अलग-अलग पहचान से शर्मिंदा रहेंगे चेहरे,
ज़िस्म चले जाएंगे ज़िंदा रहेंगे चेहरे!
लेकिन बॉलीवुड कभी भी शर्मिंदा नहीं होता है, फ़िल्म कॉपी करने में. दूसरे लोगों की कहानी चुराने में और दर्शकों को निराश करने में भी. आज बुद्धि भ्रष्ट थी तो Amazon Prime Video पर एक फ़िल्म जिसमें अमिताभ बच्चन दिखे तो सोचा कि इसे देख लेती हूं. फ़िल्म का नाम था ‘चेहरे.’ अमिताभ बच्चन के साथ इसमें अनु कपूर और इमरान हाशमी भी थे. तो क्रेडिबिलिटी ठीक-ठाक लगी. सोचा देखा जाए कि क्या है इसमें. फ़िल्म के पहले ही दस मिनट में पता चल गया कि ये कॉपी है एक जर्मन नॉवल A Dangerous Game की और फ़िल्म के चोर डायरेक्टर रूमी जाफ़री ने कहीं भी क्रेडिट नहीं दिया है इस नॉवल को. दिमाग़ तो इसी से भनाया था लेकिन फिर भी अमिताभ बच्चन की वजह से फ़िल्म देखने की सोची.
पूरी फ़िल्म में अमिताभ बच्चन ‘पिंक’ और ‘बदला’ जैसी फ़िल्मों में निभाए अपने किरदार को रिपीट करते नज़र आयें. अब कम से कम अमिताभ बच्चन से तो हम ये उम्मीद नहीं करते हैं. फ़िल्म के लास्ट सीन में जब वो दलील पेश कर रहें होते हैं. तब वो सिर्फ़ बोल रहें होते हैं. उनकी आंखें भाव शून्य होती हैं. ऐसा लग रहा है कि पैसे मिल रहे हैं तो बस बोल दो और ख़त्म कर दो. ऐक्टिंग तो कहीं से भी नहीं अच्छी कही उनकी. एक मुर्दा कैसी ऐक्टिंग करेगा अमिताभ बिलकुल वैसे ही नज़र आएं हैं इस फ़िल्म में.
अनु कपूर ‘विकी डोनर’ से बाहर ही नहीं निकल पाए आज तक और इमरान हाशमी से क्या उम्मीद करें. एक्ट्रेस के नाम पर इस फ़िल्म में रिया चक्रवर्ती हैं जिनसे ऐक्टिंग की कोई उम्मीद ही नहीं है और एक दूसरी एक्ट्रेस क्रिस्टल...
अलग-अलग पहचान से शर्मिंदा रहेंगे चेहरे,
ज़िस्म चले जाएंगे ज़िंदा रहेंगे चेहरे!
लेकिन बॉलीवुड कभी भी शर्मिंदा नहीं होता है, फ़िल्म कॉपी करने में. दूसरे लोगों की कहानी चुराने में और दर्शकों को निराश करने में भी. आज बुद्धि भ्रष्ट थी तो Amazon Prime Video पर एक फ़िल्म जिसमें अमिताभ बच्चन दिखे तो सोचा कि इसे देख लेती हूं. फ़िल्म का नाम था ‘चेहरे.’ अमिताभ बच्चन के साथ इसमें अनु कपूर और इमरान हाशमी भी थे. तो क्रेडिबिलिटी ठीक-ठाक लगी. सोचा देखा जाए कि क्या है इसमें. फ़िल्म के पहले ही दस मिनट में पता चल गया कि ये कॉपी है एक जर्मन नॉवल A Dangerous Game की और फ़िल्म के चोर डायरेक्टर रूमी जाफ़री ने कहीं भी क्रेडिट नहीं दिया है इस नॉवल को. दिमाग़ तो इसी से भनाया था लेकिन फिर भी अमिताभ बच्चन की वजह से फ़िल्म देखने की सोची.
पूरी फ़िल्म में अमिताभ बच्चन ‘पिंक’ और ‘बदला’ जैसी फ़िल्मों में निभाए अपने किरदार को रिपीट करते नज़र आयें. अब कम से कम अमिताभ बच्चन से तो हम ये उम्मीद नहीं करते हैं. फ़िल्म के लास्ट सीन में जब वो दलील पेश कर रहें होते हैं. तब वो सिर्फ़ बोल रहें होते हैं. उनकी आंखें भाव शून्य होती हैं. ऐसा लग रहा है कि पैसे मिल रहे हैं तो बस बोल दो और ख़त्म कर दो. ऐक्टिंग तो कहीं से भी नहीं अच्छी कही उनकी. एक मुर्दा कैसी ऐक्टिंग करेगा अमिताभ बिलकुल वैसे ही नज़र आएं हैं इस फ़िल्म में.
अनु कपूर ‘विकी डोनर’ से बाहर ही नहीं निकल पाए आज तक और इमरान हाशमी से क्या उम्मीद करें. एक्ट्रेस के नाम पर इस फ़िल्म में रिया चक्रवर्ती हैं जिनसे ऐक्टिंग की कोई उम्मीद ही नहीं है और एक दूसरी एक्ट्रेस क्रिस्टल डिसूज़ा हैं जिनको जितना हिस्सा मिला उसे वो ढंग से निभा ले गयी हैं. ख़ैर!
फ़िल्म की कहानी रिटायर जज और वक़ील के इर्द-गिर्द घूमती है. जो अपने घर में अपनी अदालत लगाते हैं और इसे गेम समझ कर अजनबी लोग खेलते हैं. ये अजनबी कोई भी हो सकता है. जो राह भटक कर इनके घर तक पहुंच जाए. फिर गुनाह साबित हो जाने पर ये उन्हें सच में फांसी पर टांग देते हैं. इनके पास अपना एक जल्लाद भी है. इसके आगे की कहानी जानने में दिलचस्पी हो तो फ़िल्म देख लीजिएगा. वैसे नहीं भी देखिएगा तो कुछ अच्छा नहीं मिस कर देंगे.
मैं अगर नहीं भी लिखती इस फ़िल्म के बारे में तो चल ही जाता लेकिन लिखा इसलिए है कि जब मैं बोलती हूं कि हिंदी फ़िल्में मुझे पसंद नहीं हैं क्योंकि वो कॉपी होती हैं, तो लोग अफ़ेंड हो जाते हैं. उनको लगता है कि मैं बॉलीवुड को नीचा दिखाने के लिए ऐसा बोलती हूं लेकिन जब मैं अपना वक़्त किसी फ़िल्म को देखने में लगा रही हूं तो मैं ओरिजनल क्यों न देखूँ जो फ़ेक-घटिया कॉपी देखूं.
शुक्रिया रूमी इतनी बकवास और घटिया फ़िल्म बनाने के लिए. भविष्य में अगर कॉपी कीजिएगा किसी नॉवल को तो क्रेडिट ज़रूर दीजिएगा. फ़िलहाल के लिए तो आप डायरेक्टर नहीं चोर हैं मेरे लिए. फ़िलहाल तो अब आने वाले कई महीने तक आपकी चोरी की वजह से और हिंदी फ़िल्में नहीं देखी जाएंगी.
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