चूंकि फिल्म खत्म होती है बताते हुए कि दूसरा पार्ट देवा के नाम से आएगा. #बॉयकॉट ब्रह्मास्त्र को दोष मत दीजिये. दर्शकों ने धत्ता बता दी थी तभी तो बंपर एडवांस बुकिंग हुई और शुक्रवार के तमाम शो हॉउसफुल नजर आए. लेकिन वर्ड ऑफ़ माउथ पब्लिसिटी अब साथ नहीं देगी, तय हो चला है. एक सपाट सी कहानी की कमजोर पटकथा हो और विसंगतियों भरे कमजोर संवाद हों तो व्यूअर्स को क्यों ब्लेम करें ? वैसे वजहें और भी हैं सो फिल्म की नाकामी का ठीकरा ट्रेंडिंग हैशटैग पर फोड़ना मतलब अपनी कमजोरियों से मुख मोड़ना ही होगा. फिल्म के रिलीज़ होने तक निश्चित ही एक फील गुड फैक्टर उत्पन्न हुआ था, परंतु इतना अल्पकालीन रहेगा, किसी ने सोचा था क्या? अब तो दुआ ही कर सकते हैं कि 'ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान' सरीखा डिजास्टर तो ना हो. व्यूअर्स के फर्स्ट हैंड रिएक्शन का निचोड़ निकालें तो कई और सीरियस बातें भी उभर कर आती हैं. प्रथम तो लंबाई जिसने एक तरफ तो फिल्म की जान उम्दा विज़ुअल इफेक्ट्स और शानदार ग्राफ़िक्स के प्रभाव को कमतर कर दिया. साथ ही बोरियत भी भर दी.
एक व्यूअर ने बताया भी कैसे फिल्म को कम से कम 45 मिनट कम कर कसा जा सकता था. शिवा(रणबीर कपूर) और ईशा(आलिया भट्ट) के इंट्रो और रोमांस के शुरुआत के 45 मिनट बखूबी 10 मिनटों में समेटे जा सकते थे. ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गुरूजी (अमिताभ बच्चन) और आर्टिस्ट(नागार्जुन) अवतरित हुए बिना किसी अनावश्यक विस्तार के.
'ईशा मतलब पार्वती और शिवा का साथ पार्वती नहीं देगी, तो कौन देगा. बताना इतना लंबा खिंच गया कि मूल कहानी ही चटख गई. और फिर प्रतिभाशाली अयान मुकर्जी ने एमसीयू फिल्मों से प्रेरणा लेकर किरदारों को पौराणिक और धार्मिक टच देते हुए फिल्म बनाई भी तो इसमें बॉलीवुड...
चूंकि फिल्म खत्म होती है बताते हुए कि दूसरा पार्ट देवा के नाम से आएगा. #बॉयकॉट ब्रह्मास्त्र को दोष मत दीजिये. दर्शकों ने धत्ता बता दी थी तभी तो बंपर एडवांस बुकिंग हुई और शुक्रवार के तमाम शो हॉउसफुल नजर आए. लेकिन वर्ड ऑफ़ माउथ पब्लिसिटी अब साथ नहीं देगी, तय हो चला है. एक सपाट सी कहानी की कमजोर पटकथा हो और विसंगतियों भरे कमजोर संवाद हों तो व्यूअर्स को क्यों ब्लेम करें ? वैसे वजहें और भी हैं सो फिल्म की नाकामी का ठीकरा ट्रेंडिंग हैशटैग पर फोड़ना मतलब अपनी कमजोरियों से मुख मोड़ना ही होगा. फिल्म के रिलीज़ होने तक निश्चित ही एक फील गुड फैक्टर उत्पन्न हुआ था, परंतु इतना अल्पकालीन रहेगा, किसी ने सोचा था क्या? अब तो दुआ ही कर सकते हैं कि 'ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान' सरीखा डिजास्टर तो ना हो. व्यूअर्स के फर्स्ट हैंड रिएक्शन का निचोड़ निकालें तो कई और सीरियस बातें भी उभर कर आती हैं. प्रथम तो लंबाई जिसने एक तरफ तो फिल्म की जान उम्दा विज़ुअल इफेक्ट्स और शानदार ग्राफ़िक्स के प्रभाव को कमतर कर दिया. साथ ही बोरियत भी भर दी.
एक व्यूअर ने बताया भी कैसे फिल्म को कम से कम 45 मिनट कम कर कसा जा सकता था. शिवा(रणबीर कपूर) और ईशा(आलिया भट्ट) के इंट्रो और रोमांस के शुरुआत के 45 मिनट बखूबी 10 मिनटों में समेटे जा सकते थे. ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गुरूजी (अमिताभ बच्चन) और आर्टिस्ट(नागार्जुन) अवतरित हुए बिना किसी अनावश्यक विस्तार के.
'ईशा मतलब पार्वती और शिवा का साथ पार्वती नहीं देगी, तो कौन देगा. बताना इतना लंबा खिंच गया कि मूल कहानी ही चटख गई. और फिर प्रतिभाशाली अयान मुकर्जी ने एमसीयू फिल्मों से प्रेरणा लेकर किरदारों को पौराणिक और धार्मिक टच देते हुए फिल्म बनाई भी तो इसमें बॉलीवुड के 'धर्मा' स्टाइल का मिश्रण क्यों कर दिया? क्या 'करण जौहर' मजबूरी थे? लव एंगल भी फटाफट रखते. फिर गाने भी डाल दिए, माना अच्छे हैं, कर्णप्रिय हैं, आज के दौर में लोग आंखें मूंदकर सुनना पसंद करते हैं, देखना नहीं.
किसी एक व्यूअर को शिवा का गुरूजी के आश्रम में जाने वाला सीक्वेंस भी बहुत लंबा खींचा हुआ लगा. एक ने तो ज्यादा ही बोल दिया कि इतनी आग दिखा दी कि फिल्म ही फूंक गयी. फिर कहानी भारी भरकम कर दी दुनिया भर के शस्त्रों के नामों ने जिनका पता ही नहीं चलता कौन सा कहां से आया, कहां चला गया, किसने चलाया. ब्रह्मास्त्र तीन हिस्सों में है, शिवा के स्वप्न के अनुसार उसे उन्हें जोड़ना था लेकिन पता नहीं किस जुनून में जुड़वा दिया 'जुनून' से.
शिवा के 'शिवा' होने को इतना ज्यादा समझा दिया कि समझ ही नहीं आया. वहीं ईशा को अमीर भर बता दिया, बैकग्राउंड कुछ भी नहीं दिया. रही सही कसर पूरी कर दी खराब संवादों ने. शुरुआत में शिवा के संवाद टपोरी सरीखे हैं जो बाद में एकदम गायब हो जाते है. इंडियन माइथोलॉजी मॉडर्न बना दी तो फिर डायलॉग संस्कृत में रखने की जरुरत ही क्या थी? बेमतलब के कठिन शब्दों की जगह नॉर्मल भाषा होती तो ज़्यादा अच्छा होता.
एक जगह, हालांकि एक ही लाइन, ईशा बंगाली बोलती है, बंगाली एक्सेंट की ही हिंदी उससे बोलवा लेते जैसे नागार्जुन साउथ एक्सेंट में हिंदी बोलते हैं और जमते भी हैं. कुछ भारी विसंगतियां भी नजर आती हैं मसलन सुपर शक्तियों से लैस किरदार बन्दूक क्यों निकाल लेते हैं? ब्रह्मास्त्र के टुकड़ों को इतना साधारण क्यों दिखा दिया, कुछ तो इफेक्ट्स दिए जाने चाहिए थे!
'बात एक्टिंग की क्यों करें? अमिताभ, नागार्जुन, रणबीर, आलिया, मौनी आदि अच्छी एक्टिंग नहीं करेंगे तो कौन करेगा? और अंत में फिल्म सिर्फ सौ करोड़ या दो सौ करोड़ यहां तक कि 300 करोड़ के क्लब में शामिल होने तक को भी अफोर्ड नहीं कर सकती, आखिर लागत ही 400-450 करोड़ की है.
हां, फिल्म अपने ग्राफिक्स की वजह से बच्चों को काफी पसंद आयेगी और वीएफएक्स के शौकीनों को भी भायेगी. शायद बच्चों का 'जूनून' ही फिल्म को बचा ले जाए आखिर बच्चों को दिखाने के लिए पेरेंट्स या परिवार के अन्य किसी बड़े सदस्य को भी तो जाना पड़ेगा. तो बच्चे बन सकते हैं मल्टीप्लाइंग फैक्टर. रणबीर-आलिया फैन क्लब और अमिताभ के फैनों को भी जमेगी. बाकी तो 3D चश्मों ने भी खूब दर्द दिया है, पहले दिन के अनेकों व्यूअर्स खासकर महिलाएं कह रही थी.
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