बेहतरीन...बेहतरीन...बेहतरीन... कल्पना नहीं थी कि बॉलीवुड में कोई इस तरह का सपना देखेगा...उसको साकार करने के लिए अपनी जिंदगी के कई अहम साल समर्पित कर देगा...अयान मुखर्जी ने उसे कर दिखाया है. 11 साल पहले उन्होंने जो सपना देखा था, वो अब साकार हो गया है. उनके 'अस्त्रावर्स' का पहला भाग 'ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा' देश भर के सिनेमाघरों में रिलीज हो चुका है. बेहतरीन विजुअल, शानदार वीएफएक्स, एक से बढ़कर एक सितारों से सजी ये फिल्म एक मिनट के लिए भी नजर इधर-उधर नहीं होने देती. आज की युवा पीढी़ की भाषा में बनी ये फिल्म हिंदू माइथोलॉजी पर आधारित होते हुए भी उत्तम तकनीक के साथ उतनी ही आधुनिक भी है. भारतीय संस्कृति और संस्कारों की प्रेषक भी है. जैसा देश, वैसा वेश, लेकिन आत्मा में परिवर्तन नहीं होना चाहिए. ये फिल्म न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि हमारे गौरवशाली इतिहास को अनोखे अंदाज में पेश करती है.
फिल्म में कई सरप्राइज फैक्टर भी हैं. जैसे कि ब्रह्मांश के सदस्य वैज्ञानिक मोहन भार्गव के किरदार में शाहरुख खान, अनीस के किरदार में नागार्जुन और जुनून के निगेटिव रोल में मौनी रॉय की मौजूदगी. बॉलीवुड बायकॉट गैंग के निशाने पर रहने वाले एसआरके को फिल्म में लेना रिस्क से कम नहीं है. लेकिन अयान ने ये रिस्क लिया है. वो अपने चुनाव में सफल भी माने जा सकते हैं, क्योंकि शाहरुख ने अपने किरदार को जिस तरह से निभाया है, उसे शायद ही कोई दूसरा निभा पाता. फिल्म के शुरूआत में ही उनके सीन हैं. वो जितनी देर पर्दे पर दिखते हैं, छाए रहते हैं. इस उम्र में भी उन्होंने जिस तरह के एक्शन सीन किए हैं, उसे देखकर आंखे खुली रह जाती है. 'वानरास्त्र' धारक मोहन भार्गव के किरदार में उन्होंने भले ही कैमियो किया है, लेकिन उनके किरदार के बिना फिल्म की कल्पना नहीं की जा सकती. अयान ने उनको सरप्राइज रखा था और वो वाकई में सरप्राइज पैकेज साबित हुए हैं.
रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' को 8000 स्क्रीन पर रिलीज किया गया है.
बॉलीवुड पर हमेशा से ही आरोप लगता रहा है कि उनकी फिल्मों में हिंदू धर्म, समाज और संस्कृति को नकारात्मक रूप में पेश किया जाता रहा है. वैसे ये सच भी है कि ज्यादातर बॉलीवुड की हिंदी फिल्मों में हिंदू देवी-देवताओं, उनके प्रतीकों और प्रतिमानों का मजाक उड़ाया गया है. उनको खलनायक के रूप में पेश किया गया है. लेकिन फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' बॉलीवुड के ये सारे पाप धोने का काम कर रही है. इस फिल्म में शुरू से लेकर आखिर तक जिस तरह से हिंदू धर्म, देवी-देवताओं का गुणगान किया गया है. संस्कृत के श्लोकों के जरिए हिंदू माइथोलॉजी में वर्णित शस्त्रों की शक्ति बताई गई है. ऐसे भारतीय सिनेमा में विरले ही देखने को मिलता है. इसके साथ ही उन लोगों की शिकायत भी दूर हो जाएगी जो ये कहा करते हैं कि बॉलीवुड मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की तरह सुपरहीरो वाली फिल्मों का निर्माण नहीं कर पाता. बॉलीवुड फिल्मों में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' की कहानी डीजे का काम करने वाले शिवा (रणबीर कपूर) की जिंदगी के इर्द-गर्द घूमती है. अपनी आतंरिक शक्तियों से अनजान शिवा अनाथ है. उसके माता-पिता कौन हैं, ये भी उसे नहीं पता. बस इतना याद रहता है कि एक आग में उसकी मां जल गई थीं, लेकिन वो जिंदा बच गया था. वो एक अनाथालय में बच्चों के बीच रहते हुए अपनी जिंदगी जी रहा होता है. शिवा को अजीबो-गरीब सपने आते रहते हैं, जिसमें वो तमाम तरह की विचित्र घटनाएं देखता रहता है. दशहरा महोत्सव में शिवा की मुलाकात ईशा (आलिया भट्ट) से होती है. उसे देखते ही पहली नजर में उससे प्यार करने लगता है. अपने दिल की बात ईशा से कह देता है. इसी बीच उसे सपना आता है कि एक शख्स की तीन लोगों ने मिलकर हत्या कर दी है. इसके बाद वो लोग वाराणसी में रहने वाले एक दूसरे शख्स की हत्या करने जाने वाले हैं. दशहरा पूजा के दौरान शिवा को अखबार में एक खबर दिखती है.
उसे देखने के बाद शिवा को पता चलता है कि सपने में उसने जिस शख्स की हत्या की घटना देखी थी, वो देश के महान वैज्ञानिक मोहन भार्गव (शाहरुख खान) थे. इसके बाद तीनों हत्यारे अनीस (नागार्जुन) की हत्या करने के लिए वाराणसी जाने वाले हैं. शिवा और ईशा अनीस की जान बचाने के लिए वाराणसी जाते हैं. वहां उनकी मुलाकात जुनून (मौनी रॉय) से होती है, जो कि ब्रह्मांश के सदस्यों की हत्या करके उनसे ब्रह्मास्त्र की तीन टुकड़े हासिल करना चाहती है. जुनून ये सबकुछ अपने मालिक ब्रह्मदेव के कहने पर करती है. शिवा और ईशा किसी तरह से अनीस को बचाकर ब्रह्मांश के गुरू (अमिताभ बच्चन) के पास जाने के लिए निकलते हैं. रास्ते में जुनून अपने साथियों के साथ हमला कर देती है. शिवा को ब्रह्मास्त्र का टुकड़ा देकर अनीस उनसे लड़ने लगता है. इस दौरान उसकी मौत हो जाती है. किसी तरह से शिवा और ईशा गुरुजी के पास पहुंचते हैं. इसके बाद ब्रह्मास्त्र को बचाने की मुहिम शुरू हो जाती है.
'ब्रह्मास्त्र' को बचाने की ये कहानी पूरी जानने के लिए सिनेमाघर में जाकर फिल्म देखनी होगी. क्योंकि असली मजा तो थियेटर में ही आने वाला है. अयान मुखर्जी ने अपनी कल्पना के जरिए शस्त्रों का जो संसार रचा है, वो अद्भुत है. इसमें शिवा, अनीस, मोहन, गुरुजी और जुनून जैसे किरदार धार देने का काम करते हैं. शस्त्र संहार के प्रतीक होते हैं, लेकिन शस्त्रों की इस दुनिया में प्यार को बहुत सुंदर तरीके से पेश किया गया है. क्लाइमैक्स भले ही हिंसक है, लेकिन अंत यही कहता है कि प्यार जैसा पवित्र कुछ भी नहीं है. प्यार में असीमित ताकत होती है, जो ब्रह्मास्त्र जैसे ताकतवर अस्त्र को भी काबू में कर सकती है. अयान का संदेश साफ है, प्रेम करो, प्रेम से जिओ. इसलिए घृणा और नफरत का माहौल बनाने वाले लोग जो बहिष्कार मुहिम का झंडा बुलंद किए हुए हैं, उनको ये फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए. शायद अयान सहित पूरी टीम की मेहनत उनका हृदय परिवर्तन कर पाए.
कुछ भी परफेक्ट नहीं होता. ऐसे में निश्चित है कि इस फिल्म में भी खामियां हैं. सबसे बड़ी खामी फिल्म की पटकथा में है. अयान मुखर्जी ने फिल्म की कहानी और पटकथा खुद लिखी है. ऐसे में पटकथा का कमजोर होना अखरता है. 'ये जवानी है दीवानी' और 'टू स्टेस्ट्स' जैसी फिल्मों के संवाद लेखक हुसैन दलाल ने इस फिल्म के डायलॉग लिखे हैं. लेकिन प्रभावी नहीं हैं. यदि पटकथा और संवाद दुरुस्त होते तो यकीन कीजिए ये भारतीय सिनेमा की एक बेहतरीन फिल्म साबित हो सकती थी. फिल्म में म्युजिक प्रीतम का है, जबकि बैकग्राउंड स्कोर साइमन फ्रैंग्लेन ने दिया है. वैसे तो इसके गाने अच्छे हैं, लेकिन जिस तरह की कहानी चल रही होती है, उसमें गाने खटकते हैं. कहानी और गानों के बीच कोई संबंध नजर नहीं आता है. साइमन का स्कोर परिस्थिति के हिसाब से सटिक सुनाई देता है. सिनेमैटोग्राफी भी मस्त है. बस एटिडिंग सख्त होनी चाहिए थी. इसमें प्रकाश कुरुप असफल साबित होते हैं.
फिल्म की स्टारकास्ट की परफॉर्में का जहां तक सवाल है, तो सभी ने बेहतरीन काम किया है. कई कलाकारों ने तो अपने-अपने किरदारों में चौंकाया है. इसमें अनीस के किरदार में साउथ के सुपरस्टार नागार्जुन और मोहन भार्गव के किरदार में अभिनेता शाहरुख खान का नाम लिया सकता है. दोनों का कैमियो रोल है, लेकिन दोनों के बिना फिल्म अधूरी लगती. नागार्जुन ने क्या दमदार अभिनय किया है. महज 10 मिनट के किरदार में उन्होंने समां बांध दिया है. नंदी-अस्त्र के रूप में जब उनकी आवाज गूंजती है, तो रोम-रोम रोमांचित हो जाता है. उनके किरदार को अधिक समय दिया जाना चाहिए था. शिवा के किरदार में रणबीर कपूर और ईशा किरदार में आलिया भट्ट ने भी अच्छा काम किया है. उनकी एक्टिंग को बेहतरीन तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन कहानी और किरदार के साथ उन्होंने न्याय किया है. उनकी रियल केमेस्ट्री रील पर भी अच्छी दिखती है. गुरुजी के रोल में अमिताभ बच्चन दमदार लगे हैं. उनको जो लुक दिया गया है, वो भी अच्छा लगता है. जुनून के किरदार में मौनी रॉय भी हैरान करती हैं. ये किरदार उनके करियर के लिए भी फायदेमंद साबित होने वाला है.
फिल्म ब्रह्मास्त्र को तीन कड़ी में पेश किया जाना है. इसके पहले हिस्से 'ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा' में शिवा की कहानी पेश की गई है. अब दूसरे हिस्से में ब्रह्मदेव यानी देव की कहानी दिखाई जाएगी. देव शिवा का पिता है, जिसके पास अग्नि-अस्त्र होता है. अभी तक देव का किरदार करने वाले कलाकार पर से पर्दा नहीं हटाया गया है. हो सकता है कि मेकर्स उसके बहाने कौतूहल बनाए रखना चाहते हों, लेकिन किरदार की कदकाठी देखने के बाद ये जरूर कहा जा सकता है कि जो भी है, वो बहुत ही दमदार कलाकार है. मुझे उसमें अजय देवगन की झलक दिखती है. वैसे देव के किरदार में यदि प्रभास को कास्ट किया गया, तो वो तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं. खैर, कुल मिलाकार 'ब्रह्मास्त्र' का पहला पार्ट बेहतरीन है. इसे सिनेमाघरों में जाकर एक बार जरूर देखना चाहिए. पहला पार्ट जिस दिलचस्प मोड़ पर आकर खत्म हुआ है, उसने अगले पार्ट के लिए बेसब्री बढ़ा दी है.
iChowk.in रेटिंग: 5 में से 4 स्टार
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