अमेजन प्राइम वीडियो की 'पंचायत' और सोनी लिव की 'निर्मल पाठक की घर वापसी' जैसी वेब सीरीज की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार ने एक नई सीरीज 'घर वापसी' रिलीज की है. इस सीरीज की आत्मा वैसी ही है, जैसे कि 'निर्मल पाठक की घर वापसी' में महसूस हुई थी. बस कहानी की पृष्ठभूमि बदल दी गई है. इससे पहले की इस तरह सीरीज में कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित रही है, जिसमें शहर से एक किरदार गांव आता है. लेकिन 'घर वापसी' में मेट्रो सिटी और कॉरपोरेट कल्चर को दिखाया गया है, जहां काम करने वाला लड़का एक बड़े शहर में स्थित अपने घर आता है. कॉरपोरेट कल्चर में काम करने वाले लोग लग्जरी लाइफ भले ही जीते हैं, लेकिन भागदौड़ और तनाव भरी उनकी जिंदगी में सुकून के पल नसीब नहीं होते. यहां काम करने वाले अपने प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच बैलेंस भी नहीं बना पाते हैं.
वेब सीरीज 'घर वापसी' उन तमाम नौजवनों की सच्ची दास्तान है, जो अपने घर को छोड़कर दिल्ली और मुंबई जैसे शहर में रहकर भविष्य निर्माण के जद्दोजहद में लगे रहते हैं. पहले पढ़ाई, फिर नौकरी और उसके बाद करियर में आगे बढ़ने की होड़ में अपनी जिंदगी को भूल जाते हैं. यहां तक कि अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाते. एक साल में बमुश्किल एक बार अपने घर जाकर परिजनों से मिल पाते हैं. धीरे-धीरे उनके और परिवार के बीच भौतिक दूरियां दिलों में बढ़ने लगती है. इसका एहसास तब होता है, जब जिंदगी की रेस में उनकी एक ठोकर लगती है. तब होश आता है कि भौतिक सुख की चाहत में उन्होंने वो सब खो दिया है, जिसे पाना अब आसान नहीं है. कई बार एहसास होने के बाद कुछ लोग बीच रास्ते में अपने घर की ओर लौट जाते हैं. वहीं कुछ लोग इस एहसास को दरकिनार करके एक बार फिर उस अंधी दौड़ का हिस्सा बन जाते हैं, जिसका कोई अंत नहीं है.
वेब...
अमेजन प्राइम वीडियो की 'पंचायत' और सोनी लिव की 'निर्मल पाठक की घर वापसी' जैसी वेब सीरीज की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार ने एक नई सीरीज 'घर वापसी' रिलीज की है. इस सीरीज की आत्मा वैसी ही है, जैसे कि 'निर्मल पाठक की घर वापसी' में महसूस हुई थी. बस कहानी की पृष्ठभूमि बदल दी गई है. इससे पहले की इस तरह सीरीज में कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित रही है, जिसमें शहर से एक किरदार गांव आता है. लेकिन 'घर वापसी' में मेट्रो सिटी और कॉरपोरेट कल्चर को दिखाया गया है, जहां काम करने वाला लड़का एक बड़े शहर में स्थित अपने घर आता है. कॉरपोरेट कल्चर में काम करने वाले लोग लग्जरी लाइफ भले ही जीते हैं, लेकिन भागदौड़ और तनाव भरी उनकी जिंदगी में सुकून के पल नसीब नहीं होते. यहां काम करने वाले अपने प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच बैलेंस भी नहीं बना पाते हैं.
वेब सीरीज 'घर वापसी' उन तमाम नौजवनों की सच्ची दास्तान है, जो अपने घर को छोड़कर दिल्ली और मुंबई जैसे शहर में रहकर भविष्य निर्माण के जद्दोजहद में लगे रहते हैं. पहले पढ़ाई, फिर नौकरी और उसके बाद करियर में आगे बढ़ने की होड़ में अपनी जिंदगी को भूल जाते हैं. यहां तक कि अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाते. एक साल में बमुश्किल एक बार अपने घर जाकर परिजनों से मिल पाते हैं. धीरे-धीरे उनके और परिवार के बीच भौतिक दूरियां दिलों में बढ़ने लगती है. इसका एहसास तब होता है, जब जिंदगी की रेस में उनकी एक ठोकर लगती है. तब होश आता है कि भौतिक सुख की चाहत में उन्होंने वो सब खो दिया है, जिसे पाना अब आसान नहीं है. कई बार एहसास होने के बाद कुछ लोग बीच रास्ते में अपने घर की ओर लौट जाते हैं. वहीं कुछ लोग इस एहसास को दरकिनार करके एक बार फिर उस अंधी दौड़ का हिस्सा बन जाते हैं, जिसका कोई अंत नहीं है.
वेब सीरीज की कहानी
'घर वापसी' वेब सीरीज की कहानी बंगलुरू में काम करने वाले एक इंजीनियर शेखर द्विवेदी (विशाल वशिष्ठ) के इर्द-गिर्द घूमती है. शेखर का परिवार इंदौर में रहता है. वहां उसके पिता रतनलाल द्विवेदी (अतुल श्रीवास्तव) एक ट्रैवल एजेंसी चलाते हैं. इस काम में उसका छोटा भाई संजू द्विवेदी (साद बिलग्रामी) पिता की मदद करता है. मां मधुवंती द्विवेदी (विभा छिब्बर) बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर के खर्च चलाने में पति की मदद करती हैं. छोटी बहन सुरुचि (अनुष्का कौशिक) अभी कॉलेज पढ़ती है. एक स्टार्टअप में जॉब कर रहा शेखर एप्रेजल की उम्मीद लगाए बैठा होता है, लेकिन एक दिन अचानक उसकी नौकरी चली जाती है. इसके बाद वो करीब दो साल बाद अपने घर इंदौर वापस आ जाता है. उसे लगता है कि वो घर पर रहकर अपनी जॉब सर्च करेगा, मिलते ही वापस चला जाएगा. लेकिन घर पर आने के बाद उसके सामने अलग-अलग तरह की इतनी परिस्थितियां आती हैं, जो उसे जकड़ लेती हैं. एक तरफ छोटा भाई बिगड़ रहा है, पिता की ट्रैवल एजेंसी बंद होने की कगार पर है, मां उसकी शादी की चिंता में लगी है और छोटी बहन के सपने अलग हैं.
शेखर द्विवेदी परिवार के बीच वक्त बिताने के साथ उनकी समस्याओं के समाधान का हिस्सा बनता है. शहर में अपने दोस्तों से मिलता है. अपनी पुरानी यादों को जीने की कोशिश करता है. इस दौरान अपने पुराने सामानों को खोजता भी है. इन सबके साथ उसका असमंजस बढ़ता जाता है. नौकरी की तलाश के साथ मन में हमेशा ये चलता रहता है कि वो वापस बंगलुरु जाए या फिर इंदौर में रहकर अपने परिवार का साथ दे. इन सबके बीच स्कूल में खोया उसका प्यार भी हासिल हो जाता है. इस तरह शेखर अपने परिवार के साथ इंदौर में रहकर उनकी समस्याओं का साथी बनता है या फिर बंगलुरु जाकर अपनी जिंदगी को जीता है? इस सवाल का जवाब पाने के लिए आपको ये सीरीज देखनी होगी. फिल्म की कहानी कार्तिक कृष्णन के सानिध्य में तत्सत पांडेय और भरत मिश्रा ने लिखी है. परिवार, प्यार, जिम्मेदारी, दोस्ती और नौकरी की चाहत में फंसे एक नौजवान को केंद्र में रखकर एक ऐसे परिवेश का निर्माण किया गया है, जो कि दिल छू लेता है. कहीं-कहीं दो किरदारों के बीच के संवाद बहुत लंबे कर दिए गए हैं, जो कि सीरीज की रफ्तार को सुस्त करते हैं.
किरदार और कलाकार
इस छह एपिसोड की वेब सीरीज में विशाल वशिष्ठ, अजितेश गुप्ता, अनुष्का कौशिक, साद बिलग्रामी, विभा छिब्बर, अतुल श्रीवास्तव, आकांक्षा ठुकार और ज्ञानेंद्र त्रिपाठी जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. द्विवेदी परिवार के पांच अहम सदस्यों मधुवंती द्विवेदी, रतनलाल द्विवेदी, शेखर, संजू और सुरुचि की भूमिका क्रमश: विभा छिब्बर, अतुल श्रीवास्तव, विशाल वशिष्ठ, साद बिलग्रामी और अनुष्का कौशिक ने निभाई है. शेखर के किरदार में विशाल वशिष्ठ ने बेहतरीन अभिनय किया है. विशाल को ज्यादातर टीवी सीरियल में अभिनय करते हुए देखा गया है. इससे पहले उन्होंने 'क्लच' और 'इश्क में मरजावां 2' जैसी सीरीज में भी काम किया था. 'घर वापसी' सीरीज उनके करियर में मिल का पत्थर साबित होने वाली है. मधुवंती द्विवेदी के किरदार में विभा छिब्बर और रतनलाल द्विवेदी के किरदार में अतुल श्रीवास्तव का कोई विकल्प नहीं है. दोनों ने अपने किरदारों को जैसे जिया है, वो काबिले-तारीफ है. अजितेश गुप्ता, अनुष्का कौशिक, साद बिलग्रामी, आकांक्षा ठुकार और ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने अपने किरदारों के साथ इंसाफ किया है. सीरीज में सभी कलाकारों का अभिनय प्रदर्शन उम्दा है.
निर्देशन और तकनीक
वेब सीरीज 'घर वापसी' का निर्देशक रुचिर अरुण ने किया है. दो बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रुचिर ने इससे पहले अनपॉज्ड: नया सफर, क्लच, लिटिल थिंग, दोस्ती का नया मैदान और प्राइड का निर्देशन किया है. इस सीरीज में भी उन्होंने अपने काबिल निर्देशन के जरिए कमाल का काम किया है. एक मध्यवर्गीय परिवार के सदस्यों के बीच होने वाली नोंक-झोंक, प्यार और परवाह को उन्होंने इतनी बारीकी से दिखाया है, जैसे कि कोई आर्टिस्ट किसी चित्र को अपनी कूंची से उकेर रहा हो. दो अलग-अलग परिवेश का निर्माण करने के बाद उसकी व्याख्या करना. उनकी तुलना करना. किसी भी फिल्म मेकर के लिए कठिन माना जाता है. लेकिन रुचिर ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है. अनिरुद्ध पटांकर की सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है. उन्होंने इंदौर की खूबसूरती को अच्छे से दिखाया है. शिखर मिश्रा का संपादन थोड़ा कमजोर है. यदि कुछ एपिसोड में उन्होंने जर्राह की तरह कैंची चलाई होती तो सीरीज इससे भी ज्यादा कसी हुई मनोहर हो सकती थी. तुषार मलिक का म्युजिक और बैकग्राउंड स्कोर बढ़िया है. रिजुल राजपाल की कास्टिंग भी अच्छी कही जा सकती है.
सीरीज देखनी चाहिए?
कुल 'घर वापसी' देखने के बाद 'पंचायत', 'गुल्लक' और 'निर्मल पाठक की घर वापसी' जैसी वेब सीरीज की यादें ताजा हो जाती हैं. हालांकि, ये सीरीज पंचायत के स्तर की नहीं बन पाई है, लेकिन अपनी कहानी के जरिए आपको एक ऐसे परिवार से रूबरू कराती है, जो अपना सा लगता है. यदि कुछ दृश्यों और उनमें शामिल लंबे संवादों को छोड़ दिया जाए, तो सीरीज रोमांचक बन पड़ी है. इसे एक बार जरूर देखा जाना चाहिए.
iChowk.in रेटिंग: 5 में से 3 स्टार
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.