साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' की बंपर सफलता के बाद विक्की कौशल का नाम अचानक सुर्खियों में आया था. इस फिल्म में उनकी दमदार एक्टिंग की हर किसी ने सराहना की थी. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भी बेहतरीन कारोबार किया था. इस फिल्म की सफलता ने विकी को पहली पंक्ति के अभिनेताओं में खड़ा कर दिया था. इसके बाद साल 2021 में रिलीज हुई फिल्म 'सरदार उधम' ने उनको शोहरत को बुलंदियों पर पहुंचा दिया. इस फिल्म में सरदार उधम सिंह के किरदार को उन्होंने जीवंत कर दिया था. लेकिन साल 2020 में रिलीज हुई 'भूत' जैसी फिल्म ने विक्की की छवि को नुकसान पहुंचाने का काम किया. वर्तमान में ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही फिल्म 'गोविंदा नाम मेरा' को देखने के बाद तो यही कहा जा सकता है कि अभिनेता 'ऊरी' और 'सरदार उधम' से मिली ख्याति को खुद ही धोने में लगे हुए हैं.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लंबे समय तक टिके रहने और सफल बने रहने के लिए सही स्क्रिप्ट का चुनाव बहुत मायने रखता है. वरना पैसा कमाने के फेर में पड़े एक्टर बहुत जल्द इंडस्ट्री से बाहर हो जाते हैं. विक्की कौशल को ये बात ध्यान में रखना चाहिए. 90 के दशक में अपनी अदायगी से दर्शकों का दिल जीतने वाले हीरो नंबर वन गोविंदा के नाम पर बनी इस फिल्म में कॉमेडी का दावा तो किया गया है, लेकिन किसी भी सीन या संवाद को देख-सुनकर हंसी नहीं आती. इसमें रहस्य और रोमांच पैदा करने के लिए प्रॉपर्टी विवाद और मर्डर मिस्ट्री को शामिल किया गया है, लेकिन ये फिल्म रोमांचक बिल्कुल भी नहीं है. फिल्म में स्टारकास्ट भी ठीक ठाक ली गई है, लेकिन नाम बड़े और दर्शन छोटे जैसी कहावत इस कास्ट पर सटीक बैठती है. कुल मिलाकर, 'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' फेम शशांक खेतान जैसे काबिल फिल्म मेकर ने ये फिल्म क्यों बनाई ये समझ से परे हैं.
विक्की कौशल, भूमि पेडनेकर और कियारा आडवाणी स्टारर फिल्म 'गोविंदा नाम मेरा' रिलीज हो चुकी है.
फिल्म 'गोविंदा नाम मेरा' का निर्माण करने वाले धर्मा प्रोडक्शंस के मालिक करण जौहर के तो वैसे भी दिन खराब चल रहे हैं. शायद यही वजह है कि उन्होंने इतनी बड़ी स्टारकास्ट होने के बावजूद इस फिल्म को ओटीटी पर रिलीज करना बेहतर समझा है. वरना उनको पता था कि बॉलीवुड बायकॉट की आंधी में उनकी फिल्म का उड़ना तय था. ऐसे में न तो बॉक्स ऑफिस पर कमाई हो पाती न ही ओटीटी वालों से पैसा वसूल कर पाते. फिलहाल विक्की कौशल का नाम बेंचकर फिल्म की लागत तो निकाल ली गई है. लेकिन दर्शकों के बारे में न तो डिज्नी प्लस हॉटस्टार ने सोचा न ही करण ने. ऐसी फिल्में ओटीटी की छवि खराब करने का काम करती हैं. क्योंकि दर्शक भरोसे के साथ अपना कीमती समय लगाकर मनोरंजन के लिए फिल्म देखने बैठते हैं. लेकिन बाद में उनको सिरदर्द की दवा खानी पड़ती हैं. हॉटस्टार को अपनी कंटेंट टीम से इस पर ध्यान देने के लिए कहना चाहिए.
इस फिल्म की कहानी विक्की कौशल के किरदार गोविंदा ए वाघमरे के ईर्द-गिर्द घूमती रहती है. इसमें कियारा आडवाणी, भूमि पेडनेकर, रेणुका शहाणे, अमेय वाघ, दयानंद शेट्टी और सयाजी शिंदे जैसे कलाकार भी अहम किरदारों में हैं. रणबीर कपूर का कैमियो भी हैं. लेकिन किस लिए, ये बात शायद फिल्म मेकर्स ही जानते होंगे. गोविंदा ए वाघमरे (विक्की कौशल) का मुंबई में एक बंग्ला है, जो कि उसके पिता ने खरीदा होता है. बंग्ले की कीमत 150 करोड़ रुपए होती है. यही वजह है कि उसका सौतेला भाई भी उस बंग्ले को पाने की कोशिश में लगा होता है. गोविंदा अपनी आशा वाघमरे (रेणुका शाहणे) और अपने वकील दोस्त (अमेय वाघ) के साथ उस बंग्ले को बचाने की कोशिश करता है. देखा जाए तो गोविंदा की जिंदगी परेशानियों से भरी होती है. एक तरफ प्रॉपर्टी का झगड़ा, दूसरी तरफ बीवी गौरी वाघमरे (भूमि पेडनेकर) से लफड़ा. बीवी घर के अंदर पति के सामने ही एक बीमा एजेंट से इश्क लड़ाती है, तो पति घर के बाहर सुकु (कियारा आडवाणी) नाम की लड़की से प्रेम करता है. वो अपनी पत्नी को तलाक देकर सुकु के साथ सुकून की जिंदगी जीना चाहता है.
गौरी वाघमरे तलाक के लिए दो करोड़ की मांग करती है. उसका कहना है कि उसके पिता ने शादी में दो करोड़ रुपए खर्च किया था. जबतक उसे ये पैसे नहीं मिलते तब तक वो गोविंदा को न चैन से जीने देगी, न ही तलाक देगी. पेशे से कोरियोग्राफर गोविंदा दो करोड़ के लिए अपने बंग्ले को बेचना चाहता है, लेकिन विवाद की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाता. अंत में एक दिन वो अपने सौतेले भाई से समझौता कर लेता है. उसको बंग्ले के ऐवज में उसे दो करोड़ रुपए मिल जाते हैं. लेकिन इसी बीच उस बंग्ले में गौरी की रहस्यमयी मौत हो जाती है. घर पहुंचने पर गोविंदा और सुकु को उसकी लाश मिलती है. दोनों डर के मारे उसकी लाश को बंग्ले के पास ही दफना देते हैं. इसी बीच उनको हादसे का शिकार हुई एक कार से ड्रग्स के पैकेट मिलते हैं. कार में शहर का बाहुबली नेता अजीत धारकर (सयाजी शिंदे) का बेटा होता है. दोनों पैकेट लेकर फरार हो जाते हैं, जो 5-6 करोड़ रुपए की कीमत का होता है. कोई इस बारे में अजीत को बता देता है. वो पुलिस भेजकर गोविंदा को गिरफ्तार करा देता है. इस तरह एक साथ कई कहानियां आपस में आकर उलझ जाती है.
'गोविंदा नाम मेरा' को एक फॉर्मूला बेस्ड फिल्म कहा जा सकता है. इसमें एक रेसिपी के तहत स्वादिष्ट फिल्म बनाने की नाकाम कोशिश की गई है. इसमें वो सारे जायके डाले गए हैं, जो कि ऐसा माना जाता है कि दर्शकों को अच्छे लगते हैं. लेकिन इतना कुछ डाल दिया गया है कि इस फिल्म का अपना कोई स्वाद ही नहीं है. न तो ये कॉमेडी फिल्म है, न ही थ्रिलर कहा जा सकता है. फिल्म की पटकथा उलझी हुई और बोरिंग है. निर्देशक ने एक पैटर्न पर काम किया है. ऐसा काम वो अपने असिस्टेंट को देते तो शायद वो भी कर लेता. एक्टिंग की जगह ओवर एक्टिंग की गई है. 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' और 'सरदार उधम' में अपनी दमदार एक्टिंग से लोगों प्रभावित करने वाले विक्की कौशल ने सबसे ज्यादा निराश किया है. यदि वो इसी तरह 3-4 फिल्में कर लिए तो उनका करियर खत्म ही समझिए. भूमि पेडनेकर ने अपनी स्मार्टनेस पर तो खूब काम किया है, लेकिन अभिनय करना जैसे भूल गई हैं. उनके फिल्मों का चुनाव भी ठीक नहीं है. कियारा आडवाणी रेणुका शहाणे, अमेय वाघ और दयानंद शेट्टी ने औसत दर्जे का अभिनय किया है. सयाजी शिंदे थोड़े प्रभावी लगे हैं.
कुल मिलाकर, धर्मा प्रोडक्शंस की फैक्ट्री से निकली 'गोविंदा नाम मेरा' औसत से भी खराब दर्जे की फिल्म है. यदि आप विक्की कौशल के फैन हैं, तो इस फिल्म को बिल्कुल भी ना देखें. उनकी पिछली फिल्मों के देखकर उनके लिए आपके मन में जो आदर होगा, वो इसे देखने के बाद खत्म हो जाएगा.
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