समीक्षकों के प्रभावी धड़े ने रोहित शेट्टी की पीरियड कॉमेडी ड्रामा 'सर्कस' को उन्हीं बिंदुओं पर परखा, जैसे बॉलीवुड के एंटरटेनर फिल्ममेकर की फ़िल्में रेट करते रहे हैं. वो चाहे तरण आदर्श जैसा सेलिब्रिटी समीक्षक हों या समीक्षा के क्षेत्र में तोप दागने वाले हिंदी के नवागंतुक फिल्म पत्रकार- प्राय: समीक्षकों ने 2.5 से नीचे ही रेट किया है. अब रोहित की पिछली फिल्मों का ट्रेंड देखें तो सर्कस को जिस तरह का रेट हासिल हुआ है उसे एक तरह से रोहित मार्का मनोरंजन की ही गारंटी मान सकते हैं. ऐसा इसलिए कि जब भी गोलमाल या दूसरी तमाम फिल्मों को मुख्यधारा के हाई प्रोफाइल समीक्षकों ने घटिया करार दिया- दर्शकों का जनादेश ठीक उलट आया है. और इन्हीं फिल्मों की वजह से रोहित शेट्टी मास एंटरटेनर नजर आए हैं.
असल में समीक्षक रोहित की फिल्मों को आला दर्जे के मानकों की कसौटी पर कसते हैं. कहानी, अभिनय, संवाद आदि मुद्दों पर. चूंकि रोहित शेट्टी मसालेदार एंटरटेनर बनाते हैं- स्वाभाविक है कि उनकी फ़िल्में हाई प्रोफाइल मानकों पर औसत ठहर जाती हैं. क्योंकि बिंदुओं में मॉस पॉकेट के ऑडियंस की प्रतिक्रिया नहीं आ पाती है. अब सर्कस की तमाम समीक्षाएं उठाकर देख लीजिए. किसी को कहानी आउटडेटेड और बेसिरपैर की लगी. किसी को पहले हाफ में ह्यूमर ही नजर नहीं आया. कोई कह रहा कि कुछेक कॉमिक सीन्स हैं. और ह्यूमर का डोज दूसरे हाफ में ठीक ठाक है. टाइटल तक पर सवाल उठाने वालों की भी कमी नहीं है. तमाम सिनेमा स्कॉलर्स को सर्कस के किरदारों के साथ मेकर्स का अन्याय खुली आंखों दिख रहा है.
शुक्रगुजार होना चाहिए कि मुख्यधारा के ज्ञानी समीक्षकों ने सर्कस को 5 में से शून्य पॉइंट देकर रेट नहीं किया. रोहित चाहें तो इस बात के लिए झुककर सलाम कर सकते...
समीक्षकों के प्रभावी धड़े ने रोहित शेट्टी की पीरियड कॉमेडी ड्रामा 'सर्कस' को उन्हीं बिंदुओं पर परखा, जैसे बॉलीवुड के एंटरटेनर फिल्ममेकर की फ़िल्में रेट करते रहे हैं. वो चाहे तरण आदर्श जैसा सेलिब्रिटी समीक्षक हों या समीक्षा के क्षेत्र में तोप दागने वाले हिंदी के नवागंतुक फिल्म पत्रकार- प्राय: समीक्षकों ने 2.5 से नीचे ही रेट किया है. अब रोहित की पिछली फिल्मों का ट्रेंड देखें तो सर्कस को जिस तरह का रेट हासिल हुआ है उसे एक तरह से रोहित मार्का मनोरंजन की ही गारंटी मान सकते हैं. ऐसा इसलिए कि जब भी गोलमाल या दूसरी तमाम फिल्मों को मुख्यधारा के हाई प्रोफाइल समीक्षकों ने घटिया करार दिया- दर्शकों का जनादेश ठीक उलट आया है. और इन्हीं फिल्मों की वजह से रोहित शेट्टी मास एंटरटेनर नजर आए हैं.
असल में समीक्षक रोहित की फिल्मों को आला दर्जे के मानकों की कसौटी पर कसते हैं. कहानी, अभिनय, संवाद आदि मुद्दों पर. चूंकि रोहित शेट्टी मसालेदार एंटरटेनर बनाते हैं- स्वाभाविक है कि उनकी फ़िल्में हाई प्रोफाइल मानकों पर औसत ठहर जाती हैं. क्योंकि बिंदुओं में मॉस पॉकेट के ऑडियंस की प्रतिक्रिया नहीं आ पाती है. अब सर्कस की तमाम समीक्षाएं उठाकर देख लीजिए. किसी को कहानी आउटडेटेड और बेसिरपैर की लगी. किसी को पहले हाफ में ह्यूमर ही नजर नहीं आया. कोई कह रहा कि कुछेक कॉमिक सीन्स हैं. और ह्यूमर का डोज दूसरे हाफ में ठीक ठाक है. टाइटल तक पर सवाल उठाने वालों की भी कमी नहीं है. तमाम सिनेमा स्कॉलर्स को सर्कस के किरदारों के साथ मेकर्स का अन्याय खुली आंखों दिख रहा है.
शुक्रगुजार होना चाहिए कि मुख्यधारा के ज्ञानी समीक्षकों ने सर्कस को 5 में से शून्य पॉइंट देकर रेट नहीं किया. रोहित चाहें तो इस बात के लिए झुककर सलाम कर सकते हैं. बावजूद कि उन्होंने फिल्म को लेकर कभी दावा नहीं किया कि वह स्पेशली नेशनल अवॉर्ड या ऑस्कर विनिंग फिल्म लेकर आ रहे हैं. बल्कि रिलीज से पहले यही कहा कि सर्कस बस एक टाइमपास मूवी है. जिसका मकसद सिनेमाघर में दर्शकों का मनोरंजन करना है. स्वाभाविक है कि रोहित की फ़िल्में अवॉर्ड के लिए नहीं बनतीं. और यह उनका सौभाग्य ही है कि अवॉर्ड विनिंग फिल्मों की समीक्षा करने वाले ज्ञानी समीक्षकों ने 3 पॉइंट देकर रेट किया है. क्या यह कम बड़ी बात है. खैर.
रणवीर सिंह दीपिका पादुकोण की वजह से विरोध का एक मजबूत ट्रेंड तो है
सर्कस के लिए सबसे खराब बात दर्शकों के एक धड़े का रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की वजह से विरोध करना है. विरोध का एक ट्रेंड मजबूत दिख रहा है. रणवीर और दीपिका से जुड़े तमाम जिन्न फिल्म की रिलीज के साथ ही जमीन से बाहर निकल आए हैं. बेशरम रंग गाने, दीपिका से जुड़ा जेएनयू विवाद, रणवीर सिंह का न्यूड फोटोशूट और कथित बॉलीवुड गैंग्स के साथ उनका एसोसिएशन भारी पड़ता दिख रहा है. ट्विटर पर बॉलीवुड फिल्मों का विरोध करने वाले गुस्से में हैं. कुछ तो एडवांस बुकिंग को निशाना बनाते हुए फिल्म के खिलाफ तर्क रख रहे. हालांकि सर्कस के कॉन्टेंट पर ज्यादा सवाल नहीं हैं, मगर उन्हीं वजहों से विरोध करते दिख रहे हैं जो उनके मुद्दे होते हैं. हो सकता है रोहित की वजह से कॉन्टेंट को खारिज ना किया जा रहा हो.
बायकॉट लॉबी से अलग फिल्म देखने वालों ने इसे टाइमपास कॉमेडी करार दिया है. एक ऐसी क्लीन फिल्म जिसे त्योहारी मूड पर फैमिली के साथ पॉपकॉर्न का मजा लेते हुए देखा जा सकता है. एक बार तो देखा ही जा सकता है क्योंकि यह उबाऊ नहीं है. बॉलीवुड फिल्मों की बखिया उधेड़ देने वाले केआरके ने भी तारीफ़ की. उन्होंने इसे कलरफुल, टाइमपास, ब्रेनलेस कॉमेडी ही करार दिया है. कई लोगों ने तारीफ़ में लिखा कि फिल्म मॉस पॉकेट में अच्छा ही करेगी. क्योंकि बॉलीवुड में रोहित शेट्टी के अलावा दूसरा कोई फिल्म मेकर नहीं है जो ग्राउंड के ऑडियंस को बेहतर समझता हो.
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं कन्फ्यूज करने वाली, बॉक्स ऑफिस का वेट करना पड़ेगा
इसी बिना पर कुछ लोग सर्कस के खराब एडवांस बुकिंग का भी बचाव करते दिख रहे. लोग तर्क दे रहे कि इनकी फिल्मों को वॉकिंग ऑडियंस मिलते हैं. सूर्यवंशी तक की एडवांस बुकिंग खराब थी. मगर जब उसका बॉक्स ऑफिस आया तो हर कोई हैरान रह गया था. क्रिसमस पर सर्कस का बॉक्स ऑफिस भी बेहतर ही रहने वाला है.
कुल मिलाकर सोशल मीडिया के जरिए रोहित शेट्टी की फिल्म कैसी है अंदाजा लगाना मुश्किल है. मगर दृश्यम 2 और ऊंचाई के बाद बॉलीवुड से आई यह हालिया फिल्म है रिलीज के बाद जिसकी सोशल मीडिया पर जबरदस्त चर्चा हो रही है. फिल्म से जुड़े कई हैशटैग टॉप ट्रेंड में हैं. सर्कस को दर्शकों ने कैसे लिया यह इसके बॉक्स ऑफिस से ही पता चलेगा. क्योंकि प्रतिक्रियाओं से ठीक ठीक अंदाजा लगाना मुश्किल है. जैसा कि अनुमान है कि सर्कस पहले दिन 10-12 करोड़ के रेंज में ओपनिंग कर सकती है. अगर फिल्म ने 10 करोड़ की ओपनिंग हासिल की तो मान सकते हैं कि सर्कस दर्शकों को पसंद आई और रोहित के बैनर से बॉलीवुड को एक और हिट फिल्म मिल जाएगी.
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