सिनेमा ने हमेशा से ही समाज को नई राह दिखाई है. समाज में जो कुछ घटित होता है, रियलिस्टिक सिनेमा में कई बार उसे उसी रूप में पेश कर दिया जाता है. समाज में बदलाव लाने में सिनेमा सशक्त भूमिका निभा सकता है. लेकिन कई बार समाज से इतना प्रभावित हो जाता है कि खुद आइना बन जाता है. तभी तो सिनेमा को समाज दर्पण भी कहा जाता है. समाज में आज भी महिलाओं की क्या स्थिति है, ये किसी से छुपा नहीं है. इस आधुनिक समय में जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक उनका साथ दे रही हैं. ऐसे में वक्त में भी महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, अन्याय, अत्याचार और बलात्कार जैसी जघन्य वारदात होती रहती हैं.
भारत की अदालतों में बलात्कार के करीब एक लाख मामले अब भी लंबित हैं. देश में औसतन बलात्कार के 90 मामले रोज होते हैं. इन मामलों में अभियुक्तों को सजा मिलने का प्रतिशत एक तिहाई से भी कम है. बाकी सारे दोषी सबूतों के अभाव में या पर्याप्त गवाह न मिलने के कारण छूट जाते हैं. ये सब उस देश में हो रहा है जिसकी 80 फीसदी आबादी किसी न किसी देवी की पूजा करती है. भारतीय सिनेमा ने हमेशा महिलाओं को उसी रूप में दिखाया, जो समाज में उनकी स्थिति रही है. महिलाओं पर आधारित केंद्रीय भूमिकाओं वाली कई फिल्में आईं, लेकिन किसी ने सही मायने में उनके हक की बात नहीं की है. साल 2016 में रिलीज हुई फिल्म 'पिंक' ने इस जड़ता को बेहद प्रभावशाली तरीके से तोड़ा.
फिल्म 'पिंक' मुख्य रूप से इस मुद्दे पर केंद्रित थी कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने तमाम तरह के कानूनों के बावजूद पीड़िताओं को न्याय मिलने में किस-किस तरह पर अड़चनें आती हैं. कानून की जानकारी न होना एक बड़ी बाधा...
सिनेमा ने हमेशा से ही समाज को नई राह दिखाई है. समाज में जो कुछ घटित होता है, रियलिस्टिक सिनेमा में कई बार उसे उसी रूप में पेश कर दिया जाता है. समाज में बदलाव लाने में सिनेमा सशक्त भूमिका निभा सकता है. लेकिन कई बार समाज से इतना प्रभावित हो जाता है कि खुद आइना बन जाता है. तभी तो सिनेमा को समाज दर्पण भी कहा जाता है. समाज में आज भी महिलाओं की क्या स्थिति है, ये किसी से छुपा नहीं है. इस आधुनिक समय में जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक उनका साथ दे रही हैं. ऐसे में वक्त में भी महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, अन्याय, अत्याचार और बलात्कार जैसी जघन्य वारदात होती रहती हैं.
भारत की अदालतों में बलात्कार के करीब एक लाख मामले अब भी लंबित हैं. देश में औसतन बलात्कार के 90 मामले रोज होते हैं. इन मामलों में अभियुक्तों को सजा मिलने का प्रतिशत एक तिहाई से भी कम है. बाकी सारे दोषी सबूतों के अभाव में या पर्याप्त गवाह न मिलने के कारण छूट जाते हैं. ये सब उस देश में हो रहा है जिसकी 80 फीसदी आबादी किसी न किसी देवी की पूजा करती है. भारतीय सिनेमा ने हमेशा महिलाओं को उसी रूप में दिखाया, जो समाज में उनकी स्थिति रही है. महिलाओं पर आधारित केंद्रीय भूमिकाओं वाली कई फिल्में आईं, लेकिन किसी ने सही मायने में उनके हक की बात नहीं की है. साल 2016 में रिलीज हुई फिल्म 'पिंक' ने इस जड़ता को बेहद प्रभावशाली तरीके से तोड़ा.
फिल्म 'पिंक' मुख्य रूप से इस मुद्दे पर केंद्रित थी कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने तमाम तरह के कानूनों के बावजूद पीड़िताओं को न्याय मिलने में किस-किस तरह पर अड़चनें आती हैं. कानून की जानकारी न होना एक बड़ी बाधा है. उस पर पुलिस का रवैया और अदालती कार्रवाई की अपमानजनक स्थितियां पीड़िता के मनोबल को तोड़ देती हैं और वह यथास्थिति को स्वीकार करने पर बाध्य हो जाती है. फिल्म सराही गई, लेकिन एक फिल्म से जागरूकता नहीं आ सकती और न ही अन्याय से लड़ने की सभी को हिम्मत मिल सकती है. इसके लिए फिल्मों के माध्यम से लगातार चोट किया जाना जरूरी है. इस कड़ी में दामिनी, लज्जा, डोर, वाटर, क्वीन, इंग्लिश विंग्लिश और लिपस्टिक अंडर माई बुर्का जैसी फिल्मों का ध्यान आता है.
आइए ऐसी ही कुछ शॉर्ट फिल्मों के बारे में जानते हैं, जिनमें महिलाओं की यथास्थिति पर बेबाकी से बात की गई है. डिज्नी प्लस हॉटस्टार ओटीटी प्लेटफॉर्म पर मौजूद ये शॉर्ट फिल्म सोचने पर मजबूर कर देते हैं. इतना ही नहीं उन महिलाओं के अंदर जागरूकता लाने का भी काम करते हैं, जो खुद को हालात के हवाले छोड़ चुकी हैं.
1- हर फर्स्ट टाइम (Her First Time)
स्टारकास्ट- सत्यजीत शर्मा, त्रिमला अधिकारी, विश्वास किनी और वीणा नैय्यर
डायरेक्टर- दिव्या उन्नी
ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर मौजूद महज आठ मिनट की ये शॉर्ट फिल्म आपको इमोशनल कर देगी. स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मां, उसकी 11 साल की बेटी और पिता के बीच की कहानी उस हर घर की दास्तान है, जहां बेटियां रहती हैं. डॉक्टर मां अस्पताल में एक महिला की डिलवरी कराने में व्यस्त है. उसी वक्त उसके पति का फोन आता है कि उसकी किशोर बेटी को पहली बार पीरियड्स आया है. मां पहले से ही घर के अंदर बेटी के लिए एक किट तैयार रखती है. उसके अंदर उसके इस्तेमाल का तरीका भी लिखकर रखती है. वो अपने बेटी को उसके बारे में बताती है. बेटी किट लेकर वॉशरूम में चली जाती है, तो पिता गूगल सर्च में पीरियड्स के बारे में जानकारी हासिल करके उसके लिए जरूरी चीजें तैयार करता है. उधर, मां नॉर्मल डिलिवरी कराने में सफल होती है, जहां महिला एक बेटी को जन्म देती है.
2- नीतिशास्त्र (Nitishastra)
स्टारकास्ट- तापसी पन्नू, विक्की अरोड़ा और सुकन्या ढांडा
डायरेक्टर- कपिल वर्मा
डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर मौजूद शॉर्ट फिल्म नीतिशास्त्र कपिल वर्मा द्वारा निर्देशित है और डिजिटल प्लेटफॉर्म रॉयल स्टैग बैरल सलेक्ट लार्ज शॉर्ट फिल्म्स द्वारा प्रस्तुत है. इस फिल्म में दिखाया जाता है कि एक लड़की (तापसी) महिलाओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देती है. उसका भाई ब्लैक बेल्ट होता है. एक दिन बहन अपने संस्थान की एक लड़की को अपने भाई के साथ उसे घर छोड़ने के लिए भेजती है. अगले दिन पता चलता है कि उस लड़की के साथ रेप हो गया है. जो उसके भाई के दोस्तों ने उसके साथ मिलकर अंजाम दिया होता है. इस घटना के बाद बहन अपने भाई से सारे रिश्ते तोड़कर उसे पुलिस के हवाले कर देती है. यहां तक कि मां के निधन के बाद जब वो जेल से आता है, तो उस मां की डेड बॉडी तक छूने नहीं देती. यहां तक कि कमरे में ले जाकर उसकी खूब पिटाई करती है. इस फिल्म में तापसी ने गजब का एक्शन दिखाया है. इसके लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड भी मिला था. महज 20 मिनट की इस फिल्म को देखकर हर कोई दंग रह जाता है.
3- देवी (Devi)
स्टारकास्ट- काजोल, मुक्ता बर्वे, नीना कुलकर्णी, नेहा धूपिया, रमा जोशी, संध्या म्हात्रे, शिवानी रघुवंशी, श्रुति हासन और यशस्विनी दायमा
डायरेक्टर- प्रियंका बनर्जी
शॉर्ट फिल्म 'देवी' उन 9 महिलाओं की कहानी है, जो अलग-अलग परिस्थितियों के निकलकर एक ऐसी जगह आ पहुंची हैं, जहां कोई उनका अपना नहीं है. फिल्म में गौर करने वाली बात ये है कि यहां हर महिला पुरूष प्रधान समाज के उसी मर्द की मर्दागनी का शिकार हुई हैं, जिसके हुंकार वो हमेशा से भरते आए हैं. 13 मिनट में ये 9 महिलाएं अपने दर्द से रूबरू कराती हैं, जो अपनी टीस को भुला नहीं पाई हैं. घर के अंदर रहते हुए वो अपने साथ किसी और को रखने या नहीं रखने पर बहस करती हैं. इसी बीच दरवाजा खुलता है और एक मासूम बच्ची अंदर प्रवेश करती है, जो समाज के जुल्मों की शिकार होती है. उसे देखकर हर कोई हक्का-बक्का रह जाता है.
4- कहानीबाज (Kahanibaaz)
स्टारकास्ट- आशीष विद्यार्थी, साशो शरथी, रिया राय, संजय विचारे, सोनिया त्रेडिया और सर्वेश अदावड़े
डायरेक्टर- संदीप वर्मा
महज 19 मिनट की शॉर्ट फिल्म कहानीबाज में एक टैक्सी ड्राइवर की दिल झकझोर देने वाली कहानी दिखाई गई है, जो बचपन से ही घरेलू हिंसा को देखते हुए बड़ा हुआ है. उसका शराबी पिता अक्सर नशे में उसके और उसकी मां के साथ मारपीट करता है. उनको शारीरिक और मानसिक यातनाएं देता है. यह सब देखते हुए वो बड़ा होता है, लेकिन मानसिक रूप से उसकी स्थिति खराब हो जाती है. वो अंदर से अपने पिता की तरह हिंसक हो जाता है. हर रोज अपने सवारियों के साथ उसी तरह की हिंसा करता है. उनकी हत्या कर देता है. एक शख्स के पीड़ित और दोषी दोनों हो सकता है, इसे फिल्म में बखूबी दिखाया गया है. आशीष विद्यार्थी ने शानदार अभिनय किया है.
5- एवरीथिंग इज फाइन (Everything is Fine)
स्टारकास्ट- सीमा पाहवा और पालोमी घोष
डायरेक्टर- मानसी निर्मल जैन
लार्ज शॉर्ट फिल्म्स के बैनर तले मानसी निर्मल जैन के निर्देशन में बनी फिल्म 'एवरीथिंग इज फाइन' एक ऐसी महिला की कहानी है, जो अपने उम्र के तीसरे पड़ाव में जाकर अपने मन की बात उजागर करती है. शादी के 35 साल तक पति के इशारों पर चलने को मजबूर वो महिला एक दिन फूट पड़ती है. उसके बाद वो सबकुछ करती है, जो उसका मन कहता है. इस रोल में सीमा पाहवा ने हमेशा की तरह जान डाल दिया है. महिला और उसका पति काफी दिनों बाद अपने बेटी से मिलने दिल्ली उसके घर आते हैं. वहां एक दिन रात को इमोशनल होकर महिला अपने बेटी से कहती है कि अब वो उसके पिता के साथ नहीं रहना चाहती. बेटी हैरान रह जाती है. बिना वजह पूछे उसे समझा देती है. लेकिन एक दिन सुबह अचानक वो महिला घर से गायब हो जाती है. बाद में पता चलता है कि वो बार वो सबकुछ करती है, जो उसका मन कह रहा होता है. अपने मन शॉपिंग, बोटिंग यहां तक कि स्मोकिंग भी करती है. कुल मिलाकर एक महिला की अपनी इच्छा भी होती है, ये फिल्म पुरजोर तरीके से बताती है.
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