मंटो का एक ही सवाल है- जो चीज जैसी है उसे वैसी ही पेश क्यों ना किया जाए? आखिर टाट को रेशम क्यों कहा जाए?
आजादी देश को ही नहीं लोगों को भी मिलनी चाहिए. बोलने की आजादी, अपने ढंग से रहने की आजादी, चीजों को अपने हिसाब से देखने की आजादी. मंटो बेबाक लिखते थे. Vulgarity को उनकी कहानियों का केन्द्र बताया गया. लेकिन क्या लिटरेचर कभी वल्गर हो सकता है?
मंटो का एक ही सवाल है- जो चीज जैसी है उसे वैसी ही पेश क्यों ना किया जाए? आखिर टाट को रेशम क्यों कहा जाए? हकीकत से इंकार करने से अगर समाज को बेहतर बनाया जा सकता तो राम-राज्य खत्म ही नहीं होता.
जमाने के साथ अदब भी बदले
समय आ गया है कि जमाने की करवटों के साथ अदब भी करवट बदले. नंदिता दास निर्देशित इस वीडियो में बोलने की आजादी पर मंटो की बेबाकी के जरिए करारा प्रहार किया गया है.
आजादी देश को ही नहीं लोगों को भी मिलनी चाहिए. बोलने की आजादी, अपने ढंग से रहने की आजादी, चीजों को अपने हिसाब से देखने की आजादी. मंटो बेबाक लिखते थे. Vulgarity को उनकी कहानियों का केन्द्र बताया गया. लेकिन क्या लिटरेचर कभी वल्गर हो सकता है?
मंटो का एक ही सवाल है- जो चीज जैसी है उसे वैसी ही पेश क्यों ना किया जाए? आखिर टाट को रेशम क्यों कहा जाए? हकीकत से इंकार करने से अगर समाज को बेहतर बनाया जा सकता तो राम-राज्य खत्म ही नहीं होता.
जमाने के साथ अदब भी बदले
समय आ गया है कि जमाने की करवटों के साथ अदब भी करवट बदले. नंदिता दास निर्देशित इस वीडियो में बोलने की आजादी पर मंटो की बेबाकी के जरिए करारा प्रहार किया गया है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.