पठान के जरिए बॉलीवुड में कई नई-नई चीजें देखने को मिल रही हैं. अब यह पठान के घटिया और राजनीतिक कॉन्टेंट पर आई दर्शकों की उग्र प्रतिक्रिया को भोथरा करने का हथकंडा है या फिर किसी भी तरह शाहरुख खान को सुपरहिट बना लेने की जिद, कुछ तय नहीं कहा जा सकता. मगर भारतीय सिनेमा के इतिहास में पठान के पक्ष में मोर्चाबंदी जिस तरह नजर आ रही है- पहले कभी नजर नहीं आया था. आईचौक की याद में तो नहीं दिखता ऐसा कुछ. ट्रेलर-टीजर समेत पठान के तमाम विजुअल सामने आ चुके हैं. दर्शकों ने इसे औसत और घटिया कॉपी पेस्ट करार दिया है जो तमाम हॉलीवुड फिल्मों से चुराकर बनाई गई है. निर्माताओं को डर है कि उनकी फिल्म कहीं फ्लॉप ना हो जाए. इसके लिए तगड़ा माहौल बना रहे हैं. पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है.
शायद कोशिश है कि टिकट खिड़की पर किसी भी हालत में फिल्म को संतोषजनक स्टार्ट मिल जाए ताकि आने वाले वीकएंड और नॉर्मल वीकडेज में उसे जनादेश बताकर प्रचारित किया जाए और दर्शकों को सिनेमाघर आने के लिए ललचाया जाए. असल में शाहरुख के फैन क्लब की कोशिशें तो यही साबित करती हैं. शाहरुख के स्पेशल फैन क्लब ने पहले दिन पहले शो के लिए शाहरुख के 50 हजार प्रशंसकों को फिल्म सिनेमाघर लाने का फैसला लिया है. तमाम रिपोर्ट का कहना है कि फैन क्लब के प्रयास से पहले दिन के लिए 50 हजार टिकट बुक किए जाएंगे. टिकट बुक भी हो रहे हैं. 200 शहरों में फिल्म दिखाने का लक्ष्य है. फैन क्लब ने पठान की रिलीज पर देश के तमाम शहरों में जश्न का भी इंतजाम किया है. इसके तहत ढोल नगाड़े आदि बजाए जाएंगे और उनके विजुअल से सोशल मीडिया पर फिल्म के पक्ष में माहौल बनाया जाएगा. जैसे शाहरुख खान दी ग्रेट रजनीकांत हों.
पठान को लेकर जारी कवायदों से कई सवाल उठ रहे हैं? हालांकि फैन क्लब की कवायद से पठान को लेकर कई सारे स्वाभाविक सवाल उभर रहे हैं. पहला यही कि क्या पठान का कॉन्टेंट इतना कमजोर है कि निर्माताओं को अब फैन क्लब के जरिए एडवांस बुकिंग का सहारा लेना पड़ रहा है और दर्शक जुटाना पड़ रहा है. बताने की जरूरत नहीं कि एडवांस...
पठान के जरिए बॉलीवुड में कई नई-नई चीजें देखने को मिल रही हैं. अब यह पठान के घटिया और राजनीतिक कॉन्टेंट पर आई दर्शकों की उग्र प्रतिक्रिया को भोथरा करने का हथकंडा है या फिर किसी भी तरह शाहरुख खान को सुपरहिट बना लेने की जिद, कुछ तय नहीं कहा जा सकता. मगर भारतीय सिनेमा के इतिहास में पठान के पक्ष में मोर्चाबंदी जिस तरह नजर आ रही है- पहले कभी नजर नहीं आया था. आईचौक की याद में तो नहीं दिखता ऐसा कुछ. ट्रेलर-टीजर समेत पठान के तमाम विजुअल सामने आ चुके हैं. दर्शकों ने इसे औसत और घटिया कॉपी पेस्ट करार दिया है जो तमाम हॉलीवुड फिल्मों से चुराकर बनाई गई है. निर्माताओं को डर है कि उनकी फिल्म कहीं फ्लॉप ना हो जाए. इसके लिए तगड़ा माहौल बना रहे हैं. पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है.
शायद कोशिश है कि टिकट खिड़की पर किसी भी हालत में फिल्म को संतोषजनक स्टार्ट मिल जाए ताकि आने वाले वीकएंड और नॉर्मल वीकडेज में उसे जनादेश बताकर प्रचारित किया जाए और दर्शकों को सिनेमाघर आने के लिए ललचाया जाए. असल में शाहरुख के फैन क्लब की कोशिशें तो यही साबित करती हैं. शाहरुख के स्पेशल फैन क्लब ने पहले दिन पहले शो के लिए शाहरुख के 50 हजार प्रशंसकों को फिल्म सिनेमाघर लाने का फैसला लिया है. तमाम रिपोर्ट का कहना है कि फैन क्लब के प्रयास से पहले दिन के लिए 50 हजार टिकट बुक किए जाएंगे. टिकट बुक भी हो रहे हैं. 200 शहरों में फिल्म दिखाने का लक्ष्य है. फैन क्लब ने पठान की रिलीज पर देश के तमाम शहरों में जश्न का भी इंतजाम किया है. इसके तहत ढोल नगाड़े आदि बजाए जाएंगे और उनके विजुअल से सोशल मीडिया पर फिल्म के पक्ष में माहौल बनाया जाएगा. जैसे शाहरुख खान दी ग्रेट रजनीकांत हों.
पठान को लेकर जारी कवायदों से कई सवाल उठ रहे हैं? हालांकि फैन क्लब की कवायद से पठान को लेकर कई सारे स्वाभाविक सवाल उभर रहे हैं. पहला यही कि क्या पठान का कॉन्टेंट इतना कमजोर है कि निर्माताओं को अब फैन क्लब के जरिए एडवांस बुकिंग का सहारा लेना पड़ रहा है और दर्शक जुटाना पड़ रहा है. बताने की जरूरत नहीं कि एडवांस बुकिंग रिपोर्ट से भी फिल्मों के पक्ष में माहौल बनता है. दर्शकों की राय प्रभावित की जाती है. दर्शकों को लगता है कि जिस फिल्म की एडवांस बुकिंग हो रही है- उसमें देखने वाली कोई ना कोई बात जरूर होगी. खरबूजा इफेक्ट मान लीजिए. अब इस लिहाज से पठान की बुकिंग को लेकर कोई सही निष्कर्ष निकालना संभव ही नहीं. जब एडवांस बुकिंग ही स्वाभाविक नहीं है तो भला निष्कर्ष सटीक कैसे निकलेंगे. और कैसे मान लिया जाए कि पठान के पक्ष में माहौल बना ही हुआ है.
दूसरा- फैन क्लब के जरिए जो टिकट बुक हुए या होंगे उनमें किसका निवेश है? क्या फिल्म के निर्माता, कुछ संगठनों ने फंडिग की है. असल में यह सवाल ब्रह्मास्त्र और लाल सिंह चड्ढा की रिलीज के वक्त भी उठा था. यह दोनों फ़िल्में ही क्यों- लोग आज तक बॉलीवुड की तमाम फिल्मों के पहले तीन दिन में रिकॉर्डतोड़ जादुई कलेक्शन और उनके लाइफटाइम कलेक्शन को ठीक से समझ नहीं पाए हैं. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने शुरुआती कलेक्शन को एक तरह का स्कैम भी करार दिया. और आरोप लगाया कि निर्माताओं का एक बजट ओपनिंग कलेक्शन के लिए भी होता है. बॉलीवुड के निर्माता पीआर से दर्शकों को बरगलाते हैं. ओपनिंग कलेक्शन से रिलीज के बाद पीआर का माहौल बनाया जाता है.
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क्योंकि आंकड़ों के कम या ज्यादा होने से साफ़ समझ में आ जाता है कि दर्शकों को फिल्म कैसे लगी. सोशल मीडिया पर अक्सर कहा जाता है कि पहले तीन दिन के लिए निर्माता कलेक्शन को अपने पक्ष में दिखाने के लिए निवेश करते हैं. बात दूसरी है कि पहले तीन दिन धुआंधार कमाने वाली फ़िल्में भी सुपरफ्लॉप हुईं. आईचौक ने इस पर एक विश्लेषण भी किया था. खैर, ज्यादातर फ़िल्में खान सितारों की थीं. उदाहरण के लिए ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान, ट्यूबलाइट और रेस 3 को इस लिस्ट में प्रमुखता से ले सकते हैं. तीनों फिल्मों का ओपनिंग कलेक्शन और ओपनिंग वीकएंड कलेक्शन शानदार रहा है. लेकिन बाद में फ़िल्में बैठ गई.
लोग आज तक समझ नहीं पाए हैं कि जब बड़ी-बड़ी फिल्में शुरू के तीन दिन देखी गई तो बाद में क्या हुआ? जबकि ट्रेंड यह है कि जो फिल्म एक बार बढ़िया स्टार्ट पा लेती है उसकी रफ़्तार अगले कई दिनों तक नजर आती है.
बॉलीवुड हंगामा के मुताबिक़ आमिर की ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान ने 52.25 करोड़ की रिकॉर्डतोड़ ओपनिंग पाई. तीन दिन में देसी बॉक्स ऑफिस पर 123 करोड़ कमाए. लेकिन फिल्म का लाइफटाइम कलेक्शन 151 करोड़ है. सिर्फ 151 करोड़.
सलमान की ट्यूबलाईट ने भी पहले दिन 21.15 की शानदार ओपनिंग पाई. पहले तीन दिन में 64.77 करोड़ कमाई हुई. और लाइफ टाइम कलेक्शन सिर्फ 119 करोड़ है.
सलमान की ही रेस 3 ने पहले दिन 28.50 करोड़ की बेहतरीन स्टार्ट के साथ पहले तीन दिन में रिकॉर्डतोड़ 103 करोड़ कमाए. पर लाइफटाइम कलेक्शन सिर्फ 166 करोड़ रहा.
लाइफटाइम का मतलब सिनेमाघरों में कम से कम 30 दिन फिल्म का होना है
लाइफटाइम का मतलब सिनेमाघरों में कम से कम 30 दिनों से ज्यादा का वक्त है. सिर्फ इन तीन फिल्मों के शुरुआती कलेक्शन से समझा जा सकता है कि बाद में इन्हें देखा ही नहीं गया. चार साल पहले जीरो तक आई शाहरुख की आधा दर्जन फिल्मों का भी कलेक्शन लगभग इसी तरह का है. यह भारतीय सिनेमा का ट्रेंड है. बस लाइफटाइम के मामले में हॉलीवुड की फिल्मों को लेकर जरूर एक अपवाद नजर आता है.
हॉलीवुड की फिल्मों की भारत में समूची कमाई ज्यादा से ज्यादा डेढ़ से तीन हफ़्तों के बीच ही निकलकर आती है. और इसकी वजह सिर्फ यह है कि हॉलीवुड की ज्यादातर बड़ी फिल्मों की शोकेसिंग महानगरों के मल्टीप्लेक्स में होती है. हॉलीवुड की टारगेट ऑडियंस इंस्टैंट है. ज्यादा से ज्यादा दो-तीन हफ़्तों में फिल्म देख लेती है. वहां कारोबारी आंकड़े बिल्कुल अलग तरह से निकलकर आते हैं. ऊपर जिन तीन फिल्मों के कलेक्शन की जानकारी दी गई रिलीज के बाद बॉक्स ऑफिस के जरिए उनका पीआर किस तरह किया गया, जाकर एक बार हरेक को चेक करना चाहिए. बावजूद कि फ़िल्में फ्लॉप ही हुईं.
50 हजार टिकटों के पीछे किसका पैसा?
तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि फैन क्लब के जरिए जो बड़े पैमाने पर बुकिंग हुई है उसकी फंडिंग कैसे हुई है? क्या फैन क्लब ने फंड किया है. फैन क्लब के मेम्बर्स ने फंड किया है या फिर निर्माताओं या खुद शाहरुख खान ने फंड किया है. आइचौक इस बारे में कुछ भी साफ़ साफ़ कहने की स्थिति में नहीं है. लेकिन यह छिपी बात नहीं कि सितारों के फैनक्लब किस स्टार्स के पक्ष में किस तरह और क्या काम करते हैं. और सिर्फ शाहरुख ही नहीं, अक्षय कुमार और तमाम सितारों के लिए उनके फैन क्लब इसी तरह काम करते हैं.
बस शाहरुख के लिए अभियान चलाकर दर्शक जुटाने का शायद यह पहला उदाहरण हो. वर्ना तो तमाम फैन क्लब का काम फिल्म और अपने स्टार का प्रमोशन करना है. उनकी छवि बनाना है. वे ढोल नगाड़े बजाते सिनेमाघरों में दिखते हैं. और यह भी छिपी बात नहीं है कि फैन क्लब को स्टार्स की तरफ से वित्तीय मदद मिलती है. सितारे अपने तमाम क्लब को फिनेंशियली सपोर्ट करते नजर आते हैं. बिल्कुल वैसे ही जैसे तमाम राजनीतिक रैलियों के लिए भीड़ जुटाने को लेकर हर तरह की पार्टियां पैसे और संसाधन खर्च करती हैं.
अब देखने वाली बात यह होगी कि शाहरुख की पठान को इससे फायदा मिलता है या फिर टिकट खिड़की पर जुगाड़ का स्टार्ट हासिल करने के बाद उनका हाल वही होगा जो बेहतरीन कलेक्शन निकालने के बावजूद डूब गई बॉलीवुड फिल्मों का हुआ.
सवाल यह भी बना ही रहेगा कि क्या बॉलीवुड में निर्माता अब शुरुआत में बेहतर कलेक्शन दिखाने के लिए भी बजट का एक हिस्सा खर्च कर रहे हैं. क्योंकि बॉलीवुड प्रचार पर बहुत सारा पैसा खर्च करता है.
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