कमरे में सिर्फ़ सन्नाटा है. की-बोर्ड पर उंगलियाँ घिस रही हूं लेकिन कानों में गूंज रही है एक धुन और गा रहे हैं मुकेश, दिलीप साहब का चेहरा आंखों के सामने तैर रहा है. वो आंखें, वो मुस्कान, वो अदाकारी. गीत के बोल हैं - ऐसे वीराने में एक दिन घुट के मर जाएंगे हम, जितना भी चाहे पुकारो, फिर नहीं आएंगे हम. मन में जो गाना चल रहा है उस कैसेट की रील यहीं फंस गयी है, यही बोल बार-बार गूंज रहे हैं. 21वीं सदी के बच्चे कैसेट की रील का फंसना नहीं समझेंगे, वो समझेंगे जो सांसें थामकर हौले से उसे निकालते थे और सब दुरुस्त होने पर सांस लेते थे. सिनेमा जगत में आपका युग स्वर्णिम युग रहा दिलीप साहब.
18 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर आना, जीवनयापन के लिए सैंडविच बेचना, पिता के डर से युसूफ़ ख़ान से दिलीप कुमार बनना, बेशुमार मुहब्बत करना, महबूबा के सामने मिन्नतें करना लेकिन फिर उसी से कहना कि तुम आज नहीं चली तो मैं तुम्हारे पास लौटकर नहीं आऊंगा. फिर दिल दे बैठना एक ऐसी लड़की को जिसकी आप ज़िद रहे और हो जाना उसी का सर्वदा के लिए.
पर्दे पर मुहब्बत को ऐसे उकेरना कि जब देवदास की सांसें उखड़ती थीं तो लोगों का दिल दहल जाता था. यूं ही नहीं आप ट्रैजेडी किंग कहलाये. आपने मुहब्बत करना सिखाया, मुहब्बत की ज़ुर्रत करना सिखाया, मुहब्बत में हिमाक़त करना सिखाया, मुहब्बत में सब क़ुबूल करना सिखाया और गढ़ दिया सिनेमा में अनूठा पाठ्यक्रम मुहब्बत का.
आज चला गया वह सलीम जिसके पहलू में एक कनीज़ अनारकली बनी, जिसकी सोहबत में अनारकली मल्लिका-ए-हिंदुस्तान होती.
दिल को तेरी ही तमन्ना, दिल को है तुझसे ही प्यार
चाहे तू आये न आये हम करेंगे...
कमरे में सिर्फ़ सन्नाटा है. की-बोर्ड पर उंगलियाँ घिस रही हूं लेकिन कानों में गूंज रही है एक धुन और गा रहे हैं मुकेश, दिलीप साहब का चेहरा आंखों के सामने तैर रहा है. वो आंखें, वो मुस्कान, वो अदाकारी. गीत के बोल हैं - ऐसे वीराने में एक दिन घुट के मर जाएंगे हम, जितना भी चाहे पुकारो, फिर नहीं आएंगे हम. मन में जो गाना चल रहा है उस कैसेट की रील यहीं फंस गयी है, यही बोल बार-बार गूंज रहे हैं. 21वीं सदी के बच्चे कैसेट की रील का फंसना नहीं समझेंगे, वो समझेंगे जो सांसें थामकर हौले से उसे निकालते थे और सब दुरुस्त होने पर सांस लेते थे. सिनेमा जगत में आपका युग स्वर्णिम युग रहा दिलीप साहब.
18 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर आना, जीवनयापन के लिए सैंडविच बेचना, पिता के डर से युसूफ़ ख़ान से दिलीप कुमार बनना, बेशुमार मुहब्बत करना, महबूबा के सामने मिन्नतें करना लेकिन फिर उसी से कहना कि तुम आज नहीं चली तो मैं तुम्हारे पास लौटकर नहीं आऊंगा. फिर दिल दे बैठना एक ऐसी लड़की को जिसकी आप ज़िद रहे और हो जाना उसी का सर्वदा के लिए.
पर्दे पर मुहब्बत को ऐसे उकेरना कि जब देवदास की सांसें उखड़ती थीं तो लोगों का दिल दहल जाता था. यूं ही नहीं आप ट्रैजेडी किंग कहलाये. आपने मुहब्बत करना सिखाया, मुहब्बत की ज़ुर्रत करना सिखाया, मुहब्बत में हिमाक़त करना सिखाया, मुहब्बत में सब क़ुबूल करना सिखाया और गढ़ दिया सिनेमा में अनूठा पाठ्यक्रम मुहब्बत का.
आज चला गया वह सलीम जिसके पहलू में एक कनीज़ अनारकली बनी, जिसकी सोहबत में अनारकली मल्लिका-ए-हिंदुस्तान होती.
दिल को तेरी ही तमन्ना, दिल को है तुझसे ही प्यार
चाहे तू आये न आये हम करेंगे इंतज़ार...
जवां हिंदुस्तान की धड़कनों में मुहब्बत भरी आपने, मुहब्बत वो जिसके आगे सल्तनत ठुकरायी गयी, मुहब्बत वो जिसके लिये शमशीर पर रखे गये सिर. मुहब्बत वो जो दौड़ती रहे रगों में और जिसका क़ायल रहा ज़माना. पलकें उठाकर दिलीप कुमार जब देखते तो पता नहीं कितनी लड़कियां अनारकली हो जातीं, शराब की तलब में तड़प रहे देवदास ने न जाने कितनी धड़कनों को बेचैन किया. आपकी अदायगी बेमिसाल रही, आप स्वयं रहे सिनेमा का एक सम्पूर्ण युग जो हमेशा ज़िंदा रहेगा हिंदुस्तान की मुहब्बत में.
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