यह चंबल की कहानी है. एक धाकड़ और एक राजनेता की जुगलबंदी की कहानी है. एक सीधे सादे नौजवान के प्यार और सपने की कहानी है. एक बुजुर्ग धाकड़ के बदले की कहानी है. और आखिर में कहूं तो दशहरे पर एक और रावण के मरने की कहानी है 'फेमस'.
दरअसल करण ललित भूटानी की इस फिल्म की कहानी वही घिसीपिटी है. एक अच्छा आदमी है एक बुरा आदमी है दोनों का संघर्ष है और अंत में बुराई पर अच्छाई की जीत होती है. एक और राम अपनी सीता को बचाने में सफल हो जाता है.
कहानी चंबल के किनारे बसे गांव रामसराय की है जहां धाकड़ कड़क सिंह यानी केके और सांसद रामविजय त्रिपाठी यानी पंकज त्रिपाठी की जुगलबंदी ने आतंक मचा रखा है जिसका शिकार बनता है नौजवान राधे और उसकी पत्नी यानी जिमी शेरगिल और श्रेया सरन.
वैसे 'फेमस' की दो अच्छी बातें भी रहीं. पहली यह कि फिल्म में किरदारों का अभिनय जबरदस्त है. लेकिन कमजोर पटकथा के सामने वो मात खा गए. सच में यह तो केके मेनन, पंकज त्रिपाठी और जिमी शेरगिल का अभिनय ही था कि कमजोर स्क्रिप्ट और कमजोर स्क्रीन प्ले वाली इस फिल्म को लोगों ने पूरा देखा, वरना बॉलिवुड की दूसरी फिल्में जो चंबल की पृष्ठभूमि पर बनी हुई हैं जैसे कच्चे धागे, बैंडेट क्वीन और पान सिंह तोमर यह फिल्म इनके सामने कहीं नहीं टिकती. इसमें उनकी तरह फेमस होने के तत्वों का अभाव है.
दूसरी बात जो मुझे अच्छी लगी है वो यह, कि फिल्म में चंबल के इलाकों में महिलाओं के प्रति सामंती सोच को जिस तरह से दिखाया गया है...
यह चंबल की कहानी है. एक धाकड़ और एक राजनेता की जुगलबंदी की कहानी है. एक सीधे सादे नौजवान के प्यार और सपने की कहानी है. एक बुजुर्ग धाकड़ के बदले की कहानी है. और आखिर में कहूं तो दशहरे पर एक और रावण के मरने की कहानी है 'फेमस'.
दरअसल करण ललित भूटानी की इस फिल्म की कहानी वही घिसीपिटी है. एक अच्छा आदमी है एक बुरा आदमी है दोनों का संघर्ष है और अंत में बुराई पर अच्छाई की जीत होती है. एक और राम अपनी सीता को बचाने में सफल हो जाता है.
कहानी चंबल के किनारे बसे गांव रामसराय की है जहां धाकड़ कड़क सिंह यानी केके और सांसद रामविजय त्रिपाठी यानी पंकज त्रिपाठी की जुगलबंदी ने आतंक मचा रखा है जिसका शिकार बनता है नौजवान राधे और उसकी पत्नी यानी जिमी शेरगिल और श्रेया सरन.
वैसे 'फेमस' की दो अच्छी बातें भी रहीं. पहली यह कि फिल्म में किरदारों का अभिनय जबरदस्त है. लेकिन कमजोर पटकथा के सामने वो मात खा गए. सच में यह तो केके मेनन, पंकज त्रिपाठी और जिमी शेरगिल का अभिनय ही था कि कमजोर स्क्रिप्ट और कमजोर स्क्रीन प्ले वाली इस फिल्म को लोगों ने पूरा देखा, वरना बॉलिवुड की दूसरी फिल्में जो चंबल की पृष्ठभूमि पर बनी हुई हैं जैसे कच्चे धागे, बैंडेट क्वीन और पान सिंह तोमर यह फिल्म इनके सामने कहीं नहीं टिकती. इसमें उनकी तरह फेमस होने के तत्वों का अभाव है.
दूसरी बात जो मुझे अच्छी लगी है वो यह, कि फिल्म में चंबल के इलाकों में महिलाओं के प्रति सामंती सोच को जिस तरह से दिखाया गया है वो थोड़ा वास्तविकता के करीब है. कौन नहीं जानता कि यह पूरा इलाका स्त्रियों के शोषण की कहानी गढ़ता है. जातिगत विसंगतियों में फंसे इस इलाके में स्त्रियों का शोषण आम है. फूलन कैसे और किस तरह फूलन बनी थी यह किसे नहीं पता.
फिल्म चंबल नदी के पानी पर सुनाई जाने वाली पौराणिक कथा के नरेशन से शुरू हुई थी जो श्रवण कुमार से जुड़ी हुई है जिसमें बताया गया है कि चंबल का पानी मुंह में जाते ही कैसे श्रवण कुमार का स्वभाव बदला और उन्होंने मां बाप को कंधे से उतार कर पटक दिया था. यह भले मिथ हो पर चंबल के संदर्भ में कभी-कभी यह सच ही लगता है. वहां लोगों का रुखापन सच में वहां के पानी का ही असर लगता है.
खैर फिल्म औसत से भी कम अच्छी है. सितारों के नाम देखकर अगर आप फिल्म देखने जाते हैं तो जिम्मेदारी आपकी होगी. मेरी ओर से फिल्म को दो स्टार.
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