'छपाक', एक शब्द है, लेकिन 'ध्वन्यात्मक' है. यह एक ऐसी आवाज जो किसी तरल पदार्थ के फेंकने के बाद सुनाई देती है. हर तरल पदार्थ पानी नहीं होता है. तेजाब भी हो सकता है. जरा सोचिए यदि वो तरल पदार्थ एक जमाने में दुकानों पर खुलेआम बिकने वाला तेजाब ही हो और उसके निशाने पर 'न' कह पाने की हिम्मत रखने वाली कोई महिला या लड़की हो, तो 'छपाक' किसी की दुनिया किस कदर बदसूरत बना सकता है. तेजाब सिर्फ किसी एक महिला या लड़की का चेहरा ही खराब नहीं करता, बल्कि अंदर तक उसे जलाकर राख कर देता है. एसिड अटैक की शिकार ऐसी ही एक महिला लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी पर आधारित फिल्म 'छपाक' दो साल पहले रिलीज हुई थी. इसमें दीपिका पादुकोण और विक्रांत मेसी लीडर रोल में हैं. मेघना गुलजार के निर्देशन में बनी ये फिल्म बहुत ज्यादा चर्चा में रही थी.
फिल्म 'छपाक' (Chhapaak Movie) की कहानी एक एसिड अटैक पीड़िता मालती (दीपिका पादुकोण) की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है. मालती मेहनती है. काम करना जानती है. लेकिन दुनिया की नजर में उसके बदसूरत चेहरे की वजह से कोई उसे नौकरी नहीं देता. उसका चेहरा एसिड अटैक की वजह से खराब हो चुका है. इसी बीच उसकी मुलाकात एक पत्रकार अमोल (विक्रांत मेसी) से होती है, जो सोशल सर्विस करने के लिए एक एनजीओ भी चलाता है. उसका एनजीओ एसिड अटैक पीड़िताओं का इलाज कराता है. मालती इस एनजीओ से जुड़ जाती है. इसके बाद उसके ऊपर तेजाब फेंकने के आरोपियों को सजा दिलाने से लेकर एसिड बैन कराने की लड़ाई शुरू कर देती है. तमाम उतार चढ़ाव के बाद आखिरकार मालती और अमोल की जीत होती है. इस केस की वजह से मालती देशभर में मशहूर हो जाती है. बाद में मालती और अमोल शादी कर लेते हैं.
इस फिल्म के कई सीन...
'छपाक', एक शब्द है, लेकिन 'ध्वन्यात्मक' है. यह एक ऐसी आवाज जो किसी तरल पदार्थ के फेंकने के बाद सुनाई देती है. हर तरल पदार्थ पानी नहीं होता है. तेजाब भी हो सकता है. जरा सोचिए यदि वो तरल पदार्थ एक जमाने में दुकानों पर खुलेआम बिकने वाला तेजाब ही हो और उसके निशाने पर 'न' कह पाने की हिम्मत रखने वाली कोई महिला या लड़की हो, तो 'छपाक' किसी की दुनिया किस कदर बदसूरत बना सकता है. तेजाब सिर्फ किसी एक महिला या लड़की का चेहरा ही खराब नहीं करता, बल्कि अंदर तक उसे जलाकर राख कर देता है. एसिड अटैक की शिकार ऐसी ही एक महिला लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी पर आधारित फिल्म 'छपाक' दो साल पहले रिलीज हुई थी. इसमें दीपिका पादुकोण और विक्रांत मेसी लीडर रोल में हैं. मेघना गुलजार के निर्देशन में बनी ये फिल्म बहुत ज्यादा चर्चा में रही थी.
फिल्म 'छपाक' (Chhapaak Movie) की कहानी एक एसिड अटैक पीड़िता मालती (दीपिका पादुकोण) की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है. मालती मेहनती है. काम करना जानती है. लेकिन दुनिया की नजर में उसके बदसूरत चेहरे की वजह से कोई उसे नौकरी नहीं देता. उसका चेहरा एसिड अटैक की वजह से खराब हो चुका है. इसी बीच उसकी मुलाकात एक पत्रकार अमोल (विक्रांत मेसी) से होती है, जो सोशल सर्विस करने के लिए एक एनजीओ भी चलाता है. उसका एनजीओ एसिड अटैक पीड़िताओं का इलाज कराता है. मालती इस एनजीओ से जुड़ जाती है. इसके बाद उसके ऊपर तेजाब फेंकने के आरोपियों को सजा दिलाने से लेकर एसिड बैन कराने की लड़ाई शुरू कर देती है. तमाम उतार चढ़ाव के बाद आखिरकार मालती और अमोल की जीत होती है. इस केस की वजह से मालती देशभर में मशहूर हो जाती है. बाद में मालती और अमोल शादी कर लेते हैं.
इस फिल्म के कई सीन ऐसे जिसे देखने के बाद पूरा शरीर सिहर उठता है. जैसे जब मालती पर एसिड अटैक होता है, उस वक्त दर्द में उसे चीखता देख आंखों से आंसू निकल आते हैं. उसी तरह अस्पताल में शुरूआती ट्रीटमेंट के बाद जब उसके चेहरे से पट्टी हटाई जाती है और वो अपना चेहरा आइने में देखकर चीखती है, तो कलेजा फट जाता है. इसी तरह फिल्म के डायलॉग भी अंदर तक असर करने वाले हैं. जैसे ''नाक नहीं है कान नहीं हैं झुमके कहां लटकाउंगी'' ये डायलॉग अंदर तक चीर देता है. और फिर वो बात जो हर एसिड अटैक पीड़िता के दिल से निकली, ''कितना अच्छा होता अगर ऐसिड बिकता ही नहीं, मिलता ही नहीं तो फिंकता भी नहीं''.
आइए ऐसे ही पांच डायलॉग जानते हैं, जो आपका दिल झकझोर देंगे...
डायलॉग 1. नाक नहीं है कान नहीं हैं झुमके कहां लटकाउंगी
फिल्म छपाक की नायिक मालती अपने उपर एसिड अटैक होने के बाद ये बात कहती है. इस डायलॉग में एक पीड़िता का वो दर्द छिपा है, जो उसकी मजबूरी बयां करता है. एसिड अटैक के बाद उसका चेहरा पूरी तरह बिगड़ चुका है. उसके नाक-कान गल चुके हैं. ऐसे में वो झुमका पहनना चाहे भी तो कैसे पहने? एक सामान्य लड़की की तरह अपनी जिंदगी जीने की चाहत रखने वाली मालती के जीवन में ये दिन भी आ गया, जो उसे हर पल निराश करता है.
डायलॉग 2. कितना अच्छा होता अगर ऐसिड बिकता ही नहीं, मिलता ही नहीं तो फिंकता भी नहीं
मालती अपने मित्र अमोल से ये बात कहती है कि ऐसिड को बिकना ही नहीं चाहिए. इस डायलॉग के जरिए सरकार और कानून-व्यवस्था पर करारा प्रहार किया है. सच बात है कि हम अपराध होने के बाद अपराधियों को सजा दिलाने पर पूरा फोकस रखते हैं. यदि अपराध होने से पहले ही उसकी जड़ खत्म कर दें, तो किसी को कोई समस्या नहीं होगी. यदि तेजाब खुलेआम नहीं बिकता, तो उसे खरीद कर लड़कियों के उपर फेंकने वाला कैसे फेंक पाता?
डायलॉग 3. उन्होंने मेरी सूरत बदली है, मेरा मन नहीं
मालती का ये डायलॉग उसकी हिम्मत, जज्बात और साहस की कहानी कहता है. वो कहती है कि अपराधियों ने भले ही उसकी सूरत बदल दी है, लेकिन उसका मन नहीं बदला है. वो बाहर से दुनिया की नजर में बदल चुकी है, लेकिन अंदर से वही मजबूत मालती है, जो अपना जीवन एक सामान्य लड़की की तरह जीना चाहती थी. उसकी हिम्मत की वजह से ही आज देश में एसिड को लेकर कानून बनाया जा सका है. अपराधियों के लिए कठोर सजा का प्रावधान हुआ है.
डायलॉग 4. अटैक उन्हीं लड़कियों पर हुआ जो या तो पढ़ना चाहती थी या बढ़ना चाहती थी
मालती का ये डायलॉग समाज के उन लोगों का चेहरा बेनकाब करता है, जो महिलाओं और लड़कियों को केवल उपभोग की वस्तु समझते हैं. ऐसे लोग उनकी पढ़ाई और तरक्की के खिलाफ रहते हैं. ऐसे लोगों को उनकी ना सुनने की ताकत नहीं होती है. तभी तो जब उन लोगों के मन की लड़कियां या महिलाएं नहीं करती, तो वो अपनी ताकत दिखाने के लिए एसिड अटैक जैसे जघन्य अपराध करते हैं. समाज में ऐसी घटनाओं के सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं.
डायलॉग 5. सेशन कोर्ट के बाद हाईकोर्ट, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट. बहुत साल चलने वाला है ये केस. शोर की आदत डाल लो.
अमोल का ये डायलॉग हमारी न्याय व्यवस्था की पोल खोलता है. फिल्म दामिनी का भी ये डायलॉग इस संदर्भ में बहुत मशहूर हुआ था, 'तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख मिलती रही है, लेकिन इंसाफ नहीं मिला माय लॉड, इंसाफ नहीं मिला, मिली है तो सिर्फ ये तारीख'. आम तौर पर कोई भी केस लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबे समय तक चलता रहता है. ऐसे में इंसाफ मिलने में अक्सर देर हो जाती है.
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