'I Will See You In The Court. मैं तुम्हें कोर्ट में देख लूंगा'...अक्सर दो लोगों के बीच किसी मुद्दे पर होने वाले झगड़ों के बीच आपने ये लाइन सुनी होगी. यह लाइन धमकी भरी जरूर है, लेकिन इसके साथ ही ये न्यायालय और न्याय व्यवस्था के प्रति लोगों के विश्वास को भी प्रकट करती है. जब इंसान हर तरफ से, हर तरह से, मजबूर हो जाता है, तो इंसाफ के लिए कोर्ट की शरण में जाता है. वैसे जल्दी कोई कानूनी पचड़ों में नहीं फंसना चाहता है. आम आदमी के लिए तो कोर्ट की कार्यवाही, वकीलों के दांव-पेंच और जज के बजते हथौड़े किसी बुरे सपने की तरह होते हैं, लेकिन यही अदालत जब रूपहले पर्दे पर लगती है, तो दर्शक रोमांचित हो उठते हैं.
बॉलीवुड के लिए कोर्टरूम ड्रामा एक सक्सेफुल सब्जेक्ट रहा है. साल 1960 में बनी बीआर चोपडा की फिल्म 'कानून' से लेकर कल रिलीज हुई रूमी जाफरी की फिल्म 'चेहरे' तक की कामयाबी यह बताती है कि कोर्ट रूम ड्रामा दर्शकों को लुभाते हैं. फिल्म 'पिंक' और 'बदला' में काले कोट में नजर आने वाले अमिताभ बच्चन एक बार फिर 'चेहरे' में उसी भूमिका में नजर आ रहे हैं. उनका साथ इमरान हाशमी, अन्नू कपूर और रघुवीर यादव ने मजबूती से निभाया है. हालांकि, कलाकारों की दमदार परफॉर्मेंस के बावजूद कमजोर कहानी की वजह से फिल्म समीक्षकों को उतनी पसंद नहीं आई है, लेकिन दर्शक इस सस्पेंस-थ्रिलर-ड्रामा की सराहना करते हुए नजर आ रहे हैं.
कोर्टरूम ड्रामा बीआर चोपडा की फिल्म 'कानून' के बाद फिल्मों में एक जरूरी सीन के रूप में शामिल हो गया. साल 1983 में आई अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी और रजनीकांत की फिल्म 'अंधा कानून' की शानदार सफलता के बाद तो 'कानून' और 'अदालत' जैसे शब्द इतने मशहूर हो गए कि सीन...
'I Will See You In The Court. मैं तुम्हें कोर्ट में देख लूंगा'...अक्सर दो लोगों के बीच किसी मुद्दे पर होने वाले झगड़ों के बीच आपने ये लाइन सुनी होगी. यह लाइन धमकी भरी जरूर है, लेकिन इसके साथ ही ये न्यायालय और न्याय व्यवस्था के प्रति लोगों के विश्वास को भी प्रकट करती है. जब इंसान हर तरफ से, हर तरह से, मजबूर हो जाता है, तो इंसाफ के लिए कोर्ट की शरण में जाता है. वैसे जल्दी कोई कानूनी पचड़ों में नहीं फंसना चाहता है. आम आदमी के लिए तो कोर्ट की कार्यवाही, वकीलों के दांव-पेंच और जज के बजते हथौड़े किसी बुरे सपने की तरह होते हैं, लेकिन यही अदालत जब रूपहले पर्दे पर लगती है, तो दर्शक रोमांचित हो उठते हैं.
बॉलीवुड के लिए कोर्टरूम ड्रामा एक सक्सेफुल सब्जेक्ट रहा है. साल 1960 में बनी बीआर चोपडा की फिल्म 'कानून' से लेकर कल रिलीज हुई रूमी जाफरी की फिल्म 'चेहरे' तक की कामयाबी यह बताती है कि कोर्ट रूम ड्रामा दर्शकों को लुभाते हैं. फिल्म 'पिंक' और 'बदला' में काले कोट में नजर आने वाले अमिताभ बच्चन एक बार फिर 'चेहरे' में उसी भूमिका में नजर आ रहे हैं. उनका साथ इमरान हाशमी, अन्नू कपूर और रघुवीर यादव ने मजबूती से निभाया है. हालांकि, कलाकारों की दमदार परफॉर्मेंस के बावजूद कमजोर कहानी की वजह से फिल्म समीक्षकों को उतनी पसंद नहीं आई है, लेकिन दर्शक इस सस्पेंस-थ्रिलर-ड्रामा की सराहना करते हुए नजर आ रहे हैं.
कोर्टरूम ड्रामा बीआर चोपडा की फिल्म 'कानून' के बाद फिल्मों में एक जरूरी सीन के रूप में शामिल हो गया. साल 1983 में आई अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी और रजनीकांत की फिल्म 'अंधा कानून' की शानदार सफलता के बाद तो 'कानून' और 'अदालत' जैसे शब्द इतने मशहूर हो गए कि सीन तो छोड़िए फिल्मों के नाम पर इस पर रखे जाने लगे. 'आज का अंधा कानून', 'फर्ज और कानून', 'कानून अपना-अपना', 'कानून क्या करेगा', 'कायदा-कानून' और 'कुदरत का कानून' जैसी फिल्में एक के बाद एक रिलीज होने लगी. एक जैसे विषय पर इतनी सारी फिल्में रिलीज होने पर बॉक्स ऑफिस पर इसका असर नकारात्मक पड़ा और फिल्में फ्लॉप होने लगीं.
इसी बीच साल 1993 में रिलीज हुई राजकुमार संतोषी की फिल्म 'दामिनी' के जरिए कानून एक बार फिर फिल्मों के केंद्र में आ गया. इस फिल्म की सफलता लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी. इसके डायलॉग जुबान पर आ गए. कोर्ट रूम ड्रामा एक बार फिर ट्रेंड में आ गया. इसकी बड़ी वजह ये भी है कि कोर्ट में होने वाली बहस, वकीलों के तर्क, गवाहों की चालाकी और जज की पैनी नजर दिलचस्पी पैदा कर देती है. उसमें भी जब कठघरे में खुद हीरो खड़ा होकर अपनी पैरवी कर रहा हो, तो भला कौन उसे हारता देखना चाहेगा? हीरो के बहाने दर्शक खुद को जीतता हुआ देखना चाहता है. कानूनी पेचीदगियों से नाराज दर्शकों को हीरो की यह जीत सुकून पहुंचाती है. यही सुकून ऐसी फिल्मों की कामयाबी का राज है. वैसे जब तक कानून में कमियां मौजूद हैं, तब तक दर्शक फिल्मी कोर्ट में अपनी जीत पर मुस्कुराते रहेंगे.
कोर्टरूम ड्रामा पर आधारित 5 मशहूर फिल्में...
1. फिल्म का नाम- मुल्क
कब रिलीज हुई- 2018
सभी मुस्लिम आतंकवादी नहीं होते. इस लाइन को अंडरलाइन करते हुए बनी अनुभव सिन्हा की 'मुल्क' भी इस बात को जोर-शोर से उठाती है. इसके साथ समाज, कानून और न्यायव्यवस्था से जुड़ी कई बातें और भी करती है. अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में तापसी पन्नू, ऋषि कपूर, प्रतीक बब्बर, नीना गुप्ता, रजत कपूर, मनोज पाहवा और आशुतोष राणा अहम भूमिका में हैं. फ़िल्म 'मुल्क एक ऐसी कोर्ट रूम ड्रामा फ़िल्म है, जिसमें एक मुस्लिम परिवार की अपने हक़ के लिए लड़ाई दिखाई गई है. फ़िल्म में ऋषि कपूर और तापसी पन्नू मुख्य किरदारों में हैं. तापसी और आशुतोष वकील के रोल में हैं, जो अदालत में बहस करते हुए दिखाई देते हैं.
2. फिल्म का नाम- सेक्शन 375
कब रिलीज हुई- 2019
अजय बहल द्वारा निर्देशित फिल्म 'आर्टिकल 375' की कहानी बलात्कार के एक केस के इर्द-गिर्द घूमती है. इस केस में सारे सुबूत आरोपी के खिलाफ होते हैं, लेकिन हकीकत ब्लैक एंड व्हाइट के बीच में ‘ग्रे एरिया' में होती है. फिल्म में कोर्ट की कार्यवाही बिना किसी फालतू लाग लपेट के दिखाने की कोशिश की गई है. ये फिल्म बलात्कार जैसे घृणित अपराध से जुड़े एक अन्य पक्ष को भी सामने लाती है. फिल्म में अक्षय खन्ना और ऋचा चड्ढा ने वकील की भूमिका बेहद प्रभावी ढंग से निभाई हैं.
3. फिल्म का नाम- पिंक
कब रिलीज हुई- 2016
'नो... मीन्स नो'...फिल्म 'पिंक' में वकील की भूमिका निभा रहे अमिताभ बच्चन का ये डायलॉग बहुत मशहूर हुआ था. यह फिल्म बलात्कार, छेड़खानी और शारीरिक शोषण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बनाई गई थी. इसमें बिग बी के अलावा तापसी पन्नू, एंड्रीया टैरीयांग और कीर्ति कुल्हारी भी अहम भूमिका में थे. इस फिल्म में समाज की उस पुरुषवादी मानसिकता पर चोट की गई थी, जो किसी महिला के चरित्र को उसके कपड़ों या जीवनशैली से तय करता है. इसके लिए अमिताभ बच्चन को बेस्ट एक्टर का अवार्ड भी मिला था. फिल्म पूरी तरह कोर्ट ड्रामा पर आधारित थी. इसमें अमिताभ बच्चन वकील थे और झूठे केस में तीन लड़कियों को बचाते हैं.
4. फिल्म का नाम- जॉली LLB
कब रिलीज हुई- 2017
फिल्म जॉली एलएलबी के दो सीक्वल है. पहली फिल्म साल 2013 में रिलीज हुई थी. इसमें अरशद वारसी और बोमन ईरानी प्रमुख भूमिका में थे. दूसरे पार्ट में अरशद वारसी के बजाय अक्षय कुमार और बोमन ईरानी के बजाय अन्नू कपूर को लिया गया था. लेकिन जज त्रिपाठी के रूप में सौरभ शुक्ला का जादू दोनों में ही बरकरार था. सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित इस कॉमेडी कोर्ट रूम ड्रामा के जरिए एक गंभीर संदेश भी दिया गया है. जॉली LLB 2 में दिखाया गया है कि एक वकील कैसे एक फर्जी एनकाउंटर केस जुड़कर उसका खुलासा करता है. इसमें न्यायालयों में लंबित पड़े लाखों मुक़दमों के संजीदा मुददे को ह्यूमर के साथ पेश किया गया है.
5. फिल्म का नाम- दामिनी
कब रिलीज हुई- 1993
'तारीख पे तारीख...तारीख पे तारीख…तारीख पे तारीख और तारीख पे तारीख मिलती रही है…लेकिन इंसाफ़ नहीं मिला माई लॉर्ड इंसाफ़ नहीं मिला…मिली है तो सिर्फ़ ये तारीख'...फिल्म दामिनी का ये डायलॉग अमर हो गया. जब भी किसी केस में कोई परेशान होता है, तो यही डायलॉग बोलता है. राजकुमार संतोषी की ये फिल्म रियल कोर्ट से अलग कुछ नाटकीयता लिए हुए था, लेकिन फिर भी इसके संवेदनशील संवादों की वजह से दर्शकों ने इस फिल्म को खूब पसंद किया. फिल्म एक घरेलू नौकरानी के रेप के मामले के इर्द-गिर्द घूमती है. इस घटना की मुख्य गवाह ‘दामिनी' यानी मीनाक्षी शेषाद्रि को किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. इसमें सनी देओल और अमरीश पुरी वकील की भूमिका में है. अदालत में दोनों के बीच जब जिरह होती है, तो लोग सांस थामे उनकी बातें सुनते रहते हैं. यह फिल्म बहुत पॉपुलर हुई थी.
फिल्म चेहरे का ट्रेलर...
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