मौलिक रचनाओं की नक़ल और चोरी का विवाद नया नहीं है. फिल्म उद्योग के उदीयमान गीतकार मनोज मुंतशिर पर हाल ही में नक़ल के आरोप लगे. उस पर खूब सारे विवाद देखने को मिले. सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ काफी कुछ लिखा गया. कहा गया कि उन्होंने कई लेखकों को कॉपी किया. मनोज मुंतशिर के मुद्दे पर खूब बात हुई, मगर मुंतशिर को लेकर जिस वक्त विवाद गहरा रहा था उससे कुछ समय पहले ही रिलीज हुई कंगना रनौत-अरविंद स्वामी की फिल्म "थलाइवी" में भी एक नक़ल किया हुआ गीत सामने आया. हिंदी के जाने-माने लेखक पंकज सुबीर ने एक फेसबुक पोस्ट में थलाइवी के लिए लिखी मशहूर गजल की पैरोडी पर तंज कसा. पैरोडी को किसी और ने नहीं बॉलीवुड के ही दूसरे मशहूर और वरिष्ठ गीतकार इरशाद कामिल ने लिखा है.
पंकज सुबीर ने लिखा- "इरशाद कामिल चोरी क्यों करेंगे? अभी "थलाइवी" फ़िल्म देख रहा था तो उसमें एक गीत आया- "टुकड़ा-टुकड़ा दिन बीता, रेशा-रेशा रात हुई" मैं चौंक गया, तुरंत नेट पर सर्च किया कि इस गीत के गीतकार में किसका नाम दिया गया है. देखा तो इरशाद कामिल का नाम लिखा है गीतकार के रूप में. 1972 में मीना कुमारी का एक अल्बम आया था "I Write I Recite" इसमें एक ग़ज़ल थी जिसके मतले का मिसरा ऊला था- "टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली" आप कहेंगे कि ये चोरी नहीं है, क्योंकि इरशाद कामिल ने धज्जी-धज्जी के स्थान पर रेशा-रेशा कर दिया है. इरशाद कामिल तो बड़े गीतकार हैं. चोरी क्यों करेंगे?"
पंकज सुबीर की पोस्ट पर कई सारे कमेंट आए हैं जिसमें इरशाद कामिल की ओर से इसी तरह पहले की गई और सारी 'नक्कालियों' का जिक्र हुआ है. नरेंद्र धाकड़ अमीन ने कामिल के लिखे- "कागा रे कागा रे मोरी इतनी अरज तोसे चुन चुन खहियो मांस, रे जिया रे खइयो ना तू नैना मोरे खइयो ना...
मौलिक रचनाओं की नक़ल और चोरी का विवाद नया नहीं है. फिल्म उद्योग के उदीयमान गीतकार मनोज मुंतशिर पर हाल ही में नक़ल के आरोप लगे. उस पर खूब सारे विवाद देखने को मिले. सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ काफी कुछ लिखा गया. कहा गया कि उन्होंने कई लेखकों को कॉपी किया. मनोज मुंतशिर के मुद्दे पर खूब बात हुई, मगर मुंतशिर को लेकर जिस वक्त विवाद गहरा रहा था उससे कुछ समय पहले ही रिलीज हुई कंगना रनौत-अरविंद स्वामी की फिल्म "थलाइवी" में भी एक नक़ल किया हुआ गीत सामने आया. हिंदी के जाने-माने लेखक पंकज सुबीर ने एक फेसबुक पोस्ट में थलाइवी के लिए लिखी मशहूर गजल की पैरोडी पर तंज कसा. पैरोडी को किसी और ने नहीं बॉलीवुड के ही दूसरे मशहूर और वरिष्ठ गीतकार इरशाद कामिल ने लिखा है.
पंकज सुबीर ने लिखा- "इरशाद कामिल चोरी क्यों करेंगे? अभी "थलाइवी" फ़िल्म देख रहा था तो उसमें एक गीत आया- "टुकड़ा-टुकड़ा दिन बीता, रेशा-रेशा रात हुई" मैं चौंक गया, तुरंत नेट पर सर्च किया कि इस गीत के गीतकार में किसका नाम दिया गया है. देखा तो इरशाद कामिल का नाम लिखा है गीतकार के रूप में. 1972 में मीना कुमारी का एक अल्बम आया था "I Write I Recite" इसमें एक ग़ज़ल थी जिसके मतले का मिसरा ऊला था- "टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली" आप कहेंगे कि ये चोरी नहीं है, क्योंकि इरशाद कामिल ने धज्जी-धज्जी के स्थान पर रेशा-रेशा कर दिया है. इरशाद कामिल तो बड़े गीतकार हैं. चोरी क्यों करेंगे?"
पंकज सुबीर की पोस्ट पर कई सारे कमेंट आए हैं जिसमें इरशाद कामिल की ओर से इसी तरह पहले की गई और सारी 'नक्कालियों' का जिक्र हुआ है. नरेंद्र धाकड़ अमीन ने कामिल के लिखे- "कागा रे कागा रे मोरी इतनी अरज तोसे चुन चुन खहियो मांस, रे जिया रे खइयो ना तू नैना मोरे खइयो ना तू नैना मोरे पिया के मिलन की आस" को साझा करते हुए बताने की कोशिश की कि ये गीत दरअसल, बाबा फरीद की मामूली फेरबदल के साथ कॉपी है. उन्होंने फरीद के लिखे को भी साझा किया- "कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खाइयो मांस, दोइ नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस." अनु शक्ति सिंह ने तो आरोप लगाया कि कामिल ने 2010 में भी "दिन चढ़ेया तेरे वरगा" लिखते हुए सीधा यह बात गोल कर दिया था कि लाइनें शिव कुमार बटालवी जैसे कवि का लिखा हुआ है. कई यूजर्स ने ऐसी हरकतों को शर्मनाक बताते हुए पैरोडी के औचित्य पर ही सवाल उठाए और मूल लेखकों को क्रेडिट दिए जाने की वकालत की.
बॉलीवुड में इस तरह की परंपरा लंबी
बॉलीवुड में नक़ल, घटिया पैरोडी की परंपरा नई बात नहीं है. इरशाद या मनोज से काफी पहले ऐसा हुआ है. लोगों ने मशहूर शायरों-कवियों के लिखे की नक़ल की है या सीधे-सीधे पैरोडी बना डाली और बेशर्मी यह कि मूल रचनाकारों को क्रेडिट भी नहीं दिया. गुलजार और वरुण ग्रोवर जैसे नाम भी आरोपों से अछूते नहीं हैं. गुलजार पर तब खूब विवाद हुआ था जब उन्होंने "इब्न बतूता पहन के जूता" को लिखा था. अनारकली ऑफ आरा के निर्देशक अविनाश दास ने उस वक्त साहित्यिक पत्रिका कथादेश में गुलजार की कारगुजारी पर एक लेख भी लिखा था. गुलजार जैसे नाम की वजह से साहित्यिक गलियारे में उस वक्त विवाद खूब चर्चा हुई.
गुलजार का लिखा इब्न बतूता दरअसल, सर्वश्रेष्ठ हिंदी कवियों में शुमार सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता- "बतूता का जूता" से उठाई गई थी. गुलजार के अलावा अभी कुछ साल पहले विक्की कौशल स्टारर "मसान" में भी वरुण ग्रोवर ने हिंदी के मशहूर शायर दुष्यंत कुमार की लाइनों पर पैरोडी लिखी थी. "तू किसी रेल सी गुजरती है"- पर वरुण ग्रोवर ने एक घटिया सी पैरोडी बनाई थी. बॉलीवुड में ऐसे कई मामले खोजने पर आसानी से मिल जाएंगे जब लोगों ने नक़ल या प्रेरित होकर फ़िल्मी गीत लिखे और मूल रचनाओं को क्रेडिट भी नहीं दिया.
मसान के वक्त भी लोगों ने सवाल उठाए थे कि भला इसकी पैरोडी लिखने की क्या जरूरत थी? इसे सीधे-सीधे दुष्यंत के नाम से भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यह भी सवाल उठा था कि निर्माता घटिया पैरोडी के लिए लेखकों को मेहनताना देने के लिए तैयार हैं, मगर मूल लेखकों को क्रेडिट या पैसा देने में उनकी तिजोरी के रुपये ख़त्म हो जाते हैं. अच्छी बात यह है कि मसान का गाना जी के यूट्यूब पर है और उसमें दुष्यंत को भी क्रेडिट दिया गया है.
नक़ल की फ़िल्में, नक़ल का संगीत
ना सिर्फ फिल्मों के गीत बल्कि नक़ल की स्क्रिप्ट और संगीत तक चोरी से बनाने के मामले आए हैं. एसडी बर्मन जैसे दिग्गजों भी घेरे में आ चुके हैं. पब्लिक डोमेन में कई आर्टिकल मौजूद हैं- उसमें दावा है कि कैसे एसडी वर्मन के दो दर्जन से ज्यादा गीतों की धुन विदेशी संगीतकारों से चुराई है. जहां तक बात बॉलीवुड की है तो यहां कई फिल्मों की कहानियां चोरी करके लिखी गई हैं. कई मामले तो अदालतों तक पहुंचे हैं.
मूल रचनाओं को क्रेडिट क्यों नहीं
मनोज मुंतशिर का यह कहना कि मेरी कोई रचना मौलिक नहीं बल्कि प्रेरित है- अब चोरी करने और प्रेरित होने की डिबेट इतनी महीन है कि उस पर मौजूदा लेखक की ओर से कोई टिप्पणी गंभीर ना मानी जाए. बल्कि आलोचक विचार स्पष्ट करें. मेरा मानना है कि मूल स्रोत को क्रेडिट देने से कंटेंट और उसे रचने वाले की विश्वसनीयत और बढ़ जाती है. कुछ नुकसान नहीं होता. क्रेडिट ना देना किसी के श्रम और प्रतिभा का असम्मान है. बॉलीवुड को यह याद रखना चाहिए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.