दौड़ती भागती जिंदगी, एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़, पैसे बटोरने की चाहत, तो कई बार पारिवारिक परिस्थितियों की वजह से लोग मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. लेकिन जिस तरह से हम शारीरिक बीमारियों पर ध्यान देते हैं, उस तरह से मानसिक बीमारियों को गंभीरता से नहीं लेते. नजीतन इस अनदेखी के कारण हम मेंटल स्ट्रेस, डिप्रेशन, एंजाइटी, हिस्टीरिया, डिमेंशिया और फोबिया जैसी मानसिक बीमारियों के शिकार बन जाते हैं. इसी बीच पिछले दो साल के दौरान कोरोना महामारी की वजह से लोगों ने मुसीबतों का सामना किया है. कुछ ने अपनों को खोया, कई की नौकरी गई या आर्थिक नुकसान हुआ. इसकी वजह से भी मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा है. कई लोग तो संक्रमण के शिकार होने के बाद मानसिक बीमारियों की जद में आए हैं.
एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में हर आठ में से एक व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार है. यानी कुल आबादी के करीब 18 करोड़ लोग, किसी न किसी एक तरह की मानसिक बीमारी से प्रभावित हैं. इसी तरह देश की आबादी के 2 फीसदी यानी 2.5 करोड़ लोग गंभीर बीमारी से प्रभावित हैं, जिन्हें मानसिक चिकित्सकों द्वारा नियमित इलाज की जरूरत है. बचे हुए करीब 15 करोड़ लोग, जिनको गंभीर मानसिक बीमारी नहीं है, उन्हें विशेषज्ञों की देखरेख में काउंसलिंग की जरूरत है. डब्लूएचओ की रिपोर्ट की माने तो दुनिया भर में 280 मिलियन लोग डिप्रेशन के शिकार हैं. इतना ही नहीं हर 5 में से 1 किशोर मानसिक विकार से पीड़ित है. इसके अलावा न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से करीब 10 फीसदी और अन्य मानसिक बीमारियों से करीब 30 फीसदी आबादी प्रभावित है.
मानसिक बीमारियों से संबंधित उपरोक्त आंकड़े न केवल चिंता पैदा करने वाले हैं, बल्कि...
दौड़ती भागती जिंदगी, एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़, पैसे बटोरने की चाहत, तो कई बार पारिवारिक परिस्थितियों की वजह से लोग मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. लेकिन जिस तरह से हम शारीरिक बीमारियों पर ध्यान देते हैं, उस तरह से मानसिक बीमारियों को गंभीरता से नहीं लेते. नजीतन इस अनदेखी के कारण हम मेंटल स्ट्रेस, डिप्रेशन, एंजाइटी, हिस्टीरिया, डिमेंशिया और फोबिया जैसी मानसिक बीमारियों के शिकार बन जाते हैं. इसी बीच पिछले दो साल के दौरान कोरोना महामारी की वजह से लोगों ने मुसीबतों का सामना किया है. कुछ ने अपनों को खोया, कई की नौकरी गई या आर्थिक नुकसान हुआ. इसकी वजह से भी मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा है. कई लोग तो संक्रमण के शिकार होने के बाद मानसिक बीमारियों की जद में आए हैं.
एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में हर आठ में से एक व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार है. यानी कुल आबादी के करीब 18 करोड़ लोग, किसी न किसी एक तरह की मानसिक बीमारी से प्रभावित हैं. इसी तरह देश की आबादी के 2 फीसदी यानी 2.5 करोड़ लोग गंभीर बीमारी से प्रभावित हैं, जिन्हें मानसिक चिकित्सकों द्वारा नियमित इलाज की जरूरत है. बचे हुए करीब 15 करोड़ लोग, जिनको गंभीर मानसिक बीमारी नहीं है, उन्हें विशेषज्ञों की देखरेख में काउंसलिंग की जरूरत है. डब्लूएचओ की रिपोर्ट की माने तो दुनिया भर में 280 मिलियन लोग डिप्रेशन के शिकार हैं. इतना ही नहीं हर 5 में से 1 किशोर मानसिक विकार से पीड़ित है. इसके अलावा न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से करीब 10 फीसदी और अन्य मानसिक बीमारियों से करीब 30 फीसदी आबादी प्रभावित है.
मानसिक बीमारियों से संबंधित उपरोक्त आंकड़े न केवल चिंता पैदा करने वाले हैं, बल्कि डरावने हैं. यही वजह है कि लोगों को मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत को समझाने के लिए आज के दिन यानी 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day) मनाया जाता है. साल 1992 से हर साल मनाए जाने वाले इस दिवस का महत्व कोरोना काल में बढ़ गया है. साल 2021 में इसकी थीम है, 'सभी के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल: आइए इसे एक वास्तविकता बनाएं'. यदि इस थीम पर पूरी दुनिया ने ईमानदारी से काम किया, तो हम न केवल वर्तमान पीढ़ी, बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों को इन खतरनाक बीमारियों से बचा सकते हैं. बॉलीवुड में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कई फिल्में बनाई गई है, जो लोगों को जागरूक करती हैं.
बॉलीवुड की 5 फिल्में जो मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत बताती हैं...
1. डर (Darr)
यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित साइकोलॉजिकल रोमांटिक थ्रिलर फिल्म 'डर' साल 1993 में रिलीज हुई थी. इसमें शाहरुख खान, जूही चावला और सनी देओल मुख्य भूमिकाओं में हैं. फिल्म में शाहरुख खान का किरदार राहुल एक जुनूनी आशिक होता है, जो इरोटोमेनिया और बॉर्डरलाइन नामक पर्सनालिटी डिसऑर्डर का शिकार होता है. राहुल एक लड़की किरण (जूही चावला) से एक तरफा प्यार करता है, जिसकी सुनील (सनी देओल) सगाई हो चुकी होती है. अमूमन टीनएज में लड़के इस तरह की बीमारी के शिकार हो जाते हैं. वो जो चाहते हैं, उनको मिलता नहीं है, तो वो हिंसक होकर उसे जबरन पाने की कोशिश करते हैं. ऐसे में काउंसलिंग की सख्त जरूरत होती है.
2. डियर जिंदगी (Dear Zindagi)
साल 2016 में रिलीज हुई बॉलीवुड ड्रामा फिल्म डियर जिंदगी का निर्देशन गौरी शिंदे ने किया है. इसमें शाहरुख खान, आलिया भट्ट, कुनाल कपूर और अंगद बेदी मुख्य भूमिका मे हैं. फिल्म की कहानी एक लड़की कियारा (आलिया भट्ट) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे तीन बार प्यार होता है. तीनों बार वह प्यार के अलग नजरिए से वाकिफ होती है. तीसरे आशिक से अलग होने के बाद वो अपनी जिंदगी, कमिटमेंट और रिलेशनशिप को लेकर सोच में पड़ जाती है. धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार होती जाती है. इसी दौरान एक मेंटल हेल्थ और अवेयरनेस सेमीनार में उसकी मुलाकात डॉ जग्स उर्फ जहांगीर (शाहरुख खान) से होती है, जो साइकोलॉजिस्ट हैं. उनसे बातचीत और काउंसलिंग के बाद कियारा की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि मानसिक रूप से बीमार शख्स को काउंसलिंग की कितनी जरूरत है.
3. अंजाना अनजानी (Anjaana Anjaani)
फिल्म अंजाना अनजानी साल 2010 में रिलीज हुई एक रोमांटिक कॉमेडी ड्रामा है, जिसका निर्देशन सिद्दार्थ आनंद ने और निर्माण साजिद नाडियावाला ने किया है. फिल्म में रणबीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में हैं. फिल्म का संगीत विशाल-शेखर ने दिया है. इसमें रणबीर कपूर (आकाश) को एक बैंकर और प्रियंका चोपड़ा (कियारा) को एक धोखेबाज लड़की के रूप में दिखाया गया है. आकाश एक्यूट स्ट्रेस डिसऑर्डर और कियारा एडजस्टमेंट डिसऑर्डर से ग्रसित है. मानसिक बीमारी की वजह से आकाश और कियारा खुदकुशी करना चाहते हैं, कोशिश भी करते हैं, लेकिन सफल नहीं हो पाते. इसी बीच दोनों की मुलाकात होती है. पहले दोस्ती होती है, जो बाद में प्यार में बदल जाती है. दोनों का प्यार एक-दूसरे के लिए मेडिसिन का काम करता है और धीरे-धीरे मानसिक बीमारी खत्म हो जाती है.
4. तारे जमीन पर (Taare Zameen Par)
साल 2007 में रिलीज हुई 'तारे ज़मीन पर' एक ऐसी फ़िल्म है जो न केवल दर्शकों का मनोरंजन करती है बल्कि जागरूक भी करती है. माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति जो नजरिया है, जो उम्मीदें हैं और जो रवैय्या है, उसमें होने वाली कमियों पर इस फ़िल्म के द्वारा प्रकाश डाला गया है. फ़िल्म में मुख्य भूमिका आमिर खान और दर्शील सफारी की है, जिन पर पूरी फ़िल्म आधारित है. दर्शील का किरदार डिस्लेक्सिया नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित होता है. ऐसे में उसके परिवार और टीचर का उसके प्रति क्या रोल होना चाहिए, इसे फिल्म में बखूबी दिखाया गया है. एक मानसिक बीमार बच्चा भी अपने जीवन में बेहतरीन काम कर सकते है, यदि उसको समझकर उसके हिसाब से उसकी सहायता करने वाला कोई मिल जाए. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल करने के साथ ही सामाजिक संदेश भी दिया था.
5. जजमेंटल है क्या (Judgementall Hai Kya)
साल 2019 में रिलीज हुई साइकॉलॉजिकल थ्रिलर ड्रामा फिल्म 'जजमेंटल है क्या' का निर्देशन प्रकाश कोवेलामुदी ने किया है. फिल्म में कंगना रनौत और राजकुमार राव मुख्य भूमिका मे हैं. इसका निर्माण एकता कपूर, शोभा कपूर, और शैलेष आर सिंह ने बालाजी मोशन पिक्चर्स के बैनर के तले किया है. फिल्म का नाम पहले 'मेंटल है क्या' था, जिस पर विवाद होने के बाद इसका नाम बदलकर 'जजमेंटल है क्या' रख दिया. फिल्म में राजकुमार रॉव और कंगना रनौत दोनो ही मेंटल की भूमिका में हैं. उनकी सोच दुनिया से बिल्कुल अलग है. इसमें कंगना का किरदार ये मानता है कि हर पुरुष जानवर होता है, क्योंकि उसकी मां को उसके पिता ने बहुत प्रताड़ित किया होता है, जिसका मानसिक असर उसके ऊपर होता है. फिल्म के जरिए दिखाने की कोशिश की गई है कि घरेलू हिंसा का बच्चों पर कितना बुरा असर होता है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.