दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) अब तक 30 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी हैं. जिनमें से कई बेहद कामयाब भी रही हैं. शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) भी 3 दशक से बॉलीवुड में काम कर रहे हैं. क्या इन्होंने अपनी अभिनय कला को लेकर हार मान ली है? एक बॉलीवुड की टॉप हीरोइन तो दूसरा बॉलीवुड का किंग खान कहा जाने वाला सुपर स्टार. क्या इन्हें अपनी फिल्म हिट कराने के लिए बेशरम रंग जैसे गाने की जरूरत है?
इस गाने में ऐसा कुछ नहीं है, जिसकी तारीफ की जाए. वैसे भी यह दो-तीन गानों का कॉपी लग रहा है. जैसे- इस गाने को सुनकर "हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने.." गाने की याद आ जा रही है...सीन देख रहा है कि लग रहा है कि "घूंघरू टूट गए" देख रहे हैं. डांस के आधे-अधूरे मूव्स देखकर नोरा फतेही की याद आ जा रही है. इससे अच्छा तो आइटम सॉन्ग के लिए नोरा फेतही को ही ले लेते.
सबसे जरूरी बात यलो और गोल्डन बिकनी में दीपिका पादुकोण को देखकर किम कार्दशियन और ऊर्फी जावेद की याद आ जा रही है. असल में दीपिका इस गाने में डांस नहीं कर रही हैं बल्कि अश्लीलता फैला रही हैं. दीपिका जिस तरह मुंह में स्ट्राबेरी खा रही हैं. लग रहा है कि कंडोम का ऐड कर रही हों. उन्हें देखकर लग रहा है कि वे नशा करके डांस कर रही हैं. कम से कम उनकी आंखें तो यही कह रही हैं.
वे अपने शरीर के अंगों को गंदे तरीके से फ्लॉन्ट कर रही हैं. जो दिखने में काफी भद्दा लग रहा है. इस गाने को देखकर लग रहा है कि ऊर्फी जावेद झूठ-मूठ में बदनाम हैं, क्योंकि बॉलीवुड ने यह सब अब नॉर्मल मान लिया है. ऊपर से शाहरुह खान इस गाने में अपनी बॉडी दिखा रहे हैं. गाना पूरी तरह सेमी न्यूड हैं. इस उम्र में शाहरुह...
दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) अब तक 30 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी हैं. जिनमें से कई बेहद कामयाब भी रही हैं. शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) भी 3 दशक से बॉलीवुड में काम कर रहे हैं. क्या इन्होंने अपनी अभिनय कला को लेकर हार मान ली है? एक बॉलीवुड की टॉप हीरोइन तो दूसरा बॉलीवुड का किंग खान कहा जाने वाला सुपर स्टार. क्या इन्हें अपनी फिल्म हिट कराने के लिए बेशरम रंग जैसे गाने की जरूरत है?
इस गाने में ऐसा कुछ नहीं है, जिसकी तारीफ की जाए. वैसे भी यह दो-तीन गानों का कॉपी लग रहा है. जैसे- इस गाने को सुनकर "हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने.." गाने की याद आ जा रही है...सीन देख रहा है कि लग रहा है कि "घूंघरू टूट गए" देख रहे हैं. डांस के आधे-अधूरे मूव्स देखकर नोरा फतेही की याद आ जा रही है. इससे अच्छा तो आइटम सॉन्ग के लिए नोरा फेतही को ही ले लेते.
सबसे जरूरी बात यलो और गोल्डन बिकनी में दीपिका पादुकोण को देखकर किम कार्दशियन और ऊर्फी जावेद की याद आ जा रही है. असल में दीपिका इस गाने में डांस नहीं कर रही हैं बल्कि अश्लीलता फैला रही हैं. दीपिका जिस तरह मुंह में स्ट्राबेरी खा रही हैं. लग रहा है कि कंडोम का ऐड कर रही हों. उन्हें देखकर लग रहा है कि वे नशा करके डांस कर रही हैं. कम से कम उनकी आंखें तो यही कह रही हैं.
वे अपने शरीर के अंगों को गंदे तरीके से फ्लॉन्ट कर रही हैं. जो दिखने में काफी भद्दा लग रहा है. इस गाने को देखकर लग रहा है कि ऊर्फी जावेद झूठ-मूठ में बदनाम हैं, क्योंकि बॉलीवुड ने यह सब अब नॉर्मल मान लिया है. ऊपर से शाहरुह खान इस गाने में अपनी बॉडी दिखा रहे हैं. गाना पूरी तरह सेमी न्यूड हैं. इस उम्र में शाहरुह खान को यह सब करने की क्या जरूरत थी?
असल में कई बार जो काम ट्रेलर नहीं कर पाता, वह गाना कर जाता है. शाहरुख खान ने शायद यही सोचा और इसलिए पठान फिल्म का बेशरम रंग गाना पहले रिलीज करवा दिया. इसी तरह का काम फिल्म ब्रह्मास्त्र का गाना केसरिया के रिलीज ने किया था. अब सवाल यह है कि क्या बॉलीवुड में टैलेंट नहीं है जो इस तरह की अश्लीलता बेचने की नौबत आ गई है? मार्केटिंग में एक कहावत है कि जब कुछ नहीं बिकता तो सेक्स बिकता है, लगता है शाहरुह खान से इसे कापी सीरियस ले लिया. अपनी इस हरकत ने शाहरुख औऱ दिपिका ने अपने फैंस को निराश किया है. एक बड़ा तबका इस गाने को देखने के बाद से पठान का बायकॉट कर रहा है. लोगों का कहना है कि शाहरुख और दीपिका जैसे एक्टर्स से ऐसी उम्मीद नहीं थी.
लोगों का कहना है कि एक तरफ दक्षिण भारतीय फिल्में हमारी भारतीय संस्कृति और परंपराओं को श्रद्धांजलि दे रही हैं और तो दूसरी औऱ बॉलीवुड गंदगी फैला रहा है. बॉलीवुड अपनी फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए अश्लीलता और हिंसा का उपयोग कर रहा है जो समाज में नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है.
कुछ लोगों का कहना है कि, इस गाने में अश्लीलता की हद हो गई, इससे अच्छा होता कोई पोर्न मूवी शूट कर लेते...शायद इनको पता चल गया है कि मूवी वैसे भी चलेगी नहीं, इसलिए युवा वर्ग को आकर्षित करने के लिए सबसे पहले यह नंगा गाना रिलीज कर दिया...शाहरुह खान और दीपिका को समझना चाहिए कि जब जब कला और प्रतिभा का दिवाला निकल जाए, तो खुद को नीलाम करने के सिवा कोई चारा नहीं बचता है.
कभी हिंदी सिनेमा भारतीय समाज, संस्कृति, सभ्यता और इतिहास को प्रदर्शित करते हुए मनोरंजन करता और सामाजिक सन्देश देने का एक साधन हुआ करता था, आज सिर्फ नंगापन, फूहड़पन और अश्लीलता तक सीमित रह गया है. एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए क्या ऐसी गन्दगी को रोकना हम सभी का कर्तव्य नहीं है?
वैसे आपको नहीं लगता है कि शाहरुह खान और दीपिका पादुकोंण को इस अश्लीलता की जरूरत नहीं थी? तो मान लिया जाए कि उनका जादू अब खत्म हो चुका है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.