Delhi crimes का सीजन 1 निर्भया केस पर आधारित था. अबकी सीनियर सिटीजन की निर्मम हत्या के साथ चोरी पर आधारित है पूरी सीरी़ज़. निवाले में कंकड़ की तरह खिसखिसाने वाले शुरुआत के 2 एपिसोडस हैं. जो denotified tribes (DNTs) को इन हत्या और चोरियों का ज़िम्मेदार मानते हुए धड़ पकड़ में लग जाते हैं. 47 से पहले अंग्रेज़ इन्हें born criminals कहते थे. पुलिस वाले इस सोच से मुक्त नहीं हुए अभी तक. कहीं भी चोरी, हत्या, लूट-पाट हुई नहीं कि बेनाम खानाबदोशों पर शक की तलवार लटकने लगती है. चड्ढा नाम के एक ऑफिसर के ज़रिये इन लोगों के प्रति समाज की सोच का वीभत्स और निर्मम रूप ज़ाहिर होता है. घृणा की पराकाष्ठा में वह कहता है, मैं सुअर पाल लूं लेकिन इन लोगों पर भरोसा न करूं.
समाज में बहुत कम ऐसे लोग होंगे जो चड्ढा की बात से इत्तेफ़ाक़ न रखे. जो न्यूट्रल होने की कोशिश करेंगे उन्हें इनके काले,भद्दे रंग-रूप, लगभग डरावने नैन नक्श के पक्ष में तर्क देकर अपने खांचे में बिठा लिया जाएगा. इन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ने, या कहिये दबे कुचले वर्ग का उद्धार करने आएगा, प्रिविलेज्ड वर्ग. जो अपने जैसे सामान्य पृष्ठभूमि से आए लोगों को समान्यीकरण न करने की सलाह देगा.
ऊपर से दबाव होने के बावजूद कोई चतुर्वेदी इन्हें हत्या के इल्ज़ामों से बचाएगा. अहं ब्रह्मस्मि का शंख फूंकेगा. जनता चतुर्वेदी के बड़प्पन पे लहालोट होगी. लेकिन जाते हुए चुपके से अभियुक्तों में से 2 को चोर बता ही दिया जाएगा. यानी आपके अचेतन मन में इनके चोर उचक्के होने की संभावना बनी ही रहेगी. यह तो कुछ वैसा है जैसा 'हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता' के पक्ष में तर्क देते हुए आप उन्हें पत्थरबाज कह ही दें. या "जीन्स पहनने वाली...
Delhi crimes का सीजन 1 निर्भया केस पर आधारित था. अबकी सीनियर सिटीजन की निर्मम हत्या के साथ चोरी पर आधारित है पूरी सीरी़ज़. निवाले में कंकड़ की तरह खिसखिसाने वाले शुरुआत के 2 एपिसोडस हैं. जो denotified tribes (DNTs) को इन हत्या और चोरियों का ज़िम्मेदार मानते हुए धड़ पकड़ में लग जाते हैं. 47 से पहले अंग्रेज़ इन्हें born criminals कहते थे. पुलिस वाले इस सोच से मुक्त नहीं हुए अभी तक. कहीं भी चोरी, हत्या, लूट-पाट हुई नहीं कि बेनाम खानाबदोशों पर शक की तलवार लटकने लगती है. चड्ढा नाम के एक ऑफिसर के ज़रिये इन लोगों के प्रति समाज की सोच का वीभत्स और निर्मम रूप ज़ाहिर होता है. घृणा की पराकाष्ठा में वह कहता है, मैं सुअर पाल लूं लेकिन इन लोगों पर भरोसा न करूं.
समाज में बहुत कम ऐसे लोग होंगे जो चड्ढा की बात से इत्तेफ़ाक़ न रखे. जो न्यूट्रल होने की कोशिश करेंगे उन्हें इनके काले,भद्दे रंग-रूप, लगभग डरावने नैन नक्श के पक्ष में तर्क देकर अपने खांचे में बिठा लिया जाएगा. इन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ने, या कहिये दबे कुचले वर्ग का उद्धार करने आएगा, प्रिविलेज्ड वर्ग. जो अपने जैसे सामान्य पृष्ठभूमि से आए लोगों को समान्यीकरण न करने की सलाह देगा.
ऊपर से दबाव होने के बावजूद कोई चतुर्वेदी इन्हें हत्या के इल्ज़ामों से बचाएगा. अहं ब्रह्मस्मि का शंख फूंकेगा. जनता चतुर्वेदी के बड़प्पन पे लहालोट होगी. लेकिन जाते हुए चुपके से अभियुक्तों में से 2 को चोर बता ही दिया जाएगा. यानी आपके अचेतन मन में इनके चोर उचक्के होने की संभावना बनी ही रहेगी. यह तो कुछ वैसा है जैसा 'हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता' के पक्ष में तर्क देते हुए आप उन्हें पत्थरबाज कह ही दें. या "जीन्स पहनने वाली लड़कियां चरित्रहीन नहीं होती' के पक्ष में तर्क देते हुए आप उन्हें लड़कों से जल्दी घुल मिल जाने वाली बता दें.
यह सीरी़ज DNTs के ज़रिये सिर्फ नाले किनारे बजबजाती झोपड़ी, टहलते सुअर दिखाती है. न कोई विमर्श. न कार्य-कारण संबंध. जबकि निर्भया रेप केस पर आधारित सीजन 1 में ऐसे जघन्य अपराध के कारण पर दो पुलिस वालों की बातचीत के ज़रिये थोड़ा सा प्रकाश डाला गया था. शुरुवात के 2 एपिसोड देखते हुए लगता है कुछ नया और हट के नाम पर DNTs के मुद्दे को ध्यान खींचने के लिए उठाया गया. छूत लग जाने के डर से घबरा कर उतनी ही जल्दी छोड़ भी दिया गया. बाकी के 3 एपिसोड्स में बचा क्राइम और सस्पेंस काम चलाऊ ही है.
शिफाली छाया कभी निराश नहीं करती. इस बार भी बहुत कम डायलॉग्स और लगभग नो मेकअप के साथ आंखों का भरपूर इस्तेमाल किया है. और अच्छा किया है. रसिका दुग्गल के ज़रिये पुलिस विभाग में काम करने वाली औरत का घर, पति और जॉब के बीच बैलेंस बनाने का संघर्ष भी अधूरा दिखाया गया. काम के दबाव और लीव कैंसल होने की वजह से अपने मिलिट्री मैन पति पर कई रातों की जागी आंखें लिए चीखती रसिका अपना 100% देती है. लेकिन एक भी ढंग का डायलॉग न होने की वजह से वह सीन भी अप टू द मार्क नहीं बन पाया है.
उम्मीद करते हैं सीजन 3 में डायरेक्टर ऋषि मेहता विमर्श के नाम पर थोड़ा स्टडी करेंगे. बाकी बचा क्राइम और सस्पेंस तो याद रखना चाहिए उनका दर्शक न चाहते हुए भी अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा से तुलना करेगा. क्यूंकि वह नेटफ्लिक्स पर यह शो देख रहा है, किसी सिंगल स्क्रीन थियेटर में नहीं.
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