के खिलाफ संसद में आवाज उठाई थी. उन्होंने गुस्से में कहा था, जिन लोगों ने बॉलीवुड से नाम बनाया वही लोग इसे गटर कह रहे हैं. ये गलत है.
5. जयललिता
दिवंगत जे जयललिता दक्षिण भारतीय राजनीति का वो चमकता सितारा थीं, जो जब तक जिंदा रही अपने करिश्माई व्यक्त्वि की चमक बिखेरती रहीं. तमिलनाडु की राजनीति में AIADMK पार्टी से तीन बार मुख्यमंत्री रहीं.1963 में अंग्रेजी फिल्म से अपने करियर की शुरुआत करने वाली जयललिता को एमजी रामचंद्रन राजनीति में लेकर आए थे. साल 1982 में जयललिता ने सियासी पारी का आगाज किया. साल 1991 से 1996, 2001 में, 2002 से 2006 तक और 2011 से 2014 तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं. 1982 में डीएमके में शामिल हुईं जयललिता 1983 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं. 1984 से 1989 तक वो राज्यसभा की सदस्य रहीं. 1989 में हुए उपचुनाव में विधानसभा में पहुंची. 5 दिसंबर 2016 को उनका निधन हो गया. जयललिता की जिंदगी को कई बार रुपहले पर्दे पर दिखाया जा चुका है. उनपर थलाइवी नाम से फिल्म भी बन चुकी है.
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