कहते हैं मेहनत इतनी ख़ामोमशी से करो कि सफलता शोर मचा दे. बॉलीवुड के कूल एक्टर माने जाने वाले आयुष्मान खुराना कुछ ऐसा काम करते हैं. अक्सर उनकी फिल्मों में मनोरंजन के साथ एक खास सामाजिक संदेश होता है. छोटे शहरों और कस्बों की दिलचस्प कहानी में उनके दमदार अभिनय का तड़का मनोरंजन का स्वाद चोखा कर देता है. कुछ ऐसा ही उनकी नई रिलीज फिल्म 'चंडीगढ़ करे आशिकी' में भी देखने को मिल रहा है. फिल्म 'काई पो चे' और 'रॉक ऑऩ' फेम डायरेक्टर अभिषेक कपूर के निर्देशन में बनी इस फिल्म को दिग्गज समीक्षकों द्वारा जबरदस्त साकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है. इसे एक बेहतरीन फिल्म बताया जा रहा है, जो कोरोना काल में आई अबतक की सबसे शानदार फिल्म मानी जा रही है. ये फिल्म रूढ़िवाद की बेड़ियों को तोड़ती नहीं, लेकिन झकझोरने का काम जरूर करती है.
फिल्म 'चंडीगढ़ करे आशिकी' को मशहूर फिल्म समीक्षक तरन आदर्श ने रिफ्रेशिंग बताते हुए 5 में से 4 स्टार दिया है. तरन लिखते हैं, ''बेहद बोल्ड. स्फूर्तिदायक. प्रगतिशील सिनेमा. 'चंडीगढ़ करे आशिकी' मनोरंजन करने के साथ ही रूढ़िवादिता को धता बताकर मजबूत सामाजिक संदेश देती है. इस फिल्म को जरूर देखें. आयुष्मान खुराना को हमेशा से ही लीक से हटकर विषय चुनने के लिए जाना जाता है. इस फिल्म के लिए भी उन्होंने वैसा ही किया है. बेहतरीन विषय चुनने के साथ ही अपनी बहुमुखी प्रतिभा को शानदार प्रदर्शन किया है. आयुष्मान जैसी हिम्मत बहुत अभिनेता दिखा पाते हैं. अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर एक गंभीर मुद्दे को सामने लाने की चुनौती भी बहुत कम लोग स्वीकार कर पाते हैं. वाणी कपूर ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. उनके अभिनय की तारीफ होनी चाहिए.''
कहते हैं मेहनत इतनी ख़ामोमशी से करो कि सफलता शोर मचा दे. बॉलीवुड के कूल एक्टर माने जाने वाले आयुष्मान खुराना कुछ ऐसा काम करते हैं. अक्सर उनकी फिल्मों में मनोरंजन के साथ एक खास सामाजिक संदेश होता है. छोटे शहरों और कस्बों की दिलचस्प कहानी में उनके दमदार अभिनय का तड़का मनोरंजन का स्वाद चोखा कर देता है. कुछ ऐसा ही उनकी नई रिलीज फिल्म 'चंडीगढ़ करे आशिकी' में भी देखने को मिल रहा है. फिल्म 'काई पो चे' और 'रॉक ऑऩ' फेम डायरेक्टर अभिषेक कपूर के निर्देशन में बनी इस फिल्म को दिग्गज समीक्षकों द्वारा जबरदस्त साकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है. इसे एक बेहतरीन फिल्म बताया जा रहा है, जो कोरोना काल में आई अबतक की सबसे शानदार फिल्म मानी जा रही है. ये फिल्म रूढ़िवाद की बेड़ियों को तोड़ती नहीं, लेकिन झकझोरने का काम जरूर करती है.
फिल्म 'चंडीगढ़ करे आशिकी' को मशहूर फिल्म समीक्षक तरन आदर्श ने रिफ्रेशिंग बताते हुए 5 में से 4 स्टार दिया है. तरन लिखते हैं, ''बेहद बोल्ड. स्फूर्तिदायक. प्रगतिशील सिनेमा. 'चंडीगढ़ करे आशिकी' मनोरंजन करने के साथ ही रूढ़िवादिता को धता बताकर मजबूत सामाजिक संदेश देती है. इस फिल्म को जरूर देखें. आयुष्मान खुराना को हमेशा से ही लीक से हटकर विषय चुनने के लिए जाना जाता है. इस फिल्म के लिए भी उन्होंने वैसा ही किया है. बेहतरीन विषय चुनने के साथ ही अपनी बहुमुखी प्रतिभा को शानदार प्रदर्शन किया है. आयुष्मान जैसी हिम्मत बहुत अभिनेता दिखा पाते हैं. अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर एक गंभीर मुद्दे को सामने लाने की चुनौती भी बहुत कम लोग स्वीकार कर पाते हैं. वाणी कपूर ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. उनके अभिनय की तारीफ होनी चाहिए.''
''फिल्म जिस थीम पर आधारित है, उसके लिए हां कहने की हिम्मत हर नायिका में नहीं हो सकती. एक तरह से कहा जाए तो एक एक्टर के रूप में वाणी का 'पुनर्जन्म' हुआ है. 'काईपोचे' और 'रॉक ऑऩ' जैसी फिल्मों के निर्देशन के बाद 'चंडीगढ़ करे आशिकी' में भी अभिषेक कपूर ने अपने बेहतरीन परफॉर्मेंस को दोहराया है. वह बेहद संवेदनशीलता के साथ विषय को संभालते हैं. सेकंड हाफ में छोटी-छोटी गलतियां जरूर हुई हैं, लेकिन फिल्म अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रही है.'' तरन आदर्श की तारीफ बहुत कम फिल्मों और अभिनेताओं को मिलती हैं. ज्यादा दिन नहीं हुए जब उन्होंने सलमान खान की फिल्म 'राधे' की समीक्षा में उसकी जमकर धज्जियां उड़ाई थीं. कहानी से लेकर निर्देशन तक की कमजोरी साफ-साफ बताया था. ऐसे में आयुष्मान और उनकी फिल्म की तारीफ यकीनन सफलता की दुहाई देती है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी हीरेन कोटवानी की समीक्षा में भी फिल्म 'चंडीगढ़ करे आशिकी' की बहुत तारीफ हुई है. हीरेन ने फिल्म को चार स्टार देते हुआ लिखा है, ''निर्देशक अभिषेक कपूर फिल्म में रोमांस दिखाने से ज्यादा सीधे मुद्दे पर आते हैं. उन्होंने फिल्म में भले ही गंभीर मुद्दा उठाया है, लेकिन कई मौके पर हल्की-फुल्की कॉमेडी के साथ इसे मजेदार बनाए रखा है. हां, जहां कहीं भी मुद्दे की बात हुई है, उन्होंने उसे उसी संवेदनशीलता, गंभीरता और परिपक्वता के साथ दिखाया है. फिल्म के विषय से जुड़े हर पक्ष को शामिल किया है. चाहे जानकारी का अभाव हो, सच को समझने-सीखने की बात हो, अपमान पर चर्चा हो, या जिस तरह से हमारा समाज 'समावेशी' होने की बात पर तेजी से बंट रहा है. उन्होंने बड़ी चालाकी से सरल और सहज अंदाज में कॉमेडी के साथ सबकुछ एक माले में पिरो दिया है.
हीरेन की माने तो सुप्रतीक सेन और तुषार परांजपे ने स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स पर बढ़िया काम किया है. कई सीन में यह बेहतरीन है. हर सीन में स्क्रीनप्ले टाइट है. यह दर्शको बांधे रखता है. आयुष्मान खुराना ने एक बार फिर पर्दे पर अपने किरदार को जीने का काम किया है. रोल के लिए उनका ट्रांसफॉर्मेशन और इसके लिए उनकी मेहनत झलकती है. उन्होंने मनु के किरदार को खूब एंजॉय किया है. चंडीगढ़ के लड़के के रोल में आयुष्मान की चाल-ढ़ाल सबकुछ दिल जीत लेती है. वाणी कपूर ने शुरू से अंत तक अपने किरदार में एक फ्लो को मेंटेन रखा है. कई मौकों पर वह बाकी सभी किरदारों पर भारी पड़ती हैं. वाणी और आयुष्मान की केमिस्ट्री भी जबरदस्त है. गौरव शर्मा, गौतम शर्मा, अंजान श्रीवास्तव, कंवलजीत सिंह, तान्या अबरोल और गिरीश धमेजा ने सहायक किरदारों में अपनी मेहनत से रौनक ला दी है.
फिल्म समीक्षक सुभाष के झा ने 'चंडीगढ़ करे आशिकी' को एक अद्भुत फिल्म बताते हुए इसे अब तक की सबसे अच्छी पोस्ट-कोविड हिंदी रिलीज़ बताया है. उनके मुताबिक, यह बिल्कुल साधारण फिल्म है, जिसे हर किसी को देखना चाहिए. यह हमें बिना डराए या उपदेश दिए सहिष्णुता और स्वीकृति के बारे में बताती है. निर्देशक अभिषेक कपूर ने अतीत में 'रॉक ऑन' (एक अभिनेता और गायक के रूप में फरहान अख्तर को पेश करने वाली फिल्म), 'काईपोचे' (जिसने सुशांत सिंह राजपूत को एक फिल्म स्टार बनाया) में जिस तरह से अपने बेहतरीन काम से दिल जीता था, उसी तरह उन्होंने इस फिल्म में भी शानदार प्रदर्शन किया है. हालांकि, फिल्म का टाइटल उसकी कहानी पर फिट नहीं बैठता, जिसे सुप्रतीक सेन और तुषार परांजपे ने लिखा है. लेकिन कहानी कई जगह दर्शकों को हंसने और सिसकने पर मजबूर करती है.
बॉलीवुड हंगामा ने फिल्म 'चंडीगढ़ करे आशिकी' को 5 में से 4.5 स्टार देते हुए लिखा है कि आयुष्मान खुराना और वाणी कपूर स्टारर फिल्म एक बोल्ड और वर्जित विषय को संवेदनशील तरीके से पेश करती है, जिसमें भावनाओं का भरपूर मिश्रण है. अभिषेक कपूर, सुप्रतीक सेन और तुषार परांजपे की कहानी प्रगतिशील, ताज़ा और समय की आवश्यकता है, क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण संदेश देती है. सुप्रतीक सेन और तुषार परांजपे की पटकथा बेहद मनोरंजक है. हालांकि सेकेंड हाफ में लेखन और मजबूत हो सकता था. अभिषेक कपूर का डायेक्शन बेहद शॉर्प है. वह फिल्म को कामर्शियल तरीके से पेश करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि फिल्म मुख्यधारा में ही रहे, हालांकि विषय बहुत बोल्ड है. प्रेम-प्रसंग के दृश्य उत्तेजक तो हैं, लेकिन बहुत अधिक बोल्ड भी नहीं हैं. क्लाइमेक्स नेल-बाइटिंग है और दर्शकों को पसंद आएगा.
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