दरअसल नेटफ्लिक्स को अपनी क्लास के व्यूअर्स की बुभुक्षा शांत करनी थी. 'सेक्रेड गेम्स' सरीखा कोई हिंदी फिक्शन बन नहीं पा रहा था तो उन्हें संभावनाएं दिखी स्पैनिश ड्रामा सीरीज 'एलीट' में. सो लगा दी टीम इसके भारतीयकरण करने में.नतीज़न प्रोडक्ट के रूप में ओटीटी कल्चर के लिहाज से नेटफ्लिक्स क्लास के ख़ास व्यूअर्स के बिंज वॉच के लिए एक मनोरंजक मर्डर मिस्ट्री 'क्लास' स्ट्रीम हो रही है, जिसकी भारतीयता के हिसाब से जितनी भी निंदा की जाए कम है. फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन शगल है आजकल, पोलिटिकल क्लास का कारगर हिटजॉब जो है. देखना दिलचस्प होगा दिल्ली सरकार का रुख इस वेब सीरीज को लेकर क्या रहता है ? क्या दिल्ली के हायर स्टूडेंट्स इसी 'क्लास' के हैं जैसा क्लास बताती है ? सामान्य रूप से तो ऐसा माहौल हरगिज नहीं है.
कम से कम आज की तारीख में पेरेंट्स को तो किसी भी एंगल से सीरीज रुचिकर नहीं लगेगी, वितृष्णा ही होगी उन्हें. खैर. हम कहां उलझ गए ? समीक्षा भर करनी है हमें, ज्ञान क्यों बांटें ? सो कर्तव्य निभाने के पहले एक सवाल - वर्तमान की छोड़ भी दें तो क्या भावी संभ्रांत आधुनिक भारत में भी हम ऐसे हाई स्कूलों की अपेक्षा कर सकते हैं जहां तमाम सामग्रियां, मसलन ड्रग्स,सेक्स, विकृत सोशल मीडिया, मेंटल हेल्थ बैटल्स, डर्टी फॅमिली सीक्रेट्स, अंतर धार्मिक जातीय और समलैंगिक संबंधों के मसले आम हों ? यदि नहीं तो?
दिल्ली का हाई फाई प्राइवेट स्कूल है, पढ़ने वाले बिगड़ैल अमीरजादे स्टूडेंट्स हैं, तीन कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के वंचित वर्ग के स्टूडेंट्स को भी दाखिला मिलने का संयोग बनाया गया है और फिर समीकरण बनते बिगड़ते हैं कुछ राज के और घटनाक्रम के जिनकी परिणति होती है एक मर्डर में. चूंकि मर्डर हुआ...
दरअसल नेटफ्लिक्स को अपनी क्लास के व्यूअर्स की बुभुक्षा शांत करनी थी. 'सेक्रेड गेम्स' सरीखा कोई हिंदी फिक्शन बन नहीं पा रहा था तो उन्हें संभावनाएं दिखी स्पैनिश ड्रामा सीरीज 'एलीट' में. सो लगा दी टीम इसके भारतीयकरण करने में.नतीज़न प्रोडक्ट के रूप में ओटीटी कल्चर के लिहाज से नेटफ्लिक्स क्लास के ख़ास व्यूअर्स के बिंज वॉच के लिए एक मनोरंजक मर्डर मिस्ट्री 'क्लास' स्ट्रीम हो रही है, जिसकी भारतीयता के हिसाब से जितनी भी निंदा की जाए कम है. फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन शगल है आजकल, पोलिटिकल क्लास का कारगर हिटजॉब जो है. देखना दिलचस्प होगा दिल्ली सरकार का रुख इस वेब सीरीज को लेकर क्या रहता है ? क्या दिल्ली के हायर स्टूडेंट्स इसी 'क्लास' के हैं जैसा क्लास बताती है ? सामान्य रूप से तो ऐसा माहौल हरगिज नहीं है.
कम से कम आज की तारीख में पेरेंट्स को तो किसी भी एंगल से सीरीज रुचिकर नहीं लगेगी, वितृष्णा ही होगी उन्हें. खैर. हम कहां उलझ गए ? समीक्षा भर करनी है हमें, ज्ञान क्यों बांटें ? सो कर्तव्य निभाने के पहले एक सवाल - वर्तमान की छोड़ भी दें तो क्या भावी संभ्रांत आधुनिक भारत में भी हम ऐसे हाई स्कूलों की अपेक्षा कर सकते हैं जहां तमाम सामग्रियां, मसलन ड्रग्स,सेक्स, विकृत सोशल मीडिया, मेंटल हेल्थ बैटल्स, डर्टी फॅमिली सीक्रेट्स, अंतर धार्मिक जातीय और समलैंगिक संबंधों के मसले आम हों ? यदि नहीं तो?
दिल्ली का हाई फाई प्राइवेट स्कूल है, पढ़ने वाले बिगड़ैल अमीरजादे स्टूडेंट्स हैं, तीन कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के वंचित वर्ग के स्टूडेंट्स को भी दाखिला मिलने का संयोग बनाया गया है और फिर समीकरण बनते बिगड़ते हैं कुछ राज के और घटनाक्रम के जिनकी परिणति होती है एक मर्डर में. चूंकि मर्डर हुआ है, पुलिस इन्वेस्टीगेशन होता है जिसमें बहुत कुछ उलझा हुआ नजर आता है यानी हुआ है मिस्टीरियस मर्डर.
क्लास स्ट्रगल की कहानी कहने के लिए क्लास(स्कूल की) को एक्सप्लॉइट किया गया है, तमाम एडल्टनुमा 'सामग्रियों' से जुड़े किरदार टीनएजर्स जो दिखाने थे फ्रेश एरोटिज़्म के नाम पर. फिर सीरीज किसी वर्ग विशेष की हिमायती बनती भी नहीं दिखती, कहने का मतलब कोई हाई मोरल ग्राउंड ना तो लिया है और ना ही मोरलाइज़िंग ही होती है. और आगे चलकर आर्थिक आधार पर सामाजिक व्यवस्था के तार तार होने की अल्ट्रा मॉडर्न कहानी एक थ्रिलर में बदल जाती है.
सीरीज में आठ लंबे लंबे एपिसोड्स हैं, आखिर यौन कुंठाओं को विस्तारपूर्वक किरदारों में ठूसना जो था. वरना तो तक़रीबन आठ घंटे अधिकतम डेढ़ घंटे में सिमटाए जा सकते थे. 'क्लास' में हो रहा क्लास क्लैश क्लीशे ही लगता है. दोगली सोच को जरूर बखूबी उभारा गया है - तुम करो तो रासलीला हम करें तो कैरेक्टर ढीला. और ये तो सिर्फ पहला सीजन है, 'एलीट' के हिसाब से 48 एपिसोड में कहानी खींची जाएगी सो सीजन 2, 3, 4 भी आने हैं, बेसब्र न हों !
कुल मिलाकर सीरीज सक्सेस होनी ही है, इरोटिक टीन ड्रामा जो हैं. हां, पेरेंट्स क्लास के लिए वर्जित हैं, हम नहीं टीनएजर्स कह रहे हैं ; खुला दिमाग जो नहीं हैं पेरेंट्स के पास. संवादों की बात करें तो जनरेशन जेड के लायक ही हैं, वो एक शब्द जो 'फ' से स्टार्ट होता है, तक़रीबन हर दूसरी तीसरी लाइन में आ ही जाता है. एक्टिंग की बात करें तो नवोदित कलाकारों ने क्लास दिखाई है.
और अंत में सीरीज में ही कहीं एक किरदार कहता है,' Don’t worry. Nothing can go wrong, okay?' जब कोई चरित्र ऐसा कहता है, तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि कुछ निश्चित रूप से गलत होगा. लेकिन गलत भी तो एन्जॉय किया जाना चाहिए ना.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.