दिल्ली के कंझावला में हुई अंजलि नामक लड़की की मौत को पुलिस भले ही हादसा मान रही है, लेकिन वो सुनियोजित हत्या नजर आ रही है. ऐसी साजिश जिसमें सभी अंजलि के अपने परिचित दिखाई दे रहे हैं. लेकिन पता नहीं किसकी गर्दन बचाने के लिए पुलिस पूरे मामले में नई कहानी लिख रही है. इस कहानी में जिस तरह के किरदारों को गढ़ा जा रहा है, जिस तरह के संवाद हो रहे हैं, वो सब इस ओर इशारा कर रहे हैं कि पूरे मामले की लीपा-पोती की जा रही है. इसमें कुछ शक्तियां अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल भी कर रही हैं. यहां जरूरी नहीं है कि आरोपियों को ही बचाने की कोशिश की जा रही है, कई बार कुछ जिम्मेदार अपने दामन पर दाग लगने के डर से भी ऐसा खेल करते हैं, जिसमें उन लोगों को फायदा हो जाता है, जिनको सलाखों के पीछे आजीवन होना चाहिए. इस वारदात में अभी तक सामने आई एक-एक कड़ियां जोड़ी जाएं तो मामला एकदम साफ नजर आ रहा है.
फिल्म 'पिंक' की कहानी क्या है...
कंझावला केस की कड़ियां जोड़ने से पहले बॉलीवुड की एक फिल्म 'पिंक' की बात कर लेते हैं. साल 2016 में रिलीज हुई इस फिल्म की कहानी के जरिए अंजलि के केस को समझा जा सकता है. इस फिल्म में दिखाया जाता है कि तीन आजाद ख्याल दोस्त मीनल (तापसी पन्नू), फलक (कीर्ति कुल्हाड़ी) और एंड्रीया (एंड्रीया तारियांग) दिल्ली के सर्वप्रिय विहार में किराए के मकान में रहती हैं. एक वीकेंड तीनों फरीदाबाद के पास स्थित सूरजकुंड में एक रॉक कॉन्सर्ट में हिस्सा लेने जाती हैं. वहां इनकी मुलाकात कुछ अमीरजादों राजवीर सिंह (अंगद बेदी), रौनक और विश्वज्योति से होती है. सभी आपस में दोस्त बन जाते हैं. एक साथ पार्टी को एन्जॉय करते हैं. इस दौरान तीनों लड़कियां इन लड़कों के साथ शराब भी पीती है. इसके बाद आराम करने की बात कहकर राजवीर अपने दोस्तों के साथ तीनों लड़कियों को लेकर रिजॉर्ट में जाता है. यहां शराब के नशे में उनके साथ जबरदस्ती की जाती है.
दिल्ली के कंझावला में हुई अंजलि नामक लड़की की मौत को पुलिस भले ही हादसा मान रही है, लेकिन वो सुनियोजित हत्या नजर आ रही है. ऐसी साजिश जिसमें सभी अंजलि के अपने परिचित दिखाई दे रहे हैं. लेकिन पता नहीं किसकी गर्दन बचाने के लिए पुलिस पूरे मामले में नई कहानी लिख रही है. इस कहानी में जिस तरह के किरदारों को गढ़ा जा रहा है, जिस तरह के संवाद हो रहे हैं, वो सब इस ओर इशारा कर रहे हैं कि पूरे मामले की लीपा-पोती की जा रही है. इसमें कुछ शक्तियां अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल भी कर रही हैं. यहां जरूरी नहीं है कि आरोपियों को ही बचाने की कोशिश की जा रही है, कई बार कुछ जिम्मेदार अपने दामन पर दाग लगने के डर से भी ऐसा खेल करते हैं, जिसमें उन लोगों को फायदा हो जाता है, जिनको सलाखों के पीछे आजीवन होना चाहिए. इस वारदात में अभी तक सामने आई एक-एक कड़ियां जोड़ी जाएं तो मामला एकदम साफ नजर आ रहा है.
फिल्म 'पिंक' की कहानी क्या है...
कंझावला केस की कड़ियां जोड़ने से पहले बॉलीवुड की एक फिल्म 'पिंक' की बात कर लेते हैं. साल 2016 में रिलीज हुई इस फिल्म की कहानी के जरिए अंजलि के केस को समझा जा सकता है. इस फिल्म में दिखाया जाता है कि तीन आजाद ख्याल दोस्त मीनल (तापसी पन्नू), फलक (कीर्ति कुल्हाड़ी) और एंड्रीया (एंड्रीया तारियांग) दिल्ली के सर्वप्रिय विहार में किराए के मकान में रहती हैं. एक वीकेंड तीनों फरीदाबाद के पास स्थित सूरजकुंड में एक रॉक कॉन्सर्ट में हिस्सा लेने जाती हैं. वहां इनकी मुलाकात कुछ अमीरजादों राजवीर सिंह (अंगद बेदी), रौनक और विश्वज्योति से होती है. सभी आपस में दोस्त बन जाते हैं. एक साथ पार्टी को एन्जॉय करते हैं. इस दौरान तीनों लड़कियां इन लड़कों के साथ शराब भी पीती है. इसके बाद आराम करने की बात कहकर राजवीर अपने दोस्तों के साथ तीनों लड़कियों को लेकर रिजॉर्ट में जाता है. यहां शराब के नशे में उनके साथ जबरदस्ती की जाती है.
तीनों लड़के उन लड़कियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने की बात कहते हैं. उनको लगता है कि शराब पीने वाली लड़कियां आराम से हमबिस्तर हो जाएंगी. लेकिन तीनों लड़कियां इसके लिए मना कर देती हैं. उनकी मनाही पर लड़के आगबबूला हो जाते हैं. उनके साथ रेप करने की कोशिश करने लगते हैं. लेकिन मीनल बोतल से राजवीर के सिर पर हमला कर देती है. उसकी आंख पर गहरी चोट लग जाती है, जिसके बाद उसके दोस्त उसे बचाने में लग जाते हैं. इसी दौरान तीनों लड़कियां नशे की हालत में वहां से भाग निकलती हैं. किसी तरह से बचकर अपने घर पहुंचती हैं. लड़के उनका पीछा करते हैं. लेकिन लड़कियां बचने में कामयाब रहती हैं. अगले दिन रसूखदार राजनीतिक परिवार से संबंध रखने वाला राजवीर सिंह उन लड़कियों के खिलाफ थाने में केस दर्ज करा देता है. उनको वेश्या बताते हुए उनका चरित्र हनन किया जाता है. इसकी वजह से उनके पड़ोसी तक उनको गलत समझने लगते हैं.
मीनल, फलक और एंड्रीया का खुद पर से विश्वास उठने लगता है, लेकिन इसी बीच उनके एक पड़ोसी रिटायर्ड वकील दीपक सहगल (अमिताभ बच्चन) उनके लिए भगवान बनकर आते हैं. वो उनकी तरफ से कोर्ट में केस लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. कोर्ट में बहस शुरू होती है. राजवीर का वकील तीनों लड़कियों को वेश्या साबित करने में जुट जाता है, जबकि लड़कियों का कहना है कि उनके साथ रेप की कोशिश की गई थी, इसलिए आत्मरक्षा में मीनल ने राजवीर पर हमला किया था. इस बहस के दौरान दीपक सहगल जो भी बातें कहते हैं, वो आज के समाज की सच्चाई है. इस फिल्म के निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने समाज के उन तथाकथित सभ्य लोगों को कोर्ट रूम ड्रामा में नंगा किया है, जो अपनी बहन-बेटियों को किसी नजर से और दूसरों की अलग नजर से देखते हैं. ऐसे लोगों को सबक दी गई है कि लड़की ना कहे तो उसे ना ही समझिए. जो कंझावला के कसूरवारों को समझ नहीं आया.
फिल्म के डायलॉग पर एक नजर...
1. किसी भी लड़की किसी भी लड़के के साथ बैठकर शराब नहीं पीना चाहिए, क्योंकि अगर वो ऐसा करती है तो लड़के को ये इंडिकेट होता है कि अगर लड़की मेरे साथ बैठकर शराब पी सकती है, तो वो उसके साथ सोने से भी कतराएगी नहीं.
2. 'ना' सिर्फ एक शब्द नहीं, अपने आप में एक पूरा वाक्य है. इसे किसी तरह के स्पष्टीकरण, एक्सप्लेनेशन या व्याख्या की जरूरत नहीं होती. 'ना' का मतलब सिर्फ 'ना' ही होता है.
3. इन लड़कों को ये जरूर एहसास होना चाहिए, ना का मतलब ना होता है. उसे बोलने वाली कोई परिचित हो, गर्लफ्रेंड हो, कोई सेक्स वर्कर हो या आपकी अपनी बीवी ही क्यों ना हो. नो मींस नो, और जब ऐसा कोई कहे, तो आपको तुरंत रुक जाना चाहिए.
कंझावला केस की कड़ियां जोड़ते हैं...
दिल्ली के कंझावला इलाके की रहने वाली अंजलि 31 दिसंबर 2021 को अपनी मां से ये कहकर निकली की वो किसी इवेंट में जा रही है, रात 10 बजे तक घर वापस आएगी. इसके बाद वो अपनी स्कूटी से अपने घर से 2.5 किलोमीटर दूर बुध विहार सेक्टर 23 स्थित एक ओयो होटल पहुंचती है. इस होटल के एक कर्मचारी की माने तो अंजलि अपनी दोस्त निधि के साथ आई थी. दोनों ने एक रूम बुक कराया था. उनके बाद कुछ लड़के भी आए, उन्होंने अपना अलग रूम बुक किया. इसके बाद वो लड़के इन लड़कियों के रूम में आ गए. कुछ देर बाद उस रूम से लड़ने की आवाजें आने लगीं. वो एक-दूसरे को गाली दे रहे थे. इसी बीच शोर सुनकर होटल का मैनजेर वहां पहुंचा उसने उनको बाहर जाने के लिए कह दिया. इसके बाद दोनों लड़कियां वहां से निकल गईं. दोनों होटल के बाहर भी काफी देर तक लड़ती रहीं. ये वाकया वहां मौजूद सीसीटीवी में भी रिकॉर्ड है, जो पुलिस के पास मौजूद है.
इसके बाद दोनों दोस्त वहां से स्कूटी से निकल जाती हैं. इस दौरान कुछ लड़के भी उनके आसपास दिखाई देते हैं. यहां निधि का कहना है कि अंजलि बहुत ज्यादा नशे में थी, इसलिए उसने कहा कि वो स्कूटी चलाएगी, लेकिन अंजलि नहीं मानी तो उसने उसे स्कूटी चलाने दिया. निधि का कहना है, "अंजिल बहुत नशे में थी. मैंने उसे कहा था कि मुझे स्कूटी चलाने दे, लेकिन उसने मुझे स्कूटी चलाने नहीं दिया. वो लहराते हुए स्कूटी चला रही थी. उसी वक्त सामने आ रही एक कार से टक्कर हो गई. मैं एक तरफ गिर गई और वो कार के नीचे आ गई. इसके बाद कार के नीचे वह किसी चीज में अटक गई. कार उसे घसीटते हुए ले गई. मैं डर गई थी इसलिए मैं वहां से चली गई और किसी को कुछ नहीं बताया. घर जाकर अपनी मां और नानी को पूरी घटना बताई. लेकिन मुझे डर था कि यदि मैं अंजलि के परिवार या पुलिस को कुछ बताती तो वो लोग सारा दोष मेरे पर डाल देते."
इस दौरान 14 किमी तक अंजलि कार के नीचे घसीटी जाती रही. रास्ते में कई लोगों ने देखा, पुलिस को भी बताया, लेकिन जब तक कार्रवाई होती, तब उसकी मौत हो चुकी थी. कार सवार नग्न हालत में उसके शव को छोड़कर वहां से फरार हो चुके थे. घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने इसे हादसा मानते हुए हल्के धाराओं में केस दर्ज कर लिया. इस मामले में आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), 304ए (लापरवाही से मौत), 279 (रैश ड्राइविंग) और 120बी (आपराधिक साजिश) जैसी धाराएं लगाई गई हैं. ये सभी धाराएं इस मामले की लीपा पोती के लिए काफी हैं. जबकि अपराध जघन्य है. पुलिस की गिरफ्त में सभी पांचों आरोपी मनोज मित्तल, दीपक खन्ना, अमित खन्ना, कृष्ण और मिथुन मौजूद हैं. वारदात के वक्त दीपक खन्ना कार चला रहा था. इनमें मनोज मित्तल भाजपा का नेता बताया जा रहा है. आरोपी अपनी अलग कहानी सुना रहे हैं.
फिल्म के जरिए कंझावला की कहानी...
इस पूरे मामले में अभी तक जो भी कहा गया है, वो सच से परे लग रहा है. लेकिन जो भी घटनाएं छनकर सामने आ रही हैं, उनके आधार पर यही कहा जा सकता है कि अंजलि अपनी दोस्त निधि के साथ होटल में न्यू ईयर की पार्टी मनाने गई थी. वहां उसके पुरुष दोस्त भी आए हुए थे. दिल्ली-एनसीआर में ऐसा अक्सर होता है कि पुलिस के पकड़े जाने के डर से लोग अब होटलों में रूम लेकर अपने दोस्तों के साथ पार्टी करते हैं और रात को वहीं रुक जाते हैं. कुछ ऐसा ही अंजलि और उसके दोस्तों का भी प्लान होगा. लेकिन हो सकता है कि उसके कुछ पुरुष दोस्तों ने सेक्सुअल फेवर की मांग कर दी हो, जिससे उसने इंकार कर दिया हो. इस बात से लड़के आगबबूला हो गए हों. क्योंकि लड़की से 'ना' सुनने का चलन तो हमारे समाज में अभी आया नहीं है. होटल के कर्मचारी की बात पर भी गौर करें, तो उसने भी कहा है कि एक रूम में सभी के एकत्रित होने के बाद झगड़े शुरू हो गए थे.
इस दौरान लड़के गालियां देते हुए सुनाई दे रहे थे. होटल के स्टॉफ के द्वारा कमरे से बाहर निकाले जाने के बाद सभी का गुस्सा ज्यादा भड़क गया होगा. इसके बाद अंजलि को सबक सिखाने के लिए जानबूझकर कार से टक्कर मारी गई हो. इस दौरान किसी लड़के ने कार के अंदर से उसे पकड़कर सड़क पर घसीटा हो. चूंकि सभी लड़के नशे में थे, इसलिए उनको समझ में नहीं आया होगा कि वो किस तरह का गुनाह कर रहे हैं. हवस और बदले की भावना ने उनको इंसान से हैवान बना दिया होगा. निधि इस पूरे मामले की एकमात्र गवाह है. वो पूरे प्रकरण के बारे में जानती है. हो सकता है कि वो उन लड़कों के लिए काम भी करती हो. क्योंकि अक्सर ऐसे आवारा लड़के इस तरह की लड़कियों के जरिए किसी सुंदर लड़की को अपने जाल में फंसाते हैं. निधि और अंजलि की दोस्ती महज 15 दिन पहले ही हुई थी. ऐसे में इस बात को पूरा बल मिल रहा है कि वो लड़कों से मिली हुई हो सकती है.
इसके अलावा निधि ने घटना के तीन दिन बाद आकर जिस तरह से बयान दिया है, वो भी शक पैदा करता है. वो जब अंजलि के बारे में बोल रही थी, तो उसमें अंदर जरा भी मानवीयता नहीं दिख रही थी. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि उसकी दोस्त की मौत हो चुकी है. ऐसी मौत जिसमें वो शरीक थी. यदि वो उसी वक्त अंजलि के परिवार या पुलिस को सूचना दे देती तो शायद आज अंजलि जिंदा होती. यहां एक बात और गौर करने वाली है. निधि आरोपी लड़कों पर आरोप तो लगा रही है, लेकिन उनके खिलाफ मुखर नजर नहीं आ रही है. वो बार-बार अंजलि को दोष दे रही है. उसे नशे में बता रही है. दबे जुबान उसके चरित्र पर उंगली उठा रही है. जैसे कि फिल्म 'पिंक' में मीनल सहित उसकी तीनों दोस्तों का चरित्र हनन कर उनको सेक्स वर्कर साबित करने की कोशिश की जाती है. वहां तो तीनों पीड़िता जिंदा थीं, इसलिए लड़ने के बाद न्याय मिल गया, लेकिन यहां अंजलि हमारे बीच नहीं है. ऐसे में उसके परिवार और समाज को मिलकर ये कोशिश करनी चाहिए की पूरे मामले में सच्चाई का पर्दाफाश हो सके. सही दोषियों को उपयुक्त सजा मिल सके.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.